पर्यावरण का ज़िक्र होते ही जो पहली चीज़ दिमाग़ में आती है वो है एक हरा भरा पेड़ और हरियाली। हरियाली से याद आयी हरित ऊर्जा। और हरित ऊर्जा से याद आती है सोलर एनेर्जी। अब सोलर एनर्जी की बात करें तो याद आते हैं बड़े-बड़े काले सोलर पैनल।
ज़रा सोचिये अब अगर पेड़ और सोलर पैनल की खूबियाँ मिल जाएँ तो कैसा हो? पर्यावरण के लिए ज़रूर कुछ तो अच्छा होगा। लेकिन होगा क्या?
खैर, आपको न समझ आये तो कोई बात नहीं। आपके हिस्से का सोच-विचार वैज्ञानिकों ने कर लिया है और हमारे भारत में दुनिया का सबसे बड़ा सोलर ट्री बना लिया गया है। जी हाँ, एक ऐसा पेड़ जो हरित ऊर्जा का बेहतरीन स्त्रोत है।
दरअसल, केन्द्रीय यांत्रिक अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (सीएमईआरआई) ने दुनिया का सबसे बड़ा सोलर ट्री विकसित की है, जिसे सीएमईआरआई की आवासीय कॉलोनी, दुर्गापुर में स्थापित किया गया है।
सरल शब्दों में कहा जाये तो एक पोल पर सोलर पैनल्स को ऐसे सेट किया गया है कि कम से कम जगह में ज़्यादा से ज़्यादा पैनल्स लग जाएँ और ज़्यादा से ज़्यादा सूरज की किरणों को एनेर्जी में कन्वर्ट किया जा सके। यह मिनी सोलर पॉवर प्लांट एक पेड़ सा दिखता है और इसी लिए इसे सोलर ट्री कहा जाता है।
इस पेड़ के बारे में बताते हुए सीएमईआरआई के निदेशक प्रो (डॉ.) हरीश हिरानी ने कहा, “इस स्थापित सौर पेड़ की क्षमता 11.5 केडब्ल्यूपी से अधिक है। यह हर साल स्वच्छ और हरित ऊर्जा की 12,000-14,000 यूनिट्स उत्पन्न करने की क्षमता रखता है।”
इस सोलर ट्री को इस तरह से बनाया किया गया है कि इसके सभी पैनलों से सूरज की ज़्यादा से ज़्यादा रौशनी संचित की जा सके और इन पैनलों के नीचे कम से कम जगह खर्च हो। यह डिज़ाइन क्रन्तिकारी है। सोलर एनेर्जी के उत्पादन में ज़मीन की ज़रूरत काफ़ी होती है क्योंकि जितने बड़े और जितने ज़्यादा पैनल होंगे, उतनी ज़्यादा बिजली पैदा होगी। ऐसा कुछ करने के लिए जगह भी चाहिए। लेकिन अगर पैनलों को इस तरह से सेट किया जाये कि वो न सिर्फ़ कम जगह घेरें, बल्कि ऊर्जा भी घेरी गयी जगह के अनुपात में ज़्यादा दें, तो सोने पे सोहागा हो जाता है।
भारतीय वैह्ग्यनिकों द्वारा बनाए गए इस सोलर ट्री में हर पैनल में 330 डब्ल्यूपी की क्षमता के 35 सौर पैनल हैं। सोलर पैनलों को पकड़ने वाले हत्थे का झुकाव लचीला है और इसे ज़रुरत के हिसाब से सेट किया जा सकता है।
प्रो हिरानी आगे बताते हैं, “यह सोलर ट्री न सिर्फ़ दुनिया का सबसे बड़ा सोलर ट्री है, इसे ऐसे बनाया गया है कि इन पेड़ों का उपयोग उच्च क्षमता वाले पंपों, ई-ट्रैक्टरों और ई-पावर टिलर जैसी कृषि गतिविधियों में व्यापक रूप से किया जा सके।”
अगर इस तकनीक का सही प्रयोग हो तो वाक़ई भारत की ऊर्जा व्यवस्था की दशा और दिशा बदल सकती है और जीवाश्म ईंधन की जगह रेन्युब्ल्स ले सकते हैं।
हर सोलर ट्री में, जीवाश्म ईंधन से पैदा हुई ऊर्जा के मुक़ाबले 10-12 टन सीओ2 उत्सर्जन को रोकने की क्षमता है। इसके अलावा, जो अतिरिक्त उत्पन्न ऊर्जा होगी उसे ग्रिड में भेजा जा सकता है।
इस सोलर ट्री की कीमत 7.5 लाख रुपये होगी। इस कीमत पर इसकी उत्पादन क्षमता को जब देखा जाता है तो यह बेहद आकर्षक लगती है। इस विषय पर जानकारी देते हुए सीएमईआरआई की बिज़नेस डेवलपमेंट ग्रुप की विभागाध्यक्ष, डॉ अंजलि चैटर्जी, कहती हैं, “हमारी तमाम संस्थाओं से इसकी सेल के लिए बात चल रही है और हमें लगातार इसके लिए इन्क्वायरी आ रही हैं।” जहाँ विकास के नाम पर पेड़ काटे जा रहे हैं, वहाँ यह सोलर ट्री ही लगा दिए जाएँ तो भारत को कार्बन रहित बनाने की दिशा में यह पेड़ मील का पत्थर साबित होंगे।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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