ख़बर है कि कोल इंडिया उन अंडरग्राउंड खदानों में फिर से काम शुरू कर रहा है जहां माइनिंग रोक दी गई थी। उसका मकसद अपना कोयला उत्पादन बढ़ाना है ताकि 2023-24 तक सालाना 100 करोड़ टन कोयला निकालने का लक्ष्य पूरा हो सके। इस उद्देश्य के लिये ऐसे 12 ब्लॉक्स को चुना गया है जिनमें कुल करीब 1,060 मिलियन टन का भंडार है। इनमें से कुछ ब्लॉक्स तो ऐसे हैं जहां काम 20 साल पहले बन्द कर दिया गया था क्योंकि या तो उस वक्त इन खदानों से कोयला निकालना बहुत खर्चीला हो गया था या तकनीक उपलब्ध नहीं थी। कहा जा रहा है कि गहरी खदानों में बेहतर क्वॉलिटी का कोयला है और कम से कम 4 खदानों में तो कोकिंग कोल भी है जो भारत में बहुत कम पाया जाता है।
श्लुमबर्गर ने फ्रेकिंग से खींचा हाथ
ऑयल फील्ड क्षेत्र के उपकरण सप्लाई करने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में एक श्लुमबर्गर लिमिटेड ने अमेरिका और कनाडा में फैला अपना ये बिजनेस बेच दिया है। कोरोना महामारी के बाद तेल और गैस के दामों में भारी गिरावट के कारण कंपनी को यह कदम उठाना पड़ा है। श्लुमबर्गर के फैसले के बाद दो अन्य कंपनियों ने भी ऐसा ही कदम उठाया है। साफ है कि शेल गैस का कारोबार शायद अब अमेरिका में उस स्तर पर कभी न आ पाये जैसा कोरोना विस्फोट से पहले चल रहा था।