भारत सरकार ने पांचवां ड्राफ्ट नोटिफिकेशन जारी करके पश्चिमी घाटों के 56,800 वर्ग किलोमीटर इलाके को इकोलॉजिकल रूप से संवेदनशील घोषित किया है। छह राज्यों में फैले इस 56,800 वर्ग किमी इलाके में 13 गांव केरल के वायनाड जिले के भी हैं जहां पिछले हफ्ते भूस्खलनों में 300 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं।
कुल मिलाकर इस अधिसूचना के तहत प्रस्तावित इकोलॉजिकल रूप से संवेदनशील इलाके (ईएसए) में गुजरात में 449 वर्ग किमी, महाराष्ट्र में 17,340 वर्ग किमी, गोवा में 1,461 वर्ग किमी, कर्नाटक में 20,668 वर्ग किमी, तमिलनाडु में 6,914 वर्ग किमी और केरल में 9,993.7 वर्ग किमी शामिल हैं। केरल के 9,993.7 वर्ग किमी में भूस्खलन प्रभावित वायनाड जिले के दो तालुकों के 13 गांव हैं।
गौरतलब है कि सरकार की यह अधिसूचना वायनाड में भूस्खलन के एक दिन बाद जारी की गई है। विपक्ष ने सरकार पर इस अधिसूचना में देरी करने का आरोप लगाया है और कहा है कि यह देरी वायनाड में हुई घटना के लिए सीधे जिम्मेदार है।
ड्राफ्ट अधिसूचना में खनन, उत्खनन और रेत खनन पर पूर्ण प्रतिबंध प्रस्तावित है, साथ ही मौजूदा खदानों को मौजूदा खनन पट्टे की समाप्ति पर या अंतिम अधिसूचना जारी होने की तारीख से पांच साल के भीतर (जो भी पहले हो), चरणबद्ध तरीके से बंद कर दिया जाएगा। अधिसूचना में नई थर्मल पावर परियोजनाओं पर भी रोक लगाई गई है और कहा गया है कि मौजूदा परियोजनाएं चालू रह सकती हैं लेकिन उनके विस्तार की अनुमति नहीं होगी।
मौजूदा इमारतों की मरम्मत और नवीनीकरण को छोड़कर, बड़े पैमाने पर निर्माण परियोजनाओं और टाउनशिप को भी प्रतिबंधित करने का प्रस्ताव है।
साल 2010 में इकोलॉजिस्ट माधव गाडगिल की अध्यक्षता में बनी समिति ने पूरे पश्चिमी घाट को ईएसए की श्रेणी में रखने का सुझाव दिया था। लेकिन राज्य सरकारों की आपत्ति के कारण ऐसा नहीं किया गया। तबसे लेकर यह मांग उठती रही है कि पूरे पश्चिमी घाट को इकोलॉजिकल रूप से संवेदनशील घोषित किया जाए।
विशेषज्ञों का मानना है कि ईएसए कवर की अनुपस्थिति के परिणामस्वरूप सालों से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियां जारी रहीं। खनन और निर्माण के लिए बड़े पैमाने पर वनों की कटाई भी होती रही। इसके कारण मिट्टी ढीली हो गई और पहाड़ की स्थिरता प्रभावित हुई, जो भारी बारिश के दौरान भूस्खलनों की मुख्य वजह है, जैसा केरल में हुआ।
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