लक्ष्य से दूर

फोटो – लक्ष्य से दूर – साफ ऊर्जा को लेकर भारत के महत्वाकांक्षी लक्ष्य हैं लेकिन फिलहाल वह 2022 के लिये तय निशाने से पीछे छूट रहा है। Photo: Wikimedia Commons

साफ ऊर्जा लक्ष्य: सरकार सुस्त, संसदीय पैनल ने जताई चिन्ता

संसदीय समिति ने इस बात पर चिन्ता जताई है कि भारत साल 2022 तक 175 GW साफ ऊर्जा के संयंत्र लगाने के लक्ष्य से पीछे छूट रहा है।  साल 2016 के बाद से भारत सालाना लक्ष्य को हासिल नहीं कर पा रहा है। इस मामले में पिछले तीन साल से निर्धारित बजट से औसतन 10% कम खर्च किया जा रहा है। पैनल इस बात से आश्वस्त नहीं है कि साल 2022 तक 100 GW सौर ऊर्जा का लक्ष्य हासिल कर लेगा।

भारत साफ ऊर्जा लक्ष्य के लिये 4 लाख करोड़ खर्च करेगा: आर के सिंह

संसदीय समिति की फिक्र के बावजूद केंद्र सरकार को उम्मीद है कि वह साफ ऊर्जा का लक्ष्य हासिल कर लेगा।  केंद्रीय नवीनीकरण ऊर्जा मंत्री आर के सिंह का कहना है कि लक्ष्य को हासिल करने के लिये भारत अगले 3 साल में करीब 4 लाख करोड़ रूपये का निवेश करेगा। सिंह के मुताबिक 83.38 GW का लक्ष्य अक्टूबर 2019 तक हासिल हो चुका है। आर के सिंह ने कहा कि इंडियन रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी घरेलू और विदेशी बाज़ार में द्विपक्षीय और त्रिपक्षीय एजेंसियों समेत कई स्रोतों की मदद से धन इकट्ठा करेगी। सरकार ने इस क्षेत्र में 10 प्रतिशत विदेशी निवेश की इजाजत दी है।

छत्तीसगढ़: साफ ऊर्जा के लिये नियमों और गाइडलाइंस की घोषणा

छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा नये कोयला बिजलीघर न बनाने के ऐलान के बाद राज्य बिजली नियमन बोर्ड ने अब साफ ऊर्जा के नियमों की घोषणा की है जिसके तहत छत्तीसगढ़ राज्य बिजली नियमन कमीशन (State Electricity Authority Commission) सौर ऊर्जा के 0.5 मेगावॉट और 2 मेगावॉट से 5 मेगावॉट तक के संयंत्रों के जनरल टैरिफ तय करेगा। कमीशन ने  इन प्लांट्स की नॉरमेटिव कैपिटल कॉस्ट या
कार्यशील पूंजी 4.5 करोड़/ मेगावॉट (0.2 – 2 मेगावॉट) और 4.0 करोड़/ मेगावॉट (2-5 मेगावॉट) रखी है। पहले साल के लिये रखरखाव की दर 7 लाख रुपये प्रति मेगावॉट रखी है। कमीशन की तय की गई दरें और नियम 1 अप्रैल 2019 से लागू माने जायेंगे और अगले 3 साल तक प्रभावी रहेंगे। इन्हीं दरों पर साफ ऊर्जा कंपनियां वितरण कंपनियों को बिजली बेचेंगी।

भारत में BIS द्वारा स्वीकृत सौर उपकरण ही बिकेंगे

देश में बिकने वाले सभी सौर उपकरणों को भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) और नवीनीकरण ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) से सर्टिफिकेट लेना होगा। जो भी उपकरण बेचा जायेगा उसका ब्यौरा अप्रूव्ड लिस्ट ऑफ मॉड्यूल्स एंड मैन्युफैक्चरर्स (ALMM) में होना ज़रूरी है। लेकिन इस लिस्ट में शामिल होने से पहले 2 साल तक सरकार उत्पाद की क्वालिटी को देखेगी और कंपनी ऑडिट का मुआयना करेगी। तभी उन्हें सरकारी योजनाओं का फायदा मिलेगा और बिजली वितरण कंपनियां इन उपकरणों को खरीद पायेंगी। अंग्रेज़ी अख़बार मिंट में छपी ख़बर के मुताबिक गाइडलाइंस को 1 अप्रैल से लागू किया जायेगा।   इससे दोयम दर्जे के चायनीज़ प्रोडक्ट के बाज़ार में आने पर रोक लगेगी।

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