कोरोना महामारी को रोकने के लिये किये गये देशव्यापी लॉकडाउन के चलते सरकार ने अभी बन रहे साफ ऊर्जा प्रोजेक्ट्स को पूरा करने की समय सीमा तीन महीने तक बढ़ा दी है। समय सीमा में यह छूट हर प्रोजेक्ट के हिसाब से इन बातों को ध्यान में रखकर दिया जायेगा कि लॉकडाउन कब तक चलता है और काम कब से शुरू हो पाता है। सरकार की ओर से उठाये गये इस कदम से कंपनियों पर पेनल्टी का खतरा टल गया है।
कंपनियों को लगता है कि प्रोजक्ट के शुरुआत की तारीख में 6 महीने की देरी हो सकती है। इससे सोलर रूफ टॉप का 2022 तक रखा गया 40 GW लक्ष्य ज़रूर प्रभावित होगा क्योंकि उसकी कुल क्षमता अभी 3 GW ही बन पाई है। सरकार ने राज्यों से कहा है कि लॉकडाउन के वक्त भी साफ ऊर्जा सामग्री की आवाजाही को न रोका जाये।
कोरोना लॉकडाउन: बिजली की मांग गिरी, साफ ऊर्जा का दबदबा बढ़ा
क्या साफ ऊर्जा पर भारत की निर्भरता बढ़ रही है। अभी कोरोना महामारी के दौर में तो यही लग रहा है। पिछले साल इसी वक्त के मुकाबले इस साल भारत की पीक एनर्जी डिमांड में 25-40% की गिरावट हुई है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि पिछले 10 दिनों में कुल बिजली उत्पादन में 25% गिरावट दर्ज हुई है। पिछले साल के मुकाबले यह गिरावट 30% है। इस दौर में ज़्यादातर बिजली साफ ऊर्जा के स्रोतों से बन रही है। अभी भारत के कुल बिजली उत्पादन में साफ ऊर्जा का हिस्सा 27-29% है जो जो कि मार्च के तीसरे हफ्ते के मुकाबले 7-10% अधिक है।
सोलर पावर: 2022 तक तय लक्ष्य से पीछे रह सकता है भारत
संसद की स्थाई समिति ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में कहा है कि साफ ऊर्जा मंत्रालय को 2022 तक जो लक्ष्य हासिल करना है उसे पाने के लिये एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाना होगा। जनवरी के अंत तक कुल साफ ऊर्जा क्षमता 86.32 गीगावॉट थी। सरकार ने कहा है कि साल 2019-20 के लिये उसका कुल सोलर पावर का लक्ष्य 8,500 मेगावॉट था जिसमें से 31 जनवरी तक 5,885 मेगावॉट हासिल किया गया। साल 2022 तक भारत का कुल सौर ऊर्जा का लक्ष्य एक लाख मेगावॉट है जिसमें से अब तक केवल 34,000 मेगावॉट हासिल हुआ है।
मंत्रालय का कहना है कि साफ ऊर्जा प्रोजेक्ट लगाने वाली कंपनियां ज़मीन अधिग्रहण समेत कई समस्याओं का सामना कर रही हैं। इससे पहले पावर मिनिस्ट्री ने कहा था कि वितरण कंपनियां (डिस्कॉम) साफ ऊर्जा नहीं लेना चाहती क्योंकि जितनी सोलर या विन्ड पावर वह खरीदती हैं उन्हें थर्मल पावर में उतनी कटौती करनी पड़ती है जबकि नियमों के हिसाब से 1.60 रु प्रति यूनिट फिक्स चार्ज थर्मल प्लांट को चुकाना ही पड़ता है। इससे 2.44 रु प्रति यूनिट वाली सोलर उन्हें 4.04 रु प्रति यूनिट हो जाती है। इसके अलावा सोलर की उपलब्धता और पीक डिमांड के वक्त न मिलने को लेकर भी कंपनियां अनमनी रहती है।
हरियाणा: डिस्कॉम के कारण 1,000 मेगावॉट सोलर रूफटॉप प्रोजेक्ट अटका
क्या अपनी दादागिरी बरकरार रखने के लिये हरियाणा की बिजली वितरण कंपनियां राज्य के रूफ टॉप प्रोजेक्ट्स में अडंगा लगा रही हैं। कम से कम सौर पैनल लगा रही कंपनियों का तो यही आरोप है। उनका कहना है कि ‘ओपन एक्सिस’ की मदद से वह बिना डिस्कॉम के ज़रिये सीधे ग्रिड तक बिजली पहुंचा सकते हैं लेकिन इसके लिये उन्हें वितरण कंपनियों की सहमति चाहिये। कंपनियों का कहना है कि वितरण कंपनियां इस स्कीम में अडंगा लगा रही हैं क्योंकि बिचौलिया बने बगैर उन्हें घाटा होता है। इस वजह से 1000 मेगावॉट क्षमता के पैनल बिजली नहीं दे पा रहे।
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