बैटरी वाहनों को बढ़ावा देने के लिये फेम-2 योजना में 10,000 करोड़ की सब्सिडी का फायदा होता नहीं दिख रहा। इसकी वजह या तो ट्रांसपोर्ट विभाग के पास पैसे की कमी या फिर हर बैटरी बस के लिये भारी भरकम बैंक गारंटी है। इसकी वजह से निवेशक अपना रिस्क कम करने के लिये ऊंची बोली लगा रहे हैं। मिसाल के तौर पर दिल्ली सरकार हर बैटरी बस के लिये 20 लाख बैंक गारंटी मांग रही है जबकि अन्य राज्य 2-3 लाख मांग रहे हैं।
कुछ विभागों के पास तो पैसे की इतनी कमी है कि वह सब्सिडी के पैसे से ही स्टाफ को तनख्वाह दे रहे हैं। राज्यों को सब्सिडी का फायदा उठाने के लिये 3 महीने में टेंडरों को अंतिम रूप देना है और 12 महीने के भीतर बसों की डिलीवरी सुनिश्चित करनी है। पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इस बीच संसद को बताया है कि फेम योजना के तहत करीब 2.85 लाख इलैक्ट्रिक/हाइब्रिड वाहन खरीदारों को 360 करोड़ की सब्सिडी की फायदा मिला है।
आंध्र प्रदेश ने राज्य परिवहन बेड़े में ई-बस शामिल करनी की योजना रद्द की
आंध्र प्रदेश में पब्लिक ट्रांसपोर्ट में बैटरी बसों को शामिल करने की मुहिम को झटका लगा जब राज्य सरकार ने 350 इलैक्ट्रिक बसों को APSRTC के बेड़े में शामिल करने की योजना रदद् कर दी। पहले केंद्र सरकार की योजना 1000 बैटरी बस खरीदने की थी जिनकी संख्या बाद में घटाकर 350 कर दी गई। अब टेंडर में भाई-भतीजावाद के आरोपों के बाद मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने सारी योजना रद्द कर दी है।
दुबई: 2021 तक मुफ्त में चार्ज कीजिये बैटरी वाहन
निजी वाहनों के लिये 2021 के अंत तक फ्री बैटरी चार्ज की सुविधा दी गई है। दुबई इलेक्ट्रिसिटी एंड वॉटर अथॉरिटी ने यह पहल की है। इसके बाद वाहन निर्माता वोल्वो ने भी अपने XC 40 वाहनों के लिये पहले साल फ्री चार्जिंग की घोषणा की। दुबई में यह उम्मीद की जा रही है कि साल 2020 आने तक नई कारों में 10% हिस्सा बैटरी कारों का होगा।
जर्मनी: मर्सिडीज़ करेगी नौकरियों और निवेश में कटौती
जर्मनी की मर्सिडीज़-बेंज 1000 लोगों को नौकरियों से हटाने की तैयारी में है। कंपनी अपने खर्च में करीब €165 करोड़ की कमी करना चाहती है क्योंकि उसकी प्रीमियम IC इंजन कार नहीं बिक रही हैं। यह कटौती 2022 तक की जायेगी और कंपनी का कहना है इस बीच वह उपकरण खरीद, रिसर्च और प्रॉपर्टी में भी निवेश कम करेगी। इसका इंजन बनाने वाली कंपनी कॉन्टिनेंटल भी साल 2028 तक 5000 से अधिक लोगों को नौकरियों से हटायेगी। पूरे यूरोपियन यूनियन देशों में कंपनियां फिलहाल कड़े उत्सर्जन मानकों के अनुरूप कार इंजन बनाने की चुनौती से जूझ रही हैं।