जी हाँ, ये कहना है बर्कली यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का जिन्होंने ऐसी तकनीक खोज निकाली है जिससे लीथियम आयन बैट्री की लाइफ़ और एनेर्जी डेंसिटी इतनी बढ़ जायगी कि हमारे आपके परिवहन के तरीके बदल जायेंगे। जानने के लिए आगे पढ़ें।
बैट्री की गाड़ी लेते वक़्त हर किसी के ज़हन में दो सवाल ज़रूर आते हैं। पहला ये कि कहीं रास्ते में बैट्री का चार्ज खत्म हो गयी तो क्या? और दूसरा ये कि बैट्री कितने समय बाद बदलनी पड़ेगी?
सवाल तो दोनों ही वाक़ई बड़े एहम हैं लेकिन इनका जवाब बैट्री की गाड़ी बेचने वाले सेल्समैन के लिए देना मुश्किल होता है। अब वो बेचारा जवाब दे भी तो भला क्या? ये बात तो सच है ही की फ़िलहाल देश में गाड़ियों के चार्जिंग स्टेशन उतने नहीं की ग्राहकों को गाड़ी खरीदने से पहले घबराहट न हो। इस घबराहट को अंग्रेज़ी में रेंज एंगज़ायटी कहते हैं। साथ ही फ़िलहाल बैट्री की कीमतों की वजह से ये गाड़ियाँ इतनी सस्ती भी नहीं कि सबकी पहुँच में हों। और अगर हर दो-तीन साल में उसकी महंगी बैट्री बदलने का खर्च भी उठाना पड़े तो ग्राहक का अपने लिए विकल्प सोचने पर मजबूर होना लाज़मी ही है। इन्हीं सब वजहों से लोग बैट्री की गाड़ियों से दूरी बनाने पर मजबूर हो जाते हैं।
लेकिन बर्कली यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने इस रेंज एंगज़ायटी से निजात दिलाने वाली तकनीक खोज ली है। और वैज्ञानिकों की मानें तो ये तकनीक ऐसी है की अब न सिर्फ़ आपकी गाड़ी सुपर चार्ज हो कर लम्बी दूरी तक चलेगी; अब हवाई जहाज़ भी उड़ सकेंगे बैट्री के चार्ज से।
जी हाँ, इस हैरतअंगेज़ बात का ख़ुलासा हुआ है प्रसिद्ध मैगज़ीन नेचर, में प्रकाशित लॉरेंस बर्कली नैशनल लैबोरेट्री और कार्नेजी मेलन युनिवेर्सिटी के साझा शोध के नतीजों की रिपोर्ट में। शोधकर्ताओं ने बताया है कि उन्होंने पॉलीमर और सेरेमिक से बना एक ऐसा सॉफ्ट इलेक्ट्रोलाइट खोज निकाला है जो लीथियम बैट्री के एनोड पर डेनड्राईट नहीं बनने देता।
डेनड्राईट दरअसल लीथियम बैट्री के बार-बार चार्ज और डिस्चार्ज होने से उसके एनोड, मतलब नेगेटिव इलेक्ट्रोड, पर पेड़ की शाखों जैसे दिखने वाली ख़राबी होती है।
अब वैज्ञानिक बैट्री में लीथियम को लाये तो इसलिए थे क्योंकि उसकी वजह से, ग्रेफाइट एनोड के मुक़ाबले, बैट्री गाड़ियों की ड्राइविंग रेंज तीस से पचास प्रतिशत तक बढ़ जाती है, लेकिन लीथियम पर बनने वाले डेंड्राइट बैटरी के जीवन को छोटा कर देते हैं। और वो डेंड्राइट अगर कैथोड के साथ संपर्क बना लेते हैं तो बैटरी में शॉर्ट-सर्किट भी कर देते हैं।
अपनी इस तकनीक के बारे में बताते हुए इस रिपोर्ट के सह-लेखक, और बर्कली लैब की मोलेक्युलर फाउंड्री में स्टाफ साइंटिस्ट, ब्रेट हेल्म्स, कहते हैं, “हमारी यह डेंड्राइट को बनने से रोकने वाली तकनीक बैट्री इंडस्ट्री के लिए बेहद रोमांचक संभावनाओं के साथ आती है। इस तकनीक की मदद से अब निर्माता लम्बे जीवन काल और ज़्यादा एनेर्जी डेंसिटी वाली सुरक्षित लीथियम बैट्री बना पाएंगे।” आगे, हेल्म्स कहते हैं, “इस नई इलेक्ट्रोलाइट के साथ निर्मित लिथियम धातु बैटरी का उपयोग बिजली के विमानों को ऊर्जा देने के लिए भी किया जा सकता है।”
अपनी इस खोज पर ख़ुशी व्यक्त करते हुए इस रिपोर्ट के दूसरे सह-लेखक, वेंकट विश्वनाथन, कहते हैं, “अपनी परिकल्पना को असलियत में बदलता देखना एक अद्भुत अनुभव है।”
वेंकट, कार्नेजी मेलन युनिवेर्सिटी के स्कोट इंस्टिट्यूट फॉर एनेर्जी इनोवेशन में फ़ेलो हैं और मेकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग में असोसिएट प्रोफ़ेसर भी हैं। इन्होने इस शोध के सैद्धांतिक अध्ययन का नेतृत्व किया है। और इस खोज की मानें तो यह नयी तकनीक लीथियम आयन बैट्री की लाइफ़ और एनेर्जी डेंसिटी आश्चर्यजनक तरीके से बढ़ा देती है।
वेंकट आगे बताते हैं, “2017 में, जब दुनिया ये मानती थी कि आपको एक हार्ड इलेक्ट्रोलाइट चाहिए होता है, तब हमने डेंड्राइट को बनने से रोकने के लिए एक सॉफ्ट इलेक्ट्रोलाइट की परिकल्पना की।”
और इस अकल्पनीय परिकल्पना के वास्तविकता में बदलने पर एक बेहद उत्साहजनक दावा करते हुए हेल्म्स कहते हैं, “ये सच है कि eVTOLS (इलेक्ट्रिक वर्टीकल टेकऑफ एंड लैंडिंग व्हीकल्स) EV (इलेक्ट्रिक व्हीकल्स) के लिए अलग-अलग प्रकार की ऊर्जा चाहिए होती है, लेकिन यह नयी तकनीक दोनों को ही आवश्यक ऊर्जा देने के लिए कारगर लगती है।” हेल्म्स का ये दावा अगर सच होता है तो वाक़ई न सिर्फ़ हमारे-आपके परिवहन के जल्द तरीके बदल जायेंगे, हमारे पर्यावरण के लिए यह एक बेहद सकारात्मक वैज्ञानिक खोज साबित होगी।
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