संवेदनशील मामले में कोताही: जानकार भागीरथी के संवेदनशील इको क्षेत्र में बदलाव पर सरकार से सहमत नहीं हैं | Photo: Scoopnest

भागीरथी ज़ोनल प्लान: विशेषज्ञ अंतिम ड्राफ्ट से सहमत नहीं

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भागीरथी इको सेंसटिव ज़ोन के लिये जो विशेषज्ञ कमेटी बनाई थी वह राज्य सरकार द्वारा बनाये गये ज़ोनल मास्टर प्लान (ZMP) के अंतिम ड्राफ्ट से सहमत नहीं है। विशेषज्ञ पैनल का मतभेद सड़क के पहाड़ को काटने और भूमि इस्तेमाल संबंधी कानूनों में बदलाव को लेकर है। यह चिंतायें केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की वेबसाइट पर  प्रकाशित ZMP के परिशिष्ट (एनेक्सचर)  में रेखांकित हैं। भागीरथी इको सेंसटिव ज़ोन गोमुख से उत्तरकाशी तक है जो करीब 4100 वर्ग किलोमीटर में फैला है जिसमें 88 गांव आते हैं। ज़ोनल मास्टर प्लान में सरकार ने “व्यापक जनहित और राष्ट्रीय सुरक्षा” के नाम पर  भू – प्रयोग (लैंड यूज़) में बदलाव का अधिकार दिया है।

चंबल के बीहड़ों को बनाया जायेगा उपजाऊ

मध्य प्रदेश में कभी डकैतों के लिये बदनाम रहे चंबल के बीहड़ों को अब खेती के लिये उपजाऊ बनाने की तैयारी हो रही है। केंद्र सरकार अब विश्व बैंक के साथ मिलकर एक योजना बना रही है जिसके तहत ग्वालियर-चंबल पट्टी की 3 लाख हेक्टेयर ऊबड़खाबड़ ज़मीन को खेती लायक बनाया जायेगा। सरकार का कहना है कि इससे कृषि को बढ़ाने के साथ रोज़गार भी पैदा होगा। चंबल के नाले कभी डकैतों का घर रहे हैं और ये इलाका आर्थिक-सामाजिक रूप से काफी पिछड़ा रहा है।

रेलवे प्रोजेक्ट्स के लिये वन्यजीव अनुमति की ज़रूरत नहीं

नये नियमों के मुताबिक अब रेलवे प्रोजेक्ट, 20,000 वर्ग मीटर से कम के निर्माण कार्य और 25 MW तक के हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स के लिये नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ की अनुमति नहीं होगी चाहे ये प्रोजेक्ट संवेदनशील इलाकों (ESZ) में ही क्यों न बन रहे हों। पर्यावरण मंत्रालय ने इसे लेकर राज्यों को चिट्ठी लिखी है।  साल 2011 की गाइडलाइनों के मुताबिक 10 किलोमीटर रेडियस के इको सेंसटिव ज़ोन बनाने के पीछे वन्य जीवों और जैव विविधता को बचाने की भावना और रणनीति रही है। साल 2002 में वन्य जीव संरक्षण रणनीति के तहत भी अभ्यारण्यों के बाहर 10 किलोमीटर का “बफर” बनाने की सिफारिश थी। साल 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने इको सेंसटिव ज़ोन (ESZ) घोषित करने में ढिलाई पर एक सुनावयी के दौरान सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा था कि इस रणनीति का पालन हो।

एक तिहाई बाघ हैं अभ्यारण्यों के बाहर

भारत में हर तीन में से एक बाघ टाइगर रिज़र्व के बाहर है। यह बात स्टेटस ऑफ टाइगर रिपोर्ट में कही गई है। साल 2014 में किये गये एक अध्ययन में हर चार में से एक बाघ रिज़र्व के बाहर था। यानी अब रिज़र्व के बाहर बाघों की संख्या बढ़ रही है जो एक चिन्ता का विषय है।  ताज़ा गणना के हिसाब से देश में अभी कुल 2,967 बाघ है जिनमें से 1,923 ही अभ्यारण्यों के भीतर हैं यानी 35% बाघ रिज़र्व के बाहर हैं।

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