सामान्य से अधिक बरसात के बाद अब सितंबर के आखिरी हफ्ते में मॉनसून का सीज़न खत्म हो रहा है। आधिकारिक डाटा के मुताबिक सितंबर 26 तक देश में सामान्य से 9% अधिक बारिश हुई थी। नौ राज्यों में अधिक बरसात हुई जबकि 20 राज्यों में सामान्य बारिश हुई। मॉनसून के महीनों – जून से सितंबर – में बरसात का पैटर्न असामान्य था। पहले जून में 17% अधिक बारिश हुई फिर जुलाई में कुल बरसात 10% कम रही लेकिन अगस्त में 27% अधिक पानी बरसा।
उधर रेडक्रॉस की ताज़ा रिपोर्ट में बरसाती बाढ़ को भारत में “सबसे बड़ी अकेली आपदा” बताया गया है। इसमें 1.7 करोड़ लोग प्रभावित हुए और 1,000 से अधिक लोगों की जान गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना महामारी और बाढ़ से भारत और बांग्लादेश में कुल 4 करोड़ लोग प्रभावित हुये हैं। रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि प्रभावित लोगों का यह आंकड़ा कहीं अधिक बड़ा हो सकता है क्योंकि इसके बारे में अधिक आंकड़े उपलब्ध नहीं किये जा सके।
पेरिस संधि के मानक पूरे करने पर भी बढ़ेगा समुद्र स्तर 2.5 मीटर
जहां एक दुनिया भर में चर्चा है कि जलवायु परिवर्तन के असर को रोकने के लिये पेरिस संधि में तय किये मानकों को कैसे पूरा किया जाये वहीं दूसरी ओर एक नये शोध के मुताबिक अंटार्कटिक में पिघलती बर्फ की वजह से समुद्र स्तर में 2.5 मीटर की बढ़ोतरी होना तय है। नेचर पत्रिका में छपे शोध में बताया गया है कि ध्रुवों पर बर्फ के पिघलने का सिलसिला अगली सदी में भी जारी रहेगा। इससे होना वाले नुकसान की भरपाई नामुमकिन होगी। तापमान वृद्धि को पेरिस संधि के तरह रखे गई 2 डिग्री की सीमा के भीतर रोक भी लिया गया तो ध्रुवों पर बर्फ के नुकसान की भरपाई नहीं हो पायेगी।
नॉर्डिक देश: क्लाइमेट न्यूट्रल बनने की राह में खड़ी है चुनौती
उत्तरी यूरोप स्थित डेनमार्क, फिनलैंड, नॉर्वे, आइसलैंड और स्वीडन जैसे देशों (जिन्हें नॉर्डिक देश भी कहा जाता है) का लक्ष्य है साल 2050 तक कार्बन न्यूट्रल होने का है। लेकिन उन्हें अपनी बिजली की ज़रूरत पूरा करने के लिये 290 टेरावॉट आवर (TWh) बिजली की ज़रूरत होगी यानी उनके वर्तमान उत्पादन में 75% की बढ़ोतरी होगी। साफ है कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये घरों में इस्तेमाल होने वाली बिजली के अलावा उद्योगों और परिवहन के लिये भी ऊर्जा के साफ विकल्प खोजने होंगे।
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