Photo: The Hindu

क्या बिना चीन के भारत अपने सोलर सपने हक़ीक़त में बदल पायेगा?

अक्षय ऊर्जा के ज़रिये भारत में 50 लाख लोगों को रोज़गार मिल सकता है लेकिन भारत सरकार चीन से इम्पोर्ट होने वाले सोलर मॉड्यूल पर लगने वाली इम्पोर्ट ड्यूटी को दोगुना कर रही है। ऐसे में क्या घरेलू निर्माता चीन के सस्ते माल का विकल्प बन पाएंगे? क्या चीन से रिश्ते भारत की सोलर महत्वाकांक्षाओं पर अंकुश लगायेंगे? 

भारत और चीन के रिश्तों में बढ़ती खटास सिर्फ़ सामरिक और भू-राजनीतिक दृष्टि से एहम नहीं। रिश्तों की यह खटास भारत के सोलर एनेर्जी के गढ़ बनने के सपने को भी हक़ीक़त में बदलने से रोकने की तासीर रखती है। और इन हालात में सोलर एनेर्जी उद्योग से 50 लाख रोज़गार पैदा होने की सम्भावना भी खटाई में पड़ती दिखता है।

दरअसल बीती जून में लद्दाख की गलवान घाटी में चीन के साथ हुई भारतीय सैनिकों की झड़प ने हालात अब कुछ ऐसे कर दिए हैं कि भारत सरकार पर अपने पड़ोसी के साथ किसी भी कीमत पर रिश्तों के धागे तोड़ने का ख़ासा दबाव है।

चीन और भारत के रिश्ते तो ऐतिहासिक रूप से तनावपूर्ण रहे हैं, लेकिन जून में गलवान घाटी के सैन्य गतिरोध ने तो उस तनाव को एक पूरी ट्रेड वॉर में बदल दिया। बात ट्रेड वॉर की करें तो भारत तो 2018 के बाद से ही स्थानीय सोलर निर्माताओं को सस्ते चीनी आयात से बचाने के लिए एंटी-डंपिंग कानूनों की मदद से उपाय कर रहा है। लेकिन सरकार अब चीन और मलेशिया से आयातित सोलर सेल्स और मोडयुल्स पर कस्टम ड्यूटी को दोगुना कर रही है। मलेशिया यहाँ इसलिए बीच में है क्योंकि कुछ चीनी कम्पनियों ने भारत से बन रहे ट्रेड बैरियर से बचने के लिए यह रस्ता अख्तियार किया है।

पावर एंड रिन्यूएबल एनर्जी मिनिस्ट्री के मुताबिक जहाँ सोलर मॉड्यूल पर 25 प्रतिशत तक की ड्यूटी लगाने और पहले साल के दौरान सोलर सेल्स पर 15 प्रतिशत टैरिफ लगाने की योजना है, वहीँ दूसरे साल इन दरों को क्रमशः 40 और 30 प्रतिशत तक बढ़ाने का इरादा है। हालाँकि सरकार का पहले इरादा था कि नये नियम पुराने खत्म हो जाने के बाद लागू करें, लेकिन फ़िलहाल हुआ कुछ ऐसा है कि एक साथ नए और पुराने नियम लागू हैं जिससे सभी आयातों पर दो बार कर लग रहा है।

इससे समझ यह आता है कि एक ओर सरकार भारतीय उत्पादकों के लिए माहौल ठीक करने की कोशिश कर रही हैं वहीँ दूसरी ओर कोविड की आर्थिक मार से उबरने के लिए शुरू किये गए आत्मनिर्भर भारत अभियान की सफलता की सम्भावना भी इस फैसले से बढ़ती दिखती है। भारत वैसे भी 2022 तक 100GW की सोलर क्षमता बनाने का इरादा किये हुए है। बल्कि इस साल 31 मार्च तक ही 37 GW की क्षमता स्थापित कर ली गयी।  

हालाँकि, पेशेवर चिंता करते हैं कि ऐसे कठोर और अल्पकालिक उपाय उत्पादकों और निर्माताओं दोनों को ही नुकसान पहुँचाएंगे, और इससे भारत की प्रगति पर उल्टा असर पड़ेगा।

नेशनल सोलर एनर्जी फेडरेशन ऑफ इंडिया के सीईओ सुब्रमण्यम पुलिपका मीडिया को दिए एक बयान में कहते हैं कि आयात पर निर्भरता कम कर देना कोई उपाय नहीं और सरकार को एक दीर्घकालिक रणनीति पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उनकी मानें तो फ़िलहाल 30GW की कुल क्षमता के 110 सोलर प्रोजेक्ट कतार में हैं और इस नए फ़ैसले से उन्हें किसी न किसी प्रकार की छूट मिलनी चाहिए।

रिसर्च फर्म मरकॉम इंडिया के अनुसार, तमाम मौजूदा आर्थिक बाधाओं के बावजूद, 2019 के आखिरी तीन महीनों में भारत के कुल सोलर मॉड्यूल और सेल्स में 85 फ़ीसद चीन से आयात किए गए थे, और 5.5 प्रतिशत वियतनाम और 4 फ़ीसद थाईलैंड से आए थे। इस आँकड़े से यह तो साफ़ ही है कि चीन पर भारत की निर्भरता इतनी गहरी है कि यहाँ निर्माता सिर्फ़ दो सालों आत्मनिर्भर नहीं हो सकते। लेकिन यह स्थिति बड़ी विकट है क्योंकि जहाँ एक ओर विदेशी निवेशक भारतीय सौर प्रतिष्ठानों से आकर्षित हो रहे हैं, वहीँ भारत में बिना चीन की भूमिका के उत्पादन  के क्षेत्र में अनुकूल माहौल नहीं हैं।

भारत की दूसरी सबसे बड़ी सोलर कम्पनी, ज्यूपिटर सोलर, के सीईओ ध्रुव शर्मा इस विषय पर बात करते हुए एक पत्रिका को दिए बयान में कहते हैं, “हमें जो चाहिए, वो है कम से कम पांच साल तक के लिए इस सबसे सुरक्षा। और इस समय में हम खुद को आर्थिक रूप से स्थिर करने और नई तकनीकों में निवेश करने के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनायेंगे।” वो आगे कहते हैं, “यह बात तय है कि कोई भी कम्पनी अकेले, बिना सरकारी मदद के, चीन के सोलर उद्योग साम्राज्य को टक्कर नहीं दे सकती।”

इन तथ्यों पर ध्यान देने के बाद अगर फिनलैंड की लापीनराटा-लाटी यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्‍नॉलॉजी (एलयूटी) और दिल्‍ली स्थित क्‍लाइमेट ट्रेंड्स के एक अध्‍ययन पर गौर करें तो दुःख होता है कि हालात ऐसे क्यों हो गए हैं।

दरअसल इस अध्‍ययन में दावा किया गया है कि वर्ष 2050 तक उत्‍तर भारत की ऊर्जा प्रणाली को 100 फीसद अक्षय ऊर्जा आधारित प्रणाली में तब्‍दील किया जा सकता है। और वर्ष 2050 तक जहाँ उत्‍तर भारत में ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) के उत्‍सर्जन की मात्रा को शून्‍य किया जा सकता है, वहीं रोजगार के 50 लाख नये अवसर भी पैदा किये जा सकते हैं।

वर्ल्ड सोलर टेक्नोलॉजी समिट में इस अध्ययन को पेश करने वाले और एलयूटी यूनिवर्सिटी में सोलर इकॉनमी के प्रोफेसर क्रिश्चियन ब्रेयर ने कहा “हाल के वर्षों में दुनिया भर में सौर तथा वायु ऊर्जा की कीमतों में बहुत तेजी से गिरावट हुई है और बैटरी स्टोरेज उपलब्ध होने से ऊर्जा प्रणाली में अक्षय ऊर्जा की भागीदारी बहुत बढ़ने की संभावना है, जैसा कि इस अध्ययन में भी कहा गया है। उत्तर भारत में अक्षय ऊर्जा और बैटरी स्टोरेज की सुविधा ऊर्जा क्षेत्र की रीढ़ बन सकती है।” लेकिन सबसे बड़ा सवाल जिसका जवाब तलाशना बाकी है वो है कि क्या भारत बिना चीन पर निर्भरता के क्या यह सब हासिल कर पायेगा?

Website | + posts

दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.