झुलसता कारोबार: ग्लोबल वॉर्मिंग से भारत के उद्योग धन्धों पर निश्चित असर पड़ रहा है| फोटो - Rajya Sabha TV

बढ़ते तापमान का सीधा असर भारत के औद्योगिक उत्पादन पर

एक नये शोध में यह पता करने की कोशिश की गई है कि कड़ी धूप और तापमान के कारण भारत का औद्योगिक उत्पादन कितना प्रभावित हो रहा है। यह पाया गया है कि 1980-2000 के बीच सालाना औसतन एक डिग्री तापमान वृद्धि   पर औद्योगिक राजस्व में 2%  की गिरावट हुई। दिल्ली स्थित भारतीय सांख्यकीय संस्थान (आईएसआई) और शिकागो विश्वविद्यालय ने 58,000 फैक्ट्रियों से मिले आंकड़ों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है। यह शोध इसलिये महत्वपूर्ण है क्योंकि सरकार भारत को दुनिया का औद्योगिक केंद्र बनाना चाहती है। इस अध्ययन में कहा गया है कि अगर भारत सस्ते मज़दूरों के दम पर उत्पादन जारी रखना चाहता है कि उसे बढ़ते तापमान से निपटने के लिये गंभीर कदम उठाने होंगे। 

गर्म होती धरती का असर पूरी दुनिया की कृषि पर 

उधर धरती के बढ़ते तापमान का असर पूरी दुनिया की कृषि उत्पादकता पर भी पड़ रहा है। नेचर क्लाइमेट चेंज जर्नल में छपी रिसर्च कहती है कि 1961 से – जब  ग्लोबल वॉर्मिंग के ऐसे प्रभाव नहीं थे – अब तक फसल और पशुओं की उत्पादकता 21% कम हुई है। इस नतीजे पर पहुंचने के लिये शोध में श्रमिकों, खाद और उपकरणों के रुप में इनपुट को और खाद्य उत्पादन को आउटपुट में नापा गया।  

गिरते भूजल से गर्मियों में होगी पानी की हाहाकार: सर्वे 

बिहार  में इस साल गर्मियों में गंभीर जल संकट हो सकता है। राज्य के पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग विभाग (पीएचईडी) के सर्वे में राज्य के 38 ज़िलों में कम से कम 8 जगह पानी के जल स्तर में गंभीर गिरावट देखी है। बिहार के कम से कम 11 ज़िले “जल संकटग्रस्त” (वाटरस्ट्रेस्ड) घोषित किये गये हैं। एक अन्य सर्वे में पाया गया है कि गंगा बेसिन में एक चौथाई सरकारी वॉटर बॉडीज़ सूख गई हैं।  यह वॉटर बॉडीज़ उत्तराखंड, यूपी, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल उन सभी पांचों राज्यों में बिखरी हैं जहां से गंगा होकर जाती है। क्वॉलिटी काउंसिल ऑफ इंडिया (क्यूसीआई) ने एसोचैम, सीसीआई और फिक्की के सहयोग से यह सर्वे किया और पाया कि 16% वॉटर बॉडी यूट्रोफिक (उथली, गाद और वनस्पतियों से भरी) थी जबकि केवल 56% पानी देने लायक थीं। इस शोध में 578 वॉटर बॉडीज़ का अध्ययन किया गया और पाया गया कि इनमें से 411 के चारों ओर लोगों की बसावट थी।   

अंटार्कटिका: सदी के अंत तक होंगी भारी बरसात की घटनायें

एक नये अध्ययन ने दावा किया है कि गर्म होते अंटार्कटिका में सदी के अंत तक बार-बार अति वृष्टि की घटनायें होने लगेंगी। इस क्षेत्र के 10 मौसम स्टेशनों के आंकड़ों के आधार पर की गई यह स्टडी जियोफिज़िकल रिसर्च इवेन्ट्स नाम के जर्नल में छपी है। इसके मुताबिक बरसात महाद्वीप के उन इलाकों को भी प्रभावित करेगी जहां अभी बारिश नहीं होती है। इसका असर अंटार्कटिका में तेज़ी से सतह की बर्फ पिघलने के रूप में दिख सकता है। 

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