जी हाँ, अकेले दिल्ली वाले नहीं घोल रहे दिल्ली की हवाओं में ज़हर। जहाँ एक ओर पाकिस्तान से, तो दूसरी ओर यूपी, नेपाल, पंजाब, हरियाणा की सीमा से हवाओं में बह कर पहुँच रहे हैं दर्जनों तत्व जो दिल्ली की हवा में प्रदूषण के स्तर बढ़ा रहे हैं।
बीते कुछ सालों में सर्दियों में कभी दिल्लीवालों को दिवाली पर आतिशबाज़ी करने से रोका गया, तो कभी उन्हें अपनी गाड़ी आड-इवेन के नियम से चलाने की हिदायत दी गयी। वजह रही सर्दियों में दिल्ली में प्रदूषण का जानलेवा स्तर तक बढ़ जाना।
और इस साल, इसी सब के चलते, बीते गुरूवार को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने सर्दियों के मौसम में वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों के अधिकारियों की तैयारियों की समीक्षा की। सीपीसीबी द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, “एजेंसियों को जुलाई के पहले सप्ताह तक एक विस्तृत कार्य योजना प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है।”
अकेले दिल्ली वाले नहीं घोलते दिल्ली की हवाओं में ज़हर। दिल्ली की हवा में अगर कापर के कण मुरादाबाद से पहुँच रहे हैं तो लेड के कण नेपाल के बैटरी कारखानों से उड़ कर आ रहे हैं।
इस बात का ख़ुलासा भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), कानपुर, में के प्रोफेसर सच्चिदानंद त्रिपाठी की टीम द्वारा दिल्ली की हवा में घुले इन जहरीले तत्वों के “real time source apportionment in Delhi” शीर्षक से हुए अध्ययन में हुआ है। जिसके अंतर्गत दिल्ली की हवा में प्रदूषण करने वाले कारकों और उनके उद्गम की पहचान की गयी है।
शोध के मुताबिक़ सर्दियों में दिल्ली एनसीआर की हवा में अलग-अलग दिशाओं से ज़हरीले धूलकण घर बना लेते हैं। शोध में इन धूल कणों में 26 प्रकार के तत्व पाए गए हैं जिनकी ज्यादा मात्रा स्वास्थ्य के लिए घातक होती है। इन 26 तत्वों में मुख्य रूप से आर्सेनिक, कैडमियम, एलुमिनियम, सिलिकान, सल्फर, फास्फोरस, क्लोरीन, पोटेशियम, क्रोमियम, कोबाल्ट, निकल आदि तत्व पाए गए हैं। ये सभी तत्व पीएम 10 और पीएम 2.5, दोनों में पाए जाते हैं।
शोधकर्ताओं ने 20 जनवरी से 11 मार्च 2018 तथा 15 जनवरी से 9 फरवरी 2019 के दौरान दिल्ली में आनलाइन मैटीरियल मानीटर के जरिये धूलकणों की रियल टाइम मानीटरिंग की। इससे हवा में घुले तत्वों तथा उनके स्रोत की पहचान की गई। लेड, क्रोमियम समेत कई तत्व तो तय सीमा से अधिक मात्रा में पाए गए हैं।
साथ ही धूलकणों के अलग-अलग स्रोत भी पाए गए हैं। इस शोध से पता चला है कि कम से कम तीन वायु गलियारों से होते हुए ये प्रदूषक कण दिल्ली के PM2.5 और PM10 के स्तरों को बढ़ाते हैं। वैज्ञानिकों ने बताया है कि हर वायु गलियारा एक ख़ास प्रकार के तत्वों को दिल्ली की ओर ला रहा है। जहाँ उत्तर पश्चिमी गलियारे में पाकिस्तान, पंजाब, और हरियाणा से आ रहे प्रदूषण कणों में क्लोरीन, ब्रोमीन, और सेलेनियम के कण पाए गए, वहीँ नेपाल और पूर्वी उत्तर प्रदेश की हवाएं कॉपर, कैडमियम, और लेड ले कर आयीं. और उत्तर प्रदेश के उत्तर पूर्वी वायु गलियारे से क्रोमियम, निकल, और मैंगनीज़ के कण दिल्ली पहुँच रहे हैं।
इस शोध में एक और महत्वपूर्ण बात सामने निकल कर आयी कि दिल्ली की हवा में सुबह तीन बजे से आठ बजे के बीच सबसे ज्यादा धूलकणों की मौजूदगी पाई जाती है। इसकी वजह है कि ये धुल कण देर रात से दिल्ली की हवा में टिकने लगते हैं और सुबह तक बने रहते हैं। इसके बाद इनकी धुंध छंटने लगती है। अध्ययन से साफ है कि सुबह की हवा घातक हो सकती है लेकिन विडम्बना ये है कि सुबह एक बड़ी संख्या में लोग सैर पर निकलते हैं। अंततः इन निष्कर्षों के बीच इस शोध से मिली जानकारी सरकार के लिए भावी योजनाओं का आधार बन सकती हैं और मौजूदा प्रदूषण नियंत्रण नीतियों और कानूनों में संशोधन का आधार भी साबित हो सकती है।
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