तापमान से तबाही

तापमान से तबाही: इस सदी की घटनाओं का शोध बताता है कि अल-निनो से तबाही में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। फोटो: Washington Post

जलवायु परिवर्तन के साथ बढ़ रहा एल-निनो प्रभाव

जलवायु परिवर्तन के बढ़ते असर के साथ एल-निनो प्रभाव भी लगातार बढ़ रहा है। एक नये शोध में 1901 से अब तक के 33 एल-निनो घटनाओं का अध्ययन किया गया। इस रिसर्च में पता चला कि  कि 1971 के बाद से एल-निनो गर्भ समुद्र लहरों पर ही बन रहा है और इसलिये इसका प्रभाव अधिक हो रहा है। एन-निनो मौसम के पैटर्न से जुड़ी घटना है जो दक्षिण अमेरिकी समुद्र क्षेत्र में भू-मध्यरेखा के पास  बनती है। इसके बढ़ते प्रभाव से भारत और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में सूखा और अमेरिका के कैलिफोर्निया के इलाके में अति-वृष्टि और बाढ़ की घटनायें होती हैं। शक्तिशाली एल-निनो से पैसेफिक क्षेत्र में चक्रवाती तूफान बढ़ते हैं और अटलांटिक में इनकी संख्या और तीव्रता घटती है।

उत्तरी ध्रुव: जमी बर्फ पिघलने से बढ़ता कार्बन इमीशन

आर्कटिक यानी उत्तरी ध्रुव जमी हुई बर्फ का अनंत भंडार है और कार्बन सोखने का काम करता है लेकिन अब पिछले कुछ दशकों से ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण धरती का तापमान तेज़ी से बढ़ रहा है। इस वजह से उत्तरी ध्रुव की बर्फ गायब होने लगी है और आर्कटिक कार्बन सोखने के बजाय कार्बन छोड़ने लगा है। अक्टूबर और अप्रैल के बीच हर साल पिघलती बर्फ सालाना  1.7 अरब टन कार्बन वातावरण में छोड़ रही है जो पहले लगाये गये अनुमान से दोगुना है।  रूसी नौसेना कहना है कि उत्तरी ध्रुव में बर्फ के गलने से 5 नये द्वीप बन गये हैं। इनका  द्वीपों का नामकरण होना बाकी है।

बढ़ती भुखमरी के पीछे जलवायु परिवर्तन भी एक वजह

इस साल ग्लोबल हंगर इंडैक्स यानी वैश्विक भूख सूचकांक में भारत की स्थिति और खराब हुई है और वह 117 देशों में 102वें नंबर पर है। ग्लोबल हंगर इंडैक्स की गणना में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन 2015 के बाद से दुनिया में लगातार बढ़ रही भुखमरी की एक वजह है। जलवायु परिवर्तन के कारण फसलों को होता नुकसान इसकी पीछे है। 1990 से लगातार यह असर देखने को मिल रहा है जिससे उत्पादकता प्रभावित हो रही है।

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