“क्लीन कोल” की आड़ नहीं: चीन में “क्लीन कोल” की आड़ में जीवाश्म ईंधन के लिये आकर्षक फंडिंग नहीं मिलेगी लेकिन इस नीति पर ड्रेगन टिका रहे तभी बात बनेगी | Photo: SCMP.com

चीन: “क्लीन कोल” प्रोजेक्ट्स को नहीं मिलेगा आसान कर्ज़

पीपुल्स बैंक ऑफ चायना ने “क्लीन कोल” को बिजली उत्पादन के उन ईंधनों और टेक्नोलॉजी की लिस्ट से हटा दिया है जिन्हें ग्रीन बॉन्ड योजना के तहत कर्ज़ मिलता है। हालांकि पहले कोल वॉशिंग प्लांट्स और कोयला बिजलीघरों में प्रदूषण कम करने वाली टेक्नोलॉजी को इस बॉन्ड योजना के तहत कर्ज़ मिलता था। बैंक के इस कदम के बाद माना जा रहा है कि साफ ऊर्जा के लिये अधिक कर्ज़ अब सौर और पवन ऊर्जा के संयंत्रों को मिलेगा और उन स्टील मिलों को दिया जायेगा जो अपने उत्सर्जन मानकों को सुधारने की कोशिश कर रही हैं।

“क्लीन कोल” को 2015 में ग्रीन बॉन्ड लिस्ट में रखा गया था लेकिन इससे होने वाले प्रदूषण को लेकर उठे विरोध को देखते हुए अब ये फैसला लिया गया है। हालांकि इस फैसले का असर 6,000 मेगावॉट के उस अल्ट्रा-लो इमीशन कोल  प्रोजेक्ट पर नहीं पड़ेगा जिसे पिछले साल हरी झंडी मिली थी।

जर्मनी: 2038 की डेडलाइन के बावजूद नये कोल प्लांट को मंज़ूरी

उत्तर-पश्चिम जर्मनी के डाटेल्न शहर में देश का सबसे बड़ा कोयला बिजलीघर लगाया गया है। यह बिजलीघर 1,100 मेगावॉट का है जिसमें चार यूनिट हैं और यह 45% से अधिक दक्षता (प्लांट लोड फैक्टर) पर काम करेगा। महत्वपूर्ण है कि जर्मनी ने कोयला बिजलीघरों को बन्द करने के लिये 2038 की डेडलाइन रखी है और देश में कोयले के प्रयोग के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के बावजूद ये प्लांट लगाया जा रहा है।  दावा किया जा रहा है कि इस कोल प्लांट से एक लाख घरों में बिजली और हीटिंग की सुविधा मिलेगी और अपनी अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी के कारण यह न्यूनतम इमीशन (NOx, SO2, PM आदि) करेगा।

उधर ऊर्जा क्षेत्र से जुड़ी एजेंसी इरीना (IRENA) का कहना है कि कोल प्लांट के मुकाबले सौर ऊर्जा के संयंत्र किफायती हैं। इरीना की रिपोर्ट कहती है कि अगर बिजली कंपनियां 5,00,000 मेगावॉट तक के कोयला प्लांट की बजाय सोलर या विन्ड एनर्जी के संयंत्र लगायें तो सालाना 2,300 करोड़ डॉलर बचाने के साथ 2019 के 5% इमीशन कम कर सकेंगे।  बड़े स्तर पर सोलर लगाना अब 2010 के मुकाबले 80% सस्ता हो गया है।

CO2 इमीशन नियंत्रण: विमानन कंपनियां चाहती हैं छूट

कोरोना दौर में बिजनेस प्रभावित होने से परेशान दुनिया भर की एयरलाइन कंपनियां अगने 5 साल के लिये उन शर्तों में छूट चाहती हैं जो संयुक्त राष्ट्र ने तय की हैं। ग्लोबल वॉर्मिंग के लिये एविएशन उद्योग से होने वाला इमीशन भी ज़िम्मेदार है। संयुक्त राष्ट्र ने विमानन कंपनियों के 2019 और 2020 के इमीशन को औसत मानते हुए उन पर साफ एविएशन टेक्नोलॉजी लगाने या दूसरे सेक्टरों में इमीशन कट करने के लिये फंडिंग देने की शर्त रखी है। लेकिन कोरोना महामारी के कारण यह तय है कि साल 2020 में कंपनियों के इमीशन स्तर नीचे रहेंगे और उसके बाद ट्रैफिक बढ़ने पर उन्हें अपेक्षाकृत अधिक रकम चुकानी पड़ सकती है। इसी को लेकर कंपनियों ने अब फिलहाल इन शर्तों पर छूट की मांग की है।  इस बारे में आखिरी फैसला 8 से 26 जून के बीच मॉन्ट्रियल में होने वाली वार्ता में लिया जायेगा।

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