घटी मांग: कोरोना संकट में कारोबार चौपट हो जाने से कोयला बिजलीघरों का प्लांट लोड फैक्टर 42% तक गिर गया। अनुमान है कि अगले साल के अंत तक ही बिजली की मांग पहले की तरह बहाल हो पायेगी | Photo: Earthrights.org

कोरोना: कोयला बिजलीघरों की उत्पादन क्षमता में रिकॉर्ड गिरावट

कोरोना वाइरस के कारण लागू लॉकडाउन का असर कोयला बिजलीघरों पर साफ दिख रहा है। इस साल अप्रैल में कोयला बिजलीघरों का प्लांट लोड फैक्टर (PLF) पिछले साल अप्रैल के मुकाबले औसतन 22% गिर गया। अप्रैल 2019 में जहां यह 63.1% था वहीं इस साल अप्रैल में यह घटकर 41.9% गया। यह बिजनेस और उद्योगों के ठप होने से बिजली की मांग घटने का असर है। निजी कोयला बिजली घरों में तो प्लांट लोड फैक्टर गिरकर 44% हो गया जबकि सरकारी कंपनी एनटीपीसी के बिजलीघरों का PLF गिरकर 49.9% तक पहुंचा।

कोयला खनन: अनुभवहीन कंपनियों के लिये खुले दरवाज़े

सरकारी ने कॉमर्शियल कोयला खनन के लिये नया नीतिगत खाका बनाया है जिसके तहत कोई भी कंपनी – चाहे उसके पास इस क्षेत्र की योग्यता या अनुभव न हो – अब कोयला खनन कर सकेगी। इस निर्देश का देश में कोयला उत्पादन बढ़ाने के लिये है और 50 नये कोल ब्लॉक तत्काल खनन के लिये दिये जा रहे हैं। इसके अलावा केंद्र सरकार अब खनन कंपनियों से प्रति टन कोयले की तय कीमत वसूलने के बजाय राजस्व की भागीदारी वाला मॉडल (रेवेन्यू शेयरिंग मॉडल) अपनायेगी। सरकार का कहना है कि इससे कंपनियां आयेंगी और पारदर्शिता बढ़ेगी।

साथ ही भारत कोल गैसीफिकेशन के विकल्प को भी तौल रहा है ताकि गैस आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ा जा सके। इसे जलवायु परिवर्तन के लिहाज से बेहतर कहा जाता है। कोल पावर अभी औसतन साफ ऊर्जा के मुकाबले 60-70% महंगी है फिर भी देश की दो सबसे बड़ी सरकारी कंपनियों पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन (PFC) और रूरल इलैक्ट्रिफिकेशन कोर्पोरेशन (REC) ने कोयला बिजलीघरों को कर्ज़ देना जारी रखा है। ये दोनों फर्म अब तक 8.8 गीगावॉट के कोयला बिजलीघरों को कर्ज़ दे चुके हैं जबकि जानकारों ने पहले ही चेतावनी दी है कि इस पैसे की वसूली करना आसान नहीं होगा।

कार्बन इमीशन घटाने के लिये बेढप रास्ते पर कंगारू

ऑस्ट्रेलिया ने पेरिस क्लाइमेट डील के तहत 2030 तक कार्बन इमीशन कम करने के तय लक्ष्य को हासिल करने के लिये नया क्लाइमेट एक्शन प्लान बताया है जिसमें वह कार्बन टैक्स नहीं लगायेगा।  इस देश का प्रति व्यक्ति कार्बन इमीशन (17 टन) सबसे अधिक है। ऑस्ट्रेलिया ने तय किया है कि वह क्लाइमेट सॉल्यूशन फंड का सारा पैसा साफ ऊर्जा संयंत्र लगाने में खर्च नहीं करेगा बल्कि विवादित कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (CCS) टेक्नोलॉजी के साथ कोयले और गैस से बिजली बनाने के लिये भी खर्च करेगा।

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