Photo: Ecosource Canada

अक्षय ऊर्जा, अभी नहीं तो कभी नहीं

एक ताज़ा रिपोर्ट की मानें तो पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए कार्बन उत्सर्जन में अगले 10 वर्षों तक लगातार कम से कम 7.6 प्रतिशत की वार्षिक कमी बनाए रखने की आवश्यकता होगी। लेकिन ताप, शीतलन, और परिवहन क्षेत्रों में अक्षय ऊर्जा के प्रयोग को बढ़ावा देने में तो अब भी लगभग वही अवरोध हैं जो 10 साल पहले थे।

इस बात में कोई शक़ नहीं कि पूरा विश्व एक जलवायु आपदा की ओर बढ़ रहा है। लेकिन कोविड महामारी के इस दौर में अगर पूरे विश्व ने मिलकर अक्षय ऊर्जा की ओर फ़ौरन रुख़ नहीं किया तो दुनिया जलवायु आपदा की यह यात्रा न सिर्फ़ जारी रहेगी, बल्कि गति भी पकड लेगी।

पेरिस स्थित थिंक-टैंक REN21 की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, जहाँ पिछले पांच वर्षों में अक्षय ऊर्जा के आंकड़ों में प्रभावशाली वृद्धि रही है, वहीँ शीतलन और परिवहन जैसे क्षत्रों में अक्षय ऊर्जा के प्रयोग में न के बराबर बढ़ोतरी हुई है। कोविड महामारी के रूप में अगर परेशानी खड़ी है तो एक मौका भी मिला है। अगर फ़ौरन सही फ़ैसले नहीं लिए, तो वो मौक़ा हाथ से निकल भी सकता है।

REN21 के कार्यकारी निदेशक राणा अदीब ने एक बयान में कहा, “जब बात हीटिंग, शीतलन, और परिवहन की आती है, तब हमें जीवाश्म ईंधन से दूरी बनानी चाहिए। इस दिशा में विश्व भर की सरकारों को अपने बाज़ार की स्थितियों और नियमों को मौलिक रूप से बदलना होगा। जैसा नेतृत्व तमाम सरकारें COVID-19 महामारी को सँभालने के लिए दिखा रही हैं, वैसा ही नेतृत्व अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए करना होगा।”

“रिन्यूएबल्स 2020 ग्लोबल स्टेटस रिपोर्ट” शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में कहा गया है कि बात ताप, शीतलन और परिवहन क्षेत्रों में अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने की करें तो वहां अब भी लगभग वही अवरोध हैं जो 10 साल पहले थे। बल्कि पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अगले 10 वर्षों तक कार्बन उत्सर्जन में लगातार कम से कम 7.6 प्रतिशत की वार्षिक कमी की आवश्यकता होगी।

इस रिपोर्ट के अनुसार, जहाँ वर्ष 2013 से 2018 के बीच अंतिम उपयोगकर्ता की कुल ऊर्जा की मांग में 1.4 प्रतिशत की वार्षिक दर से वृद्धि हुई, वहीँ अक्षय ऊर्जा उत्पादन में महत्वपूर्ण प्रगति के बावजूद, उसकी कुल अंतिम ऊर्जा मांग में बेहद कम बढ़ोतरी हुई। जो मांग 2013 में 9.6 प्रतिशत थी वो 2018 में बढ़कर सिर्फ़ 11 प्रतिशत हुई।

पूरी दुनिया के पावर क्षेत्र की तुलना में, हीटिंग, एयर कंडीशनिंग, और ट्रांसपोर्ट के क्षेत्र में अक्षय ऊर्जा का प्रयोग बहुत कम है। जहाँ हीटिंग में रिन्यूएबिल ऊर्जा की हिस्सेदारी मात्र 26% है, वहीँ कूलिंग में 10% और ट्रांसपोर्ट में 3% तक ही सीमित है।

स्थिति की गंभीरता बताते हुए राणा अदीब कहते हैं, “लॉकडाउन अगर एक दशक तक भी जारी रहे तब भी वो बदलाव पर्याप्त नहीं होंगे। बल्कि मौजूदा गति, वर्तमान प्रणाली, और बाज़ार नियमों के अनुसार तो यह दुनिया शायद ही कभी पूर्ण रूप से एक ग़ैर-कार्बन प्रणाली के पास पहुँच पाए।”

इस रिपोर्ट के अनुसार, रिकवरी पैकेज की शक्ल में एक कम-कार्बन अर्थव्यवस्था बनाने की दिशा में बढ़ने का अपनी तरह का इकलौता मौका मिल सकता है लेकिन इस बड़े मौके के खोने की सम्भावना भी उतनी ही बड़ी है।

रिकवरी पैकिज के नाम पर कई ऐसे विचार और कदम प्रस्तावित हैं जो रिकवरी के बदले हमें वापस एक गन्दी जीवाश्म ईंधन प्रणाली में बंद कर देंगे। कुछ तो सीधे तौर पर प्राकृतिक गैस, कोयले या तेल को बढ़ावा देते हैं। बाकी विचार और कदम ऐसे हैं जो अगर छत बनाने का दावा करते हैं तो नींव को भूल जाते हैं। उदाहरण के लिए, बात अगर इलेक्ट्रिक कार और हाइड्रोजन की करें तो ये तकनीकों सिर्फ़ तब ही पर्यवरण-अनुकूल हैं जब उनमें अक्षय ऊर्जा का प्रयोग किया जाए।

एक महत्वपूर्ण बात जो इस रिपोर्ट में निकल कर आयी है वो ये है कि अक्षय ऊर्जा और दक्षता में निवेश पारंपरिक प्रोत्साहन उपायों की तुलना में अधिक प्रभावी हैं और निवेश पर अधिक प्रतिफल देते हैं। सिर्फ़ इतना ही नहीं, बात रोज़गार की करें तो रिपोर्ट के मुताबिक़ अक्षय ऊर्जा क्षेत्र ने 2018 में दुनिया भर में लगभग 1 करोड़ से ज़्यादा लोगों को रोजगार दिया है।

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