दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड इंवायरेन्मेंट (सीएसई) ने बजट से ठीक पहले वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन को पत्र लिखकर मांग की है कि वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिये उद्योगों को सस्ती बिजली दी जाये और नेचुरल गैस को जीएसटी के भीतर लाया जाये। सीएसई का कहना है कि कोयला के उलट अभी गैस जीएसटी में नहीं आता इसलिये उस पर टैक्स काफी भारी हो जाता है। सीएसई ने गैस को जीएसटी की 5% सीमा के तहत लाने की मांग की है ताकि प्रदूषण फैलाने वाले कोयले की खपत घट सके।
सीएसई ने एक रिसर्च से यह आंकड़े दिये हैं कि दिल्ली के आसपास के 7 ज़िलों गाज़ियाबाद, भिवाड़ी, सोनीपत, पानीपत, फरीदाबाद, अलवर और गुरुग्राम में औद्योगिक इकाइयां कोयले का जमकर इस्तेमाल कर रही है। इन ज़िलों में उद्योग हर साल कुल 14 लाख टन से अधिक कोयला जला रहे हैं जबकि नेचुरल गैस की खपत सिर्फ 2.2 लाख टन ही इस्तेमाल हो रही है। सीएसई की निदेशक सुनीता नारायण के मुताबिक “नेचुरल गैस पर अभी भारी टैक्स लगता है। इसे खरीदने और बेचने दोनों ही वक्त टैक्स देना पड़ता है यानी प्रोडक्ट के अंतिम मूल्य पर टैक्स 18% तक हो सकता है। कोयले के विपरीत गैस अभी जीएसटी में शामिल नहीं है इसलिये इसे 5% जीएसटी स्लैब (18% वैट व अन्य टैक्स के बजाय) में शामिल किये जाने की ज़रूरत है।”
मुंबई: वायु प्रदूषण पर काबू के लिये गोल्ड प्रोसेसिंग यूनिटों की चिमनी गिरायी
मुंबई के कल्बादेवी क्षेत्र बनी 2,500 में 40 गोल्ड प्रोसेसिंग यूनिटों की चिमनी प्रशासन ने गिरा दी। ये यूनिट यहां किराये पर बिना किसी अनुमति के चल रही थीं। इन छोटे कारखानों में एसिड से गोल्ड की प्रोसेसिंग और सफाई की जाती है जिससे ज़हरीला धुंआं निकलता है। अभी चल रहा अभियान चिमनियों से निकल रहे इस धुंएं पर काबू पाने की कोशिश है। पिछले साल केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इस बात को माना था कि गोल्ड प्रोसेसिंग यूनिट प्रदूषण कर रही हैं और यह अनिवार्य कर दिया था कि सभी यूनिट्स को पानी और वायु प्रदूषण से सम्बन्धित अनुमति लेनी होंगी। बोर्ड का कहना था कि ये यूनिट लेड ऑक्साइड और नाइट्रस फ्यूम छोड़ रही हैं।
अमरीका: वायु प्रदूषण कानून तोड़ने के लिये टोयोटा पर $18 करोड़ का जुर्माना
अमरीका का क्लीन एयर एक्ट तोड़ने के लिये ऑटोमोबाइल कंपनी टोयोटा को 18 करोड़ डॉलर (करीब 1350 करोड़ रुपये) का जुर्माना भरना होगा। यह अमेरिका में उत्सर्जन नियमों का पालन न करने के लिये लगायी गयी सबसे बड़ी सिविल पेनल्टी है और टोयोटा इस जुर्माने के खिलाफ अदालत में अपील नहीं कर रही है। साल 2005 से लेकर 2015 तक टोयोटा ने उस खराबी के बारे में नहीं बताया जिसकी वजह से उसकी कारें टेल पाइप इमीशन पर ठीक से नियंत्रण नहीं कर पायी। मैनहेटन में दायर शिकायत में कहा गया कि इससे जन स्वास्थ्य की सुरक्षा कि लिये तय मानकों का उल्लंघन हुआ। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक जापान में टोयोटा के प्रबन्धकों और स्टाफ को इस बारे में पता था लेकिन इसे नहीं रोका गया और कंपनी ने लाखों गाड़ियां बेचीं।
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