लंदन के क्वीन मैरी विश्विद्यालय और ब्रिटेन और अमेरिका कुछ अन्य वैज्ञानिकों ने इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरी में ‘लिथियम प्लेटिंग’ को रोकने का तरीका खोज निकाला है। शोध से जुड़े वैज्ञानिकों का कहना है इससे न केवल बैटरी चार्जिंग का समय कम होगा बल्कि वाहन एक चार्ज में अधिक दूरी भी तय कर सकेंगे।
साथ ही इससे बैटरी की लाइफ बढ़ेगी और विस्फोट का खतरा भी कम होगा। ‘लिथियम प्लेटिंग’ एक प्रक्रिया है जो फ़ास्ट चार्जिंग के दौरान लिथियम-आयन बैटरी में होती है। इस प्रक्रिया में लिथियम आयन बैटरी के निगेटिव इलेक्ट्रोड से मिलने की बजाय उसकी सतह पर जमा हो जाते हैं, जिससे इलेक्ट्रोड पर धात्विक लिथियम की एक परत जमती रहती है। इससे बैटरी क्षतिग्रस्त हो सकती है, उसकी लाइफ कम होती है और शॉर्ट-सर्किट हो सकता है जिससे आग लगने और विस्फोट होने का खतरा रहता है।
इस शोध में वैज्ञानिकों ने पाया कि ग्रेफाइट निगेटिव इलेक्ट्रोड की सूक्ष्म संरचना में सुधार करके लिथियम प्लेटिंग को कम किया जा सकता है। इलेक्ट्रिक वाहन बैटरी के विकास में यह शोध एक बड़ी सफलता है।
भारत को बैटरी रीसाइक्लिंग पर ध्यान देने की जरूरत
भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रयोग तेजी से बढ़ रहा है। आंकड़ों के मुताबिक 2022 में जहां दस लाख वाहनों की बिक्री एक साल में हुई थी, वहीं इस साल नौ महीनों में ही दस लाख वाहन बिक चुके हैं। 2030 तक 40% नवीकरणीय ऊर्जा में ट्रांजिशन का लक्ष्य पूरा करने में ईवी की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। लेकिन इसके कारण लिथियम आयन बैटरियों की मांग भी बढ़ रही है, जिसके साथ ही इस्तेमाल हो चुकी बैटरियों के डिस्पोजल और उनसे होने वाले पर्यावरणीय नुकसान को लेकर भी चिंताएं बढ़ रही हैं।
मैकिन्से की रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक भारत का लिथियम-आयन बैटरी बाजार लगभग 120 गीगावॉट ऑवर तक बढ़ जाएगा, और रीसाइक्लिंग क्षमता 23 गीगावॉट ऑवर के आस-पास होगी। इससे इकोसिस्टम में इस्तेमाल हो चुकी बैटरियों की संख्या भी बढ़ेगी। इसे रोकने के लिए देश को बैटरी रीसाइक्लिंग इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने की जरूरत है। जानकारों की मानें तो बैटरी रीसाइक्लिंग के लिए एक व्यापक प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजना की तत्काल आवश्यकता है।
रीसाइक्लिंग के द्वारा लिथियम, कोबाल्ट और निकल जैसे मैटेरियल को पुनः प्राप्त किया जा सकता है, जो बैटरी उत्पादन और दूसरी कई नवीकरणीय प्रौद्योगिकियों के लिए बेहद जरूरी हैं। इससे भारत एनर्जी ट्रांजिशन के लिए जरूरी खनिजों के उत्पादन और आपूर्ति में भी आगे बढ़ सकता है।
टेस्ला ने दिया भारत में ‘पॉवरवाल’ बैटरी स्टोरेज सिस्टम बनाने का प्रस्ताव
टेस्ला ने भारत में बैटरी स्टोरेज सिस्टम बनाने और बेचने की एक योजना तैयार की है। द हिंदू ने सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि एलन मस्क की अगुवाई वाली कंपनी ने फैक्ट्री बनाने के लिए इंसेटिव की मांग करते हुए अधिकारियों को एक प्रस्ताव सौंपा है। हालांकि बातचीत में भारतीय अधिकारियों ने टेस्ला से कहा है कि जो इंसेटिव उसे चाहिए वह नहीं मिल सकते।
सूत्रों ने बताया कि नई दिल्ली में हाल ही में हुई बैठकों में टेस्ला ने अपने ‘पावरवॉल’ से भारत की बैटरी स्टोरेज क्षमताओं का समर्थन करने का प्रस्ताव रखा। ‘पावरवॉल’ एक ऐसी प्रणाली है जो रात में या बिजली कटौती के दौरान उपयोग के लिए सौर पैनलों या ग्रिड से बिजली स्टोर कर सकती है। बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम यानी बीईएसएस एक ऐसी तकनीक है जिसके द्वारा नवीकरणीय स्रोतों से उत्पन्न ऊर्जा को संग्रहीत करके आवश्यकता पड़ने पर पावर ग्रिड तक पहुंचाया जा सकता है। बीईएसएस प्रणाली खुद तय कर सकती है कि कब ऊर्जा स्टोर करनी है और कब ग्रिड को सप्लाई करनी है।
जानकार कहते हैं कि पेरिस समझौते के लक्ष्यों की प्राप्ति में बीईएसएस की भूमिका महत्वपूर्ण है।
भारत की वर्तमान स्टोरेज क्षमता 37 मेगावाट ऑवर है। यदि भारत को 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा के अपने लक्ष्य को पूरा करना है, तो उसे 200 गीगावाट ऑवर से अधिक के बीईएसएस पैक की आवश्यकता होगी। हाल ही में केंद्र ने 2030-31 तक 4 गीगावाट ऑवर की बीईएसएस क्षमता के निर्माण की एक योजना को मंजूरी दी है। यह डेवलपर्स के लिए 3,760 करोड़ रुपए की वायाबिलिटी गैप फंडिंग के साथ-साथ, सरकार ने लिथियम आयन बैटरी में प्रयोग होने वाले एडवांस्ड केमिस्ट्री सेल की मैन्युफैक्चरिंग के लिए 18,100 करोड़ रुपए की प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव योजना की भी घोषणा की है।
मैकिन्से के अनुसार $55 बिलियन का वैश्विक बीईएसएस बाज़ार 2030 तक $150 बिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है।
देश में बिकी 40% से अधिक ईवी तमिलनाडु में निर्मित
परिवहन मंत्रालय की ‘वाहन’ वेबसाइट के आंकड़ों के अनुसार, तमिलनाडु इस साल बेचे गए इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) के सबसे बड़े निर्माताओं में से एक है। इस वर्ष भारत में बेचे गए 10 लाख इलेक्ट्रिक वाहनों में से 400,000 से अधिक का निर्माण तमिलनाडु में किया गया था।
इन वाहनों में मुख्य रूप से इलेक्ट्रिक स्कूटर और कारें हैं, जिनका निर्माण राज्य में 10 कंपनियों द्वारा किया जाता है। इनमें प्रमुख हैं ओला इलेक्ट्रिक और टीवीएस मोटर, जिन्होंने कृष्णागिरी जिले में स्थित मैन्युफैक्चरिंग इकाईयों से क्रमशः 175,608 और 112,949 वाहन बेचे।
आंकड़ों के मुताबिक, इस साल 20 सितंबर तक देश के विभिन्न आरटीओ कार्यालयों में 1,044,600 इलेक्ट्रिक वाहन पंजीकृत हुए। इसमें से, तमिलनाडु में 414,802 वाहन पंजीकृत हुए जिनका निर्माण राज्य में ही हुआ था।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।
आपको यह भी पसंद आ सकता हैं
-
ब्रिटेन में 650 मिलियन पाउंड की अनुदान योजना के तहत 17 इलेक्ट्रिक वाहनों के मॉडलों पर छूट
-
रेयर अर्थ मैग्नेट की कमी से भारत में रुक सकता है ईवी निर्माण
-
ग्लोबल ईवी बिक्री जून में 24% बढ़ी, लेकिन अमेरिका में गिरावट
-
वैश्विक इलेक्ट्रिक कार निर्माताओं के लिए भारत सरकार ने लॉन्च किया पोर्टल
-
चीन के निर्यात प्रतिबंध से भारत की इलेक्ट्रिक वाहन इंडस्ट्री संकट में