Photo: DNA India

रैणी पर भूस्खलन का खतरा बरकरार, गांव को नई जगह बसाने की सिफारिश: रिपोर्ट

उत्तराखंड के चमोली ज़िले में रैनी गांव अभी नाज़ुक हालात में है। इस साल फरवरी में जिस नदी ऋषिगंगा में बाढ़ आई यह गांव उस नदी के किनारे पहाड़ी पर बसा है। अब वह पहाड़ी लगातार दरक रही है और गांव को बहुत ख़तरा है। राज्य सरकार द्वारा नियुक्त एक विशेषज्ञ कमेटी ने कहा है कि या तो पहाड़ी के ढाल पर भूस्खलन  को रोकने के उपाय किये जायें या फिर गांव के लोगों को कहीं और बसाया जाये। 

यह रिपोर्ट उत्तराखंड के रिकवरी प्रोग्राम (यूडीआरपी-एएफ) के तीन सदस्यों वैंकटरेश्वरलु, आचार्युलू और मनीष सेमवाल ने दी है जिसमें कहा गया है कि अगर समय पर उचित कदम नहीं उठाया गया  तो  ढलानों के नीचे मिट्टी और चट्टान के मलबे रोज़न से भारी तबाही हो सकती हैं और टो इरोज़न का खतरा है।  

रैनी गांव की वर्तमान स्थिति क्या है?

रिपोर्ट के अनुसार, रैनी गांव अस्थिर है और यहां घरों की दीवारों और फर्श में चौड़ी दरारें देखी गईं, जो क्षेत्र में सक्रिय  मिट्टी और चट्टानी मलबे के गतिमान (मूवमेंट) का संकेत देती हैं। ऋषि गंगा और धौली गंगा नदियों के संगम पर स्थित रैनी गांव  7 फरवरी, 2021 को अचानक बाढ़ की चपेट में आ गया था। गांव की तलहटी में कई घरों और दुकानों को नुकसान पहुंचा था। ऋषिगंगा पर एक प्राइवेट कंपनी की जलविद्युत परियोजना बाढ़ से पूरी तरह नष्ट हो गई और कुछ किलोमीटर दूर धौलीगंगा पर बने एनटीपीसी के प्रोजेक्ट को भारी नुकसान पहुंचा। आधिकारिक तौर पर, 206 लोग लापता हो गए और सौ से अधिक शव बरामद किए गए।

जून में  एक बार फिर ये इलाका बाढ़ की चपेट में आ गया, जिससे गांव का निचला हिस्सा पूरी तरह से बह गया। जोशीमठ-मलारी हाईवे  जो कि दूर संचार के लिये  महत्वपूर्ण है टूट कर धौली गंगा में समा गया।

सड़क के पुनर्निर्माण के लिए, अधिकारियों ने रैनी गांव के पास पहाड़ी ढलान को काटने की योजना बनाई। रिपोर्ट के अनुसार, यह योजना पहाड़ी ढलान को संशोधित करेगी जिसके कारण ढलान की सतह पर अस्थिर बोल्डर पहाड़ी ढलान पर स्थित घरों के साथ-साथ गुजरने वाले यातायात और पैदल चलने वालों के लिए खतरा पैदा करेंगे। रिपोर्ट सड़क चौड़ीकरण के लिए न्यूनतम ढलान संशोधन का सुझाव देती है।

रिपोर्ट के अनुसार मिट्टी और चट्टान के मलबे की भारी आवाजाही  को नियंत्रित करने के लिए सड़क के साथ उपयुक्त ऊंचाई की रिटेनिंग वॉल का निर्माण किया जाए, साथ ही ऊपर से विभिन्न स्तरों में कंटूर ड्रेनेज और रिटेनिंग वॉल में वीप होल्स (पानी निकासी के लिये छेद)  बनाया  जाये। रिपोर्ट में माइक्रोपाइलिंग (नदी तट पर छोटे पत्थरों का जमाव) से नदी तट का कटाव रोकने का सुझाव भी है।   

क्या पुनर्वास स्थल उपयुक्त हैं?

भूवैज्ञानिक एवं भू-तकनीकी टीम ने रैनी गांव के पुनर्वास के लिए स्थानीय प्रशासन द्वारा प्रस्तावित दो पुनर्वास स्थलों का निरीक्षण किया. 

पहला पुनर्वास स्थल मुख्य जोशीमठ-मलारी रोड से 1.5 किमी की दूरी पर स्थित है। रिपोर्ट के अनुसार यह स्थल पुनर्वास के लिए उपयुक्त नहीं है।

वर्तमान में, प्रस्तावित साइट कमजोर है. इस पुनर्वास स्थल में ढलान विफलता गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त ढलान स्थिरीकरण कार्य की आवश्यकता है, रिपोर्ट से पता चलता है। घरों के निर्माण के लिए पहाड़ काटने की आवश्यकता होगी जिसके परिणामस्वरूप मिट्टी और चट्टान के मलबे की भारी आवाजाही हो सकती  है।

टीम द्वारा समीक्षा की गई एक अन्य साइट भविष्य बद्री मंदिर के पास समुद्र तल की करीब 1750 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। मुख्य जोशीमठ-मलारी रोड से स्थल की दूरी लगभग 16 किमी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह साइट पुनर्वास के लिए ठीक है हालाँकि कनेक्टिविटी जैसे मुद्दे यहां भी हैं। इस जगह तक जाने के लिये अभी केवल कच्ची रोड ही उपलब्ध है और मोबाइल नेटवर्क नहीं है। 

उधर एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय में भूविज्ञान विभाग के प्रोफेसर वाई पी सुंदरियाल ने कहा, “योजना और कार्यान्वयन के बीच एक बड़ा अंतर है। नीति निर्माताओं को क्षेत्र के भूविज्ञान से अच्छी तरह वाकिफ होना चाहिए। जलविद्युत संयंत्र, विशेष रूप से उच्च हिमालय में कम क्षमता वाले होने चाहिए। नीति और परियोजना कार्यान्वयन में स्थानीय भूवैज्ञानिक शामिल होने चाहिए जो इलाके को अच्छी तरह से समझते हों।”

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