इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं और अवैज्ञानिक विस्थापन के कारण हाथियों के बसेरे लगातार नष्ट हो रहे हैं।

देश में बढ़े बाघ, लेकिन घट रही हाथियों की संख्या

भारत में बाघों की संख्या चार सालों में 6.7 फ़ीसदी बढ़ी है लेकिन  हाथियों का संकट बरकरार है। प्रोजेक्ट टाइगर के 50 साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को देश में बाघों की संख्या का नया आंकड़ा जारी किया।

साल 2022 में बाघों की संख्या बढ़कर 3,167 हो गई, जो 2018 में 2,967 थी वहीं 2014 में ये संख्या 2,226 थी। 2006 में यह संख्या 1,411 थी।

एक ओर बाघों की संख्या में इजाफा हुआ है और उनके संरक्षण पर ध्यान दिया जा रहा है, वहीं हाथियों के हैबिटैट लगातार सिकुड़ रहे हैं और उनकी संख्या घटी है। हालांकि पिछले कुछ सालों में सरकार ने एलीफैण्ट रिज़र्व की संख्या बढ़ाई है।  

फिर भी इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं और अवैज्ञानिक विस्थापन के कारण हाथियों के बसेरे (हैबिटैट) लगातार नष्ट हो रहे हैं। हाथियों के प्रवास के लिए माइग्रेशन कॉरिडोर भी सुरक्षित नहीं है। नतीजन हाथियों और मानवों के संघर्ष की घटनाएं बढ़ रही हैं। वन और पर्यावरण मंत्री के बयान के मुताबिक हर साल हाथी 500 लोगों की जान ले रहे हैं और लोग प्रतिरक्षा में सालाना 100 हाथियों को मार दे रहे हैं। 

हाल ही में इडुक्की जिले के ‘अनायिरंकल’ क्षेत्र में चावल खाने वाले हाथी ‘अरीकोम्बन’ और दो अन्य हाथियों का आतंक फैल गया। इस मामले पर केरल उच्च न्यायालय द्वारा गठित एक समिति ने पाया कि इस क्षेत्र में ‘अवैज्ञानिक पुनर्वास’ किए जाने से पहले यह हाथियों का हैबिटैट था।

अदालत ने कहा कि लोगों को हाथियों के आवास में बसाना ही ”पूरी समस्या की जड़” है।

वनों की परिभाषा बदलने वाला विधेयक सेलेक्ट कमेटी को भेजा गया

विवादास्पद वन संरक्षण संशोधन विधेयक, 2023 को विज्ञान, प्रौद्योगिकी, पर्यावरण और वन संबंधी संसदीय स्थायी समिति के बजाय एक प्रवर समिति (सेलेक्ट कमेटी) को भेज दिया गया है। पर्यावरण संबंधी संसदीय समिति की अध्यक्षता कांग्रेस सांसद जयराम रमेश कर रहे हैं, उन्होंने इस फैसले का विरोध किया है।

बिल में ‘वन’ की परिभाषा स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। पर्यावरणविदों को डर है कि यह विधेयक 1996 के सर्वोच्च न्यायालय के वनों को परिभाषित करने वाले आदेश के प्रभाव को कम कर देगा।

1996 में सर्वोच्च न्यायालय ने देश भर में पेड़ों की कटाई पर रोक लगाते हुए यह फैसला सुनाया कि वन संरक्षण अधिनियम उन सभी भूमियों पर लागू होगा जो या तो ‘वन’ के रूप में नामित हैं या वनों से मिलते-जुलते हैं।

यह विधेयक कुछ प्रकार की वन भूमियों को फारेस्ट क्लियरेंस प्राप्त करने से छूट देता है: जैसे राष्ट्रीय महत्व की परियोजनाओं के निर्माण के लिए बॉर्डर या एलओसी के 100 किमी के भीतर स्थित वन भूमि; सरकार द्वारा प्रबंधित रेल लाइन या सड़क के किनारे स्थित वन; निजी भूमि पर पेड़ों के बागान जो वनों के रूप में वर्गीकृत नहीं हैं। 

ज़्यादातर हीट एक्शन प्लान में वित्त और स्थानीय संदर्भ की कमी 

सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर) ने देश के 18 राज्यों में 37 हीट एक्शन प्लान का मूल्यांकन किया और पाया कि लू से बचने के लिये बनायी गई अधिकतर योजनाओं में स्थानीय वास्तविकताओं का खयाल नहीं रखा गया और वह इस बात तक ही सीमित है कि शुष्क लू के थपेड़ों का सामना कैसे किया जाये। सीपीआर की रिपोर्ट के मुताबिक 37 में से केवल 10 हीट एक्शन योजनाओं में ही स्थानीय जलवायु और परिस्थिति के आधार पर लू के न्यूनतम तापमान को परिभाषित किया गया।

हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि इन एक्शव प्लांस में हीटवेव घोषित करने के लिये नमी, गर्म रातें और लगातार गर्मी की अवधि जैसे संकट बढ़ाने वाले स्थानीय कारकों को शामिल किया गया या नहीं। इन योजनाओं में लिये वित्त की कमी साफ दिखी और ये कमज़ोर वर्ग की पहचान और उस पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम नहीं हैं। 

सीपीआर के शोध के मुताबिक 37 हीट एक्शन प्लांस में से केवल 2 ने ही विस्तार से वर्तमान संकट मूल्यांकन किया और 11 में ही फंडिंग सोर्स की बात कही गई। हीट एक्शन प्लान आर्थिक क्षति और लोगों की जान लेने वाली लू से निपटने के लिये भारत का पहला नीतिगत कदम है। 

2030 तक पवन ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए भारत को उठाने होंगे कदम

ग्लोबल विंड एनर्जी कॉउंसिल द्वारा जारी 2023 की ग्लोबल विंड रिपोर्ट में कहा गया है कि पवन ऊर्जा उद्योग इस साल रिकॉर्ड ऊर्जा क्षमता स्थापना की उम्मीद कर रहा है, लेकिन आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाई चेन) में आनेवाली चुनौतियों से निपटने के लिए नीति-निर्माताओं को तत्काल कदम उठाने होंगे

ताजा अनुमान है कि 2027 तक 680 गीगावाट नई क्षमता स्थापित की जाएगी, यानि हर साल करीब 136 गीगावाट।

भारत ने 2030 तक कुल 500 गीगावॉट साफ ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य रखा है जिसमें 140 गीगावॉट पवन ऊर्जा होगी यानी अगले साढ़े सात सालों में भारत को 98 गीगावॉट विन्ड एनर्जी के संयंत्र लगाने हैं। 

लेकिन अगर पवन ऊर्जा क्षमता बढ़ने की मौजूदा रफ्तार देखें तो वह 2 गीगावॉट से अधिक नहीं रही है। इस हिसाब से 2030 के लिए तय लक्ष्य हासिल करने में 50 साल लग जाएंगे। 

विन्ड एनर्जी क्षेत्र के जानकार इसके लिए सरकार की नीतियों को दोष देते हैं।

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