कड़ा फैसला

फोटो – कड़ा फैसला – NTPC ने ताप बिजलघरों में इमीशन कट टेक्नोलॉजी के विदेशी कंपनियों के ऑर्डर रद्द कर दिये हैं। Photo: Wikimedia Commons

NTPC ने विदेशी कंपनियों की उत्सर्जन प्रतिरोधन तकनीक को ठुकराया

भारत की सबसे बड़ी बिजली उत्पादक कंपनी NTPC ने अपने कोयला बिजलीघरों के लिये विदेशी इमीशन-कट टेक्नोलॉजी को ठुकराते हुये करीब 200 करोड़ डॉलर (14,000 करोड़ रुपये) के ऑर्डर रदद् करने का फैसला लिया है। समाचार एजेंसी रायटर के मुताबिक  NTPC ने जनरल इलैक्ट्रिक समेत कई दूसरी विदेशी फर्म के ऑर्डर रद्द किये हैं।

कोयला बिजलीघरों  में इमीशन कट टेक्नोलॉजी लगाने की डेडलाइन पहले ही बढ़ाकर 2022 की जा चुकी है। एनटीपीसी ने यह फैसला उस वक्त किया है जब यह निश्चित है कि देश के आधे से अधिक बिजलीघर SO2 गैस उत्सर्जन रोकने के लिये तकनीक फिट नहीं कर पायेंगे।

NTPC ने जनरल इलैक्ट्रिक के अलावा जापान की मित्सुबिशी-हिटाची और नॉर्वे की यारा इंटरनेशनल से भी बात की। केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के सामने दिये गये एक प्रजेंटेशन में NTPC ने कहा कि इनमें से किसी भी कंपनी के पायलट प्रोजेक्ट में इमीशन के मानकों को पूरा नहीं किया।

पराली प्रदूषण से निपटने के लिये बायो-गैस प्लांट

इंडियन ऑइल कॉर्पोरेशन जल्दी ही देश में 140 बायो गैस प्लांट लगाने के लिये निजी कंपनियों को आमंत्रित कर सकती है। समाचार एजेंसी रायटर ने ये ख़बर सूत्रों के हवाले से छापी है। एजेंसी के मुताबिक धान की पराली को इन प्लांट्स में ईंधन की तरह इस्तेमाल किया जायेगा। इसका उद्देश्य पराली से होने वाले प्रदूषण को रोकना है।

हर साल जाड़ों में किसानों द्वारा पराली जलाये जाने से प्रदूषण में बढ़ोतरी की शिकायत होती है लेकिन अब किसानों को पराली जलाने के बजाये इन कंपनियों को बेचने के लिये प्रोत्साहित किया जायेगा। इन प्लांट्स को लगाने में करीब 3,500 करोड़ रूपये का खर्च आयेगा लेकिन पर्यावरण के जानकारों का कहना है कि इस प्रोजेक्ट की कामयाबी के लिये  किसानों से लगातार तालमेल बनाना होगा क्योंकि हर प्लांट को सुचारू रूप से चलने के लिये प्रति घंटे 2 टन पराली की ज़रूरत होगी।

मुंबई: क्लीन एयर प्लान को जानकारों ने बताया बेतुका

महाराष्ट्र प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड द्वारा बनाये गये मुंबई क्लीन एयर प्लान को जाने माने विशेषज्ञों ने बेतुका और कट एंड पेस्ट वाला काम बताया है। परिवहन क्षेत्र से जुड़े जानकारों का कहना है कि यह योजना मुंबई में वाहनों और यातायात के मूलभूत ढांचे को ध्यान में रखकर बनाया जाना चाहिये था ताकि निजी वाहनों की संख्या बढ़ने से रोकी जा सके।

जानकारों का कहना है कि बोर्ड की योजना में पैदल चलने वालों और साइकिल सवारों के लिये कुछ नहीं है। राज्य प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के इस प्लान की आलोचना इस बात के लिये भी हो रही है कि इनमें कोयला बिजलीघरों और बिल्डर लॉबी के प्रदूषण को रोकने की प्रभावी योजना नहीं है।

संसदीय पैनल: दूसरे राज्यों के मालवाहक कर रहे हैं दिल्ली में प्रदूषण

दिल्ली में दिसंबर के पहले पखवाड़े में हवा खासी प्रदूषित रही। राजधानी के 35 में से 9 मॉनिटरिंग स्टेशनों  प्रदूषण सीवियर कैटेगरी में मापा गया। PM 2.5 का स्तर 212.1 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा जो कि सुरक्षित स्तर से 3 गुना अधिक खराब है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के हिसाब से सुरक्षित स्तर 25 माइक्रोग्राम है।

उधर संसदीय पैनल की रिपोर्ट में कहा गया है कि दूसरे राज्यों के मालवाहक दिल्ली की हवा में पहले से अधिक प्रदूषण कर रहे हैं। हर पांचवां मालवाहक किसी दूसरे राज्य में जाने के लिये दिल्ली में प्रवेश करता है। सेंट्रल रोड एंड रिसर्च संस्थान (CRRI) का कहना है कि 2018 में दिल्ली की सड़कों में मौजूद 12 लाख वाहनों में से आधे दूसरे राज्यों के थे।

डीज़ल कारों पर मारुति का यू-टर्न

देश की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी मारुति ने डीज़ल कार निर्माण बन्द करने की योजना से पलट गई है। मारुति  को लगता है कि कि जब उसकी प्रतिस्पर्धी कंपनियां हुंडई, एन एंड एम औऱ टाटा मोटर्स  यह कारें बाज़ार में उतारती रहेंगी तो उसके लिये डीज़ल कार निर्माण बन्द करना ठीक नहीं है। हालांकि मारुति 1 अप्रैल 2020 से डीज़ल कार बेचना बन्द कर रही है लेकिन अगले साल फिर से डीज़ल कार बाज़ार में उतारने की योजना है। अभी कंपनी यूरो-6 मानकों वाली 1.5 लीटर डीज़ल इंजन कार पर काम कर रही है।

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