वन क्षेत्रों में हाइड्रोपावर परियोजनाओं के प्रोजेक्ट सर्वे के लिए ड्रिलिंग और 100 पेड़ों तक की कटाई के लिए मंजूरी लेने की अनिवार्यता को केंद्र सरकार ने खत्म कर दिया है। इन सर्वेक्षणों को छूट देते हुए वन सलाहकार समिति (एफएसी) ने कहा कि यह “उतनी व्यापक गतिविधि नहीं है और इससे वन भूमि के उपयोग में कोई स्थाई परिवर्तन नहीं होता है”।
हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट में एफएसी के हवाले से कहा गया है कि “इस तरह की प्रारंभिक ड्रिलिंग परियोजना के डिजाइन, विस्तृत रिपोर्ट की तैयारी और प्रस्तावित विकास परियोजना के वित्तीय प्रावधानों का अनुमान लगाने के लिए जरूरी है”।
एफएसी ने इस मामले पर विचार केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के अनुरोध के बाद किया। ऊर्जा मंत्रालय के सचिव ने 28 मई को पर्यावरण मंत्रालय को पत्र लिखकर अनुरोध किया कि 25 बोर होल की ड्रिलिंग और 100 पेड़ों की कटाई के लिए जो छूट खनन परियोजनाओं को दी जाती है, वह हाइड्रो और पंप भंडारण परियोजनाओं को भी मिलनी चाहिए।
साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल (एसएएनडीआरपी) के समन्वयक हिमांशु ठक्कर कहते हैं कि “इससे पहले हाइड्रो परियोजनाएं इस छूट के बिना ही प्लान की गई हैं, इसलिए यह अजीब लगता है कि एफएसी ने बिना इसकी जरूरत का पता लगाए इस मांग को स्वीकार कर लिया”।
पश्चिमी घाटों का 56,000 वर्ग किमी इलाका इकोलॉजिकल रूप से संवेदनशील घोषित
भारत सरकार ने पांचवां ड्राफ्ट नोटिफिकेशन जारी करके पश्चिमी घाटों के 56,800 वर्ग किलोमीटर इलाके को इकोलॉजिकल रूप से संवेदनशील घोषित किया है। छह राज्यों में फैले इस 56,800 वर्ग किमी इलाके में 13 गांव केरल के वायनाड जिले के भी हैं जहां हाल ही में भूस्खलनों में 200 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं।
कुल मिलाकर इस अधिसूचना के तहत प्रस्तावित इकोलॉजिकल रूप से संवेदनशील इलाके (ईएसए) में गुजरात में 449 वर्ग किमी, महाराष्ट्र में 17,340 वर्ग किमी, गोवा में 1,461 वर्ग किमी, कर्नाटक में 20,668 वर्ग किमी, तमिलनाडु में 6,914 वर्ग किमी और केरल में 9,993.7 वर्ग किमी शामिल हैं। केरल के 9,993.7 वर्ग किमी में भूस्खलन प्रभावित वायनाड जिले के दो तालुकों के 13 गांव हैं।
गौरतलब है कि सरकार की यह अधिसूचना वायनाड में भूस्खलन के एक दिन बाद जारी की गई। विपक्ष ने सरकार पर इस अधिसूचना में देरी करने का आरोप लगाया है और कहा है कि यह देरी वायनाड में हुई घटना के लिए सीधे जिम्मेदार है।
ड्राफ्ट अधिसूचना में खनन, उत्खनन और रेत खनन पर पूर्ण प्रतिबंध प्रस्तावित है, साथ ही मौजूदा खदानों को मौजूदा खनन पट्टे की समाप्ति पर या अंतिम अधिसूचना जारी होने की तारीख से पांच साल के भीतर (जो भी पहले हो), चरणबद्ध तरीके से बंद कर दिया जाएगा। अधिसूचना में नई थर्मल पावर परियोजनाओं पर भी रोक लगाई गई है और कहा गया है कि मौजूदा परियोजनाएं चालू रह सकती हैं लेकिन उनके विस्तार की अनुमति नहीं होगी।
मौजूदा इमारतों की मरम्मत और नवीनीकरण को छोड़कर, बड़े पैमाने पर निर्माण परियोजनाओं और टाउनशिप को भी प्रतिबंधित करने का प्रस्ताव है।
साल 2010 में इकोलॉजिस्ट माधव गाडगिल की अध्यक्षता में बनी समिति ने पूरे पश्चिमी घाट को ईएसए की श्रेणी में रखने का सुझाव दिया था। लेकिन राज्य सरकारों की आपत्ति के कारण ऐसा नहीं किया गया। तबसे लेकर यह मांग उठती रही है कि पूरे पश्चिमी घाट को इकोलॉजिकल रूप से संवेदनशील घोषित किया जाए।
विशेषज्ञों का मानना है कि ईएसए कवर की अनुपस्थिति के परिणामस्वरूप सालों से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियां जारी रहीं। खनन और निर्माण के लिए बड़े पैमाने पर वनों की कटाई भी होती रही। इसके कारण मिट्टी ढीली हो गई और पहाड़ की स्थिरता प्रभावित हुई, जो भारी बारिश के दौरान भूस्खलनों की मुख्य वजह है, जैसा केरल में हुआ।
पिछले 10 सालों में 1,700 वर्ग किमी से अधिक वन क्षेत्र नष्ट हुआ
केंद्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार, डेवलपमेंट गतिविधियों के कारण पिछले 10 वर्षों में 1,700 वर्ग किमी से अधिक का वन क्षेत्र नष्ट हो गया है। हालांकि सरकार का कहना है कि इसकी क्षतिपूर्ति के लिए वनीकरण हेतु भूमि अधिग्रहित कर ली गई है।
वन मंत्री भूपेन्द्र यादव ने राज्यसभा को बताया कि पूर्वोत्तर के पांच राज्यों — अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, नागालैंड, मिजोरम और मेघालय में वन क्षेत्र कम हो गया है, जबकि आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, कर्नाटक और झारखंड जैसे राज्यों में वन क्षेत्र में वृद्धि देखी गई है।
दिल्ली की आधी वॉटर बॉडीज़ केवल कागज़ों पर
दिल्ली सरकार द्वारा अप्रैल में शुरू किए गए एक आधिकारिक जमीनी आकलन के अनुसार, दिल्ली के लगभग आधे (49.1%) आधिकारिक जल निकाय यानी बॉटर बॉडीज़ (जैसे तालाब, झीलें या वेटलैंड) अब अस्तित्व में नहीं हैं – वे या तो “गायब” हो गए हैं या उन पर अतिक्रमण कर लिया गया है। राजस्व रिकॉर्ड और उपग्रह डेटा के अनुसार, दिल्ली में 1,367 जल निकाय हैं। हालाँकि, ज़मीनी सच्चाई जानने का अभ्यास काफी अंतर दिखाता है।
अप्रैल में दिल्ली उच्च न्यायालय में दिल्ली सरकार द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, राजधानी में कुल 1,367 दर्ज जल निकाय – झीलें, तालाब और जोहड़ – थे, जो कि राजस्व रिकॉर्ड के आधार पर 1,045 से अधिक है, और यह उपग्रह इमेजरी पर आधारित जल निकाय को जोड़ने के कारण है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने सरकार को जल निकायों का जमीनी स्तर पर पता करने का निर्देश दिया, जिसके बाद उसी महीने दिल्ली राजस्व विभाग और दिल्ली राज्य वेटलैंड प्राधिकरण (डीएसडब्ल्यूए) द्वारा एक अभ्यास शुरू किया गया। अब तक इनमें से 1,291 जल निकायों का आकलन किया है, जिनमें से केवल 656 ही अस्तित्व में पाए गए, और शेष 635 मानचित्रों और अभिलेखों के अलावा कहीं मौजूद नहीं हैं।
दिल्ली और देश के अलग अलग हिस्सों में वॉटर बॉडीज़ का इस तरह गायब होते जाना अंधाधुंध निर्माण और खराब ठोस कचरा प्रबंधन का नतीजा है।
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