Vol 2, July 2022 | मनमौजी मॉनसून कर रहा जलवायु परिवर्तन के ख़तरे की पुष्टि

Newsletter - July 20, 2022

गर्मी के बाद बाढ़: बारिश के इंतज़ार के बाद पूरे देश में कई जगह बाढ़ की स्थिति है। फोटो - Diariocritico de Venezuela_Flickr

मॉनसून ने मचाई कई जगह तबाही, दिल्ली भी पहुंची आखिरकार बौछारें

मॉनसून आखिरकार पूरे देश में फैल गया और लगातार बारिश के कारण कई जगह बाढ़ की स्थिति पैदा हो गई है। उत्तर भारत में दिल्ली में आखिरकार बरसात हुई और लोगों को चिलचिलाती गर्मी से कुछ राहत मिली। राजस्थाने के पूर्वी हिस्से में भी बहुत भारी बारिश हुई। मौसम विभाग ने हिमाचल प्रदेश और ओडिशा  – जहां पहले ही काफी बरसात हो रही है – के पूर्वी तट में भारी बारिश और तूफान का पूर्वानुमान किया। 

पश्चिमी हिस्से में गुजरात में 900 मिमी बारिश हो चुकी है। यहां हर साल सामान्यतया 1,450 मिमी तक बारिश होती है। वलसाड और नवसारी ज़िलों में नदियों में भारी उफान और बाधों के लबालब होने की ख़बरें हैं।  

दक्षिण में केरल में पांच दिन लगातार बारिश होने के कारण हाई अलर्ट किया गया और यहां अब भी बरसात हो रही है। अधिकारियों ने बताया कि कुछ बांध पूरी तरह भर चुके हैं और मौसम विभाग ने राज्य के 8 ज़िलों में यलो अलर्ट जारी किया।   आंध्र प्रदेश में गोदावरी में उफान के कारण गांवों में पानी भर गया। अधिकारियों के मुताबिक 16 साल बाद इस नदी में पानी 25 क्यूसेक से ऊपर गया है।  

बरसात में गड़बड़ी के पीछे ब्लैक कार्बन का हाथ 

एक मॉडलिंग अध्ययन में पता चला है कि भारत के पूर्वोत्तर में हवा में ब्लैक कार्बन की बढ़ती मात्रा वर्षा का ग्राफ गड़बड़ा रही है। इससे कुछ जगह कम तीव्रता वाली बारिश घट गई और मूसलाधार बारिश में बढ़ोतरी हुई। ब्लैक कार्बन एक तरह का वायु प्रदूषक है जो जीवाश्म ईंधन, बायोमास और अन्य प्राकृतिक स्रोतों से वायुमंडल में आता है।   कार्बन डाई ऑक्साइड के बाद ग्लोबल वॉर्मिंग के प्रभावों को बढ़ाने में इसका बड़ा रोल है। मोंगाबे इंडिया में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक जहां मॉनसून पूर्व की बरसात में कमी आई है वहीं एरोसॉल बढ़ रहा है। रिपोर्ट बताती है कि गंगा के मैदानी इलाकों से भी ब्लैक कार्बन नॉर्थ-ईस्ट में पहुंच रहा है। 

टमाटर की उपज पर ग्लोबल वॉर्मिंग का असर  

एक नई रिसर्च बताती है कि ग्लोबल वॉर्मिंग का असर टमाटर की पैदावार पर पड़ रहा है। इससे सॉस, पिज्जा और केचप जैसे उत्पादों का बाज़ार गड़बड़ा सकता है। साइंस पत्रिका जर्नल नेचर फ़ूड में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक 2050 तक सॉस, केचप जैसे उत्पादों के लिए जरुरी टमाटरों का उत्पादन 6 फीसदी तक घट सकता है। वैश्विक स्तर पर देखें तो इन सॉस, केचप जैसे उत्पादों के लिए इस्तेमाल होने वाले टमाटरों का उत्पादन बहुत सीमित क्षेत्रों में केंद्रित है। यह रिसर्च बताती है कि चीन और मंगोलिया जैसे देशों के कुछ इलाकों में टमाटर की पैदानार बढ़ेगी वहीं इटली समेत यूरोपीय देशों में इसकी उपज घट सकती है। 

यूरोप में भयानक आग, कुछ क्षेत्रों में तापमान 45 डिग्री के पार पहुंचा

पूरे यूरोप में एक असामान्य हीटवेव के कारण कई जगह आग की घटनायें हो रही हैं। दक्षिण फ्रांस से लेकर, स्पेन, पुर्तगाल, टर्की और क्रोशिया में यह देखने को मिला और महाद्वीप में तापमान 45 डिग्री सेंटीग्रेट के पार चला गया। दक्षिण फ्रांस के बोर्डियू में 800 अग्निशमन कर्मियों ने दो बड़ी आग पर काबू पाने के लिये संघर्ष किया और 6,500 लोगों को निकाल कर सुरक्षित जगहों पर ले गये।     

आग की इन घटनाओं के कारण हज़ारों एकड़ धरती बर्बाद हो चुकी है। पुर्तगाल के एक ज़िले में ही 3,000 हेक्टेयर और पश्चिम स्पेन में 3,500 हेक्टेयर ज़मीन नष्ट होने की ख़बर है। यहां से 400 लोगों को सुरक्षित जगहों पर जाना पड़ा। 

दुनिया के पांच सबसे अधिक प्रदूषण करने वाले देशों ने पहुंचाया 6 लाख करोड़ डॉलर का आर्थिक नुकसान 

एक नये अध्ययन में पाया गया है कि 1990 और 2014 के बीच दुनिया के पांच सबसे बड़े ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जित करने वाले देशों ने विश्व अर्थव्यवस्था को 6 लाख करोड़ डॉलर की चोट पहुंचाई। अमेरिका और चीन के कारण ही इन 25 सालों में कुल 1.8 लाख करोड़ डॉलर का नुक़सान हुआ। रूस, भारत और ब्राज़ील ने कुल 50 हज़ार करोड़ डॉलर के बराबर नुक़सान पहुंचाया। 

नया संकट: वन संरक्षण नियमों पर सरकार के नये बदलाव आदिवासियों के अधिकारों की अनदेखी करते हैं। फोटो - pixabay

वन नियमों में नये बदलाव आदिवासियों और जंगलों के खिलाफ

सरकार ने वन संरक्षण नियमों में ऐसे बदलाव किये हैं जिससे आदिवासियों की स्वीकृति के बिना ही जंगलों को काटा जा सकता है। समाचार  पोर्टल न्यूज़लॉन्ड्री में छपी लैंड कॉन्फिक्ट वॉच की रिपोर्ट बताती है कि पिछली 28 जून को को सरकार ने वन संरक्षण नियम 2022 को नोटिफाई किया। ये नियम केंद्र सरकार की, आदिवासियों के उनके पारम्परिक जंगलों पर अधिकारों को सुनिश्चित करने और वनों को काटने से पहले उनकी रजामंदी की जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर डाल देंगे।   सरकार के रिकॉर्ड बताते हैं कि वन संरक्षण नियमों में यह परिवर्तन, कई मंत्रालयों, असफल परियोजनाओं और 2015 में जनजातीय मामलों का मंत्रालय के द्वारा दी गई कड़ी कानूनी चेतावनी के बाद आया है।  यह मंत्रालय वन अधिकार अधिनियम के लागू किए जाने को सुनिश्चित करता है।

मध्य प्रदेश: राज्य प्रदूषण बोर्ड के आंकड़ों में खामियां, एनजीटी ने मांगी रिपोर्ट 

मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बायो मेडिकल वेस्ट के प्रबंधन को लेकर जो आंकड़े वेबसाइट में डाले हैं उनमें कई कमियां हैं। यह बात नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा गठित समिति की जांच में सामने आई हैं। समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि बायो मेडिकल वेस्ट को इकट्ठा करने और उसके निपटान के मामले में दिये गये आंकड़ों में भी काफी अंतर है। जो सुविधायें उपलब्ध हैं उनकी क्षमता 30 प्रतिशत कम पाई गई है। अब एनजीटी ने इस बारे में विस्तार से रिपोर्ट देने को कहा है। 

वन विभाग ने 200 से अधिक पेड़ काटने के लिये गाज़ियाबाद नगर निगम पर किया मुकदमा 

दिल्ली से सटे गाज़ियाबाद में वन विभाग ने बिना अनुमति के 200 से अधिक अलग अलग प्रजातियों के पेड़ काटने के लिये जीडीए के ऊपर मुकदमा किया है। पर्यावरण के मामलों पर काम करने वाले एक वकील की शिकायत पर बागवानी विभाग के कर्मचारियों पर गाज़ियाबाद में उत्तर प्रदेश के प्रोटेक्शन ऑफ ट्री एक्ट 1976 के तहत यह मुकदमा किया गया है।   वन विभाग का कहना है कि इस अपराध के लिये 10 हज़ार रुपये की पेनल्टी लगाकर हार्टिकल्चर डिपार्टमेंट को सूचित कर दिया गया है। महत्वपूर्ण है कि गाज़ियाबाद दुनिया के प्रदूषित शहरों की लिस्ट में लगातार पहले नंबर पर आता रहा है। 

जलवायु संकट से लड़ने के लिये बाइडेन कुछ खास नहीं कर रहे: डेमोक्रेट 

अमेरिका में डेमोक्रेट पार्टी के 80% वोटरों का मानना है कि राष्ट्रपति जो बाइडेन जलवायु संकट पर पर्याप्त कदम नहीं उठा रही है। प्यू रिसर्च सेंटर सर्वे ने करीब 10,000 वयस्कों से बात  कर सर्वे किया। सर्वे के नतीजे बताते हैं कि पर्यावरण और जलवायु संकट पर हालांकि लोग पार्टी लाइन के आधार पर बंटे हैं। जहां केवल 15% रिपब्लिकन सोचते हैं कि बाइडेन की नीतियां देश को सही दिशा में ले जा रही हैं वहीं 79% डेमोक्रेट इसी मुद्दे पर बाइडेन के पक्ष में हैं।  

लेकिन दोनों ही पार्टियों के ज़्यादातर युवा वोटरों में इस बात को लेकर निराशा है कि क्लाइमेट चेंज के  महत्वपूर्ण विषयों पर बाइडेन सरकार बहुत धीमी रफ्तार से काम कर रही है।  बाइडेन की लोकप्रियता बहुत तेज़ी से गिरी है और तेल-गैस कंपनियों के करीबी डेमोक्रेट सीनेटर जो मेंचिन और रिपब्लिक के कारण बाइडेन के क्लाइमेट लक्ष्यों से जुड़े कानून अटके हैं और लगता नहीं कि अमेरिका अपने क्लाइमेट टार्गेट हासिल कर पायेगा।  

नये प्रस्ताव: वायु प्रदूषण को लेकर सीएक्यूएम के नये प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद तैयार किये गये है। फोटो - the Hindu

वायु प्रदूषण नियंत्रण की आपातकालीन योजना में बदलाव

देश में बड़े शहरों वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंचने के लिये तय नीति (ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान यान जीआरएपी) में बदलाव किया गया है। अब दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण कम करने के आपातकालीन कदम हवा की क्वॉलिटी खराब होने के पूर्वानुमान के आधार पर उठाये जायेंगे जबकि पहले यह कदम एयर क्वॉलिटी के एक स्तर से अधिक गिर जाने पर उठाये जाते थे। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद नीति में बदलाव कर कमीशन फॉर एयर क्वॉलिटी मैनेजमेंट (सीएक्यूएम) ने यह फैसला लिया है। नई रणनीति के तहत प्रस्ताव है कि एयर क्वालिटी इंडेक्स के बहुत खराब (सीवियर) होने पर बीएस-4 डीज़ल वाहनों पर भी रोक लगाई जाये।  

सीएक्यूएम ने फैसला किया है कि 2026 के बाद दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में कोई डीज़ल ऑटो नहीं चलेगा। साथ ही 1 जनवरी 2023 से दिल्ली-एनसीआर में केवल सीएनजी वाले ऑटोरिक्शा ही पंजीकृत होंगे।  

बाहरी  प्रदूषण के  साथ घरेलू प्रदूषण रोकने की सलाह    

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में बाहरी वायु प्रदूषण के साथ घरेलू प्रदूषण पर नियंत्रण करने पर ज़ोर दिया है। कम आय वर्ग में चूल्हों से उठने वाला धुंआं स्वास्थ्य के बड़ा ख़तरा है जिससे महिलायें और छोटे बच्चे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। कमीशन ने सलाह दी है कि प्रवासी मज़दूरों और काम के सिलसिले में यहां-वहां भटकने वाली आबादी को इंडक्शन स्टोव दिलवाये जायें।   यह सिफारिशें दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता को बेहतर करने की मुहिम के अंतर्गत हैं। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीज के अध्ययन के मुताबिक दुनिया में हर साल 10 लाख लोगों की मौत के पीछे घरेलू प्रदूषण ज़िम्मेदार होता है। 

वायु प्रदूषण और जीवन प्रत्याशा में संबंध बताने के लिये कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं 

सरकार ने एक बार फिर वायु प्रदूषण से हो रही मौतों से पल्ला झाड़ने की कोशिश की है। सरकार ने संसद में कहा है कि उसके पास ऐसा कोई डाटा उपलब्ध नहीं है जिससे वायु प्रदूषण और लोगों की मौत का कोई संबंध स्थापित हो सके। केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री अश्विनी चौबे ने सोमवार को लोकसभा में कहा कि ख़राब एयर क्वॉलिटी इंडेक्स और और लोगों की जीवन प्रत्याशा में कोई सीधा रैखिक संबंध नहीं है जैसा कि द एनर्जी पॉलिसी इंस्टिट्यूट (यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो) की एयर क्वॉलिटी लाइफ इंडेक्स रिपोर्ट में माना गया है। चौबे ने कहा कि इस बारे में कोई निर्णायक आंकड़े नहीं हैं जो बता सकें कि खराब हवा का मौतों से कोई रिश्ता है। हालांकि एयर क्वॉलिटी लाइफ इंडेक्स  रिपोर्ट में पिछले महीने कहा गया था कि भारत में वायु प्रदूषण जीवन के लिये सबसे बड़ा खतरा है और अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों का पालन नहीं हुआ तो एक इंसान का जीवन 5 साल कम हो सकता है। 

कोयले पर भारी: रिसर्च कहती है कि पिछले साल साफ ऊर्जा के संयंत्र कोयला बिजलीघरों के मुकाबले कहीं अधिक किफायती साबित हुये। फोटो - pixabay

साफ ऊर्जा कोयले से अधिक किफायती साबित हुई: आइरीना

दुनिया के तमाम देशों को सस्टेनेबल ऊर्जा की ओर बढ़ने की सलाह देने वाली इंटरनेशनल रिन्यूएबल एनर्जी एजेंसी (इरीना) ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में कहा है कि पिछले साल साफ ऊर्जा के नये संयंत्रों में से दो-तिहाई कोयले के मुकाबले अधिक किफायती साबित हुये।  एजेंसी के मुताबिक जी-20 देशों में करीब 163 गीगावॉट के क्लीन एनर्जी वाले संयंत्र थे जिनसे मिलने वाली बिजली सबसे सस्ते कोयले से भी किफायती साबित हुई। रिपोर्ट कहती है कि 2020 के मुकाबले 2021 में तटीय पवन ऊर्जा की कीमत 15 प्रतिशत कम हुई जबकि अपतटीय पवन ऊर्जा और फोटो वोल्टिक सेल से मिलने वाली (सौर ऊर्जा) की कीमत 13 प्रतिशत गिरी। 

साफ ऊर्जा लक्ष्य हासिल करने में पीछे छूट सकता है भारत!

साफ ऊर्जा की कम कीमत और बढ़ते प्रयासों के बावजूद भारत 2030 के लिये तय किये गये क्लीन एनर्जी टार्गेट को हासिल करने में चूक सकता है। भारत ने 2030 तक 500 गीगावॉट साफ ऊर्जा क्षमता हासिल करने और अपनी ज़रूरतों का 50% क्लीन एनर्जी से हासिल करने का लक्ष्य रखा है  लेकिन इस क्षेत्र में रिसर्च करने वाली ग्लोबल डाटा की एक रिपोर्ट के मुताबिक बाज़ार की मौजूदा स्थित और इस दिशा में देश की  तरक्की को देखते हुये हो सकता है कि भारत 104 गीगावॉट पीछे रह जाये। भारत ने साल 2022 तक कुल 175 गीगावॉट साफ ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य रखा था लेकिन महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और यूपी जैसे राज्य अपने तय लक्ष्य में पीछे रह गये और अभी तक केवल 110 गीगावॉट ही हासिल हो पाई है।  हालांकि ग्लोबल डाटा का कहना है कि बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं को साफ ऊर्जा की श्रेणी में रखकर भारत क्लीन एनर्जी के इस लक्ष्य को हासिल कर सकता है। 

खाद्य सुरक्षा और ग्रीन एनर्जी के रूप में 200 करोड़ डॉलर का निवेश 

भारत में नये फूड पार्क लगाने, भोजन की बर्बादी रोकने और जल संरक्षण के साथ उम्दा क्लीन टेक्नोलॉजी को प्रोत्साहित करने के लिये संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) भारत में कुल 200 करोड़ अमरीकी डॉलर के बराबर निवेश करेगा।  चार देशों भारत, इस्राइल, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई)  के ग्रुप को आई2यू2 कहा जाता है और इस ग्रुप के देशों में आपसी सहयोग के तहत यह फैसला किया गया है। 

यूएई भारत को गुजरात में 300 मेगावॉट का एक हाइब्रिड एनर्जी प्रोजेक्ट लगाने में मदद करेगा जिसमें पवन चक्कियां और सोलर पैनल दोनों का इस्तेमाल होगा। महत्वपूर्ण है कि भारत ने साल 2030 तक 500 गीगावॉट के साफ ऊर्जा संयंत्र लगाने का लक्ष्य रखा है। जानकार कहते हैं कि  यूएई भले ही भारत को साफ ऊर्जा में आई2यू2 फ्रेमवर्क के तहत मदद कर रहा है लेकिन वह खुद जीवाश्म ईंधन का सबसे बड़ा उपभोक्ता और व्यापारी है। 

टीपी शौर्या को मिला कर्नाटक में 600 मेगावॉट का अनुबंध 

टाटा पावर की क्लीन एनर्जी शाखा कंपनी टीपी शौर्या  को कर्नाटक में 600 मेगावॉट  का विन्ड-सोलर हाइब्रिड प्रोजेक्ट का अनुबंध मिला है। कंपनी ने एक बयान में कहा है कि उसे सस्ती बिजली दरों की बोली के आधार पर नीलामी के तहत सरकारी कंपनी सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (एसईसीआई) से यह ठेका मिला है। 

उठता ग्राफ: आईईए के मुताबिक 2030 तक ईवी बैटरियों की वैश्विक मांग 10 गुना हो जायेगी। फोटो - Pixabay

बैटरियों की वैश्विक मांग में 2030 तक 10 गुना बढ़ोतरी

ईवी बैटरियों की मांग अगले 8 साल में करीब 10 गुना हो जायेगी। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) की रिपोर्ट के मुताबिक वर्तमान 340 गीगावॉट घंटा से बढ़कर यह 3,500 गीगावॉट घंटा तक पहुंच जायेगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि बैटरी वाहनों की बढ़ती संख्या को देखते हुये ईवी बैटरियों के लिये सप्लाई चेन में बढ़ोतरी के साथ खनन और प्रोसेसिंग काफी अहम होगी। रिपोर्ट बताती है कि चीन का रोल इसमें काफी अहम रहेगा क्योंकि वह दुनिया की तीन-चौथाई लीथियम आयन बैटरियां बना रहा है और यहीं पर 70% कैथोड और 85% एनोड बनाये जाते हैं जो कि बैटरियों के अहम हिस्से हैं। इस तुलना में अमेरिका और यूरोपीय देशों का उत्पादन, प्रोसेसिंग और सप्लाई चेन में काफी कम योगदान है।  

आईईए के मुताबिक इस क्षेत्र में बेहतर निवेश, पर्यावरण के हित और सामाजिक रूप से समावेशी उत्पादन के लिये  दुनिया भर की सरकारों को निर्माता और उत्पादक देशों के बीच सहयोग और तालमेल बढ़ाना होगा। 

विद्युत वाहनों में आग के मामले, सरकारी पैनल की रिपोर्ट इस महीने  

इलैक्ट्रिक टू-व्हीलर  यानी बैटरी दुपहिया वाहनों में आग की घटनाओं के बाद सरकार ने एक कमेटी गठित की थी ताकि बैटरियों को प्रमाण पत्र दिये जाने और क्वॉलिटी कंट्रोल के लिये एक स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर (एसओपी) लाया जा सके।   कमेटी ये गाइडलाइंस इस महीने सरकार को जमा कर देगी। इस कमेटी में बंगलौर स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस और आईआईटी (चेन्नई) समेत कई महत्वपूर्ण संस्थानों के विशेषज्ञ हैं। कमेटी से कहा गया है कि वह बैटरी में इस्तेमाल होने वाले पुर्जों की जांच, सर्टिफिकेशन और वैधता की प्रक्रिया  तय करे। 

दिसंबर तक पीएमआई उतारेगी 900 नई इलैक्ट्रिक बसें  

विद्युत वाहनों की निर्माता कंपनी पीएमआई का कहना है कि इस साल के अंत तक 900 इलैक्ट्रिक बसें भारत की सड़कों पर उतार दी जायेंगी। कंपनी का दावा है कि देसी टेक्नोलॉजी और समय पर डिलीवरी के साथ वह भारत की अग्रणी ऑटोमेकर्स में होगी। भारत के शहरों में प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिये इलैक्ट्रिक वाहनों को बढ़ाने की दरकार है। कोरोना लॉकडाउन के वक्त भी देश के 50 बड़े शहरों में 36 की हवा में प्रदूषण का स्तर खतरनाक पाया गया था।    

विनाशकारी खनन: ऑस्ट्रेलिया में मीथेन रिसाव वाले बेहद संवेदनशील क्षेत्र में ग्लेनकोर के नये इरादे पर्यावरणीय संकट खड़ा करेंगे। फोटो - Pixabay

ऑस्ट्रेलिया में मीथेन हॉट-स्पॉट पर ग्लेनकोर कर रही कोयला खनन

एक ओर क्लाइमेट साइंटिस्ट कह रहे हैं कि वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने के लिये जीवाश्म ईंधन का प्रयोग तेज़ी से कम करने की ज़रूरत है लेकिन दूसरी ओर बड़ी कंपनियां ऐसे खनन बढ़ा रही हैं जिनके ग्लोबल वॉर्मिंग कई स्तर पर बढ़ेगी। मल्टीनेशनल माइनिंग कंपनी ग्लेनकोर प्लेक ऑस्ट्रेलिया के मीथेन हॉट-स्पॉट कहे जाने वाले क्षेत्र में कोयला खनन कर रही है जिससे पर्यावरण को बड़ा खतरा होगा। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि हेल क्रीक खनन क्षेत्र से  – जहां कंपनी कोल  माइनिंग का विस्तार करना चाहती है – हर साल  इतना मीथेन उत्सर्जित हो सकता है जितना धरती पर लाखों कारों के चलते से होता है। मीथेन सबसे खतरनाक ग्रीन हाउस गैसों में है।  

प्रचुर मीथेन गैस वाले इस क्षेत्र में खनन विस्तार कर रही ग्लेनकोर का कहना है कि कोयला माइनिंग के दौरान रिसने वाली मीथेन को रोकने का कोई विश्वसनीय तरीका उपलब्ध नहीं है। पर्यावरण विशेषज्ञ कहते हैं कि ऐसे हालात में इन जगहों पर किसी तरह के नये खनन की इजाज़त नहीं मिलनी चाहिये। 

गैरकानूनी कोयला खनन: ईसीएल ने की कार्रवाई  

कोयला स्मगलिंग मामले में ईस्टर्न कोलफील्ड लिमिटेड (ईसीएल) कर्मचारियों की कोलकाता में हुई गिरफ्तारी के बाद  अब कंपनी ने पश्चिम बर्धमान, पुरुलिया और बांकुरा ज़िलों में कार्रवाई की है। ईसीएल ने अपने  केंद्रीय औद्योगिक पुलिस फोर्स (सीआईएसएफ) के साथ मिलकर एक टास्क फोर्स बनाई है और गैरकानूनी खनन और कोयले की चोरी वाले संभावित क्षेत्रों को बन्द किया है।

सीबीआई ने नवंबर 2020 में कोयला चोरी और स्मगलिंग और कई कर्मचारियों की मिलीभगत की सूचना के बाद पड़ताल शुरू की थी और पिछले बुधवार को कंपनी के पूर्व कर्मचारियों समेत कुछ 7 लोगों को कोल स्मगलिंग के आरोप में गिरफ्तार किया। बंगाल के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे और सांसद अभिषेक बनर्जी से भी जांच एजेंसियों ने इस बारे में पूछताछ की है। अब ईसीएल ने अपने  अधिकार क्षेत्र में खनन वाले इलाकों में यह कार्रवाई की है। 

कोयला क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिये कई कदम उठाये: शाह  

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने दावा किया है कि सरकार ने देश को कोयला क्षेत्र में आत्मनिर्भर करने के लिये कई नीतिगत सुधार किये हैं।  शाह ने कहा कि बिना सही माइनिंग पॉलिसी के देश का विकास संभव नहीं है और 8.2 प्रतिशत की विकास दर के साथ भारत सबसे तेज़ विकसित हो रही अर्थव्यवस्थाओं में है। शाह ने कहा कि इस विकास दर में खनन क्षेत्र का विशेष योगदान है। महत्वपूर्ण है कि ऊर्जा क्षेत्र में कोयले को लेकर काफी असमंजस दिखता है। हालांकि भारत सरकार ने साल 2030 तक 500 गीगावॉट साफ ऊर्जा का लक्ष्य रखा है वहीं नीति आयोग के रिपोर्ट्स बताती आयी हैं कि कोयला भारत में बिजली बनाने का मुख्य स्रोत बना रहेगा।