Newsletter - April 28, 2023
जलशक्ति मंत्रालय ने पहली बार देश में वॉटरबॉडीज़ (जलाशय, तालाब, वॉटरटैंक आदि) की गणना पर रिपोर्ट जारी की है। साल 2016 में संसद की स्थाई समिति ने कहा था कि इस गणना की ज़रूरत है और 2018-19 में सरकार ने छठी लघु सिंचाई गणना (माइनर इरिगेशन सेंसस) के साथ यह गणना भी करने को कहा। गणना में पता चला है कि देश में कुल 24,24,540 वॉटरबॉडी हैं। इनमें 78% मानवनिर्मित और 22% प्राकृतिक हैं। गणना में पाया गया कि सबसे अधिक 7.47 लाख जल निकाय पश्चिम बंगाल में हैं।
सेंसस के मुताबिक वॉटरबॉडीज़ में सबसे अधिक करीब 60% (करीब 14.43 लाख) तालाब हैं और 0.9 प्रतिशत (22,361) झीलें हैं। यह पाया गया कि 1.6 % वॉटरबॉडीज़ पर क़ब्ज़ा किया गया है जिनकी कुल संख्या 38,496 बनती है। वैसे सरकार ने इस गणना में 7 विशेष प्रकार की वॉटरबॉडीज़ को नहीं गिना है जिनमें समुद्र और खारे पानी की झील के अलावा नदी, झरने, नहरें (बहता पानी), स्विमिंग पूल, ढके गये जलटैंक, फैक्ट्रियों द्वारा अपने प्रयोग के लिये बने टैंक, खनन से बना अस्थाई जलजमाव और जानवरों और पीने के पानी के लिये बना पक्का वॉटर टैंक शामिल है।
चीन को पीछे छोड़ भारत बना दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश
आबादी के मामले में अब भारत नंबर वन है। संयुक्त राष्ट्र की ताज़ा द स्टेट ऑफ पापुलेशन रिपोर्ट (2023) बताती है कि भारत की आबादी अब 142 करोड़ 86 लाख हो गई है जबकि चीन की आबादी 142 करोड़ 57 लाख है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक भारत की आबादी पिछले साल 140.6 करोड़ थी और साल भर में 1.56 प्रतिशत की बढ़त के साथ वह नंबर वन देश बन गया है। पूरी दुनिया की आबादी 804.50 करोड़ हो गई है।
भारत की कामकाजी उम्र वाली आबादी (जो कि 15 से 64 वर्ष की आयु के लोग हैं) कुल जनसंख्या का दो-तिहाई है और इनकी संख्या 95 करोड़ से अधिक है। चीन की आबादी भारत से करीब 30 लाख कम है हालांकि वहां भी 15 से 64 आयुवर्ग के लोग कुल आबादी के दो-तिहाई से थोड़ा अधिक 69% ही हैं। भारत आज सर्वाधिक युवा शक्ति वाला देश है जहां 15 से 24 आयुवर्ग के 25 करोड़ से अधिक लोग रहते हैं।
क्लाइमेट प्रभावों के आगे बेबस ला निना; चरम मौसमी घटनाओं ने तोड़ा रिकॉर्ड
विश्व मौसम विज्ञान संगठन यानी डब्लूएमओ ने अपनी ताज़ा स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और इसके कारण हो रही चरम मौसमी घटनाओं को लेकर चेतावनी दी है। संगठन के महासचिव ने अपने बयान में कहा है कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि के साथ जलवायु परिवर्तन का ग्राफ तेज़ी से ऊपर जा रहा है और चरम मौसमी घटनाओं (एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स ) से मानव जीवन प्रभावित हो रहा है।
पिछले तीन सालों में लगातार ला निना प्रभाव के हावी रहने के बावजूद – ला निना प्रभान होने पर जलवायु ठंडी रहती है – धरती को कोई राहत नहीं मिली और साल 2022 में धरती की तापमान वृद्धि 1.15 डिग्री दर्ज की गई और एक्सट्रीम वेदर घटनायें हुईं। साल 2022 में जहां पूर्वी अफ्रीका में लगातार सूखा पड़ा वहीं पाकिस्तान में रिकॉर्ड बारिश हुई और चीन, यूरोप और भारत लू की चपेट में रहे। डब्लू एम ओ की रिपोर्ट कहती है कि जलवायु परिवर्तन प्रभावों के कारण भारी संख्या में लोगों का पलायन, खाद्य असुरक्षा और अर्थव्यवस्था को करोड़ो डॉलर की क्षति का सामना करना पड़ा।
भारत की जीडीपी पर हीटवेव का बुरा प्रभाव
नये शोध बताते हैं कि एक ओर हीटवेव का भारत की कृषि, अर्थव्यवस्था और जन स्वास्थ्य पर “अभूतपूर्व बोझ” पड़ रहा है और दूसरी ओर जलवायु परिवर्तन के कारण ग़रीबी, असामानता और बीमारियां कम करने के दीर्घकालिक प्रयासों पर चोट पड़ रही है। कैंब्रिज विश्वविद्यालय के शोधार्थियों के अध्ययन से जानकारी मिली है कि पिछले 30 साल में लू लगने के कार 24,000 से अधिक लोगों की मौत हुई है और इस कारण वायु प्रदूषण और हिमनदों के पिघलने की रफ्तार बढ़ी है।
यह महत्वपूर्ण है क्योंकि आंकड़ों के मुताबिक भारत की करीब 50 प्रतिशत वर्कफोर्स बाहर धूप में काम करना पड़ता है चाहे हालात कितने ही कठिन क्यों न हों। कुल श्रमिकों में 18 प्रतिशत कृषि में लगे हैं। कड़ी धूप में काम करने वाले ये सभी श्रमिक देश के सबसे ग़रीब लोगों में हैं और इनके लिये काम सबसे कठिन परिस्थितियों में होता है। बाहर काम करने वाली वर्कफोर्स की कुल संख्या 23 करोड़ से अधिक है। स्पष्ट रूप से अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव समझा जा सकता है। भारत में पिछले साल इतिहास का सबसे अधिक गर्म मार्च दर्ज किया गया और इस साल फरवरी में रिकॉर्ड तापमान रहा। साल 2023 में अप्रैल आते-आते 11 राज्य हीटवेव की चपेट में हैं।
शोधकर्ताओं का कहना है कि 2050 तक एक्सट्रीम हीट के कारण बाहर खुले में काम करने वाली 48 करोड़ आबादी की कार्यक्षमता में 15% गिरावट होगी और जीवन की गुणवत्ता पर असर होगा। इससे सदी के मध्य तक जीडीपी 2.8% घटेगी। पिछले साल प्रकाशित हुई क्लाइमेट ट्रांसपरेंसी रिपोर्ट के मुताबिक तापमान में अत्यधिक बढ़ोतरी से साल 2021 में जीडीपी पर 5.4% का प्रभाव पड़ा।
फ्रांस-स्पेन की सीमा पर भीषण आग
स्पेन की कटालोनिया फायर ब्रिगेड द्वारा जारी की गई वीडियो फुटेज में स्पेन और फ्रांस की सीमा पर भारी आग के दृश्य हैं जिन्हें अग्नि शमन कर्माचारी बुझाने की कोशिश में दिख रहे हैं। फ्रांस के गांवों से शुरू होकर यह आग स्पेन की सीमा में फैलती दिख रही है। करीब 1000 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली इस आग को बुझाने की कोशिश दोनों तरफ के अग्निशमन कर्मी करते दिख रहे हैं। पूरे यूरोप में शुष्क सर्दियों और वसंत के मौसम के बाद गर्मी की शुरुआत में आग की घटनायें बार-बार हो रही हैं। रिसर्च बताती हैं कि यूरोप के अधिकांश हिस्से पूरी धरती के गर्म होने की औसत रफ्तार से दोगुना तेज़ी से गर्म हो रहे हैं और इसलिये ऐसी घटनायें अधिक चिन्ता का विषय हैं।
कूनो में एक और चीते की मौत से प्रोजेक्ट चीता पर उठे सवाल
मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में एक और चीते की मौत हो गई है। दक्षिण अफ्रीका से लाए गए चीते उदय ने बीमार पड़ने के बाद इलाज के दौरान दम तोड़ दिया।
पोस्ट-मॉर्टम रिपोर्ट के अनुसार उदय की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई, जिसका संभावित कारन को टॉक्सिन था।
कूनो में एक महीने के भीतर दो चीतों की मौत हो चुकी है।
इसके पहले साशा नामक मादा चीता के किडनी की बीमारी के चलते मौत हो गई थी। इन दो मौतों से देश में प्रोजेक्ट चीता पर सवाल उठने लगे हैं।
करीब छह साल के उदय को इस साल 18 फरवरी को दक्षिण अफ्रीका से लाया गया था। दक्षिण अफ्रीका से उसे कूनो लेकर आने वाले चीता मेटा पॉपुलेशन प्रोजेक्ट से जुड़े लोगों के मुताबिक उदय का स्वास्थ्य अच्छा था।
वहीं, वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट्स का कहना है कि लगातार लंबे समय तक बाड़े में रखने से चीतों के स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है और वे बीमार हो रहे हैं।
परिवेश पोर्टल पर जानकारी नहीं देने की रिपोर्ट पर पर्यावरण मंत्रालय ने दी सफाई
पर्यावरण मंत्रालय की परिवेश वेबसाइट ने पिछले साल सितंबर से परियोजनाओं के पर्यावरण पर पड़नेवाले प्रभावों की जानकारी देना बंद कर दिया है, हिंदुस्तान टाइम्स ने एक रिपोर्ट में बताया। मंत्रालय ने निर्णय लिया है कि सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत मांगे जाने पर ही ऐसी जानकारी प्रदान की जाएगी।
हालांकि, बाद में मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि पोर्टल में सुधार हो रहा है और नया परिवेश पोर्टल भारत के पारदर्शिता कानून के अनुरूप होगा। यह परियोजना प्रस्तावों, और पर्यावरण और फारेस्ट मंजूरी के विवरण सार्वजनिक करेगा। लेकिन मंत्रालय ने नया पोर्टल शुरू होने की कोई समयसीमा नहीं बताई है।
परिवेश (प्रो-एक्टिव एंड रिस्पॉन्सिव फैसिलिटेशन बाइ इंटरएक्टिव एंड वर्चुअस एनवायरनमेंट सिंगल-विंडो हब) पर्यावरण, वन, वन्य जीवन और कोस्टल रेगुलेशन ज़ोन की मंजूरी के लिए सिंगल विंडो सिस्टम है।
मंत्रालय ने हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के जवाब में कहा कि नई वेबसाइट विशेषज्ञ मूल्यांकन और वन सलाहकार समितियों की बैठकों के विवरण, पर्यावरण और फारेस्ट क्लीयरेंस पर जानकारी, कोस्टल रेगुलेशन ज़ोन प्रस्ताव विवरण और मंजूरी, और क्षेत्रीय अधिकार प्राप्त समिति के कार्यवृत्त (मिनट्स) प्रदान करेगी।
हालांकि, मंत्रालय ने नहीं बताया कि क्या अबतक के नियम के अनुसार परियोजनाओं से संबंधित जानकारी जैसे एनवायरनमेंट इम्पैक्ट असेसमेंट (ईआईए) का मसौदा और अंतिम रिपोर्ट, टर्म्स ऑफ़ रेफेरेंस (टीओआर), प्री-फिसीबिलिटी रिपोर्ट और जन सुनवाई दस्तावेजों आदि सार्वजनिक की जाएगी या नहीं।
मंत्रालय ने कहा कि वेबसाइट को सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के अनुकूल बनाया जाएगा।
इससे पहले, पर्यावरण मंत्रालय के एक अधिकारी के हवाले से एचटी ने बताया था कि परिवेश पर जानकारी न देने का कारण है प्रोजेक्ट डेवलपर्स के हितों की रक्षा करना, और कुछ सूचनाओं की संवेदनशीलता। हालांकि एनवायरनमेंट एक्टिविस्ट्स और पर्यावरणविदों ने दावा किया कि यह सिस्टम को अपारदर्शी बनाने का तर्क प्रतीत होता है।
सुप्रीम कोर्ट का केंद्र से सवाल: 27 में से केवल तीन कीटनाशक ही प्रतिबंधित क्यों?
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि उसने देश में केवल तीन कीटनाशकों को ही बैन करने के लिए सूचीबद्ध क्यों किया है। मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र को एक हलफनामें में इस बात की जानकारी देने के लिए कहा है कि, ‘किस आधार पर 27 में से केवल तीन कीटनाशकों पर ही कार्रवाई की गई है’।
साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को डॉक्टर एस के खुराना उप समिति की अंतिम रिपोर्ट और डॉक्टर टी पी राजेंद्रन की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा 6 सितंबर, 2022 को जमा रिपोर्ट को भी ऑन रिकॉर्ड रखने का निर्देश दिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने यह आदेश 27 मार्च 2023 को जारी किया था।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण का कहना था कि जनवरी 2018 तक कम से कम 27 कीटनाशकों को बैन किया जाना था।
वहीं अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी का आरोप है कि सर्वोच्च न्यायालय में इस तरह की याचिकाएं दायर की जा रही हैं जिनकी मंशा सही नहीं है और अदालत का इस्तेमाल इस उद्देश्य के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
ऐसे में कोर्ट ने कहा है कि यदि आपने अपना काम ठीक से किया होता तो हम सुनवाई नहीं कर रहे होते।
गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय में ऐसी कई याचिकाएं दाखिल हैं, जिनमें 100 से भी ज्यादा कीटनाशकों को प्रतिबंधित करने की मांग की गई है।
विकासशील देशों की मदद के लिए यूएन के जलवायु कोष में 1 बिलियन डॉलर देगा अमेरिका
विकासशील देशों को उत्सर्जन में कटौती और अनुकूलन में सहायता करने के उद्देश्य से बनाए गए संयुक्त राष्ट्र के ग्रीन क्लाइमेट फंड (जीसीएफ) में अमेरिका 1 बिलियन डॉलर प्रदान करेगा। संयुक्त राष्ट्र के जलवायु कोष में अमेरिका का यह छह साल में इस तरह का पहला योगदान है।
राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने पर चर्चा के लिए बुलाई गई विश्व के प्रमुख नेताओं की एक वर्चुअल बैठक में यह ऐलान किया।
बाइडेन ने वादा किया कि वह कांग्रेस से आगामी पांच वर्षों में अमेज़ॅन फंड के लिए अतिरिक्त 500 मिलियन डॉलर स्वीकृत करने का अनुरोध करेंगे, ताकि 2030 तक वनों की कटाई समाप्त करने में मदद मिल सके।
उन्होंने कहा कि वह विकासशील देशों के मीथेन उत्सर्जन में कटौती के लिए 200 मिलियन डॉलर जुटाने का प्रयास करेंगे। उन्होंने देशों से आग्रह किया कि वह कार्बन कैप्चर और रिमूवल तकनीकों को बढ़ावा दें।
यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी (ईईए) ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसके मुताबिक वायु प्रदूषण यूरोप में हर साल 1,200 से अधिक बच्चों और किशोरों की मौत का कारण बनता है। अत्यधिक वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से अस्थमा बढ़ जाता है, जो पहले से ही यूरोप में 9% बच्चों और किशोरों को प्रभावित कर रहा है। इसके साथ ही सांस का संक्रमण, एलर्जी और फेफड़ों के काम करने की ताकत कम हो जाती है।
अध्ययन में यूरोपीय संघ के 27 देशों समेत कुल 30 देशों पर अध्ययन किया गया लेकिन इसमें रूस, यूक्रेन और यूनाइटेड किंगडम जैसे प्रमुख औद्योगिक देशों को शामिल नहीं किया, जहाँ वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों की संख्या और भी अधिक हो सकती है। हालांकि यूरोप के मुकाबले एशियाई देशों में हालात कई गुना अधिक ख़राब हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का कहना है कि दुनिया भर में हर साल 17 लाख बच्चों की मौत के पीछे वायु प्रदूषण एक कारण होता है। भारत में हर साल 5 साल से कम उम्र के लगभग 1 लाख बच्चे वायु प्रदूषण से अपनी जान गंवाते हैं।
साथ ही विशेषज्ञों का मानना है की बढ़ता वायु प्रदूषण गर्भ में पल रहे बच्चों, गर्भवती महिलाओं को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है। मिसाल के तौर पे संभवतः समय से पहले जन्म, जन्म के समय कम वजन, मृत जन्म या जन्मजात असामान्यताएं हो सकती हैं।
थाईलैंड में वायु प्रदूषण के कारण लाखों लोगों ने काटे अस्पताल के चक्कर
थाईलैंड के स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है की देश के कई हिस्सों में धुएं और धुंध का प्रकोप बढ़ता चला जा रहा है। आंकड़ों के अनुसार में थाईलैंड में साल की शुरुआत से अब तक 24 लाख लोग वायु प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों के कारण अस्पताल आ चुके हैं। वायु गुणवत्ता पर नज़र रखने वाली आई क्यू एयर के अनुसार, बीते गुरुवार सुबह बैंकॉक और उत्तरी शहर चियांग माई दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में थे।
श्वसन संबंधी समस्याएं, त्वचा में जलन (डर्मेटाइटिस), आंखों में सूजन और गले में खराश सबसे आम बीमारियों में से एक थे। स्वास्थ्य अधिकारियों ने लोगों से उच्च गुणवत्ता वाले N-95 प्रदूषण रोधी मास्क का उपयोग करने, खिड़कियां और दरवाजे बंद करने, बाहर कम से कम समय बिताने और घर के अंदर ही व्यायाम करने का आग्रह किया है।
शिशुओं में खराब संज्ञान के साथ वायु प्रदूषण करता है जीवन के सभी चरणों को प्रभावित
एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में खराब वायु गुणवत्ता दो साल से कम उम्र के शिशुओं में खराब संज्ञान का कारण हो सकती है यानी वायु प्रदूषण इन छोटे बच्चों के सोचने और जानकारी को हासिल करने की क्षमता को प्रभावित कर रहा है। इस उम्र में मस्तिष्क के विकास की रफ्तार सबसे तेज़ होती है। शोधकर्ताओं के मुताबिक अगर कोई कदम न उठाया जाये तो बच्चों के मस्तिष्क के विकास पर नकारात्मक प्रभाव पूरे जीवन के लिये हो सकते हैं। इस शोध के प्रमुख रिसर्चर यूके की ईस्ट एंजेलिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन स्पेंसर हैं। उनके मुताबिक शुरुआती काम से यही पता चल रहा है कि खराब वायु गुणवत्ता से बच्चे में संज्ञानात्मक हानि होती है जिस कारण भावनात्मक और व्यवहार से जुड़ी समस्यायें हो सकती हैं जिसका प्रभाव पूरे परिवार पर पड़ता है।
इस शोध में विश्वविद्यालय ने लखनऊ की कम्युनिटी इम्पावरमेंट लैब के साथ मिलकर काम किया और स्टडी के नतीजे ई-लाइफ जर्नल में प्रकाशित हुये हैं। यह बात चिंताजनक है क्योंकि इस साल की शुरुआत में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में औसतन आंठवी सबसे प्रदूषित हवा है, जबकि दुनिया के 15 सबसे प्रदूषित शहरों में 12 भारत के हैं।
सिर्फ यही नहीं, इंपीरियल कॉलेज लंदन के शोधकर्ताओं ने पिछले 10 वर्षों में किए गए 35,000 से अधिक अध्ययनों के विश्लेषण के आधार पर पाया है कि वायु प्रदूषण व्यक्ति के जीवन के सभी चरणों को प्रभावित करता है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि जब वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य प्रभाव की बात की जाती है तो ज़्यादा ध्यान समय से पहले होने वाली मौतों की संख्या पर दिया जाता है। लेकिन लम्बी बीमारियों के विकसित होने में वायु प्रदुषण के योगदान पर ध्यान नहीं दिया जाता है। शोध के अनुसार प्रदूषित कणों के संपर्क में आने से गर्भपात हो सकता है, स्पर्म की संख्या कम हो सकती है और बच्चों के फेफड़ों का विकास रुक सकता है। बाद में वयस्कता में, यह कैंसर और स्ट्रोक जैसी पुरानी बीमारियों का कारण भी बन सकता है।
नींद की ख़राब गुणवत्ता का एक कारण वायु प्रदुषण
स्लीप हेल्थ जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि वायु प्रदूषण, गर्मी, कार्बन डाई के साथ ऑक्साइड का उच्च स्तर और आस पास का शोर रात की अच्छी नींद लेने की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। यह शोध बेडरूम में कई पर्यावरणीय वेरिएबल को मापने और अच्छी नींद के साथ उनके संबंधों का विश्लेषण करने वाली पहली रिसर्च है जिसे नींद के लिए उपलब्ध समय के सापेक्ष सोने में बिताए गए समय के रूप में परिभाषित किया गया है।
अध्ययन में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ ग्रीन हार्ट प्रोजेक्ट के 62 प्रतिभागियों को शामिल किया गया था, जो लुइसविले निवासियों के हृदय स्वास्थ्य पर 8,000 परिपक्व पेड़ लगाने के प्रभावों की जांच करता है। गतिविधि मॉनिटर और नींद लॉग का उपयोग करके प्रतिभागियों को दो सप्ताह तक ट्रैक करने के बाद, निष्कर्षों से पता चला कि वायु प्रदूषण के उच्च स्तर, कार्बन डाइऑक्साइड, शोर और बेडरूम में तापमान सभी स्वतंत्र रूप से कम प्रभावी नींद से जुड़े हैं ।
भारत के स्थानीय पेड़ और फसल वायु प्रदूषण से निपटने में हो सकते हैं मददगार
भारत में पाए जाने वाले कुछ स्थानीय पेड़ और फसलें प्रदूषकों को अवशोषित और फ़िल्टर करके वायु प्रदूषण के प्रभाव को कम करने में मदद कर सकती हैं। एक नए अध्ययन के अनुसार पीपल, नीम, आम जैसे पेड़ और मक्का, अरहर और कुसुम जैसी फसलें वायु प्रदूषण के उच्च स्तर वाले क्षेत्रों के लिए सबसे उपयुक्त हैं।
पटना, बिहार में किए गए एक अध्ययन के दौरान इन पेड़ों ने उच्चतम वायु प्रदूषण सहिष्णुता सूचकांक (एपीटीआई) मूल्यों का प्रदर्शन किया। विभिन्न पेड़ों और फसलों की प्रजातियों ने वायु प्रदूषण के प्रति अलग-अलग प्रतिक्रिया दी। पौधों में एस्कॉर्बिक एसिड का स्तर ऑक्सीकरण प्रदूषकों के प्रतिकूल प्रभाव के प्रति उनकी सहनशीलता को निर्धारित करता है। पीपल के बाद आम के पेड़ में एस्कॉर्बिक एसिड का स्तर अधिक पाया गया।
नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं की नीलामी में होगी तीन गुना वृद्धि
भारत 2030 के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्य की ओर बढ़ने के क्रम में नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के आवंटन के लिए नीलामी की क्षमता में तीन गुना वृद्धि करेगा।
ब्लूमबर्गएनईएफ की एक रिपोर्ट बताती है कि सरकार की नई टाइमलाइन के अनुसार मार्च 2024 तक कुल 50 गीगावाट सौर और पवन परियोजनाओं की स्थापना हेतु अनुबंध किए जाएंगे। पिछले पांच वित्तीय वर्षों में हर साल औसतन 15 गीगावाट की नीलामी की गई थी।
सरकार के कैलेंडर के अनुसार, इस वित्तीय वर्ष की पहली दो तिमाहियों में 15-15 गीगावाट परियोजनाओं की नीलामी करने की योजना है। अगली दोनों तिमाहियों में करीब 10-10 गीगावाट की नीलामी की जाएगी।
राज्य-संचालित ऊर्जा कंपनियां सोलर एनर्जी कार्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, एनटीपीसी लिमिटेड, एनएचपीसी लिमिटेड और एसजेवीएन लिमिटेड सरकार की ओर नीलामी आयोजित करेंगी।
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) की नवीनतम मासिक रिपोर्ट के अनुसार, बड़े हाइड्रो और परमाणु संयंत्रों को छोड़कर भारत की वर्तमान कुल अक्षय ऊर्जा क्षमता मार्च 2023 में 125 गीगावाट तक पहुंच गई। वर्तमान में, नवीकरणीय ऊर्जा देश की कुल स्थापित ऊर्जा उत्पादन क्षमता का 26.53 प्रतिशत है।
नवीकरणीय क्षेत्र के विकास के साथ रेगुलेशन की मांग बढ़ी
भारत में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र के विकास और आने वाले वर्षों में इसके महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को देखते हुए, इस क्षेत्र के रेगुलेशन को लेकर सवाल उठने लगे हैं।
वर्तमान में, अक्षय ऊर्जा के विकास के लिए, आरई सेक्टर को देश के कुछ भूमि, जल या खनिज उपयोग नियमों से छूट दी गई है।
मोंगाबे की एक रिपोर्ट के अनुसार, इन प्राकृतिक संसाधनों के बढ़ते उपयोग की वजह से कुछ विशेषज्ञों का मानना है की नवीकरणीय सेक्टर के रेगुलेशन की आवश्यकता है।
भारत ने 2030 तक लगभग 270 गीगावाट सौर क्षमता सहित, गैर-जीवाश्म ईंधन से 500 गीगावाट ऊर्जा उत्पादन क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य रखा है।
जहां एक ओर नवीकरणीय ऊर्जा के विकास से कार्बन उत्सर्जन में कटौती का मार्ग प्रशस्त होता है, वहीं संसाधनों की उपलब्धता पर भी दबाव बढ़ता है।
संसाधन जैसे बड़ी परियोजनाओं की स्थापना के लिए भूमि, बिजली संयंत्रों के संचालन और रखरखाव के लिए पानी, उपकरण का जीवन पूरा हो जाने पर अपशिष्ट प्रबंधन और उपकरण के लिए उपयोग किए जाने वाले खनिज आदि इस उद्योग का अहम हिस्सा हैं।
यूरोपीय संघ, अमेरिका को ‘ग्रीन शिप’ सप्लाई कर रहा है भारत
भारत ने वैश्विक शिपिंग हब बनने की महत्वाकांक्षा को बढ़ावा देते हुए, पारंपरिक जहाज निर्माता देशों जैसे नॉर्वे, जर्मनी और अमेरिका को ‘ग्रीन शिप’ सप्लाई करना शुरू कर दिया है।
‘ग्रीन शिप’ ऐसे जहाज होते हैं जो आमतौर पर कम प्रदूषण फैलाने वाले ईंधन जैसे मेथनॉल, बिजली, ग्रीन हाइड्रोजन और हाइब्रिड बैटरी पर चलते हैं।
दुनिया भर में भारी मात्रा में सामानों को ढोने के लिए जिम्मेदार जहाजों से प्रचुर मात्रा में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है। इसलिए, जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयासों का फोकस शिपिंग उद्योग पर भी है।
रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण उत्पन्न वैश्विक ऊर्जा संकट के बाद से यह मुद्दा गंभीर हो गया है, और ‘ग्रीन शिप’ को लेकर नए सिरे से रुचि जगी है।
हाल ही में, राज्य-संचालित कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (सीएसएल) ने नॉर्वे को दो इलेक्ट्रिक कार्गो फेरीज डिलीवर कीं। सीएसएल के पास अभी कई और ऑर्डर लंबित हैं।
एप्पल ने भारत में खोले कार्बन न्यूट्रल शोरूम
एप्पल ने भारत में मुंबई और दिल्ली में दो कार्बन न्यूट्रल स्टोर खोले हैं, जिनका परिचालन 100 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा पर होगा।
एप्पल का दावा है कि मुंबई स्टोर को इस तरह डिज़ाइन किया गया है कि यह दुनिया के सबसे अधिक एनर्जी-एफिशिएंट स्टोर्स में से एक है।
इस स्टोर के पास एक समर्पित सौर ऐरे है और यह अपने संचालन के लिए जीवाश्म ईंधन पर निर्भर नहीं है।
एप्पल 2030 तक कंपनी को कार्बन न्यूट्रल बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।
हालांकि, मुंबई के स्टोर की छत टिम्बर से बनी है। छत में 1,000 टाइलें हैं और प्रत्येक टाइल टिम्बर के 408 टुकड़ों से बनी है। इसकी बनावट में 450,000 से अधिक टिम्बर एलिमेंट्स का प्रयोग किया गया है।
यही कारण है कि आलोचक कंपनी की कार्बन न्यूट्रल होने की प्रतिबद्धता पर सवाल खड़े करते हैं। उनका कहना है कि कंपनी की आपूर्ति श्रृंखला की जड़ में खनिज और धातु उद्योग हैं और यह ई-कचरे के विशाल स्तर को बढ़ाने के लिए उत्तरदायी है। साथ ही यह नेचर-बेस्ड कार्बन रिमूवल परियोजनाओं पर निर्भर है।
चीन पर निर्भरता कम करने के लिए ईवी पॉलिसी की समीक्षा कर सकता है नीति आयोग
नीति आयोग देश में लिथियम-आयन बैटरी पर चलने वाले इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) के प्रयोग को बढ़ावा देने की योजना की समीक्षा कर सकता है। क्योंकि भारत में लिथियम आयन का लगभग 75% आयात चीन से होता है।
इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार सरकार के भीतर एक वर्ग को लगता है कि भारत को लिथियम-आयन के लिए चीन पर बहुत अधिक निर्भर नहीं होना चाहिए और इसके बजाय हरित वाहनों के संचालन के लिए दूसरे स्रोतों का पता लगाना चाहिए।
रिपोर्ट के अनुसार, लिथियम आयन के लिए चीन पर भारत की निर्भरता और अर्थव्यवस्था पर इसके दीर्घकालिक प्रभाव का आकलन करने की योजना पर विचार-विमर्श जारी है।
यह चर्चा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि चीन ईवी मोटर्स में उपयोग किए जाने वाले रेअर-अर्थ मैटेरियल और हाई परफॉर्मेंस मैग्नेट्स का निर्यात रोकने पर विचार कर रहा है।
भारत का कुल लिथियम-आयन आयात 2021-22 में 1.83 बिलियन डॉलर से बढ़कर अप्रैल 2022 से जनवरी 2023 के बीच 2.31 बिलियन डॉलर पहुंच गया।
आर्थिक थिंकटैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार ईवी के घरेलू निर्माण के चलते कच्चे माल, खनिज प्रोसेसिंग और बैटरी उत्पादन के लिए भारत की चीन पर निर्भरता बढ़ेगी।
ईवी निर्माताओं ने लंबित सब्सिडी के लिए संसदीय पैनल से लगाई गुहार
सोसाइटी ऑफ मैन्युफैक्चरर्स ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (एसएमईवी) ने संसदीय स्थायी समितियों से अपील की है कि वह सरकार को ईवी सेक्टर के लिए निर्धारित 1,200 करोड़ रुपए की रुकी हुई सब्सिडी जारी करने का निर्देश दे।
एसएमईवी ने अपनी याचिका में कहा है कि ईवी उद्योग वित्तीय संकट से जूझ रहा है जिसके कारण देश में बैटरी वाहन अपनाने की गति धीमी हो रही है।
याचिका में कहा गया है कि देश में पूरी सप्लाई चेन लगभग तैयार है और केवल 1,200 करोड़ रुपए की लंबित सब्सिडी ने सेक्टर की प्रगति को रोके रखा है।
पिछले साल दिसंबर में सरकार ने कहा था कि वह फेम योजना के तहत सब्सिडी की कथित हेराफेरी के लिए 12 वाहन निर्माताओं की जांच कर रही है।
वर्तमान में, फेम इंडिया योजना का 10,000 करोड़ रुपए का दूसरा चरण 1 अप्रैल, 2019 से पांच साल की अवधि के लिए लागू किया जा रहा है।
इस बीच, सरकार के सूत्रों के हवाले से एक रिपोर्ट में कहा गया है कि फेम योजना को मार्च 2024 के बाद आगे बढ़ाने का फिलहाल कोई प्रस्ताव नहीं है।
इस साल बिकने वाली हर पांच कारों में से एक होगी इलेक्ट्रिक: रिपोर्ट
इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईए) की आउटलुक रिपोर्ट कहती है कि दुनियाभर में ईवी अपनाने की गति तेज हो रही है और उम्मीद है कि इस साल बिकने वाली हर पांच कारों में से एक इलेक्ट्रिक होगी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री इस साल 35 प्रतिशत बढ़कर 14 मिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है। इस वृद्धि के बाद वैश्विक वाहन बाजार में इलेक्ट्रिक कारों की हिस्सेदारी 18 प्रतिशत हो जाएगी। साल 2020 में यह हिस्सेदारी सिर्फ 4 प्रतिशत थी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इलेक्ट्रिक कार अपनाने के कारण तेल की वैश्विक मांग में प्रतिदिन कम से कम पांच मिलियन बैरल की कमी आएगी।
हालांकि रिपोर्ट यह भी कहती है कि ‘चीन के बाहर स्थित मूल ईवी निर्माताओं को किफायती दरों पर वाहन उपलब्ध करने की जरूरत है, ताकि उन्हें बड़े पैमाने पर अपनाया जा सके’।
ऑस्ट्रेलिया में मीडियम-साइज ईवी बिक्री ने पेट्रोल-संचालित कारों को पीछे छोड़ा
ऑस्ट्रेलियन ऑटोमोबाइल एसोसिएशन के अनुसार, पहली बार ऑस्ट्रेलिया में मध्यम-साइज श्रेणी में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री ने पेट्रोल से चलने वाले वाहनों को पीछे छोड़ दिया है।
एसोसिएशन के ईवी इंडेक्स से पता चला है कि जनवरी से मार्च 2023 तक ऑस्ट्रेलिया में मध्यम आकार की 7,866 बैटरी कारें खरीदी गईं, जो इस श्रेणी में कुल बिक्री का 58.3 प्रतिशत था।
हालांकि हल्के वाहनों की श्रेणी में अंतर्दहन इंजन (आईसीई) वाहनों का दबदबा कायम है।
पहली तिमाही में सभी श्रेणियों में 17,396 बैटरी वाले इलेक्ट्रिक वाहन बेचे गए, जो पहली बार पारंपरिक पेट्रोल हाइब्रिड वाहनों की बिक्री से अधिक था, जिनकी संख्या 16,101 रही।
जस्ट ट्रांजिशन: वैकल्पिक रोजगार के लिए कोयला श्रमिक चाहते हैं नीतिगत सहायता
झारखंड में ऊर्जा परिवर्तन के प्रभावों और कोयला श्रमिकों की वैकल्पिक आजीविका को लेकर दिल्ली स्थित थिंक-टैंक क्लाइमेट ट्रेंड्स ने एक रिपोर्ट जारी की है। इस सर्वे में पता चला कि ज़्यादातर श्रमिकों आसपास की खदान बंद होने, रोज़गार के दूसरे विकल्पों और कोयला उत्पादन कम करने जैसे मुद्दों पर जानकारी नहीं है। करीब 85% कोयला श्रमिक वैकल्पिक रोज़गार के लिये ट्रेनिंग चाहते हैं।
देश में 65% बिजली का उत्पादन कोयला बिजली संयंत्रों से होता है। 2021 में एक अध्ययन में पाया गया कि भारत के करीब 40 प्रतिशत जिले किसी न किसी रूप में कोयले पर निर्भर हैं।
वहीं 2021 में ही किए गए एक और अध्ययन में कहा गया कि कोल फेजआउट से कोयला खनन, परिवहन, बिजली, स्पंज आयरन, स्टील और ईंट-निर्माण के क्षेत्रों में कार्यरत 1.3 करोड़ से अधिक लोग प्रभावित होंगे। इसका सबसे ज्यादा असर झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और तेलंगाना राज्यों पर पड़ेगा।
क्लाइमेट ट्रेंड्स के सर्वेक्षण में कहा गया है कि कोयला खनन से जुड़े 35% श्रमिक ऐसे हैं जिनके पास रोजगार बंद होने की स्थिति में घर चलाने के लिए कोई बचत नहीं है; लगभग 85% श्रमिकों ने वैकल्पिक रोजगार के लिए स्किलिंग या रीस्किलिंग प्रशिक्षण कार्यक्रमों में शामिल होने की इच्छा जताई।
लगभग 45% श्रमिकों का मानना था कि उनके पास अपनी पसंद के वैकल्पिक क्षेत्र में काम करने के लिए जरूरी कौशल नहीं है।
विभिन्न देशों की जीवाश्म ईंधन परियोजनाओं पर यूएन प्रमुख ने जताया रोष
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने व्हाइट हाउस शिखर सम्मेलन में दिए एक संदेश में अमेरिका और दूसरे देशों के जलवायु प्रयासों को चुनौती देते हुए कहा कि तेल और गैस ड्रिलिंग का विस्तार और अमीर देशों की अन्य नीतियां पृथ्वी के लिए ‘मौत की सजा’ के समान है।
यूएन महासचिव ने “जीवाश्म ईंधन का उपयोग कर धरती को गर्म करने वाली गैसों का उत्सर्जन” करने के लिए “प्रमुख उत्सर्जकों” को फटकार लगाई।
गुटेरेस की इस चेतावनी की पृष्ठभूमि है रूस-यूक्रेन युद्ध से उत्पन्न तेल और गैस आपूर्ति संकट, जिसके कारण अमेरिका और कुछ अन्य देश जलवायु के लिए हानिकारक तेल, प्राकृतिक गैस और कोयले के उत्पादन में वृद्धि कर रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र प्रमुख ने कहा कि 2015 के पेरिस जलवायु समझौते के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस के भीतर रखने के उद्देश्य से “नई जीवाश्म ईंधन परियोजनाएं पूरी तरह से असंगत हैं”।
उन्होंने कहा कि विभिन्न देशों की वर्तमान नीतियां धरती की तापमान वृद्धि को लगभग दोगुने स्तर पर ले जा रही हैं, जो हमारे ग्रह के लिए “मौत की सजा” है।
“फिर भी कई देश अपनी (जीवाश्म ईंधन) क्षमता में विस्तार कर रहे हैं। मैं उनसे आग्रह करता हूं कि अपनी दिशा बदलें,” गुटेरेस ने कहा।
वैश्विक जीवाश्म ईंधन फेजआउट पर सहमत हुए जी-7 देश
जी7 देशों ने पहली बार जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने पर सहमति व्यक्त की है, हालांकि उन्होंने ऐसा करने के लिए कोई निश्चित समय निर्धारित नहीं किया है।
जापान के साप्पोरो में हुई बैठक में जी7 देशों के जलवायु मंत्रियों ने ‘अधिक से अधिक 2050 तक नेट जीरो प्राप्त करने के लिए जीवाश्म ईंधन को तेजी से फेजआउट करने’ पर सहमति व्यक्त की।
पिछले साल के कॉप27 जलवायु शिखर सम्मेलन के दौरान विभिन्न देशों के बीच जीवाश्म ईंधन ऊर्जा को फेजडाउन करने का समझौता नहीं हो पाया था।
भारत ने इसके लिए एक प्रस्ताव रखा था जिसका 80 से अधिक देशों ने समर्थन किया था, लेकिन सऊदी अरब और अन्य तेल समृद्ध देशों ने इसका विरोध किया था।
लेकिन विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि इस लक्ष्य को पूरा करने में बड़ी बाधाएं आएंगी।
विकासशील देशों को स्वच्छ ऊर्जा अपनाने के लिए यदि अमीर देशों से पर्याप्त वित्तीय सहायता नहीं मिली तो दुनिया के दूसरे देश जी7 की इस प्रतिबद्धता को उतना महत्व नहीं देंगे।
जर्मनी में तेल और गैस हीटिंग के नये सिस्टम होंगे बैन
जर्मन सरकार ने 2024 से नए तेल और गैस हीटिंग सिस्टम पर प्रतिबंध लगाने वाले बिल को मंजूरी दे दी है। हालांकि, विपक्षी दलों का दावा है कि इस कदम से आम लोगों को आर्थिक तौर पर बहुत बड़े नुकसान का सामना करना पड़ेगा।
बिल में कहा गया है कि 1 जनवरी, 2024 के बाद नई या पुरानी इमारतों में स्थापित किसी भी हीटिंग सिस्टम का 65 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा पर आधारित होना चाहिए। बिल में कम आय वालों को छूट देने का भी प्रावधान है।
बिल में कहा गया है कि ‘इमारतों के हीटिंग सिस्टम्स में तेजी से परिवर्तन किए बिना जर्मनी न तो अपने जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है और न ही जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम कर सकता है’।
इस कदम से जर्मनी की इमारतों और भवनों में नवीकरणीय ऊर्जा संचालित हीटिंग पंप, सौर पैनल और हाइड्रोजन बॉयलर लगाए जाने की प्रक्रिया में तेजी आएगी।
जर्मनी का लक्ष्य 2045 तक कार्बन न्यूट्रल होने का है और यह कदम इस प्रयास के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में देखा जा रहा है।