Newsletter - September 19, 2022
दक्षिण भारत में भारी बारिश लेकिन राजस्थान में तरसे किसान
पिछले पखवाड़े दक्षिण भारत में रिकॉर्ड बारिश दर्ज की गई। तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भारी बारिश हुई और दक्षिण-पश्चिम मॉनसून सीज़न में पहली बार बैंगलुरू में 1000 मिलीमीटर से अधिक बारिश हुई। मुंबई और इसके आसपास के इलाकों में खूब बादल गरजने और बिजली चमकने के साथ पानी बरसा।
हालांकि इस बीच उत्तर भारत के यूपी और राजस्थान में किसान पानी को तरसते रहे। असामान्य गर्मी ने इस बार खरीफ की फसल को वक्त से पहले ही तैयार कर दिया और कई जगह वह खराब भी हो गई। पिछले हफ्ते राजस्थान के चुरू में 41 डिग्री तापमान दर्ज किया गया।
मौसम विभाग ने उत्तर-पश्चिम भारत में बारिश की एक और झड़ी का पूर्वानुमान किया। इससे कुछ राहत मिल सकती है हालांकि इस वजह से अब दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की वापसी कुछ देरी से होगी। सामान्य रूप से 17 सितंबर तक मॉनसून की बारिश खत्म होती है लेकिन पिछले साल यह मध्य अक्टूबर में हुई।
1.5 डिग्री तापमान वृद्धि के कई गंभीर परिणाम हो सकते हैं: अध्ययन
एक ताज़ा रिसर्च बताती है कि धरती के गर्म होने के साथ-साथ क्लाइमेट संबंधी कुछ प्रलंयकारी प्रभाव हो सकते हैं। इन्हें क्लाइमेट टिपिंग पॉइंट (सीटीपी) कहा जाता है यानी वह हालात जब एक हद से अधिक तापमान वृद्धि के बाद क्लाइमेट सिस्टम का एक हिस्सा अनियंत्रित हो जाता है। यह बदलाव बड़े बेढप, अपरिवर्तनीय और खतरनाक हो जाते हैं जिसका दुनिया पर बड़ा विनाशकारी असर हो सकता है।
इस शोध में नौ वैश्विक “कोर” टिपिंग एलीमेंट्स की पहचान की गई है जो अर्थ सिस्टम की गतिविधि पर निर्णायक प्रभाव डालते हैं। इसी तरह रिसर्च में सात क्षेत्रीय “प्रभाव” डालने वाले टिपिंग एलीमेंट्स बताये गये हैं जो कि मानव हितों के लिये बहुमूल्य हैं। यह स्टडी में की गई गणना के हिसाब से 1.1 डिग्री की वर्तमान तापमान वृद्धि ही पांच क्लाइमेट टिपिंग पॉइंट्स की शुरुआती उथलपुथल का कारण बन सकती है। इसी तरह पेरिस संधि के तहत तापमान वृद्धि को 1.5 से 2 डिग्री के बीच रोकने का संकल्प किया गया है लेकिन उस हालात में भी क्लाइमेट चेन्ज के ये अपरिवर्तनीय प्रभाव स्पष्ट दिखने लगेंगे।
ग्लोबल वॉर्मिंग: घटते फसल उत्पादन का बायोएनर्जी क्षमता पर पड़ेगा असर
एक नये अध्ययन में पता चला है कि ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण फसलों की घटती पैदावार का असर बायोएनर्जी पर पड़ेगा। इस स्टडी में कहा गया है कि बायोएनर्जी और कार्बन कैप्चर स्टोरेज (बैक्स) तकनीक के तहत बायोमास से बिजली उत्पादन और इस प्रक्रिया में निकलने वाले इमीशन को कैद करने की क्षमता कम होगी। हालांकि बैक्स कार्बन इमीशन पर नियंत्रण का कितना प्रभावी तरीका है इसे लेकर जानकारों की राय बंटी हुई है। स्टडी कहती है “निगेटिव” इमीशन टेक्नोलॉजी धरती की तापमान वृद्धि को 1.5 से 2.0 डिग्री तक सीमित करने का एक आदर्श रास्ता हो सकता है।
बायोफ्यूल और खाद्य फसलों के अवशेष बैक्स टेक्नोलॉजी के लिये इस्तेमाल किये जाते हैं और अगर तापमान वृद्धि से फसल उत्पादन घटेगा तो अवशेष भी कम होंगे। साइंस पत्रिका नेचर में प्रकाशित शोध के मुताबिक अगर तापमान वृद्धि 2.5 डिग्री को पार कर गई तो बैक्स कारगर नहीं रहेगी।
बर्फबारी के पैटर्न में बदलाव का असर दक्षिण-पूर्व तिब्बत के ग्लेशियरों पर
गर्मियों में होने वाली कम बर्फबारी दक्षिण-पूर्व तिब्बत में ग्लेशियरों के तेज़ी से पिघलने का संभावित कारण है। एक नये अध्ययन में कहा गया है कि इस क्षेत्र में गर्मियों में सबसे अधिक बर्फबारी होती है लेकिन तेज़ी से बढ़ते तापमान के कारण इस क्षेत्र में बारिश और बर्फबारी दोनों प्रभावित हुई हैं। इसका असर यहां पर जमा होने वाली बर्फ पर पड़ा है जो कि आइस के रूप में इकट्ठा हो जाती है। प्रोसीडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज़ में प्रकाशित रिसर्च में कहा गया है कि कम बर्फबारी और ग्लेशियरों के पिघलने की तेज़ रफ्तार से हिमनदों के द्रव्यमान (मास) में कमी हो रही है।
भारत से विलुप्त होने के करीब पिचहत्तर साल बाद चीता फिर से वापस लाया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन अवसर पर नामीबिया से 8 चीतों को भारत लाकर मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा जायेगा। पहली बार इतने बड़े मांसाहारी जीव को एक महाद्वीप से दूसरे में लाकर बसाया जा रहा है। भारत में चीता 1947 में विलुप्त हो गये थे। अत्यधिक हंटिंग और इस जीव को जंगल में इसे अपना शिकार न मिल पाने के कारण यह प्राणी विलुप्त हो गया।
भारत में चीता को 1952 में आधिकारिक रूप से विलुप्त घोषित किया गया और 1970 में इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते पहली बार चीता को वापस भारत लाने की बात हुई। उसके बाद 2009 में इसे वापस लाने की कोशिश हुई लेकिन 2020 में ही सुप्रीम कोर्ट ने इसे भारत लाने के लिये अनुमति दी। नामीबिया से 8 चीतों को लाने के बाद दक्षिण अफ्रीका से भी 12 चीते भारत लाये जाने हैं।
चंबल वन्यजीव अभ्यारण्य के कुछ हिस्से रेत खनन के लिये खोले जायेंगे
नेशनल चंबल वाइल्डलाइफ सेंक्चुरी को रेत खनन के लिये खोला जा रहा है। चंबल वन्यजीव अभ्यारण्य तीन राज्यों (राजस्थान, यूपी और मध्य प्रदेश) में फैला है। नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ ने मध्य प्रदेश के मुरैना ज़िले में 207.05 हेक्टेयर में रेत खनन की इजाज़त दी है। पर्यावरण के जानकारों ने चेतावनी दी है कि यह कदम रेत खनन को कानूनी मान्यता दे देगा जिसे अब तक इस क्षेत्र में गैरकानूनी माना जाता है। इसके बाद केंद्र और राज्य सरकारों पर यह दबाव भी पड़ेगा कि वह संरक्षित क्षेत्रों को इसी तरह की गतिविधि के लिये खोलें।
यूके की नई प्रधानमंत्री ने क्लाइमेट चेंज के प्रभावों पर शक करने वाले को बना दिया ऊर्जा मंत्री
यूके की नई प्रधानमंत्री लिज़ ट्रस ने जेकब रीस-मॉग को देश का नया ऊर्जा मंत्री नियुक्त किया है जिससे क्लाइमेट एक्सपर्ट हैरान हैं। रीस-मॉग पहले बिजली की ऊंची कीमतों के लिये “क्लाइमेट चेंज के हौव्वे” को ज़िम्मेदार ठहरा चुके हैं। अब क्लाइमेट एक्टिविस्ट इस नियुक्त को “बहुत चिन्तित करने वाला” बता रहे हैं। यूके ने 2050 तक नेट ज़ीरो हासिल करने का जो लक्ष्य रखा है रीस-मॉग उसके लिये प्रयासों का नेतृत्व करेंगे लेकिन क्लाइमेट चेंज की वास्तविकता को लेकर उनके विचारों से कई लोगों को शक है कि मॉग इस काम के लिये कितने कारगर साबित होंगे।
कोयला बिजलीघर: केंद्र ने SO2 मानकों के पालन की समय सीमा 2 साल बढ़ाई
केंद्र सरकार ताप बिजलीघरों पर मेहरबान है। जो काम करने की बात 2015 में हुई थी वह अब तक नहीं हो सका और अब थर्मल पावर प्लांट्स को सल्फर डाइ ऑक्साइड उत्सर्जन को नियंत्रित करने की टेक्नोलॉजी लगाने के लिये 2 साल और मिल गये हैं। कोयला बिजलीघरों के लिये 2015 में यह नियम बने थे और पहली बार उन्हें 2017 तक इनका पालन करने का समयसीमा रखी गई थी लेकिन सल्फर नियंत्रण के लिये फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन (एफजीडी) लगाने की यह डेडलाइन बार बार बढ़ती ही जा रही है।
केंद्र सरकार ने दिल्ली-एनसीआर की 10 किलोमीटर की परिधि में बने कोयला बिजलीघरों को 31 दिसंबर 2024 तक का समय दे दिया है जबकि इन्हें इस साल को अंत तक यह काम पूरा करना था। दिल्ली एनसीआर की 300 किलोमीटर की परिधि में 11 पावर प्लांट हैं जिन्हें उनकी लोकेशन के हिसाब से दिसंबर 2024 से दिसंबर 2026 तक का समय दिया गया है। अत्यधिक प्रदूषित इलाकों के 10 किलोमीटर के दायरे में बसे बिजलीघरों के लिये यह समयसीमा दिसंबर 2023 से दिसंबर 2025 कर दी गई है।
महत्वपूर्ण है कि भारत सबसे अधिक सल्फर डाइ ऑक्साइड उत्सर्जन करने वाले देशों में है और यह गैस हार्ट अटैक और ब्रेन स्ट्रोक जैसे बीमारियों की वजह बनती है। जानकारों ने सरकार के इस फैसले पर निराशा जताई है और कहा है कि लगता है कि SO2 नियंत्रण के मानक कभी लागू नहीं हो पायेंगे।
दिल्ली में 1 जनवरी तक पटाखों पर रोक, कितना प्रभावी होगी यह पाबंदी
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी ने अगले साल 1 जनवरी तक राजधानी में किसी भी तरह के पटाखों के बनाने, बचने और जलाने पर रोक लगा दी है। दिल्ली सरकार पिछले 2 साल से आतिशबाज़ी पर रोक लगाने की नीति अपना रही है। दीवाली के वक्त आतिशबाज़ी से वायु प्रदूषण का स्तर बहुत बढ़ जाता है। सरकार ने पटाखों के भंडारण (स्टोरेज) और ऑनलाइन बिक्री पर भी रोक लगा दी है। दिल्ली सरकार को उम्मीद है कि जल्द लिये गये फैसले से पुलिस और प्रशासन को आतिशबाज़ी पर रोक लगाने के लिये ज़रूरी कदमों के लिये समय मिलेगा। हरियाणा सरकार ने भी अपने 14 ज़िलों में पटाखों की बिक्री पर रोक लगा दी है।
लेकिन पर्यावरण के जानकार इस बात से आश्वस्त नहीं है कि इस बैन के बाद भी दीवाली पर आतिशबाज़ी नहीं होगी। पिछले साल भी सरकार की ओर से इस तरह की पाबंदी थी लेकिन लोगों ने जमकर आतिशबाज़ी की। जाड़ों में आतिशबाज़ी और पराली जलाने के कारण प्रदूषण रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच जाते हैं।
जलवायु परिवर्तन से हो रही हीटवेव और जंगलों की आग बढ़ा रही है वायु प्रदूषण: विश्व मौसम संगठन
विश्व मौसम संगठन (WMO) की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक क्लाइमेट चेंज के कारण बार-बार हो रही भयंकर हीटवेव और जंगलों में लग रही आग से एयर क्वॉलिटी बिगड़ रही है। यह रिपोर्ट बताती है कि जंगलों में लगी विशाल आग के कारण साल 2021 में पूर्वी साइबेरिया में पीएम 2.5 का जो स्तर देखा गया वैसा पहले कभी नहीं था। डब्लूएमओ की रिपोर्ट के लीड साइंटिस्ट कहते हैं कि हीटवेव की संख्या, तीव्रता और अवधि के और अधिक बढ़ने पर एक नई समस्या खड़ी हो जायेगी जिसे ‘क्लाइमेट पेनल्टी’ कहा जाता है। ऐसे में धरती की सतह पर (जहां लोग रहते हैं) ओज़ोन का स्तर बढ़ने लगता है जो सांस के हानिकारक है।
नवीनीकरणीय ऊर्जा का इस्तेमाल हो तो 2050 तक दुनिया बचा सकती है 12 लाख करोड़ डॉलर: अध्ययन
साइंस जर्नल जूल में प्रकाशित स्टडी के मुताबिक दुनिया अगर साफ ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल करे तो साल 2050 तक 12 लाख करोड़ डॉलर यानी करीब 900 लाख करोड़ रूपये बचा सकती है। नवीनीकरणीय ऊर्जा और जीवाश्म ईंधन की कीमतों का विश्लेषण करने के बाद इस स्टडी में भविष्य की कीमतों का अनुमान लगाया गया है। बीबीसी में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि सौर और पवन ऊर्जा की कीमतों में सालाना 10% तक गिरावट होने जा रही है। इस दर से साफ ऊर्जा जीवाश्म ईंधन के मुकाबले काफी सस्ती होगी।
रिसर्च में पाया गया है कि उद्योगों ने साफ ऊर्जा में ट्रांजिशन की कीमत का बहुत अधिक अनुमान लगाया जिससे निवेशकों और सरकारों का आत्मविश्वास कम रहा।
साल 2030 तक 70 गीगावॉट क्षमता के लिये भारत को सालाना 10 गीगावॉट तटीय पवन ऊर्जा क्षमता चाहिये
ग्लोबल विन्ड एनर्जी काउंसिल के मुताबिक पिछले 5 साल में (2017-21) सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया ने औसतन सालाना 3.5 गीगावॉट तटीय पवन ऊर्जा के टेंडर निकाले। इसमें 1.6 गीगावॉट प्रतिवर्ष के वह हाइब्रिड टेंडर शामिल नहीं हैं जो 2018 और 2021 के बीच दिये गये।
रिपोर्ट बताती है साल 2030 तक 70 गीगावॉट की क्षमता हासिल करने के लिये भारत को सालाना 8-10 गीगावॉट के टेंडर निकालने होंगे।
चीन: पवनचक्कियों के वैश्विक ऑर्डर में रिकॉर्ड बना, 2022 में 36% उछाल
वुड मैंकेंजी के मुताबिक चीन को दुनिया भर से मिलने वाले पवनचक्कियों के ऑर्डर में इस साल 36% की बढ़ोतरी हुई है और इनकी कल कीमत 18.1 बिलयन डॉलर के बराबर है। साल 2022 की दूसरी तिमाही में चीन को मिलने वाले टर्बाइन ऑर्डर 43 गीगावॉट पहुंच गये। वुड मैकेंजी की रिसर्च के मुताबिक चीन ने अगले 10 साल तक सालाना 55 गीगावॉट क्षमता की टर्बाइन बनाने का लक्ष्य रखा है।
इस्तेमाल हो चुकी इलैक्ट्रिक कार बैटरियों का होगा एनर्जी स्टोरेज सिस्टम के रूप में इस्तेमाल
जर्मनी की नेशनल रेलवे कंपनी डॉयशे बान और कोरिया की कार निर्माता कंपनी किया ने पार्टनरशिप की है जिसके तहत ये दोनों कंपनियां विद्युत वाहनों में इस्तेमाल की जा चुकी लीथियम ऑयन बैटरियों को एनर्जी स्टोरेज के लिये फिर से इस्तेमाल करेंगी। कंपनियों का कहना है कि इन इस्तेमाल हो चुकी बैटरियों से किफायती ग्रीन एनर्जी स्टोरेज सिस्टम बनाया जा सकता है।
पुरानी बैटरियों से बना यह एनर्जी स्टोरेज फोटोवोल्टिक सिस्टम से अतिरिक्त बिजली बचा सकता है या डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम का हिस्सा बनकर ट्रेन के रखरखाव वाले डिपो में पूरे दिन बिजली सप्लाई कर सकता है। इससे पीक पावर डिमांड की कीमत कम होगी। इस बारे में इस साल जुलाई में पायलट प्रोजेक्ट चलाया गया था और अगले साल तक यह प्रोजेक्ट रफ्तार पकड़ लेगा।
बीएमडब्लू 2025 से अपनी नई गाड़ियों में इस्तेमाल करेगी बेलनाकार बैटरियां
जल्द चार्जिंग और लम्बी रेन्ज के लिये बीएमडब्लू बेलनाकार बैटरी सेल इस्तेमाल करेगी। इन्हें चीन की सीएटीएल और ईवीई एनर्जी जैसी पार्टनर कंपनियों के 6 प्लांट्स में बनाया जायेगा और 2025 तक इन्हें बीएमडब्लू की नई इलैक्ट्रिक कारों में लगा दिया जायेगा। बीएमडब्लू की न्यू जेनरेशन बैटरियों में कोबाल्ट का इस्तेमाल कम होगा और निकिल और सिलिकन का अधिक प्रयोग होगा जिससे इनकी एनर्जी डेन्सिटी 20% अधिक होगी और ये 30% अधिक तेज़ी से चार्ज हो पायेंगी। अपनी पुरानी गाड़ियों के मुकाबले बीएमडब्लू की इन इलैक्ट्रिक कारों की ड्राइविंग रेन्ज में भी करीब 30% की बढ़ोतरी होगी।
रूस ने यूरोप को गैस सप्लाई पर लगाई रोक, कीमतों में उछाल
पिछली 31 अगस्त को रूस ने यूरोप को जाने वाली नॉर्ड स्ट्रीम वन नाम की गैस पाइप लाइन बन्द कर दी। यह पाइपलाइन बाल्टिक सागर के रास्ते जर्मनी को जाती है और रूस की सबसे बड़ी गैस सप्लाई लाइनों में से है। हालांकि रूस ने कहा था कि वह “तकनीकी” कारणों से ऐसा कर रहा है लेकिन यूरोपीय नेताओं का कहना है कि यूक्रेन पर हमले के बाद रूस पर लगी पाबंदियों के कारण अब पुतिन प्रशासन ने बदले की कार्रवाई के तहत यह कदम उठाया है। सप्लाई पर इस रोक के कारण गैस की कीमतें उछल गई हैं और यूरो और पाउंड में गिरावट हुई है। अब सर्दियों से पहले यूरोपीय देश अधिक से अधिक गैस का भंडारण कर रहे हैं।
एनर्जी क्षेत्र में वैश्विक संकट को देखते हुये चीनी कंपनियों ने सप्लाई तेज़ की
उधर वैश्विक संकट को देखते हुये चीनी एलएनजी कंपनियों ने विश्व बाज़ार (विशेष रूप से यूरोप में) सप्लाई तेज़ कर दी है। ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक चीन की कुछ फर्म ऐसी हैं जिन्हें मिलने वाले विदेशी ऑर्डर 10 गुना से अधिक बढ़ गये हैं। जून के मुकाबले अब तक गैस की कीमतों में 2.6 गुना बढ़ोतरी हो गयी है।
जानकारों ने हालांकि यह चेतावनी दी है कि चीनी कंपनियों के पास गैस के सीमित भंडार हैं इसलिये यूरोप को उन पर निर्भर नहीं रहना चाहिये। इसके अलावा इन कंपनियों के पास स्टोरेज टैंक और एनएनजी जहाज़ों जैसे इन्फ्रास्ट्रक्चर की भी कमी है।
बड़ी कंपनियां लो-कार्बन निवेश की बजाय प्रचार पर कर रही हैं खर्च: अध्ययन
तेल और गैस क्षेत्र से जुड़ी बड़ी कंपनियां अपने क्लाइमेट-पॉज़िटिव प्रचार में करोड़ों डॉलर खर्च कर रही हैं जबकि दूसरी ओर यह भी पता चल रहा है कि उनकी साठगांठ और हरकतों से आने वाली पीढ़ी का भविष्य जीवाश्म ईंधन के जाल में फंसता जायेगा। उत्तरी अमेरिका और यूरोप में किये गये जनसंचार पर हुये एक अध्ययन में किये गये विस्तृत विश्लेषण से यह पता चलता है कि कंपनियों ने बीपी, शेल, सेवरॉन, एक्सॉनमोबिल और टोटलएनर्जी जैसी कंपनियों ने इस मद में हुये खर्च का कुल 60% पब्लिक मैसेजिंग ‘हरित’ दावों को लेकर की जबकि 23% तेल और गैस को आगे बढ़ाने में। हालांकि इसी अध्ययन में पाया गया है कि इस साल इन्हीं कंपनियों ने औसतन केवल 12% ‘लो कार्बन’ निवेश पर खर्च किया।