Newsletter - July 11, 2023
दुनिया ने देखे इतिहास के सबसे गर्म सात दिन, यूएन प्रमुख ने कहा जलवायु परिवर्तन ‘नियंत्रण से बाहर’
ऐसे समय में जब प्रचंड गर्मी ने धरती के अधिकांश हिस्से को अपनी चपेट में ले लिया है, एक अनौपचारिक विश्लेषण के अनुसार जुलाई के पहले सात दिनों का औसत तापमान अब तक दर्ज किया सबसे गर्म तापमान रहा, जो दर्शाता है कि जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न संकट कितने खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है।
यह आंकड़े मेन विश्वविद्यालय के क्लाइमेट रीएनालाइजर ने सैटेलाइट डेटा और कंप्यूटर सिमुलेशन की मदद से तैयार किए हैं।
इस विश्लेषण के अनुसार 6 जुलाई को धरती का औसत तापमान रिकॉर्ड 17.18 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। और 7 जुलाई को जुलाई के पहले हफ्ते का औसत तापमान पिछले 44 सालों से दर्ज किए जा रहे किसी भी हफ्ते के तापमान से 0.04 डिग्री अधिक था।
इन आंकड़ों के जारी होने के बाद संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि जलवायु परिवर्तन अब नियंत्रण से बाहर हो चुका है। उन्होंने कहा कि यदि हम इसे रोकने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाने में देरी करेंगे तो हम एक भयानक स्थिति में पहुंच जाएंगे।
हालांकि अमेरिका के नेशनल ओशनिक एंड एटमोस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन ने इस विश्लेषण को प्रामाणिकता देने से मना कर दिया, लेकिन उन्होंने भी कहा कि एल नीनो के लौटने के साथ धरती के अलग-अलग हिस्सों में गर्मी और बढ़ेगी।
जून का महीना भी ऐतिहासिक रूप से गर्म रहा और दुनिया के कई हिस्सों ने हीटवेव का सामना किया। भारत के अलावा अमेरिका और चीन के भी कई हिस्सों में हीटवेव की तीव्रता बहुत अधिक रही। वैज्ञानिकों का भी मानना है कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अभूतपूर्व है और मानव गतिविधियों से जो गर्मी बढ़ रही है उसके कारण और रिकॉर्ड तापमान देखने को मिलेंगे।
धरती की तापमान वृद्धि को सीमित रखना अब नामुमकिन, समुद्र का पारा भी रिकॉर्डतोड़ ऊंचाई पर
पिछले महीने जब तमाम देशों के नेता इस साल के अंत में होने वाले जलवायु परिवर्तन सम्मेलन की तैयारी के लिए जुटे थे तो कई दिन तक औसत वैश्विक तापमान प्री-इंडस्ट्रियल लेवल से 1.5 डिग्री ऊपर था। यह बात यूरोपीय यूनियन की वित्तीय मदद से चलने वाले कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस ने बताई है। धरती के तापमान में ऐसी अस्थाई वृद्धि पहले भी देखी जा चुकी है लेकिन उत्तरी गोलार्ध में पहली बार यह देखा गया है। चीन और अमेरिका दुनिया के दो सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जन हैं। इन दो देशों के राजदूत अगले महीने मुलाकात कर रहे हैं लेकिन जहां चीन में जून में रिकॉर्डतोड़ तापमान रहा वहीं अमेरिका में हीटवेव चल रही है।
उधर समुद्र के वैज्ञानिकों का कहना है कि धरती की तापमान वृद्धि को सीमित रखने के लिए समय चाहिए लेकिन वह अब हमारे पास नहीं बचा। जमीन के साथ साथ समुद्र के तापमान में भी रिकॉर्ड ऊंचाई दर्ज की गई है।
बारिश ने उत्तर भारत का किया बुरा हाल, कम से कम 34 मरे
हीटवेव के बाद मूसलधार बारिश ने भी उत्तर भारत में कई जगह लोगों को परेशान किया। नदियां उफान पर रहीं और बीते सप्ताहांत मैदानी इलाकों में जलभराव और पहाड़ों पर भूस्खलन की घटनाएं हुईं। बरसात से जुड़ी घटनाओं में कम से कम 34 लोगों की मौत हो गई। पहाड़ी राज्यों में उत्तराखंड और हिमाचल विशेष रूप से प्रभावित हुए।
हिमाचल में भारी बारिश के कारण भूस्खलन और अचानक आई बाढ़ से जनजीवन प्रभावित रहा। स्कूलों में छुट्टी कर दी गई है और सरकार ने लोगों को घरों से बाहर न निकलने की सलाह दी है। मनाली, कुल्लू, किन्नौर और चंबा में कुछ दुकानें और वाहन बाढ़ में बहते देखे गए। रावी, ब्यास, सतलुज, स्वान और चिनाब सहित सभी प्रमुख नदियां उफान पर हैं।
दिल्ली में भी यमुना नदी खतरे के निशान से ऊपर बह रही है और इसके किनारे से लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा रहा है। दिल्ली-एनसीआर के भी सभी स्कूलों में सोमवार को छुट्टी कर दी गई। पूरे उत्तर भारत के कई शहरों और कस्बों में सड़कें और आवासीय क्षेत्र घुटनों तक पानी में डूब गए।
आईएमडी ने कहा है कि पश्चिमी विक्षोभ और मानसूनी हवाओं के बीच संपर्क के कारण उत्तर पश्चिम भारत में भारी बारिश हो रही है।
जलवायु परिवर्तन से यूपी में हीटवेव की संभावना दोगुना हुई
पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में झुलसा देने वाली गर्मी और हीटवेव के बीच हीटस्ट्रोक के कारण कई लोगों के अस्पताल में भर्ती होने और कुछ मौतों की खबरें आईं थीं। एक नए अध्ययन में पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन से उत्तर प्रदेश में हीटवेव की संभावना दोगुना हो गई है।
हाल के समय में दुनिया के कई देश हीटवेव की चपेट में आए हैं। और यूपी की बात करें तो यह राज्य यूरोप और अफ्रीका के कई देशों से बहुत बड़ा है। इसके आकार की तुलना यूनिटेड किंगडम और घाना जैसे देशों से की जा सकती है।
जब मैदानी इलाकों में अधिकतम तापमान कम से कम 40 डिग्री सेल्सियस, तटीय क्षेत्रों में कम से कम 37 डिग्री सेल्सियस और पहाड़ी क्षेत्रों में कम से कम 30 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, और सामान्य से कम से कम 4.5 डिग्री सेल्सियस अधिक हो जाता है, तो हीटवेव घोषित की जाती है।
यूपी में 14 से 16 जून के बीच एक्सट्रीम हीटवेव की स्थिति बनी रही। अब, क्लाइमेट शिफ्ट इंडेक्स (सीएसआई), या जलवायु परिवर्तन सूचकांक के अध्ययन से पता चला है कि मानव गतिविधियों के कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन ने इस घटना की संभावना को दोगुना बढ़ा दिया था।
अमेरिकी वैज्ञानिकों के समूह क्लाइमेट सेंट्रल द्वारा विकसित सीएसआई, जलवायु परिवर्तन द्वारा दैनिक तापमान में होने वाले बदलाव को मापता है। एक से ऊपर सीएसआई का मतलब है जलवायु परिवर्तन से तापमान में बदलाव हुआ है।
सीएसआई 2 से 5 के बीच का मतलब है कि जलवायु परिवर्तन ने उन तापमानों को दो से पांच गुना अधिक संभावित बना दिया है। हीटवेव के दौरान यूपी की कुछ जगहों पर सीएसआई 3 तक पहुंच गया, यानि जलवायु परिवर्तन ने इस तापमान को 3 गुना अधिक संभावित बना दिया था। क्लाइमेट सेंट्रल के वैज्ञानिकों के अनुसार अत्यधिक तापमान के साथ उच्च आर्द्रता ने हीटवेव की तीव्रता को और बढ़ा दिया था।
ग्रे-व्हेल के शरीर में हर रोज़ पहुंच रहे माइक्रोप्लास्टिक के 2 करोड़ कण
अपने भोजन के लिए समुद्र पर निर्भर जीवों, खासतौर से मछलियों और पक्षियों के शरीर में भारी मात्रा में प्लास्टिक जा रहा है क्योंकि हमारे समुद्र के दूरस्थ द्वीपों तक प्लास्टिक पहुंच चुका है। अमेरिका की ओरेगोन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता का अनुमान है कि ओरेगोन तट पर ग्रे व्हेल हर रोज करीब 2.1 करोड़ माइक्रोप्लास्टिक के कणों को निगल लेती है। यह बात इस मछली के मल के विश्लेषण से पता चली है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह कण समुद्र में तेजी से बढ़ रहे हैं और आने वाले दशकों में भी यह प्रदूषण जारी रहेगा। माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण में माइक्रो प्लास्टिक के अलावा कपड़े के रेशों जैसी सामग्री को भी गिना जाता है।
यह अध्ययन 230 ग्रे-ह्वेल मछलियों के समूह पर आधारित था। महत्वपूर्ण बात है कि सभी समुद्री जीवों यहां तक कि उस पर निर्भर पक्षियों की भारी संख्या में मौत प्लास्टिक से हो रही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि मछली का सेवन करने वाले इंसानों के शरीर में भी माइक्रोप्लास्टिक पहुंच रहा है।
वन संरक्षण कानून में प्रस्तावित संशोधन बिल को संसदीय कमेटी ने दी मंजूरी
वन संरक्षण कानून (1980) में संशोधन के लिए प्रस्तावित बिल की जांच के लिए बनी संसदीय कमेटी ने इसे हरी झंडी दे दी है और संभावना है कि इसी सत्र में यह संशोधन विधेयक संसद में लाया जाएगा। जहां एक ओर जानकारों ने वन संरक्षण कानून में प्रस्तावित संशोधनों पर चिंता जताई है, वहीं सरकार का कहना है कि प्रस्तावित बदलावों से किसी भी तरह वन संरक्षण के लिए बने सेफगार्ड कमज़ोर नहीं होंगे।
सरकार का कहना है कि इन संशोधनों के ज़रिए वह वन संरक्षण कानून में “अनिश्चितता” हटाना और स्पष्टता लाना चाहती है लेकिन विशेषज्ञों का कहना है बदलावों से केंद्र सरकार को वन भूमि को गैर वानिकी उद्देश्यों के लिए प्रयोग करने के ज़्यादा अधिकार मिल जायेंगे। इन संशोधनों के बाद 1996 के गोडावर्मन केस (जिसमें उन वन क्षेत्र को भी संरक्षित करने के प्रावधान दिए गए जो सरकारी कागज़ों में वन के तौर पर दर्ज नहीं है) में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया आदेश कमज़ोर होगा। किसी प्रोजेक्ट में पेड़ कटाने के मुआवज़े के तौर पर वृक्षारोपण के लिए वन भूमि हस्तांतरित की जा सकेगी और अंतर्राष्ट्रीय सीमा के 100 किलोमीटर के दायरे में हाइवे, जलविद्युत प्रोजेक्ट या किसी अन्य प्रोजेक्ट के लिए फॉरेस्ट क्लीयरेंस की ज़रूरत नहीं होगी।
शिपिंग उद्योग के ताज़ा लक्ष्य 1.5 डिग्री हासिल करने की दिशा से दूर
शिपिंग उद्योग का नियमन करने वाले अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (इंटरनेशनल मैरीटाइम ऑर्गेनाइजेशन या आईएमओ) ने तय किया है कि पानी के जहाजों से होने वाले उत्सर्जन में कटौती कर “वर्ष 2050 तक या उसके आसपास” नेट ज़ीरो उत्सर्जन हासिल करने की कोशिश होगी। विशेषज्ञों का कहना है कि यह लक्ष्य धरती की तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री तक सीमित रखने के लिए नाकाफ़ी हैं। आईपीसीसी रिपोर्ट के मुताबिक समुद्री व्यापार से होने वाला उत्सर्जन कुल इमीशन के 3% के बराबर है।
लंदन में हुई इस बैठक को जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण के प्रयासों के लिए काफी अहम माना गया लेकिन इसमें वर्ष 2030 तक समुद्री व्यापार से होने वाले उत्सर्जन में (2008 के मुकाबले) कम से कम 20% कटौती करने और 30% की कोशिश का लक्ष्य रखा गया जबकि वैज्ञानिकों की गणना के मुताबिक ग्लोबल वॉर्मिंग के वर्तमान हालात को देखते हुए यह इमीशन 2030 तक 45% प्रतिशत कम होने चाहिए।
राज्यों और जिलों में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अध्ययन करेगी सरकार
देश के विभिन्न राज्यों और जिलों में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का आकलन करने के लिए सरकार एक अध्ययन शुरू करने वाली है। हिंदुस्तान टाइम्स ने पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से बताया कि इस अध्ययन में राज्यों और जिलों में जलवायु परिवर्तन और माइक्रॉक्लाइमेट के व्यवहार के प्रभाव का आकलन किया जाएगा।
मौसम विभाग के महानिदेशक डॉ एम महापात्रा के अनुसार, पिछले कुछ दशकों में देश के विभिन्न हिस्सों में मौसम के मिजाज में बदलाव आया है। उदाहरण के लिए, मानसून के दौरान पूर्वोत्तर के कुछ हिस्सों में वर्षा कम हो रही है, जबकि उत्तर-पश्चिम भारत के कुछ हिस्सों में अधिक तीव्र मानसूनी बारिश देखी जा रही है, लेकिन सूखे दिनों की संख्या भी बढ़ रही है।
इस अध्ययन के जरिए सरकार यह समझने की कोशिश करेगी कि पिछले कुछ वर्षों में जिलों के भीतर तापमान और वर्षा के पैटर्न में कैसे उतार-चढ़ाव हो रहा है। यह रिपोर्ट 2027 तक जारी होने की उम्मीद है।
ग्लोबल वार्मिंग से बढ़ रही है महिलाओं के विरुद्ध घरेलू हिंसा: शोध
एक नए अध्ययन में पाया गया है कि बढ़ते तापमान के कारण भारत, पाकिस्तान और नेपाल में महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा में वृद्धि हो रही है। जेएएमए साइकिएट्री जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन में 2010 से 2018 तक के आंकड़ों का विश्लेषण करके पाया गया कि औसत वार्षिक तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने पर शारीरिक और यौन घरेलू हिंसा की घटनाओं में 6.3 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई।
शोध का अनुमान है कि इस सदी के अंत तक घरेलू हिंसा 21 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी। हालांकि, यदि जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देने वाले उत्सर्जन पर अंकुश लगाने के लिए कदम उठाए जाते हैं, तो हिंसा में “मामूली वृद्धि” होगी, शोधकर्ताओं ने कहा।
विश्व बैंक ने भारत में ऊर्जा बदलाव के लिए मंजूर किए 1.5 बिलियन डॉलर
विश्व बैंक के कार्यकारी निदेशक मंडल ने भारत में निम्न-कार्बन ऊर्जा के विकास में तेजी लाने के लिए 1.5 बिलियन डॉलर के फाइनेंस को मंजूरी दी है।
विश्व बैंक ने एक बयान में कहा है कि इससे भारत को नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ाने और हरित हाइड्रोजन विकसित करने में मदद मिलेगी। साथ ही निम्न-कार्बन ऊर्जा निवेश के लिए क्लाइमेट फाइनेंस मुहैया करने में भी मदद मिलेगी।
देश के 12% शहरों में ही मौजूद है वायु गुणवत्ता मॉनिटरिंग प्रणाली
भारत के 4,041 जनगणना शहरों और कस्बों में से केवल 12 प्रतिशत में ही वायु गुणवत्ता निगरानी प्रणाली मौजूद है। इनमें से केवल 200 शहर ही सभी छह प्रमुख मानदंडों वाले प्रदूषकों की निगरानी करते हैं। यह बात सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) द्वारा जारी एक नए विश्लेषण में कही गई है।
सीएसई ने अपने विश्लेषण में यह भी कहा है कि देश के वायु गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क की स्थिति बहुत ही भयावह है।
सीएसई के विश्लेषण में बताया गया है कि देश की लगभग 47 प्रतिशत आबादी वायु गुणवत्ता निगरानी ग्रिड के अधिकतम दायरे से बाहर है, जबकि 62 प्रतिशत वास्तविक निगरानी नेटवर्क से बाहर हैं। इस संबंध में सीएसई की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉयचौधरी कहती हैं कि सीमित वायु गुणवत्ता निगरानी से बड़ी संख्या में कस्बों/शहरों व क्षेत्रों की पहचान करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है और विशेष रूप से स्वच्छ वायु कार्रवाई के मूल्यांकन के लिए आवश्यक स्वच्छ वायु कार्रवाई और वायु गुणवत्ता में सुधार के प्रभावी मूल्यांकन में बाधा आती है।
दिल्ली की वायु गुणवत्ता में दिखा 7 सालों में सबसे अधिक सुधार
दिल्ली में 2016 के बाद से इस साल सबसे अधिक संख्या में ‘अच्छी से मध्यम’ वायु गुणवत्ता वाले दिन दर्ज किए गए हैं। इन आंकड़ों में 2020 के लॉकडाउन की अवधि को शामिल नहीं किया गया है।
पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार 2016 के पहले छह महीनों (यानी जनवरी से जून) के दौरान ‘अच्छी से मध्यम’ वायु गुणवत्ता वाले 30 दिन दर्ज किए गए थे; इसके मुकाबले 2017 में 57; 2018 में 65; 2019 में 78; 2020 में 126; 2021 में 84; 2022 में 54; और चालू वर्ष 2023 में 101 ‘अच्छी से मध्यम’ वायु गुणवत्ता वाले दिन दर्ज किए गए हैं।
आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में 2016 के बाद से पिछले सात वर्षों की इसी अवधि (2020 को छोड़कर) की तुलना में 2023 में ‘खराब से गंभीर’ वायु गुणवत्ता वाले दिनों की संख्या सबसे कम रही है।
मंत्रालय ने कहा कि अनुकूल मौसम संबंधी परिस्थितियों और क्षेत्र में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए जमीनी स्तर पर किए गए प्रयासों के परिणामस्वरूप इस साल वायु गुणवत्ता बेहतर रही।
वायु प्रदूषण से बीमार पाए गए 86% सफाईकर्मी और सुरक्षा गार्ड
एक अध्ययन में कहा गया है कि देश में लगभग 97 प्रतिशत सफाई कर्मचारी, 95 प्रतिशत कचरा बीनने वाले और 82 प्रतिशत सुरक्षा गार्ड अपने काम के दौरान वायु प्रदूषण के संपर्क में आते हैं।
चिंतन एनवायरमेंटल रिसर्च एंड एक्शन ग्रुप द्वारा किए गए इस अध्ययन में कहा गया है कि 75 प्रतिशत कचरा बीनने वालों, 86 प्रतिशत सफाई कर्मचारियों और 86 प्रतिशत सुरक्षा गार्डों के फेफड़े असामान्य रूप से कार्य कर रहे थे। इसके विपरीत, कंट्रोल ग्रुप के 45 प्रतिशत प्रतिभागियों के फेफड़े असामान्य रूप से कार्य कर रहे थे।
शोध में कहा गया है कि 17 फीसदी कचरा बीनने वाले, 27 फीसदी सफाई कर्मचारी और 10 फीसदी सुरक्षा गार्ड फेफड़ों की गंभीर बीमारियों से पीड़ित पाए गए।
एम्स के आसपास वाहनों का प्रदूषण बढ़ा रहा बीमारियां
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के 500 मीटर के दायरे में हुए एक सर्वे में पता चला है कि इस क्षेत्र के आसपास से हर दिन 1.31 लाख से अधिक वाहन गुजरते हैं। साथ ही अतिक्रमण व पार्किंग के कारण पूरे इलाके में भारी यातायात रहता है।
इस वजह से यहां से गुजरने वाले वाहन निर्धारित 60 किलोमीटर प्रति घंटा की गति सीमा से भी धीमे चलते हैं। इससे वायु प्रदूषण होता है, जिसका सीधा असर लोगों की सेहत पर पड़ता है।
स्कूल आफ प्लानिंग व आर्किटेक्चर (एसपीए) की ओर से हाल में एम्स के आसपास किए गए सर्वे में यह स्थिति सामने आई है।
खराब वायु गुणवत्ता से हृदय रोग, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीस (सीओपीडी), कैंसर और यहां तक कि डिमेंशिया तक का खतरा बढ़ सकता है। यहां तक कि समय से पहले मौत भी हो सकती है।
वहीं दूसरी ओर अधिक से अधिक शोध यह दिखा रहे हैं कि दुनिया भर के लो एमिशन ज़ोन्स (एलईजेड) में लोगों के स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है।
यूके, यूरोप और टोक्यो में 320 से अधिक एलईजेड संचालित हो रहे हैं। इन एलईजेड में अत्यधिक प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों, आमतौर पर पुराने डीजल वाहनों की संख्या पर अंकुश लगाकर पूरे क्षेत्र में वायु प्रदूषण को कम किया जाता है।
लांसेट पब्लिक हेल्थ जर्नल में प्रकाशित एक नई समीक्षा में कहा गया है कि एलईजेड लागू होने पर हृदय और संचार संबंधी समस्याओं में स्पष्ट कमी देखी गई।अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों, दिल के दौरे और स्ट्रोक से होने वाली मौतों और रक्तचाप की समस्या ग्रसित लोगों में भी कमी आई।
लॉकडाउन के दौरान वायु प्रदूषण में गिरावट से हिमालय में बर्फ पिघलने की गति हुई धीमी
एक नए अध्ययन के अनुसार कोविड महामारी के दौरान भारत में वायु प्रदूषण में कम होने से हिमालय में बर्फ के पिघलने की गति भी धीमी हो गई थी। पीएनएएस नेक्सस पत्रिका में प्रकाशित इस रिपोर्ट में कहा गया है कि लॉकडाउन के कारण पार्टिकुलेट प्रदूषण कम होने से 2019 की तुलना में 2020 में 27 मिलियन टन से अधिक बर्फ पिघलने से बच गई।
शोधकर्ताओं ने उपग्रह डेटा का उपयोग करके 2020 में दो महीने के राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान बर्फ पिघलने पर होनेवाले प्रभाव को ट्रैक किया।
अध्ययन में पाया गया कि हिमालयी आरएफएसएलएपी (बर्फ पर रेडिएटिव फोर्सिंग पर मानव गतिविधियों के प्रभाव) में परिवर्तन का संबंध लॉकडाउन से था।
यह अध्ययन इस बात का प्रमाण है कि मानवजनित उत्सर्जन में कमी से बर्फ और हिमनदों के पिघलने में भी कमी आती है।
ग्रीन हाइड्रोजन के प्रयोग और निर्यात पर आदेश जारी कर सकती है भारत सरकार
नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) ने कहा है कि सरकार देश में हरित हाइड्रोजन के उपयोग पर एक आदेश जारी कर सकती है। मंत्रालय के साचिव भूपिंदर सिंह भल्ला ने कहा कि हाइड्रोजन मिशन में ऐसा आदेश जारी करने के लिए प्रावधान है।
सरकार पहले यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि क्या वह उत्पादन इकाइयां स्थापित करने के लिए ग्रीन हाइड्रोजन उद्योग को कुल मांग का स्पष्ट ब्यौरा दे सकती है। समय के साथ संबंधित मंत्रालयों और क्षेत्रों के परामर्श से इस पर निर्णय लिया जाएगा, भल्ला ने कहा।
उन्होंने यह भी कहा कि मिशन के तहत 2030 तक नियोजित ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन में से लगभग 70 प्रतिशत निर्यात के लिए होगा।
सूत्रों के अनुसार भारत ने यूरोपीय संघ और सिंगापुर को प्रति वर्ष 11 मिलियन मीट्रिक टन से अधिक हरित हाइड्रोजन निर्यात करने के संभावित सौदे पर चर्चा की है, जो बदले में इन भारतीय स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश करेंगे।
रिपोर्ट के मुताबिक भारत सरकार द्विपक्षीय समझौतों पर विचार करेगी, जिसके तहत दूसरे देश हरित हाइड्रोजन के उत्पादन से जुड़े कार्बन क्रेडिट का उपयोग कर सकेंगे।
भारत ने शुरू की सौर पैनलों के लिए चीन से आयातित एल्यूमीनियम फ्रेम की एंटी-डंपिंग जांच
भारत ने एक घरेलू निर्माता की शिकायत के बाद चीन से सौर पैनलों के निर्माण के लिए आयातित एल्यूमीनियम फ्रेम की एंटी-डंपिंग जांच शुरू की है। वाणिज्य मंत्रालय का व्यापार उपचार महानिदेशालय (डीजीटीआर) चीन में उत्पादित या वहां से आयात किए गए ‘सौर पैनल/मॉड्यूल के लिए एल्यूमीनियम फ्रेम’ की कथित डंपिंग की जांच कर रहा है।
जांच के लिए आवेदन विशाखा मेटल्स ने किया था, जिसका आरोप है कि यह उत्पाद चीन द्वारा भारत में लंबे समय तक भारी मात्रा में डंप कीमतों पर निर्यात किया जाता रहा है और इससे घरेलू उद्योग पर असर पड़ रहा है।
यदि जांच में पाया जाता है कि इस डंपिंग से घरेलू निर्माताओं को वास्तविक क्षति हुई है, तो डीजीटीआर इन आयातों पर एंटी-डंपिंग शुल्क लगाने की सिफारिश करेगा।
विकासशील देशों को ऊर्जा बदलाव के लिए तत्काल चाहिए निवेश: यूएन
व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (अंकटाड) ने एक अपील जारी कर कहा है कि विकासशील देशों को एनर्जी ट्रांजिशन के लिए निवेश आकर्षित करने हेतु तत्काल सहायता की जरूरत है।
अंकटाड द्वारा हाल ही में प्रकाशित “विश्व निवेश रिपोर्ट 2023” से पता चलता है कि नवीकरणीय ऊर्जा में अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय निवेश विकसित देशों पर केंद्रित है। 2015 के पेरिस समझौते के बाद से यह निवेश लगभग तीन गुना हो गया है।
रिपोर्ट के अनुसार, विकासशील देशों को नवीकरणीय ऊर्जा में लगभग 1.7 ट्रिलियन डॉलर के सालाना निवेश की जरूरत होती है। जबकि 2022 में वे स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं के लिए केवल $544 बिलियन का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आकर्षित कर सके।
विकासशील देशों में ऊर्जा बदलाव के लिए आवश्यक कुल धनराशि काफी बड़ी है और इसमें पावर ग्रिड, ट्रांसमिशन लाइन, भंडारण और ऊर्जा दक्षता में निवेश शामिल है।
इरेडा ने इस साल मंजूर किए 36% अधिक लोन
भारतीय नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी (इरेडा) ने कहा है कि उसने पिछले वित्तीय वर्ष (2022-23) की तुलना में इस बार 36.23 प्रतिशत अधिक लोन मंजूर किए हैं, जिनकी कुल राशि 32,586 करोड़ रुपए है।
कंपनी ने पिछले वित्तीय वर्ष में 21,639 करोड़ रुपए के लोन वितरित किए थे, जो उसके पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में 34 प्रतिशत अधिक था।
इरेडा नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) के तत्वावधान में संचालित होने वाली एक पब्लिक सेक्टर यूनिट है। साल 2022-23 के वार्षिक खातों को इसकी 36वीं वार्षिक आम बैठक (एजीएम) में अपनाया गया।
शेयरधारकों को संबोधित करते हुए कंपनी के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक (सीएमडी) प्रदीप कुमार दास ने कहा कि इस साल इरेडा द्वारा मंजूर किए गए लोन, उनका संवितरण, लोन बुक, मुनाफा और निवल मूल्य अब तक का सबसे अधिक रहा है।
भारत अब अमेरिका की अध्यक्षता वाले खनिज समूह — मिनरल सिक्योरिटी पार्टनरशिप (एमएसपी) – का सदस्य बन गया है। भारत पहला विकासशील देश है जो इस 13 देशों के इस महत्वपूर्ण क्लब का सदस्य बना है। प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा के दौरान अमेरिका राष्ट्रपति के साथ साझा बयान में इसकी घोषणा की गई। एमसपी में अमेरिका और भारत के अलावा जापान, कनाडा, फ्रांस, फिनलैंड, जर्मनी, स्वीडन, इटली, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और जापान शामिल हैं।
यह समूह इन देशों में महत्वपूर्ण खनिजों की उपलब्धता को बनाए रखने के लिए है। माना जा रहा है कि रणनीतिक रूप से यह समूह खनिज क्षेत्र में चीन के दबदबे का सामना करने के लिये बनाया गया है। अभी दुनिया के कुल बैटरी वाहनों का एक तिहाई चीन में ही बनते हैं और विश्व की 77 प्रतिशत ईवी बैटरियां भी चीन ही बनाता है। माना जा रहा है कि भारत की बैटरी वाहन नीति के संदर्भ में इस क्लब की सदस्यता काफी उपयोगी सिद्ध होगी।
कंपनियों द्वारा समान मानकों का विरोध करने से सरकार की बैटरी स्वैपिंग नीति रुकी
इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) को चार्ज करना पारंपरिक वाहनों में ईंधन भरने जितना ही आसान बनाने के लिए बैटरी स्वैपिंग नीति शुरू करने की सरकार की योजना को धक्का लगा है। योजना के मसौदे में प्रस्तावित इंटरऑपरेबिलिटी मानकों पर ईवी उद्योग ने विरोध दर्ज कराया है।
ईटी की एक रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि अब इस योजना का एक अत्यधिक ‘कमजोर’ संस्करण प्रधान मंत्री कार्यालय के पास विचाराधीन है। इससे पहले इंटरऑपरेबिलिटी से संबंधित कुछ खंडों को हटाने के लिए ईवी उद्योग की लॉबिंग के कारण नीति को अंतिम रूप देने में कई बार देरी हुई।
योजना के मसौदे में सभी निर्माताओं के लिए बैटरी के समान मानक निर्धारित किए गए थे ताकि उपभोक्ताओं के लिए बैटरी स्वैपिंग आसान हो जाए। लेकिन ईवी कंपनियां इस इंटरऑपरेबिलिटी प्रस्ताव के खिलाफ लामबंद होगईं, क्योंकि उन्हें मौजूदा इंफ्रास्ट्रक्चर और निर्माण के लिए तैयार प्रोटोटाइप में भारी बदलाव करना पड़ता।
ईवी की बिक्री बढ़ी, लेकिन प्रगति अभी भी धीमी
साल 2023 की दूसरी तिमाही में भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले 66% अधिक रही। इस साल की दूसरी तिमाही में ईवी की 371,340 इकाइयां बेची गईं, जबकि पिछले साल की दूसरी तिमाही में 223,293 इकाइयां बेची गईं थीं। वहीं पिछली तिमाही की अपेक्षा इस तिमाही में बिक्री 6% बढ़ गई।
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के वाहन डैशबोर्ड पर जारी आंकड़ों के अनुसार, कुल वाहनों की बिक्री में ईवी की हिस्सेदारी 7.2% है।
लेकिन तीसरा सबसे बड़ा ऑटो बाजार होने और विभिन्न सरकारी प्रोत्साहनों के बावजूद, भारत ईवी के प्रयोग में पिछड़ा हुआ है। एस एंड पी ग्लोबल रेटिंग्स की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, देश में ईवी की बिक्री दोगुनी से अधिक हो गई है, लेकिन पिछले 12 महीनों में यह कुल हल्के वाहनों की बिक्री का लगभग 2% है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को अभी भी एक शक्तिशाली ईवी के साथ अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना बाकी है। साथ ही हम बैटरी निर्माण और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे संबंधित क्षेत्रों में भी पिछड़ रहे हैं।
कारगिल में चार ई-बसें लॉन्च की गईं
कारगिल में चार 100% जीरो एमिशन इलेक्ट्रिक बसों का पहला बैच लॉन्च किया गया। अधिकारियों ने इस पहल को लद्दाख को कार्बन न्यूट्रल केंद्र शासित प्रदेश में बदलने और लेह और कारगिल को स्मार्ट सिटी बनाने की दिशा में एक कदम बताया।
पहली बस नए जिला अस्पताल के क्षेत्र सहित कारगिल शहर को कवर करते हुए संचालित होगी, जबकि दूसरी बस कारगिल से संकू तक एक दिन में तीन चक्कर लगाएगी। तीसरी ई-बस कारगिल से द्रास और वापस कारगिल तक संचालित होगी और चौथी ई-बस कारगिल से लेह तक दैनिक आधार पर संचालित होगी।
कॉप-28 में जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को घटाने की रफ्तार तेज़ करेंगे: अल जबेर
इस साल के अंत में संयुक्त अरब अमीरात में होने वाली जलवायु परिवर्तन वार्ता में “जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को घटाने (फेज़ डाउन)” की मुहिम को तेज़ किया जायेगा। यह बात इस वार्ता (कॉप-28) के अध्यक्ष और यूएई के इंडस्ट्री और एडवांस टेक्नोलॉजी मिनिस्टर सुल्तान अहमद अल जबेर ने कही है जो कि आबूधाबी नेशनल ऑइल कंपनी (एडनॉक) के सीईओ हैं। जबेर के कॉप-28 अध्यक्ष बनने पर काफी विवाद हुआ था और बड़े पर्यावरण कार्यकर्ताओं और क्लाइमेट समूहों ने उनसे अपना पद छोड़ने को कहा था।
जबेर के बयान को उनके रुख में बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है। इससे पहले दिये भाषण में जबेर ने “जीवाश्म ईंधन से उत्सर्जन को घटाने” का समर्थन किया था जो कि कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (सीसीएस) जैसी तकनीकी को बढ़ावा देने जैसा है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने पिछले महीने सभी देशों से जीवाश्म ईंधन का प्रयोग करने और तेल, गैस और कोयले को ज़मीन में ही पड़े रहने देने की बात कही थी। जबेर के इस बयान को वार्ता से पहले बातचीत के लिये दोस्ताना माहौल तैयार करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।
जीवाश्म ईंधन फेज़ आउट की कोशिश करने वाला नॉर्वे खोल रहा नए ऑयल और गैस फील्ड
यूरोपीय देश नॉर्वे ने बुधवार को बताया कि उसने तेल और गैस कंपनियों को देश के भीतर 19 नये ऑइल और गैस फील्ड विकसित करने की अनुमति दी है जिसमें 18.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश होगा। नॉर्वे ने अगले दशक के एनर्जी रोडमैप को देखते हुये यह फैसला किया है। महत्वपूर्ण है कि नॉर्वे ने 6 महीने पहले जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में जीवाश्म ईंधन फेज़ आउट को आगे बढ़ाने की असफल कोशिश की थी और माना जा रहा है वह इस साल के अंत में होने वाले सम्मेलन में भी यह कोशिश करेगा।
विरोधाभास यह है कि नॉर्वे की संसद ने 2020 में निष्क्रियता के समय तेल के क्षेत्र में निवेश बढ़ाने के लिये टैक्स में छूट प्रोत्साहन किया था जिसके बाद जीवाश्म ईंधन में निवेश की अर्जि़यों की बाढ़ आ गई। हालांकि देश के भीतर पर्यावरण कार्यकर्ताओं और अन्य संगठनों ने जलवायु परिवर्तन की दुहाई देकर इसका विरोध किया। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने 2021 में कहा था कि अगर तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री तक सीमित करना है तो कोई नया तेल या गैस उत्पादन प्रोजेक्ट नहीं होना चाहिये। उधर पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने कहा है कि वह सरकार द्वारा अनुमोदित 19 में 3 प्रोजेक्ट्स के खिलाफ अदालत में जायेंगे क्योंकि ये अंतर्राष्ट्रीय संकल्प और मानवाधिकार संरक्षण की भावना के खिलाफ हैं।
सेनाओं द्वारा होने वाले उत्सर्जन को वैश्विक पर्यावरण समझौतों के तहत लाने के प्रयास जारी
ग्लोबल वार्मिंग में अभूतपूर्व वृद्धि के बीच वैज्ञानिक और पर्यावरण कार्यकर्ता संयुक्त राष्ट्र पर दबाव बढ़ा रहे हैं कि विभिन्न देशों की सेनाओं को उनके द्वारा किए जाने वाले उत्सर्जन का खुलासा करने के लिए बाध्य किया जाए। 1997 के क्योटो प्रोटोकॉल और बाद में 2015 के पेरिस समझौते से भी सेनाओं द्वारा किए जाने वाले उत्सर्जन को बाहर रखा गया था। इसके पीछे यह वजह बताई गई थी कि सेनाओं के ऊर्जा प्रयोग का विवरण सार्वजनिक करने से राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में पद सकती है।
विभिन्न देशों की सेनाएं जीवाश्म ईंधन के सबसे बड़े उपयोगकर्ताओं में शुमार हैं। अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों ने 2022 में अनुमान लगाया था कि वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में सेनाओं का योगदान 5.5% है। वैज्ञानिकों का कहना है कि सुरक्षा बल अपने कार्बन उत्सर्जन को रिपोर्ट करने या उसमें कटौती करने के लिए बाध्य नहीं हैं, और कुछ सेनाओं द्वारा प्रकाशित डेटा अविश्वसनीय या अधूरा है।
कॉप28 के दौरान जब इस बात पर चर्चा होगी कि विभिन्न देश पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करने से कितने दूर हैं, तब सबका ध्यान एमिशन अकाउंटिंग पर होगा। ऐसे में कुछ पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने यूएनएफसीसीसी से अनुरोध किया है कि सेनाओं द्वारा होने वाले उत्सर्जन को ग्लोबल कार्बन अकाउंटिंग में शामिल किया जाए।