Vol 1, July 2022 | मॉनसून की कमी पर बाढ़ और भूस्खलन की चौतरफा मार

Newsletter - July 8, 2022

सब पानी पानी: पूर्वोत्तर में बाढ़ से तबाही मचाई है और एक शोध बता रहा है कि दुनिया की एक चौथाई आबादी बाढ़ के ख़तरे में है। फोटो - Kausika Bordoloi_WikimediaCommons

बाढ़ में डूबा उत्तर-पूर्व, असम में 30 लाख प्रभावित

भारत के दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम और मध्य इलाकों में जहां मॉनसून जून के शुरुआत से कम-ज़्यादा हो रहा है वहीं उत्तर पूर्व में लगातार बरसात से बाढ़ की स्थिति बनी हुई है।  असम के तकरीबन सभी ज़िले बाढ़ की मार झेल रहे हैं। जून के आखिर तक असम के 28 ज़िले बाढ़ में डूबे हुये थे और कुल 24 लाख लोग इससे प्रभावित हो चुके थे और 122 लोगों की मौत हो गई है। बाढ़ से हुये भूस्खलन से भी कम से कम 17 लोग मारे गये हैं।  काज़ीरंगा पार्क का 15 प्रतिशत हिस्सा जलमग्न हो गया है और राज्य में करीब 60,000 मवेशी बाढ़ में बह गये हैं। 

अरुणाचल में भी बाढ़ का बड़ा असर पड़ा है और यहां अब तक कम से कम 15 लोगों की मौत हो चुकी है। मेघालय में भी बाढ़ का भारी असर है और इससे 12 लोगों की मौत हो चुकी है। 

मणिपुर में भूस्खलन, 50 की मौत 

उधर मणिपुर में हुये भूस्खलन में मरने वालों की संख्या 48 से अधिक हो गई और बुधवार तक 14 शव नहीं मिल पाये। हालांकि डाउन ट अर्थ की रिपोर्ट में कुल 79 लोगों के मारे जाने की आशंका जताई गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस आपदा कि लिये मिट्टी की कमज़ोर पकड़, इलाके में पेड़ों और वनस्पतियों का अभाव और लगातार हो रही तेज़ बारिश के अलावा क्षेत्र में बढ़ रही मानव बसावट ज़िम्मेदार है। यह आपदा राज्य के नोने ज़िले में आई जहां जून में रिकॉर्ड बारिश हुई है।  

पिछले 3 दशकों में उत्तर-पूर्व में मॉनसून घटने का पैटर्न: मौसम विभाग 

जहां उत्तर-पूर्व के राज्यों में बाढ़ से विकट समस्या बनी हुई है वहीं मौसम विभाग का विश्लेषण बताता है कि असम में जून और सितंबर के बीच सभी मॉनसून महीनों में कुल बरसात में कमी का ट्रेन्ड दिख रहा है। मौसम विभाग ने असम के 1989 से 2018 के आंकड़ों का अध्ययन किया है और पाया है कि  कुल बरसात में कमी हो रही है। मौसम विभाग के मुताबिक इसका मतलब है कि राज्य में स्थानीय और अचानक बहुत बारिश की घटनायें बढ़ रही है जिसके कारण आपदायें और रही हैं। असमें ब्रह्मपुत्र और बराक नदियों कई विशाल नदियों का जाल है कि अचानक थोड़े समय में अधिक बारिश से बड़ी तबाही हो जाती है। असम और मेघालय के अलावा उत्तर-पूर्व के बाकी राज्यों में भी बारिश के पैटर्न में बदलाव आ रहा है। इस साल मॉनसून के पहले 15 दिनों में (एक जून से पंद्रह जून तक) पूरे देश में बारिश 32% कम दर्ज की गई। 

बाढ़ से दुनिया की एक चौथाई आबादी को ख़तरा 

दुनिया की लगभग एक चौथाई आबादी भारी बाढ़ के खतरे में है, और गरीब देशों में रहने वाले लोग इसके कारण सबसे अधिक असुरक्षित हैं। यह बात एक नये अध्ययन में पता चली है। डाउन टु अर्थ में छपी रिपोर्ट बताती है कि भारी वर्षा और तूफान के कारण आने वाली बाढ़ से हर साल लाखों लोग प्रभावित होते हैं। घरों, बुनियादी ढांचे और अर्थव्यवस्थाओं को अरबों डॉलर का नुकसान होता है।

बाढ़ के खतरे बढ़ रहे हैं क्योंकि जलवायु परिवर्तन अत्यधिक वर्षा और समुद्र के स्तर में वृद्धि के लिए जिम्मेवार है, इसके चपेट में आने वाली आबादी लगातार बढ़ रही है। भारत में पिछले कई सालों से पूर्वी राज्यों के साथ पश्चिमी तट पर स्थित राज्यों में पानी भरने की घटनायें बढ़ रही हैं जिसका असर लोगों के जनजीवन और अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। 

हीटवेव से मेंथा की उत्पादकता घटी 

देश में इस साल मार्च से चली प्रचंड हीटवेव ने फसलों को काफी नुकसान पहुंचाया है। यूपी के किसान शिकायत कर रहे हैं कि इस साल असामान्य गर्मी के कारण उनकी मेंथा की फसल बर्बाद हो गई और मेंथा से 60 से 70 प्रतिशत कम तेल निकला है। पिछले साल प्रति एकड़ 40 से 50 किलो उगाने वाले किसानों का कहना है कि इस साल फसल 15 से 20 किलो प्रति एकड़ ही हो पाई। इससे पहले गेहूं की फसल पर भी तेज़ गर्मी की मार पड़ी।    

नये विकल्प: नीति आयोग ने ग्रीन हाइड्रोजन कॉरिडोर बनाने की वकालत की है जिसमें स्टार्ट अप का अहम रोल होगा। फोटो - Business World

भारत को ग्रीन हाइड्रोजन कॉरिडोर चाहिये: नीति आयोग

हाल ही में नीति आयोग ने कहा की  देश भर में तीन हाइड्रोजन कॉरिडोर विकसित किए जाने चाहिए। इसके चलते ग्रीन हाइड्रोजन कॉरिडोर के विकास को बढ़ावा देने के लिए सरकार स्टार्टअप्स को अनुदान के साथ-साथ उद्यमियों का समर्थन करेगी।

अपनी रिपोर्ट ‘हार्नेसिंग ग्रीन हाइड्रोजन – भारत में डीप डीकार्बोनाइजेशन के अवसर’ में नीति आयोग ने कहा की ग्रीन हाइड्रोजन के लिए मांग एकत्रीकरण और डॉलर आधारित बोली के माध्यम से निवेश को सुविधाजनक बनाने की आवश्यकता है। सरकार स्टार्टअप और परियोजनाओं को अनुदान और ऋण दे सकती है, इनक्यूबेटरों और निवेशक नेटवर्क के माध्यम से उद्यमियों का समर्थन कर सकती है, और ऐसे नियम बना सकती है जो पहले प्रस्तावक जोखिमों का प्रबंधन करते हैं। 

जलवायु लक्ष्य को हासिल करने के लिये भारत को चाहिये 22,000 करोड़ डॉलर 

ब्लूमबर्ग एनईएफ की नई रिसर्च बताती है कि अगर भारत को 2030 तक तय किये अपने क्लाइमेट लक्ष्य हासिल करने हैं तो उसके लिये 22,300 करोड़ अमेरिकी डॉलर (यानी 17 लाख करोड़ से अधिक) चाहिये होंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल ग्लासगो सम्मेलन में जिन लक्ष्यों की घोषणा की उनमें 2030 तक भारत की साफ ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावॉट तक पहुंचाने की बात है। ब्लूमबर्ग की यह रिपोर्ट कहती है कि कॉरपोरेट कंपनियां इस 500 गीगावॉट लक्ष्य का 86% हासिल करने में मदद कर सकती हैं। भारत ने 2030 तक अपना प्रक्षेपित कार्बन इमीशन 100 करोड़ टन कम करने का लक्ष्य रखा है और कहा है कि वह  2005 के स्तर की तुलना में कुल कार्बन उत्सर्जन तीव्रता को 45% कम करेगा। लेकिन प्रधानमंत्री ने यह भी कहा था कि ऐसा करना अमीर और विकसित देशों की मदद के बिना संभव नहीं होगा। 

 पर्यावरण संरक्षण से जुड़े कुछ कानूनों में जेल का प्रावधान हटेगा

सरकार ऐसे बदलाव कर रही है जिससे एयर और वॉटर एक्ट, पर्यावरण संरक्षण कानून और लोक दायित्व बीमा अधिनियम जैसे कानूनों में (जिनमें उद्योगों से हानिकारक तत्वों के शिकार कारण पीड़ित  को राहत देने के प्रावधान हैं) अपराधी को जेल की सज़ा नहीं होगी। सरकार का कहना है कि वह इस बारे में आर्थिक दंड को अधिक कड़ा करेगी लेकिन आपराधिक केस नहीं चलेगा जिससे नियमों के उल्लंघन करने वाले को जेल का डर नहीं हो। पर्यावरण को हुये नुकसान की भरपाई के लिये लेवी लगाकर कई फंड स्थापित करने का भी प्रस्ताव है। मंत्रालय लोक दायित्व बीमा कानून में अभियोग का प्रावधान हटाना चाहती है। केवल आर्थिक दंड न भुगतने पर ही आपराधिक केस चलेगा। 

सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर पाबंदी, लम्बा रास्ता तय करना बाकी

भारत ने एक जुलाई से सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर रोक लगा दी है। लेकिन बहुत सारे उत्पाद अब भी बाज़ार में बिकते रहेंगे जिनमें सिंगल यूज़ प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है। इनमें सॉफ्ट ड्रिंक, मिनरल वॉटर और पैकिंग में आने वाला सामान शामिल है। डाउन टु अर्थ पत्रिका ने कहा है कि सरकार ने सिंगल यूज़ प्लास्टिक की जो परिभाषा तय की है उसके भी ये सारे आइटम भी आते हैं लेकिन यह बाज़ार में मौजूद रहेंगे। इस हिसाब से सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर पाबंदी की ओर अभी आंशिक और पहला कदम ही उठाया जा सका है।  

वैश्विक खाद्य संकट के बावजूद अमेरिका बनायेगा बायो-फ्यूल  

दुनिया में खाद्य संकट के बावजूद अमेरिका बायो-फ्यूल के उत्पादन को बढ़ाना जारी रखेगा। पूरी दुनिया में खाद्य संकट के मद्देनज़र मांग की जा रही है कि इंसानों को भोजन प्राथमिकता हो लेकिन  अमेरिका की उप कृषि मंत्री ज्वेल ब्रूनॉग ने कहा उनके देश के किसान इस बात का खयाल रखते हुये बायो-फ्यूल का उत्पादन बढ़ाते रहेंगे। बायो फ्यूल में मक्का और जौ जैसी फसलों का इस्तेमाल कर ईंधन बनाया जाता है। उन्होंने कहा कि बाइडेन सरकार को खाद्य संकट का पूरा अहसास है लेकिन बायो-फ्यूल की उत्पादन से जीवाश्म ईंधन के प्रयोग में कमी होगी जिससे जलवायु संकट को साधा जा सकता है।  

प्रदूषण बढ़ा: एनसीएपी ट्रैकर का विश्लेषण बताता है कि इस साल गर्मियों में हवा पिछले साल के मुकाबले बहुत खराब रही।

दिल्ली, उत्तर-पश्चिम के मैदानी इलाके पिछली गर्मियों के मुकाबले इस बार अधिक प्रदूषित रहे: अध्ययन

नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) ट्रेकर का विश्लेषण बताता है कि दिल्ली में इस साल पीएम 10, पीएम 2.5 और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) प्रदूषण  पिछले साल के मुकाबले बहुत खराब रहा। मार्च से जून तक पीएम 10 और पीएम 2.5 सुरक्षित सीमा से ऊपर थे और NO2 की मात्रा मार्च और अप्रैल में बढ़ी। कोयला बिजलीघरों से होने वाले प्रदूषण काफी रहा क्योंकि इस साल भीषण गर्मी के कारण बिजली की मांग बहुत थी। दिल्ली, मुंबई और बैंगलुरु उन 10 शहरों में थे जहां गर्मियों में हवा सुरक्षित सीमा से अधिक खराब रही।

पिछले साल की पीक डिमांड 186 मेगावॉट के मुकाबले इस साल 10 जून को भारत में बिजली की मांग सबसे अधिक 211 गीगावॉट रही और इसका 75% कोयला बिजलीघरों से आया। हीटवेव के कारण एयरकंडीशनरों का बहुत इस्तेमाल हुआ और इस कारण पीएम 2.5 की सांध्रता हवा में बढ़ी।  दिल्ली में एक भी दिन ऐसा नहीं रहा जब पीएम 2.5 सीपीसीबी के सुरक्षित मानक 60 माइक्रोग्राम प्रति लीटर पर रहा। 

एनसीएपी ट्रैकर क्लाइमेट ट्रैन्ड और रेस्पाइरर लिविंस साइंसेज़ का संयुक्त प्रयास है जो कि भारत की स्वच्छ वायु नीति पर अपडेट्स देता है। इसका मुख्य उद्देश्य इस बात पर नज़र रखना है कि भारत ने 2024 तक हवा में प्रदूषण कम करने के जो लक्ष्य तय किये हैं उनपर क्या तरक्की हो रही है। 

औद्योगिक प्रदूषण: सीपीसीबी ने छोटे बॉयलरों के लिये मानक कड़े किये 

छोटे बॉयलरों पर चलने वाले उद्योगों को प्रदूषण की अधिक छूट नहीं रहेगी। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने दो टन प्रति घंटा से कम क्षमता वाले बॉयलरों के प्रदूषण सीमा 1,200 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से घटाकर 500 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर कर दी है।  

सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरेंमेंट (सीएसई) के मुताबिक दिल्ली-एनसीआर (जिनमें हरियाणा, यूपी और राजस्थान शामिल हैं) के औद्योगिक क्लस्टरों में ज़्यादातर बेबी बॉयलर इस्तेमाल हो रहे हैं। इन्हें नियंत्रित और रेग्युलेट किया जाना ज़रूरी है क्योंकि लगातार उत्सर्जन मॉनिटरिंग सिस्टम (सीईएमएस) और एयर पॉल्यूशन कंट्रोल डिवाइस लगाना आर्थिक रूप से संभव नहीं है। 

हालांकि अब भी बड़े बॉयलरों के मुताबिक इन छोटे बॉयलरों के लिये तय मानक काफी कम हैं और इनसे हवा प्रदूषित होती रहेगी। 

प्रदूषण की चेतावनी लोगों के बजाय प्रदूषण करने वाले को दी जाये: स्टडी 

वायु प्रदूषण पर किये गये एक नये अध्ययन का निष्कर्ष है कि सेहत को लेकर वायु प्रदूषण के आंकड़े और चेतावनी असल में जनता के बजाय प्रदूषण करने वाले को दी जानी चाहिये। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के इस अध्ययन में इस बात का विश्लेषण किया गया कि लंदनवासी किस तरह वायु प्रदूषण के डाटा देखते हैं। स्टडी में पाया गया कि बड़ी संख्या में व्यवसायिक कंपनियां पर्सनल सेंसर, मास्क और एयर फिल्टर का बाज़ार तैयार करने के उद्देश्य से आंकड़े दे रही हैं। शोध कहता है कि वर्तमान सिस्टम में कमियां हैं। अगर लोग जहां रह रहे हैं उस जगह वायु गुणवत्ता की सटीक जानकारी चाहते हैं तो अधिकांश सेवायें वह जानकारी प्रदान नहीं कर पा रहीं।  

यह अध्ययन इस बात को रेखांकित करता है कि जब वायु प्रदूषण बढ़े तो लोगों को सचेत करने के लिये उन्हे जानकारी देना अच्छा है लेकिन खतरा कम करने के लिये जानकारी प्रदूषक (कंपनियों, बिजलीघरों) को दी जानी चाहिये। स्टडी में यह बात याद दिलाई गई है कि 1955 में जब पहली बार इस तरह की योजना बनी तो उसमें उद्योगों को जानकारी देने की व्यवस्था थी ताकि वह बॉयलर एक्टिविटी कम करें, कार पूलिंग बढ़े और लोग कूड़ा न जलायें। 

ऊंचे लक्ष्य: एनटीपीसी और टाटा पावर जैसी बड़ी कंपनियों ने साफ ऊर्जा के राजस्थान और तमिलनाडु से अनुबंध किया है। फोटो - Pixabay

एनटीपीसी की सहयोग कंपनी राजस्थान में लगायेगी 10 गीगावॉट का साफ ऊर्जा पार्क

देश की सबसे बड़ी पावर कंपनी नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) की सहयोगी कंपनी एनटीपीसी रिन्यूएबल एनर्जी लिमिटेड (एनआरईएल) ने 10 गीगावॉट साफ ऊर्जा के संयंत्र के लिये राजस्थान सरकार के साथ अनुबंध किया है।  एनआरईएल ने कहा है कि साल 2032 तक उसने 60 गीगावॉट साफ ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य रखा है। एनटीपीसी की यह सहयोगी कंपनी 2 साल पहले बनाई गई थी और इसका कहना है कि उसने अब तक 4 गीगावॉट के अनुबंध हासिल किये हैं जिन पर अलग अलग स्तर पर काम चल रहा है। 

सोलर सेल, मॉड्यूल निर्माण यूनिट में टाटा पावर करेगा 3000 करोड़ रुपये निवेश 

भारत की सबसे बड़ी पावर कंपनियों में एक टाटा पावर ने तमिलनाडु सरकार के साथ एक करार किया है। इसके तहत टाटा राज्य में 4 गीगावॉट के सोलर सेल उत्पादन यूनिट के साथ 4 गीगावॉट का सोलर मॉड्यूल मैन्युफैक्चरिंग यूनिट  भी लगायेगा जिसके लिये कंपनी को करीब 3000 करोड़ रुपये का निवेश करना होगा। कंपनी की ओर जारी बयान के हिसाब से ये यूनिट्स राज्य के तिरुनेलवेली में लगेंगी। कंपनी का कहना है कि उनके प्लांट को खड़ा होने में करीब 16 महीने लगेंगे और 2000 लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नौकरियां मिलेंगी जिनमें अधिकांश महिलायें होंगी। 

झारखंड की सोलर पॉलिसी: अगले 5 साल में 40,000 मेगावॉट क्षमता स्थापित होगी

झारखंड ने अपनी सौर ऊर्जा नीति 2022 की घोषणा कर दी है। इसके मुताबिक राज्य में साल 2027 तक कुल 4 गीगावॉट (40,000 मेगावॉट)  सोलर ऊर्जा के संयंत्र लगाये जायेंगे। इसमें 3 गीगावॉट यूटिलिटी स्केल सोलर (10 मेगावॉट से अधिक उत्पादन वाले) के अलावा 720 मेगावॉट अंडर ड्रिस्टिब्यूशन जेनरेशन प्रोजेक्ट होंगे यानी ऐसे प्रोजेक्ट जहां संयंत्र के आसपास ही बिजली सप्लाई की जाती है। इसके अलावा 280 मेगावॉट ऑफ ग्रिड (यानी जो ग्रिड से न जुड़ा हो) उत्पादन होगा। इस प्रोजेक्ट के तहत सोलर पार्क बनेंगे और नहरों के ऊपर पैनल लगेंगे और फ्लोटिंग सोलर लगेंगे। सरकार का कहना है कि वह निजी निवेशकों को उत्साहित करेगी और पिछड़े गांवो तक बिजली पहुंचाने के लिये सब्सिडी देगी। 

आग का डर हावी: बैटरियों में आग की घटनाओं से ओला पहले से चौथे नंबर पर आ गई है। फोटो - Economic Times

बैटरियों में आग की घटनाओं से दुपहिया बाज़ार में ओला को झटका

दुपहिया इलैक्ट्रिक वाहनों में आग की घटनाओं की मार ओला के टू-व्हीलर्स की बिक्री पर पड़ी है। वाहन के आंकड़ों के मुताबिक  जून के महीने में ओला के  केवल 5,869 इलैक्ट्रिक वाहन रजिस्टर हुये जबकि अप्रैल में यह टू-व्हीलर बाज़ार में सबसे अग्रणी था। अप्रैल से ओला का ग्राफ लगातार गिरा है और अब यह दुपहिया विक्रेताओं में ओकिनावा, एम्पियर वेहिकल और हीरो इलैक्ट्रिक के बाद चौथे नंबर पर है।  मई के मुकाबले ओला की बिक्री जून में  30 प्रतिशत गिरी है। 

उधर अमेरिका में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया सेन डियागो के शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने बहुत कम तापमान से लेकर बहुत अधिक तापमान में काम कर सकने वाली इलैक्ट्रिक बैटरियों का आविष्कार कर लिया है। जाने माने साइंस जर्नल पीएनएएस में प्रकाशित इस शोध के बाद कहा जा रहा है कि अधिक तापमान में बैटरियों को ठंडा करने के लिये अब कूलिंग सिस्टम की ज़रूरत नहीं होगी। 

हरियाणा सरकार ने नई बैटरी वाहन नीति को दी मंज़ूरी 

हरियाणा सरकार ने अपनी नई ईवी नीति में बैटरी वाहनों के प्रयोग को प्रोत्साहित करने की कोशिश की है। राज्य सरकार ने 70 लाख तक के बैटरी वाहन पर 15 प्रतिशत छूट (अधिकतम 10 लाख रुपये) देने की घोषणा की है। यानी अगर कोई 30 लाख का विद्युत वाहन खरीदे तो उसे साढ़े चार लाख और 70 लाख का वाहन खरीदे तो 10 लाख रुपये तक की छूट मिल सकती है। इसके अलाव 40 लाख से कम कीमत के हाइब्रिड वाहन पर 3 लाख तक छूट मिल सकती है। विदेशी आयातित बैटरी वाहनों की कीमत 40 से 70 लाख के बीच है। 

एल जी इलैक्ट्रॉनिक ने विद्युत वाहन चार्जिंग क्षेत्र में कदम बढ़ाये 

बढ़ते वैश्विक विद्युतीकरण को देखते हुए अब एलजी इलेक्ट्रॉनिक्स ने भी विद्युत वाहन चार्जिंग कारोबार में  कदम बढ़ाया है | हाल ही में एलजी ने एक घरेलू ईवी चार्जिंग निर्माता – एप्पल मैंगो – का अधिग्रहण किया | एलजी इलेक्ट्रॉनिक्स अब इस कंपनी में 60 फीसद का हिस्सेदार है| उसी कंपनी में जीएस एनर्जी और जीएस नियोटेक की भागीदारी भी  34 फीसद और 6 फीसद है।

सख्त उत्सर्जन नियमों के चलते कार निर्माता अपने लाइनअप में बैटरी वाहनों को तेजी से अपना रहे हैं। आंकड़ों की मानें तो 2030 तक दुनिया के ईवी चार्जिंग सॉल्यूशंस मार्केट की क़ीमत बढ़कर 316 बिलियन डॉलर हो सकती है |

अंडमान सागर में अपतटीय ड्रिलिंग मानसून के बाद जल्द शुरू हो सकती है | फोटो - Pixabay

अंडमान समुद्र क्षेत्र में होगी तेल और गैस की खोज

ख़बर है कि भारत सरकार ने अंडमान के समुद्री इलाके में तेल और गैस की खोज की योजना तेज की है। द इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र ओएनजीसी के नेतृत्व वाले ड्रिलिंग अभियान के लिए एक फंडिंग योजना तैयार कर रहा है और परियोजना के लिए मंजूरी को आसान बनाने पर विचार कर रहा है। अंडमान सागर में अपतटीय ड्रिलिंग मानसून के बाद जल्द शुरू हो सकती है| एक्सॉनमोबिल और शेल के सहयोग के साथ ओएनजीसी ने 350-400 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत पर परियोजना के तहत 3-4 कुओं को ड्रिल करने की तैयारी में है। ओएनजीसी के पास वर्तमान में तीन ब्लॉक हैं और ऑयल इंडिया के पास अंडमान अपतटीय जल में एक ब्लॉक पर ड्रिलिंग अधिकार है।

यूक्रेन पर रूस के हमले का असर, कोयले की ओर लौट रहे यूरोपीय देश  

यूक्रेन पर रूस के हमले का असर अब यूरोप की ऊर्जा ज़रूरतों पर पड़ रहा है। ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और नीदरलैंड के बाद अब फ्रांस ने घोषणा की है कि वह अपने हाल ही बंद किये बिजलीघर को फिर से खोलेगा। हालांकि फ्रांस की 67 प्रतिशत बिजली न्यूक्लियर पावर है लेकिन वह पूर्वी फ्रांस में स्थित अपने एक कोल पावर प्लांट का फिर से खोल रहा है। फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रॉन ने कहा है कि उनके देश में 1 प्रतिशत से भी कम बिजली कोल पावर है और उनका कोयले का प्रयोग बंद करना का संकल्प बना हुआ है। रूस ने यूरोपीय देशों को अपने यहां से होने वाली तेल और गैस की सप्लाई रोक दी है जिससे कई देश कोयले की ओर लौट रहे हैं। जानकारों का सवाल है कि ऐसे हालात में यूरोपीय देश साफ ऊर्जा विकल्पों को क्यों नहीं बढ़ा रहे। 

तेल-गैस ड्रिलिंग फिर शुरु होने पर बाइडेन सरकार पर हुआ मुकदमा 

नॉर्थ डकोटा, नेवादा और मोंटाना समेत कुछ जगहों पर तेल और गैस निकालने की लीज़ को फिर से क्रियान्वित करने पर पर्यावरण संगठनों ने बाइडेन प्रशासन पर मुकदमा कर दिया है। मुकदमे में कहा गया है कि सरकार इन लाइसेंस के ज़रिये संघीय भूमि  नीति और प्रबंधन कानून का उल्लंघन कर रही है। इन कानून में कहा गया है कि सार्वजनिक भूमि “बेवजह क्षरण” न हो और इस कारण बहुत अधिक प्रदूषण होगा। मुकदमा करने वालों का शोध बता रहा है कि भले ही चुनाव अभियान में बाइडेन ने ड्रिलिंग लीज़ पर रोक लगाने की बात कही लेकिन सत्ता में आने के बाद अपने पहले साल में नई सरकार ने ट्रम्प प्रशासन की तुलना में 34% अधिक तेज़ी से प्रोजेक्ट्स को हरी झंडी दी है। 

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