Newsletter - June 6, 2022
रविवार (30 मई) को मौसम विभाग ने घोषणा की कि केरल में मॉनसून पहुंच चुका है। मॉनसून की सामान्य तिथि 1 जून है पर मौसम विभाग ने कहा कि इस बार 3 दिन पहले ही केरल में मॉनसून की बारिश होने लगी है। मौसम विभाग के मुताबिक शुरुआत के कुछ दिनों में मॉनसून के आगे बढ़ने की रफ्तार कम हो सकती है। हालांकि कुछ जानकारों का कहना है कि मौसम विभाग ने यह घोषणा करने में जल्दबाज़ी की है क्योंकि रविवार को मॉनसून की आमद की ज़रूरी शर्तें पूरी नहीं हुईं। मौसम विभाग ने भविष्यवाणी की है कि इस साल जून-सितंबर मॉनसून 103% (दीर्घावधि अनुमान +/- 4% की त्रुटि के साथ) रहेगा।
उधर दिल्ली में रविवार को तेज़ हवाओं के साथ बारिश होने से तापमान गिरा लेकिन शहर में कई जगह यातायात बाधित रहा। शहर में करीब 100 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से हवायें चलीं और कई जगह खम्भे और पेड़ गिर गये।
असम में बाढ़ और भूस्खलन, कम से कम 36 लोग मरे
असम में बाढ़ से कम से कम 36 लोगों की मौत हो गई और 4 लाख से अधिक लोगों का जीवन प्रभावित हुआ। राज्य के 6 ज़िलों – कछार, दिमा हासाओ, गोलापाड़ा, कामरूप, मोरीगांव और नगांव – में काफी बर्बादी हुई। कछार में सबसे अधिक करीब 22 हज़ार लोगों को कैंप में पहुंचाया गया। वैसे ब्रह्मपुत्र नदी का पानी राज्य के कुछ 1,800 गांव में घुस गया है। इस बाढ़ में डेढ़ लाख से अधिक मवेशी भी डूब या बह गये। इससे उन लोगों की जीविका पर असर पड़ेगा जो पशुधन पर आधारित है।
बाढ़ और तूफान से पिछले साल 49 लाख हुये बेघर
भारत में 2021 में बाढ़ और तूफान जैसी आपदाओं ने 49 लाख से अधिक लोगों को बेघर किया। जेनेवा स्थित आंतरिक विस्थापन निगरानी केंद्र (आईडीएमसी) के आंकड़ों के मुताबिक 25 लाख लोग तूफान और 24 लाख लोग बाढ़ से विस्थापित हुये। भारत उन देशों में है जहां इन आपदाओं का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है।
एल्प्स की बर्फीली चोटियों की जगह अब दिख रही हरियाली
यूरोप में एल्प्स की बर्फीली चोटियों की जगह अब हरियाली बढ़ती जा रही है। इस प्रक्रिया को ‘ग्रीनिंग’ कहते हैं। जानकारों के मुताबिक यह ग्लोबल वॉर्मिंग का प्रभाव है और पहले जो चीज़ आर्कटिक में दिखती थी वह अब ऊंचे पहाड़ों पर दिख रही है। पिछले 38 साल के सैटेलाइट डाटा का अध्ययन करने के बाद शोधकर्ताओं ने स्पष्ट रूप से इस बदलाव में तेज़ी देखी है। इस अध्ययन को करने वाले रिसर्चर कहते हैं कि उन्होंने 1,700 मीटर से अधिक ऊंचाई के क्षेत्रों का अध्ययन किया ताकि किसी भी कृषि क्षेत्र को इससे बाहर रखा जाये। साथ ही वनों और ग्लेशियरों को भी इस अध्ययन से बाहर रखा फिर भी यह पाया कि एल्प्स में 10 प्रतिशत जगह ऐसी हैं जहां गर्मियों में अब कोई बर्फ नहीं होती।
चार गुना तेज़ी से हो रहा कई प्रजातियों का विकास
धरती में जहां एक ओर जन्तुओं और वनस्पतियों की कई प्रजातियां तेज़ी से विलुप्त हो रही है वहीं कुछ प्रजातियां ऐसी भी हैं जिनका विकास अनुमान से चार गुना अधिक रफ्तार से हो रहा है। प्रजातियों के आनुवंशिक विभिन्नताओं के विश्लेषण में यह बात सामने आई है। शोधकर्ता कहते हैं कि यह बदलाव डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत से मेल नहीं खाता है। वैज्ञानिकों की पत्रिका साइंस में प्रकाशित अध्ययन बताता है कि कुल 19 प्रजातियों से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण किया गया जिनमें विकास के लिये ज़रूरी घटक अनुमानों की तुलना में कहीं अधिक प्रचुर मात्रा में पाये गये।
हिमाचल में नदी प्रदूषण मामले में एनजीटी ने केंद्र की पुनर्विचार याचिका खारिज की
हिमाचल के बद्दी औद्योगिक क्षेत्र (ज़िला सोलन) में उद्योगों द्वारा तीन नदियों – बलाद, सिरसा और सतलुज – में किये जा रहे प्रदूषण के मामले में एनजीटी ने फैसला दिया था। अब 6 अप्रैल के इस फैसले के खिलाफ केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका को एनजीटी ने खारिज कर दिया है। अपने फैसले में एनजीटी ने कहा था कि उद्योगों द्वारा डिस्चार्ज नदी में गिराते वक्त पर्यावरण मंत्रालय के ड्राफ्ट नोटिफिकेशन में दिये मानकों का पालन किया जाये।
पर्यावरण मंत्रालय ने अपनी पुनर्विचार याचिका में कहा था कि ड्राफ्ट नोटिफिकेशन के मानक अंतिम नोटिफिकेशन में शामिल नहीं किये हैं इसलिये अदालत का फैसला सही नहीं है लेकिन ट्रिब्यूनल ने याचिका को खारिज कर दिया और एनजीटी कानून के सेक्शन -20 का हवाला देते हुये कहा कि समावेशी विकास सुनिश्चित करने के लिये अदालत पर्यावरण मंत्रालय के आदेशों से आगे जाकर भी फैसला सुना सकती है।
गेहूं निर्यात पर पाबंदी के बाद चीनी के एक्सपोर्ट पर आंशिक रोक
गेहूं के निर्यात पर लगी रोक के बाद सरकार ने अब चीनी के निर्यात पर आंशिक रोक लगाई है। उद्योग और वाणिज्य मंत्रालय ने आदेश दिया है कि 1 जून से 30 सितंबर के बीच अधिकतम 100 लाख मीट्रिक टन (1 करोड़ टन) चीनी ही निर्यात की जा सकती है। भारत ब्राज़ील के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चीनी का निर्यातक देश है। सरकार ने इस साल इससे पहले खाद्य सुरक्षा और बढ़ती महंगाई को देखते हुये गेहूं के निर्यात पर पूर्ण रोक लगाई थी और अब चीनी पर यह फैसला लिया है। महत्वपूर्ण है कि इस साल हीटवेव के कारण गेहूं की फसल प्रभावित हुई जिसे जलवायु परिवर्तन का ही असर माना जा रहा है।
कॉप -27 वार्ता क्लाइमेट फाइनेंस पर केंद्रित हो: मिस्र
इस साल के अंत में जलवायु परिवर्तन वार्ता मिस्र में हो रही है और मेजबान देश का कहना है कि क्लाइमेट फाइनेंस को लेकर विकासशील देशों की बात पर गौर होना चाहिये। मिस्र की अंतर्राष्ट्रीय मामलों में सहयोग की मंत्री रानिया अल मशात ने कहा है कि हम चाहेंगे कि यह वार्ता व्यवहारिक कदमों को लेकर हो और जो प्रण अब तक विकसित देशों ने किये हैं उन्हें कार्यान्वित किया जाये। संयुक्त राष्ट्र की सालाना जलवायु परिवर्तन वार्ता की 27वीं मीटिंग (कॉप-27) इस साल मिस्र के शर्म-अल-शेख में होगी। यह वार्ता यूक्रेन पर रूस के हमले से उपजी मूल्य वृद्धि के साये में होगी जहां गरीब और विकासशील देशों पर कर्ज़ से निपटने का संकट है तो अमीर देशों में लाइफ स्टाइल को बनाये रखने की चुनौती।
अध्ययन: NOx इमीशन में पचास प्रतिशत कटौती से उपज में होती है बढ़ोतरी
एक नये अध्ययन में यह बात सामने आयी है कि नॉक्स (NOx) इमीशन में कटौती से कृषि उत्पादकता में सुधार होता है। यह पाया गया कि इस कटौती से चीन में सर्दियों में उपज 25% बढ़ोतरी हुई और गर्मियों में यह बढ़ोतरी 15% रही। पश्चिमी यूरोप में यह बढ़ोतरी 10% (गर्मियों और सर्दियों दोनों सीजन में) रही। भारत में सर्दियों में 6% और गर्मियों में 8% बढ़ोतरी पाई गई।
स्टैंफोर्ड विश्वविद्यालय के नेतृत्व में की गई यह स्टडी साइंस एडवांसेज़ में प्रकाशित हुई है। नाइट्रोज़न के ऑक्साइड – जो कि वाहनों और बिजलीघरों से निकलते हैं – किस तरह खेती को प्रभावित करते हैं यह जानने के लिये पहली बार सैटेलाइट तस्वीरों का प्रयोग किया गया।
उत्सर्जन निरोधी उपकरण लगाने के लिये दो साल की ढील और चाहता है बिजली मंत्रालय
भारत के बिजली मंत्रालय ने कोयला बिजली घरों में उत्सर्जन निरोधी उपकरण लगाने की समय सीमा दो साल और बढ़ाने की मांग की है। इन उपकरणों को लगाने के लिये तीसरी बार समय सीमा आगे बढ़ाने की मांग की गई है। दुनिया के कुछ सबसे प्रदूषित शहर भारत में हैं। यहां कुल बिजली उत्पादन का 75% कोयले से होता है और औद्योगिक प्रदूषण में 80% हिस्सा कोयला बिजलीघरों से होने वाला प्रदूषण है।
मंत्रालय ने एक बार फिर सल्फर जैसे प्रदूषकों को रोकने की टेक्नोलॉजी लगाने के लिये बिजलीघरों को और समय देने की मांग की है। अब तक यह काम न हो पाने के पीछे कोरोना महामारी के कारण पैदा हालात को एक वजह बताया है। जानकार कहते हैं कि स्पष्ट रूप से यह प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में सरकार की कथनी और करनी का अंतर दिखाता है।
करीब 98% महाराष्ट्र वायु प्रदूषण की गिरफ्त में
विश्व बैंक की एक नई स्टडी में महाराष्ट्र के दुनिया के सबसे प्रदूषित सब-नेशनल क्षेत्रों में की सूची में तीसरे नंबर पर रखा है। राज्य की 97.6% जनसंख्या हानिकारक या असुरक्षित स्तर वाली प्रदूषित हवा (विशेषरूप से पीएम 2.5 एरोसॉल) में सांस ले रही है।
अंग्रेज़ी अख़बार हिन्दुस्तान टाइम्स ने विश्लेषकों के हवाले से बताया है कि महाराष्ट्र के तटीय इलाकों के मुकाबले भीतरी हिस्सों में प्रदूषण बहुत ज़्यादा है क्योंकि वहां काफी तेज़ी से औद्योगिकीकरण हो रहा है। मध्य महाराष्ट्र और विदर्भ के इलाके में कठिन सर्दियां होती हैं और इस दौरान प्रदूषण का स्तर बढ़ता है। अगले कुछ हफ्ते में महाराष्ट्र सरकार की 47 नये एयर क्वॉलिटी मॉनिटर लगाने की योजना है।
एनजीटी ने अडानी के ताप बिजलीघर पर लगाया जुर्माना
अडानी ग्रुप के कर्नाटक स्थित उडुपी पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल) ताप बिजलीघर पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 52 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है। एनजीटी ने पाया कि यह प्लांट पर्यावरण और आसपास रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य को नुकसान कर रहा है। एनजीटी ने यह भी पाया कि प्रदूषण मॉनिटरिंग से छेड़छाड़ की गई है। अदालत ने अधिकारियों को इस मामले में उचित कदम उठाने के कहा है। मुआवजे की इस रकम का इस्तेमाल “पानी सप्लाई के लिये पर्यावरणीय ढांचे में सुधार, सीवेज, एसटीपी और ठोस कचरा प्रबंधन” के लिये किया जायेगा। यूपीसीएल ने 5 करोड़ की रकम अंतरिम आदेश के बाद जमा कर दी थी और बाकी का जुर्माना उसे 3 महीनों में देना होगा।
एनजीटी ने इस बारे में एक संयुक्त कमेटी का भी गठन किया जो कि कृषि और बागवानी विभाग के निदेशक और डिप्टी कमिश्नर के साथ सीपीसीबी के वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं। यह कमेटी जांच करेगी कि प्लांट से प्रदूषण का दस किलोमीटर के दायरे में खेती पर क्या प्रभाव पड़ा है।
साल 2016-17 में साफ ऊर्जा क्षेत्र में भारत की सब्सिडी 16312 करोड़ रुपये के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थी। उसके बाद अब अब 59% गिरावट के साथ यह 6767 करोड़ पर है। यह बात दिल्ली स्थित काउंसिल ऑन एनर्जी, इन्वॉयरेंमेंट एंड वॉटर यानी सीईईडब्लू और इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट (आईआईएसडी) के अध्ययन में सामने आई है। इसके पीछे कोरोना महामारी से हुई मन्दी (डेवलपमेंटल स्लोडाउन) ज़िम्मेदार है। इस दौरान सौर और पवन ऊर्जा की कीमतें भी पास आईं।
साफ ऊर्जा के मुकाबले जीवाश्म ईंधन में (2014 से 2021 के बीच) सब्सिडी 72% गिरकर 68,226 करोड़ हो गई। शोधकर्ताओं के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2020-21 में सरकार ने एनर्जी सेक्टर को कुल 5,40,00 करोड़ की मदद दी जिसमें 2,18,000 करोड़ की मदद सब्सिडी के तौर पर दी गई। इस बीच वित्त वर्ष 2016-17 से अब तक विद्युत वाहनों पर सब्सिडी बढ़कर तीन गुना हो गई है।
भारत 2026 तक 81 ताप बिजलीघरों को कोयले से साफ ऊर्जा आधारित बनायेगा
भारत के बिजली मंत्रालय ने 81 ऐसी थर्मल पावर यूनिट्स की पहचान की है जहां अभी कोयले से बिजली बनाई जा रही है लेकिन 2026 तक यही संयंत्र साफ ऊर्जा पर चलने लगेंगे। इनमें सरकारी बिजली कंपनी एनटीपीसी के बिजलीघरों के अलावा निजी कंपनियों टाटा पावर, अडानी और हिन्दुस्तान पावर आदि के संयंत्र शामिल हैं। अंग्रेज़ी अख़बार बिजनेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक केंद्र, राज्य और निजी बिजलीघरों में 58,000 मिलियन यूनिट पावर उत्पादन क्षमता को कोयले से साफ ऊर्जा पर लाया जायेगा। इसके लिये 30 हज़ार मेगावॉट साफ बिजली उत्पादन क्षमता की ज़रूरत पड़ेगी। मंत्रालय का अनुमान है कि इस कदम से 34 मिलियन टन कोयला बचेगा और 60.2 मिलियन मीट्रिक टन कार्बन इमीशन कम होगा।
भारत में बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा की औसत लागत में 19% की वृद्धि हुई, 2022 की पहली तिमाही में सौर आयात 374% बढ़ा
मेरकॉम के एक विश्लेषण के अनुसार, बड़े पैमाने पर सौर परियोजनाओं को स्थापित करने की औसत लागत 2022 की पहली तिमाही में 19% बढ़कर 56,0512 डॉलर प्रति मेगावाट हो गई, जो पिछले साल इसी अवधि में 47,1603 डॉलर थी। भारत ने 2021 की पहली तिमाही में 2.7 गीगावॉट बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा स्थापित की। चीन-आयातित पॉलीक्रिस्टलाइन मॉड्यूल का औसत बिक्री मूल्य (एएसपी) पिछले साल की तुलना में 25% बढ़ गया। इसी तरह, चीनी मोनो पीईआरसी मॉड्यूल के औसत बिक्री मूल्य में 2021 की पहली तिमाही की तुलना में 20% वृद्धि हुई। भारतीय पॉलीक्रिस्टलाइन मॉड्यूल के औसत बिक्री मूल्य में पिछले वर्ष की तुलना में 26% की वृद्धि हुई, और भारतीय मोनो पीईआरसी मॉड्यूल के औसत बिक्री मूल्य में भी 2021 की पहली तिमाही की तुलना में 20% की वृद्धि हुई, मेरकॉम ने बताया। विशेषज्ञों का अनुमान है कि कुल परियोजना लागत में वृद्धि होगी क्योंकि भारतीय मॉड्यूल निर्माता मुख्य रूप से अपने मॉड्यूल के लिए चीनी सेल पर निर्भर हैं।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत ने 2022 की पहली तिमाही में 1.23 बिलियन डॉलर के सोलर सेल और मॉड्यूल का आयात किया, जो पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 374% अधिक है। आयात मुख्य रूप से भारतीय सौर डेवलपर्स के बड़ी मात्रा में मॉड्यूल के संग्रहण के कारण बढ़ा। 1 अप्रैल को सौर सेल और मॉड्यूल पर मूल सीमा शुल्क (बीसीडी) प्रभावी होने के पहले लगभग 10 गीगावॉट मॉड्यूल का संग्रहण किया गया। बीसीडी के प्रभावी होने के बाद मॉड्यूल की लागतों में 40% की वृद्धि हुई, जिससे बचने के लिए संग्रहण किया गया था, मेरकॉम ने बताया।
ऊर्जा संक्रमण पैनल स्थापित करें: बिजली मंत्री ने राज्यों से कहा
भारत के बिजली मंत्री आर के सिंह ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कहा है कि ऊर्जा संक्रमण के लिए संचालन समितियों का गठन करें और ऊर्जा उत्पादन मिश्रण में नवीकरणीय ऊर्जा का भाग बढ़ाने के लिए मिलकर काम करें।
ऊर्जा मंत्री ने कहा कि ऊर्जा दक्षता को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए और बायोमास और हरित हाइड्रोजन का उपयोग बढ़ाना चाहिए। सिंह ने कहा कि राज्यों को वित्तीय सहायता सीमित करके 2024 तक कृषि में डीजल के उपयोग को समाप्त करना चाहिए, और पीएम-कुसुम कार्यक्रम के तहत कृषि फीडरों के लिए सौर ऊर्जा को अपनाने के लिए पुर्नोत्थान वितरण क्षेत्र योजना का लाभ लिया जा सकता है।
आंध्र प्रदेश, केरल, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों में पहले से ही ऐसी समितियां हैं। विद्युत, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा विभाग, परिवहन उद्योग, आवास एवं शहरी मामले, कृषि, ग्रामीण विकास एवं लोक निर्माण विभाग के प्रमुख सचिव प्रस्तावित समितियों के सदस्य होंगे।
बैटरी वाहनों में आग की बढ़ती घटनाओं और कमज़ोर क्वालिटी के सेल (जिनके कारण आग की घटनायें होती हैं) के इस्तेमाल को देखते हुये अब एक नया बदलाव हो सकता है। सूत्रों के मुताबिक उपभोक्ता मामलों का मंत्रालय जल्द ही विद्युत वाहनों को चलाने वाली बैटरियों के लिये बीआईएस (ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड) मानकों की घोषणा कर सकता है। सीएनबीसी – टीवी 18 ने सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि पहले ये मानक और गाइडलाइन दुपहिया वाहनों की बैटरी के लिये लागू होंगे जिनमें बैटरी के आकार, कनेक्टर, सेल की न्यूनतम क्वॉलिटी और क्षमता आदि शामिल होगी।
चीन में लीथियम की कमी से विश्व बाज़ार में लीथियम-ऑयन बैटरियों की सप्लाई पर असर
विद्युत वाहनों की बैटरी बनाने के लिये लीथियम की मांग विश्व बाज़ार में बढ़ती जा रही है। हर कोई इस जादुई धातु की तलाश में है। फिलहाल इसकी बढ़ती मांग और कम सप्लाई के बीच का अंतर विश्व बाज़ार में लीथियम-आयन बैटरियों की किल्लत पैदा कर रहा है। चीन दुनिया की कुल 80% कार बैटरियां बनाता है और अभी वहां लीथियम की कमी से इन बैटरियों के निर्माण की रफ्तार पर असर पड़ा है। इस बीच लीथियम की कीमतों में भी 500% का उछाल आया है और इसका असर इलैक्ट्रिक वाहनों की कीमत पर पड़ेगा। अनुमान है कि इस कारण हर कार की कीमत 1000 डालर तक बढ़ सकती है।
कोल इंडिया ने इरादा जताया है कि वह जल्दी ही ओडिशा में कोयला खदान शुरु करेगा जो कि कुछ ही सालों में देश की सबसे अधिक उत्पादन करने वाली खान बनेगी। कोल इंडिया ने यह बात समाचार एजेंसी रॉयटर से बातचीत में कही है। इस साल के कोयला और बिजली संकट के बीच देश की सरकारी कंपनी कोल इंडिया ने कहा है कि वह पूर्वी ओडिशा में खदान खोलेगा जो अगले 5 से 7 साल के भीतर 5 करोड़ टन सालाना कोयले का उत्पादन करने लगेगी। भारत की कुल बिजली उत्पादन क्षमता अभी 400 गीगावॉट से अधिक है और इसमें से 110 गीगावॉट साफ ऊर्जा है। यह एक सवाल है कि सरकार का कोयला उत्पादन बढ़ाने का फैसला उसके इमीशन को कई गुना बढ़ायेगा जबकि उसने उत्सर्जन कम करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखे हैं। भारत ने 2030 तक 450 गीगावॉट साफ ऊर्जा के संयंत्र लगाने का वादा किया है।
देश के बाहर चीनी मदद से बनने वाले 15 कोल पावर प्रोजेक्ट्स रद्द लेकिन इरादों में अस्पष्टता बरकरार
क्या चीन अब देश के बाहर लगने वाले कोल पावर प्लांट्स से दूर रहेगा? यह सवाल ऊर्जा और पर्यावरण विशेषज्ञों को उलझाता रहा है लेकिन सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (क्रिया) का विश्लेषण कहता है कि चीन की मदद से बन रहे 15 निर्माण पूर्व प्रोजेक्ट या तो ठंडे बस्ते में चले गये हैं या रद्द कर दिये गये हैं।
देश के चार केंद्रीय मंत्रालयों के संयुक्त बयानों को सावधानी से पढ़ने पर क्रिया ने पाया कि सरकारी वादे के मुताबिक आने वाले दिनों में इनके 15 के अलावा अन्य 45 प्रोजेक्ट्स पर पुनर्विचार होगा जिनमें से करीब 70 प्रतिशत प्रोजेक्ट रद्द हो जायेंगे। चीन ने पिछले साल वादा किया था कि वह देश के बाहर किसी कोल प्रोजेक्ट में मदद नहीं करेगा लेकिन क्रिया का विश्लेषण यह भी कहता है कि नई घोषणा और कुछ प्रोजेक्ट के रद्द होने के बावजूद दस्तावेजों में अस्पष्टता बरकरार है जिसकी मदद से चीन कोयले में लगा रह सकता है।