Vol 1, May 2022| ग्लेशियरों के लिये कठिन है ग्लोबल वॉर्मिंग से उबरना

Newsletter - May 20, 2022

लू की मार - पूरे भारत में भीषण हीटवेव से हाल बेहाल है। दिल्ली और उत्तर प्रदेश में कई जगह तापमान 49 डिग्री पार कर गया। फोटो - DNA India

हीटवेव की मार, पारा 49 डिग्री के पार पहुंचा

भारत पिछले कुछ हफ्तों से भयानक हीटवेव की मार झेल रहा है। मौसम विभाग की घोषणा के हिसाब से गुरुवार को देश में हीटवेव का दूसरा दौर शुरू हो गया। इससे पहले   दिल्ली और उत्तर प्रदेश में तापमान 49 डिग्री सेंटीग्रेड और उससे ऊपर तक चले गये। हिमाचल प्रदेश,  हरियाणा, जम्मू, कश्मीर, लद्दाख और बिहार में तापमान सामान्य से 5.1 डिग्री तक अधिक रहा। जयपुर में रविवार को न्यूनतम तापमान सामान्य से 7 डिग्री ऊपर था।   गुजरात में गर्मी के कारण पेड़ों से पक्षियों के बेहोश होकर गिरने की ख़बर आईं।  

दक्षिण भारत के तटीय राज्यों में भारी बारिश 

देश में भीषण गर्मी के बीच प्रायद्वीप के इलाकों में भारी बारिश की ख़बर है।  केरल ने पांच ज़िलों में रेड अलर्ट जारी किया है। आईएमडी यानी मौसम विभाग ने राज्य में 27 मई तक जल्द मॉनसून के आने की घोषणा की है। आईएमडी के वरिष्ठ वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसा चक्रवाती तूफान असानी और करीम के कारण हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बैठक कर अधिकारियों से हीट एक्शन प्लान पर काम करने को कहा और साथ ही मॉनसून से पहले बाढ़ से निपटने की तैयारी को लेकर भी। 

अगले 5 साल में टूटेगा 1.5 डिग्री तापमान वृद्धि का बैरियर 

जिसे अब तक एक हौव्वा कहा जा रहा है वह कड़वी और भयानक सच्चाई अब एक हकीकत बनकर हमारे सामने आ गई है। कुछ साल पहले तक कहा जा रहा था कि साल 2050 या 2040 तक धरती का तापमान डेढ़ डिग्री की लक्ष्मण रेखा को पार करेगा जो दुनिया में तबाही की घंटी है लेकिन अब यह अगले कुछ ही सालों में होता दिख रहा है। जी हां, विश्व मौसम संगठन यानी डब्लू एम ओ ने कहा है कि इस बात की 50:50 संभावना है कि अगले 5 साल में धरती का तापमान 1.5 डिग्री की तापमान वृद्धि हासिल कर ले। ये क्लाइमेट अपडेट है कि डब्लू एम ओ का।

इस बात की 93 प्रतिशत संभावना है कि अगले पांच साल का औसत तापमान पिछले पांच साल के औसत तापमान से अधिक होगा।

इस बात की भी 93 प्रतिशत संभावना है कि अगले पांच साल में से एक साल ऐसा होगा जो 2016 के सबसे अधिक गर्म होने के रिकॉर्ड को तोड़ देगा।

धरती के इस अस्थाई तापमान वृद्धि की कुछ साल पहले तक 10 प्रतिशत संभावना बताई जा रही थी जो अब 50 प्रतिशत हो गई है। 

ग्लेशियरों के लिये ग्लोबल वॉर्मिंग से उबरना होता जा रहा है कठिन: शोध 

नया वैज्ञानिक शोध बताता है कि हिमनदों के लिये ग्लोबल वॉर्मिंग के प्रभाव से उबरना कहीं अधिक कठिन होगा। स्टॉकहोम विश्वविद्यालय और यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के वैज्ञानिकों ने अपनी रिसर्च में कहा है कि ग्रीनलैंड जैसे इलाकों में बर्फ की दीवार (आइस शेल्फ) अगर बढ़ते तापमान के कारण टूट जाती है तो वह फिर दोबारा खड़ी नहीं हो सकती चाहे ग्लोबल वार्मिंग रुक भी जाये।

अंतराष्ट्रीय विज्ञान जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित इस शोध के मुताबिक यह आइस शेल्फ, ध्रुवीय बर्फ की चादरों को होनी वाली क्षति को भी कम करती हैं। वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि ग्लेशियरों की बर्फ अब पहले के मुकाबले 30% अधिक पिघल रही है।  भारत के लिये यह शोध विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां के हिमालयी क्षेत्र में 10 हज़ार से अधिक छोटे-बड़े ग्लेशियर हैं। इस ख़बर को यहां विस्तार से पढ़ा जा सकता है। 

धरती के CO2  स्तर रिकॉर्ड ऊंचाई पर 

CO2 उत्सर्जन के मासिक औसत स्तर रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गये। 420 पार्ट प्रति मिलियन (पीपीएम)। इन्हें हवाई की मउना लोआ यूनिवर्सिटी की वेधशाला में दर्ज किया गया। वैज्ञानिक क्लाइमेट संकट को काबू में रखने के लिये इन स्तरों को 350 पीपीएम के स्तर पर रखने की अपील करते रहे हैं। पिछले साल उच्चतम स्तर 419.13 पीपीएम था जो मई में रिकॉर्ड किया गया था। 

अंतर्राष्ट्रीय मानक स्थापित करने और रेत खनन को रेग्युलेट करने के लिये कानूनी फ्रेमवर्क तैयार करने की सलाह दी गई है। Photo: pixabay

रेत का इस्तेमाल समझदारी से होना चाहिये: UNDP

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनडीपी) की एक विशेष रिपोर्ट में अपील की गई है कि रेत को “रणनीतिक संसाधन” घोषित किया जाये ताकि उसका इस्तेमाल समझदारी के साथ हो। रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे रेत दुनिया का दूसरा सबसे अधिक उपयोग में आने वाला संसाधन है और कैसे जैव विविधता बनाये रखने और पारिस्थितिक सेवाओं में इसका योगदान है। रिपोर्ट में कहा गया है कि समुद्र तटों से रेत निकालने पर प्रतिबन्ध होना चाहिये क्योंकि तट की सुरक्षा में इसका बड़ा योगदान है। रिपोर्ट में इसे लेकर अंतर्राष्ट्रीय मानक स्थापित करने और रेत खनन को रेग्युलेट करने के लिये कानूनी फ्रेमवर्क तैयार करने की सलाह दी गई है। 

मैक्सिको की खाड़ी और अलास्का में बाइडेन ने 3 तेल और गैस के अनुबंध रद्द किये

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने मैक्सिको की खाड़ी और सुदूर अलास्का तट पर तीन तेल और गैस से जुड़े प्रोजेक्ट रद्द कर दिये हैं। व्हाइट हाउस ने कहा कि उद्योगों द्वारा अलास्का तट पर ड्रिलिंग को लेकर कोई दिलचस्पी न दिखाये जाने और मैक्सिको खाड़ी में कोर्ट के आदेश के कारण यह प्रोजेक्ट रद्द किये गये हैं।  यह फैसला एक ऐसे समय पर हुआ है जब यूक्रेन-रूस  जंग के कारण अमेरिका में गैस के बाद रिकॉर्ड ऊंचाई परहैं। 

हिमाचल में वृक्षारोपण कार्यक्रमों में आधा पैसा होता है व्यर्थ 

एक विश्लेषण में यह बात सामने आई है कि हिमाचल प्रदेश में ट्री प्लांटेशन मुहिम में जो धन खर्च होता है उसमें से आधा पैसा तो व्यर्थ चला जाता है। यह विश्लेषण भारत के वन लगाने के कार्यक्रमों के डिज़ाइन और क्रियान्वयन पर सवाल खड़े करती है। यह विश्लेषण इसलिये भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अपने क्लाइमेट लक्ष्यों को हासिल करने की रणनीति में वन लगाना भारत का एक प्रमुख कदम है।

प्रदूषण की चोट - लांसेट की नई रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 में भारत में प्रदूषण से रिकॉर्ड लोगों की मौत हुई। फोटो - Pixabay

भारत में प्रदूषण से सबसे अधिक मौतें 2019 में हुईं: लांसेट

लांसेट की ताज़ा रिपोर्ट कहती है कि दुनिया की हर 6 में से एक मौत के पीछे प्रदूषण है। प्रदूषण और स्वास्थ्य पर लैंसेट की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2019 में भारत में 16.7 लाख लोगों की मौत के पीछे वायु प्रदूषण एक कारण था। यह किसी भी देश में  वायु प्रदूषण से जुड़ी मौतों की सबसे अधिक संख्या है।  रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साल (2019) दुनिया में 90 लाख मौतों के लिये वायु प्रदूषण ज़िम्मेदार था। यह कुल संख्या 2015 से इतनी ही है। 

हवा में आउटडोर प्रदूषण करीब 45 लाख मौतों का कारण बना जबकि 17 लाख लोगों की मौत हानिकारक रासायनिक प्रदूषकों से और 9 लाख लोगों की जान लेड प्रदूषण के कारण हुई। भारत में जो 16.7 लोग वायु प्रदूषण का शिकार हुये उनमें से अधिकांश – 9.8 लाख – की मौत पीएम 2.5 के कारण हुई और 6.1 लाख लोग इनडोर पॉल्यूशन का शिकार हुये। 

रिपोर्ट इस बात की ओर इशारा करती है कि भारत में गंगा के मैदानी क्षेत्र में प्रदूषण सबसे अधिक भयानक है। दिल्ली के अलावा दूसरे सबसे प्रदूषित शहर इस इलाके में हैं।  बायो मास का जलाना भी इस क्षेत्र में प्रदूषण के बड़े कारणों में है। 

एरोसॉल इमीशन में कटौती से चक्रवाती तूफानों की सक्रियता प्रभावित हुई?  

अक्सर ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन बढ़ने से हीटवेव, सूखा, बाढ़ और चक्रवाती तूफानों की मार बढ़ने संबंधी रिसर्च सामने आती है लेकिन यह भी पता लग रहा है कि औद्योगिक प्रदूषण के साथ एरोसॉल इमीशन को कट करने से भी साइक्लोन अधिक विनाशकारी हो सकते हैं। अमेरिका की नेशनल ओशिनिक एंड एटमॉफियरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) के ताज़ा अध्ययन के मुताबिक पूरी दुनिया में चक्रवाती तूफान कितने सक्रिय होंगे यह औद्योगिक शूट  ( यानी एरोसॉल या नमी युक्त प्रदूषण) की मात्रा में कमी या बढ़ोतरी से भी तय होता है।  

साइंस में प्रकाशित इस रिसर्च में कहा गया है कि एरोसॉल वातावरण में एक परावर्ती कवच बनाते हैं जो कि वॉर्मिंग को धरती की सतह तक आने से रोकते हैं। यूरोप और उत्तरी अमेरिका में 1980 और 2020 के बीच वातावरणीय एरोसॉल में 50% की कमी हुई और इसी दौरान यहां चक्रवाती तूफानों की मार 33% अधिक हुई।  वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसे अध्ययन क्लाइमेट को लेकर एक समग्र नीति बनाने में मददगार हो सकते हैं क्योंकि यह अनअपेक्षित पहुलुओं की ओर ध्यान खींच रहे हैं। 

वायु प्रदूषण रोक कर अमेरिका में बचती 50,000 लोगों की जान और सालाना 60,000 करोड़ डॉलर 

एक नये अमेरिकी अध्ययन में यह बात सामने आई है कि बिजली क्षेत्र से जुड़े वायु प्रदूषण करने वाले इमीशन कम करके सरकार  50 हज़ार लोगों की जान बचा सकती थी और इससे प्रतिवर्ष  60,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के बराबर क्षति को टाला जा सकता था। यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कन्सन-मेडिसन  के अध्ययन में बताया गया है कि बिजली उत्पादन, ट्रांसपोर्ट, उद्योगों और निर्माण की गतिविधियों से हवा में प्रवेश करने वाले खतरनाक महीन कणों को रोकने से स्वास्थ्य के लिये क्या लाभ हो सकते हैं। इन गतिविधियों से भारी मात्रा में CO2 भी वातावरण में आता है क्योंकि इनमें जीवाश्म ईंधन का प्रयोग किया जाता है। इस बीच अमेरिका के जस्टिस डिपार्टमेंट ने कहा है कि वहां जलवायु संकट और खतरनाक प्रदूषण के खिलाफ कानूनों को लागू करने के लिये नया दफ्तर खोला जायेगा। 

मंत्रालय ने सिफारिश की है कि यह शुल्क 192.82 डॉलर प्रति टन से 302.65 डॉलर प्रति टन के बीच रखा जाए। Photo: PV Magazine

चीनी सोलर ग्लास पर एंटी-डंपिंग शुल्क 2 साल के लिए बढ़ाएगा भारत

वाणिज्य मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले व्यापार उपचार महानिदेशालय (डीजीटीआर) ने घरेलू उत्पादकों को सस्ते आयात से बचाने के लिए चीनी सोलर ग्लास पर एंटी-डंपिंग शुल्क दो साल तक जारी रखने की सिफारिश की है। टेक्सचर्ड टेम्पर्ड कोटेड और अन-कोटेड ग्लास पर यह शुल्क जारी रखने का सुझाव दिया गया है।

मंत्रालय ने सिफारिश की है कि यह शुल्क 192.82 डॉलर प्रति टन से 302.65 डॉलर प्रति टन के बीच रखा जाए। इस शुल्क को लगाने का अंतिम निर्णय वित्त मंत्रालय लेता है। डीजीटीआर ने जांच में पाया कि चीन सोलर ग्लास को सामान्य से कम कीमतों पर भारत में निर्यात कर रहा है जिसके परिणामस्वरूप डंपिंग लगातार जारी है।

भारत ने सौर विनिर्माण इकाइयों के लिए पीएलआई योजना में सुधार किया, एसईसीआई करेगी कार्यान्वयन

सरकार ने देश में उच्च दक्षता वाले सौर मॉड्यूल के निर्माण के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजना के दूसरे भाग को लागू करने के लिए मसौदा दिशानिर्देश जारी किए हैं। सरकार ने कंपनियों के लिए पॉलीसिलिकॉन, वेफर्स, सेल और मॉड्यूल की लंबवत-एकीकृत क्षमता स्थापित करने के लिए 1.54 बिलियन डॉलर आरक्षित किए हैं। मेरकॉम की रिपोर्ट के अनुसार 2022-23 के बजट में 45 बिलियन डॉलर के अलावा, 2.51 बिलियन डॉलर के अतिरिक्त आवंटन की घोषणा की गई थी, ताकि पॉलीसिलिकॉन से सोलर मॉड्यूल तक विनिर्माण इकाइयों को पूरी तरह से एकीकृत कर सौर मॉड्यूल्स के लिए बड़ा मैन्युफैक्चरिंग बेस बनाया जा सके।

पीएलआई कार्यक्रम की कार्यान्वयन एजेंसी भारतीय सौर ऊर्जा निगम होगी। पहले भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी इस कार्यक्रम की कार्यान्वयन एजेंसी थी। एसईसीआई के पास आवेदकों की निर्माण इकाइयों और कार्यालयों का निरीक्षण करने का अधिकार होगा। बोली लगाने के लिए अर्हता प्राप्त करने हेतु आवेदक को न्यूनतम 1 गीगावाट की निर्माण इकाई स्थापित करनी होगी।

भारत में हरित हाइड्रोजन अंगीकरण का लक्ष्य होगा विलंबित: आईसीआरए

रेटिंग एजेंसी आईसीआरए का कहना है कि दुनिया भर में कीमतों के हालिया उछाल से भारत के हरित हाइड्रोजन की खपत के लक्ष्य को पूरा करने में देरी हो सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत समेत दुनिया भर में हरित हाइड्रोजन अपनाने का अभियान इस बात पर निर्भर है कि 2030 तक इलेक्ट्रोलाइज़र्स की लागत 50% घटकर 2-3 डॉलर प्रति किलोग्राम तक पहुंच जाएगी

आईसीआरए के रिसर्च और आउटरीच के प्रमुख रोहित आहूजा ने ईटी को बताया कि भू-राजनीतिक व्यवधानों के चलते धातु की कीमतों में हालिया उछाल के कारण इलेक्ट्रोलाइजर्स की मौजूदा विनिर्माण लागत में जो कमी अपेक्षित थी वह अब 2030 के करीब हो सकती है। 

भारत की अक्षय ऊर्जा क्षमता में 60 गीगावाट की वृद्धि और इलेक्ट्रोलाइज़र निर्माण सुविधाओं में निवेश को ध्यान में रखते हुए, हरित हाइड्रोजन का उत्पादन बढ़ाने के लिए लगभग 4 लाख करोड़ रुपए के कुल निवेश की आवश्यकता हो सकती है। भारत में कुल हाइड्रोजन उत्पादन में हरित हाइड्रोजन की हिस्सेदारी मौजूदा शून्य से 2030-50 तक 30 से 80 प्रतिशत तक बढ़ने की उम्मीद है। साथ ही कुल खपत में मौजूदा 6 मिलियन मीट्रिक टन से चार से पांच गुना की वृद्धि के साथ लगभग 30 एमएमटी होने की उम्मीद है।

शोध: भारत की सौर क्षमता में 2021 में 10 गीगावाट की वृद्धि हुई

मेरकॉम ने एक शोध में बताया है कि 2021 के दौरान देश में सौर प्रतिष्ठानों की स्थापना में रिकॉर्ड 210 प्रतिशत की वृद्धि के साथ सौर क्षमता में 10 गीगावाट की बढ़ोत्तरी हुई। शोध में कहा गया है कि 2020 में हरित क्षमता वाले प्रतिष्ठान 3.2 गीगावाट तक पहुंच गए। 

कुल प्रतिष्ठानों में 83 प्रतिशत हिस्सा यूटिलिटी-स्केल परियोजनाओं का रहा और इन परियोजनाओं के शीर्ष दस डेवलपर्स ने 2021 में कुल स्थापित प्रतिष्ठानों ने 68 प्रतिशत का योगदान दिया। अधिकतम परियोजनाएं रिन्यू पावर ने नियुक्त कीं और दूसरा स्थान अडानी ग्रीन का रहा।

2022 में नई अक्षय क्षमता में वृद्धि दोगुनी हो गई। भारत ने पिछले वित्तीय वर्ष में केवल 7.7 गीगावाट के मुकाबले वित्त वर्ष 2021-22 में 15.5 गीगावाट गैर-हाइड्रो नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित की। 13.9 गीगावाट के साथ कुल क्षमता में सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी लगभग 90% है।

इलेक्ट्रिक वाहनों से शोर कम होता है और इससे सफारी यात्रियों को जानवरों को देखने में आसानी होगी। |Photo: Go2Africa

केन्या अपने राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों में केवल ईवी का प्रयोग करेगा

केन्या की सरकार ने लक्ष्य रखा है कि 2030 तक उनके राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों में केवल इलेक्ट्रिक वाहन प्रयोग में लाए जाएंगे ताकि वातावरण पर वाहनों के प्रभाव को कम किया जा सके। यह निर्णय इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि केन्या अब स्थायी पर्यटन वैश्विक केंद्र का संस्थापक सदस्य है। इस कदम से स्थानीय उपयोग में लाए जाने वाले विमानों और कारों पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ने की उम्मीद है। कई लोगों ने इस घोषणा का स्वागत किया है क्योंकि इलेक्ट्रिक वाहनों से शोर कम होता है और इससे सफारी यात्रियों को जानवरों को देखने में आसानी होगी। वहीं कुछ ने चिंता व्यक्त की है कि उनके मौजूदा वाहनों को इलेक्ट्रिक में परिवर्तित करने पर कितना खर्च होगा। 2019 में इस तरह के पहले रूपांतरण पर ओल पेजेटा बुश कैंप ने 37,000 डॉलर खर्च किए थे।

कैलिफ़ोर्निया: नए सर्वेक्षण में 27% से अधिक सार्वजनिक ईवी चार्जर निष्क्रिय पाए गए

एक नई रिपोर्ट में पाया गया कि सैन फ्रांसिस्को बे क्षेत्र में सार्वजनिक रूप से उपलब्ध ईवी चार्जिंग स्टेशनों में से 27% से अधिक काम नहीं कर रहे थे। उनके कनेक्टर और/या स्क्रीन काम नहीं कर रहे थे और उनकी भुगतान प्रक्रिया और चार्ज इनीशिएशन प्रणाली भी ख़राब थी। यह अध्ययन यूसी बर्कले और गैर-लाभकारी संगठन कूल द अर्थ द्वारा किया गया। इसमें पाया गया कि ईवी सेवा प्रदाताओं के दावों के विपरीत, कार्यशील चार्जिंग स्टेशनों की उपलब्धता 95-98% से काफी कम है।  

हालांकि, रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अध्ययन में टेस्ला के चार्जर्स का मूल्यांकन नहीं किया गया था, जो आमतौर पर औसतन बेहतर स्थिति में पाए जाते हैं। 

इसके अलावा, कई ईवी मालिकों के पास घर पर, रेस्तरां में, कार्यालय परिसरों में और अन्य सार्वजनिक सुविधाओं पर अपने वाहनों को चार्ज करने का विकल्प होता है। जबकि गैसोलीन वाहन मालिकों के पास गैस स्टेशनों के अलावा कहीं और ईंधन भरने का कोई विकल्प नहीं होता। फिर भी, रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि यदि कैलिफ़ोर्निया को ई-मोबिलिटी की ओर अमेरिका की यात्रा का नेतृत्व जारी रखना है तो ईवी मालिकों की चिंताओं को दूर करने के लिए सार्वजनिक ईवी चार्जिंग स्टेशनों की उपलब्धता के स्तर में सुधार करना चाहिए।

भारत: ईवी में आग लगने के मामलों की प्रारंभिक जांच में बैटरी और मॉड्यूल्स में खराबी का पता चला है

हाल के सप्ताहों में देश भर में इलेक्ट्रिक वाहनों में आग लगने के कारणों का पता लगाने के लिए भारत द्वारा आदेशित प्रारंभिक संघीय जांच में पाया गया कि वाहनों की बैटरी, सेल और मॉड्यूल में खराबी थी। यह जांच ओकिनावा, प्योरईवी और ओला इलेक्ट्रिक वाहनों में लगी आग के मामलों पर बिठाई गई है। जांच में  बैटरी और ओला इलेक्ट्रिक की पूरी बैटरी प्रबंधन प्रणाली पर सवाल उठाए गए हैं। हालांकि ओला इलेक्ट्रिक खुद भी इन घटनाओं की जांच कर रही है, और उसने कहा है कि उसे अपनी बैटरी प्रबंधन प्रणाली में कोई समस्या नहीं मिली है। कंपनी के अनुसार ऐसा लगता है कि आग कुछ छिट-पुट मामलों तापीय स्खलन के कारण लगी होगी। कंपनी अपने बैटरी सप्लायर एलजी एनर्जी सॉल्यूशंस (दक्षिण कोरिया) के साथ भी एक जांच कर रही है। दूसरी ओर, प्योरईवी और ओकिनावा ने अभी तक इन निष्कर्षों का जवाब नहीं दिया है। लेकिन केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) ने सभी निर्माताओं को नोटिस दिया है। 

जापान को चेतावनी: इलेक्ट्रिक वाहनों की और तेजी से नहीं बढ़ने पर हो सकता है जीडीपी  में 14% का नुकसान

क्लाइमेट ग्रुप की एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि जापान अधिक ईवी निर्माण की दिशा में तेजी से नहीं बढ़ता तो उसे 2040 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद का 14%, और 1.72 मिलियन नौकरियों और मुनाफे में $6 बिलियन का नुकसान उठाना पड़ेगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकांश पश्चिमी बाजार — और चीन — अधिक बैटरी इलेक्ट्रिक वाहनों को बेचने और अपनाने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, जबकि जापान में प्रतिरोध मजबूत हो रहा है। यहां तक कि टोयोटा मोटर्स के सीईओ भी इस तकनीक के बारे में गलत सूचना फैला रहे हैं। जापान ने सीओपी26 2040 ऑल-इलेक्ट्रिक लक्ष्य पर भी हस्ताक्षर नहीं किए हैं।

हांलांकि, रिपोर्ट बताती है कि खोए हुए अवसर पुनः प्राप्त करने के लिए जापान हाइड्रोजन ईंधन सेल्स का समर्थन जारी रखने के बजाय, इस तकनीक को मिल रही सब्सिडी को समाप्त करना शुरू कर सकता है और (देश में उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स के इतिहास को देखते हुए) बैटरी निर्माण में निवेश कर सकता है।

पूरे यूरोपीय संघ की ऊर्जा खपत में 2030 तक (9% के वर्तमान लक्ष्य के बजाय) 13% की कमी की जाएगी। Photo: prothomalo.com

रूसी जीवाश्म ईंधन का आयात खत्म करने के लिए यूरोपियन कमीशन देगा 195 बिलियन यूरो

यूरोपियन कमीशन अगले सप्ताह अपने सदस्यों को रूसी जीवाश्म ईंधन आयात से बचाने के उपायों के मसौदे का अनावरण करेगा, जिसके तहत 195 बिलियन यूरो के निवेश का निर्धारण किया जाएगा। यह उपाय गैर-बाध्यकारी व्यवस्थाओं, यूरोपीय संघ के कानूनों और राष्ट्रीय सरकारों को दिए गए सुझावों का मिश्रण होंगे।  यूरोपियन कमीशन अपने विशाल कोविड -19 रिकवरी फंड के संसाधनों का उपयोग भी इस काम के लिए कर सकता है।

यह प्रतिक्रिया यूक्रेन में रूस के सैन्य हमले के विरोध में है। इसके लक्ष्यों के अंतर्गत यूरोपीय संघ नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी 2030 तक (वर्तमान 40% के बजाय) 45%  तक बढ़ाएगा, 2030 तक 10 मिलियन टन नवीकरणीय हाइड्रोजन का उत्पादन और अतिरिक्त 10 मिलियन टन का आयात किया जाएगा। बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा परियोजनाओं को शुरू किया जाएगा और पूरे यूरोपीय संघ की ऊर्जा खपत में 2030 तक (9% के वर्तमान लक्ष्य के बजाय) 13% की कमी की जाएगी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यूरोपीय संघ बड़े पैमाने पर सौर और पवन परियोजनाओं को स्थापित करने के लिए आवश्यक प्रशासनिक प्रक्रियाओं — जैसे पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन अध्ययन — का पालन करने की आवश्यकता में ढील देने पर विचार कर रहा है। 

हीटवेव से लड़ने के लिए भारत बंद कोयला खदानों को फिर से खोलेगा,  खनन के नियमों में दी जाएगी ढील

भारत सरकार ने अपने लड़खड़ाते बिजली संयंत्रों को ईंधन की आपूर्ति बढ़ाने के लिए 100 बंद कोयला खदानों को फिर से खोलने की मंजूरी दी है। सरकार ने बिजली अधिनियम की धारा 11 को भी लागू किया है, जिसके तहत देश के आयात-आधारित कोयला संयंत्रों को पूरी क्षमता से बिजली पैदा करनी होगी। यह उपाय भारत में भीषण गर्मी के बीच लागू किए गए हैं। अनुमान है कि गर्मी के कारण बिजली की मांग 200 गीगावाट तक बढ़ सकती है। यह कोयला खदानें बंद कर दी गई थीं क्योंकि उन्हें आर्थिक रूप से अव्यवहारिक माना जाता था। देश के बिजली मंत्री ने दोहराया है कि कोयला भारत के ऊर्जा मिश्रण को आगे बढ़ाने में एक प्रमुख भूमिका निभाएगा। 

राज्य सरकारों को भी अगले तीन वर्षों के लिए कोयला आयात करने का आदेश दिया गया है। उन खदानों के लिए देश के हरित नियमों में ढील दी जाएगी जिन्हें पहले से ही अपने उत्पादन को 40% तक बढ़ाने की अनुमति है। इससे वह अपने उत्पादन में अतिरिक्त 50% का विस्तार कर सकेंगे। नियमों में बदलाव अगले छह महीनों तक प्रभावी रहेंगे।

यूएसए: कैलिफ़ोर्निया ने 2045 तक कार्बन-न्यूट्रल होने, जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करने की योजना बनाई

कैलिफ़ोर्निया एयर रिसोर्सेज बोर्ड (CARB) ने जीवाश्म ईंधन पर राज्य की निर्भरता में भारी कटौती करने की योजना बनाई है, और कहा है कि उन्हें 2026 से पूरी तरह से इलेक्ट्रिक स्टोव, भट्टियों और अन्य उपकरणों को अपनाना होगा। यह योजना अभी शुरुआती चरणों में है, लेकिन इसका उद्देश्य राज्य को 2045 तक किसी भी अमेरिकी राज्य से तेज़ गति से कार्बन-न्यूट्रल बनाना है। हालांकि, वेस्टर्न स्टेट्स पेट्रोलियम एसोसिएशन ने ‘अधिक प्रतिबंध, शासनादेश और महंगे विनियमन’ के लिए योजना की आलोचना की है। वहीं पर्यावरणविदों ने प्राकृतिक गैस के उपयोग में विस्तार का सुझाव देने और कार्बन कैप्चर प्रौद्योगिकियों के लिए जगह बनाए रखने के लिए भी इसे लताड़ा है। 

बॉन्ड मार्केट है जीवाश्म ईंधन परियोजनाओं के वित्तपोषण का पिछला दरवाजा; चीन ने किया अधिक कोयले का समर्थन

सनराइज प्रोजेक्ट और उरगेवाल्ड सहित कई नागरिक सामाजिक संगठनों ने बताया है कि अंतरराष्ट्रीय बॉन्ड बाजार का उपयोग अभी भी प्रमुख जीवाश्म ईंधन परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए किया जा रहा है। यहां तक कि शेवरॉन, एक्सॉनमोबिल और सऊदी अरामको जैसी कंपनियों ने $491 बिलियन के वित्तपोषण के लिए इस ‘पिछले दरवाजे’ का प्रयोग किया है। कार्यकर्ताओं ने कहा कि बॉन्ड पर सबसे अधिक निर्भर कोयला बाजार है। जब प्रमुख बैंकों ने कोयले के लिए ऋण देना बंद किया तो बॉन्ड ने बैंक ऋण की तुलना में 2.5 गुना अधिक पूंजी उत्पन्न कर दी। यह व्यवस्था इतनी प्रभावी है कि यह भारत और चीन में पूंजी जुटाने का प्राथमिक स्रोत है, और कोयला कंपनियों ने पहले ही 2022 में 12 अरब डॉलर जुटा लिए थे, जो कि 2021 में 5 अरब डॉलर थे।

इसके अलावा, चीनी केंद्रीय बैंक ने ‘कोयले के स्वच्छ और कुशल उपयोग’ हेतु अपने ‘टारगेटेड रे-लेंडिंग कोटा’ को बढ़ाने के लिए $15.13 बिलियन (100bn युआन) के अतिरिक्त वित्तपोषण को मंजूरी दी है। यह वृद्धि राज्य परिषद द्वारा अनुमोदित की गई है। कोयले का सरकारी समर्थन बढ़कर $45.4 बिलियन (300 बिलियन युआन) तक हो गया है, जो चीनी मीडिया का दावा है कि राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा देने की दिशा में बीजिंग का कदम है।