Newsletter - February 14, 2022
हिन्द महासागर में समुद्री गर्म हवाओं के कारण मध्य भारत में मॉनसून की बारिश कम: रिसर्च
हिन्द महासागर के ऊपर तापमान में बहुत अधिक बढ़ोतरी मध्य भारत में कम बरसात का कारण बन रही है जबकि दक्षिण प्रायद्वीप में इसके कारण अधिक बारिश हो रही है। इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रिलॉजी के जलवायु परिवर्तन शोध विभाग की एक रिसर्च में यह बात सामने आई है। इस रिसर्च के मुताबिक 1982 से 2018 के बीच पश्चिमी हिन्द महासागर इलाके में समुद्री हीटवेट की संख्या 1.5 प्रति दशक की दर से बढ़ी है। बंगाल की खाड़ी के उत्तरी हिस्से में समुद्री हीटवेव की संख्या 0.5 प्रति दशक बढ़ी है।
शोध के मुताबिक इस दौरान पश्चिमी हिन्द महासागर क्षेत्र में 66 मरीन हीटवेव हुईं जबकि बंगाल की खाड़ी में कुल 94 हीटवेव दर्ज की गईं। यह स्टडी चेतावनी देती है कि आने वाले सालों में यह घटनायें और बढ़ेंगी। इस बीच एक अन्य अध्ययन में पाया गया है कि उत्तरी हिन्द महासागर में बहुत विनाशकारी चक्रवातों की संख्या बढ़ रही है। विशेष रूप से मई के महीने में।
कोरल रीफ के लिये 1.5 डिग्री की तापमान वृद्धि विनाशकारी होगी: अध्ययन
एक नये अध्ययन में यह बात पुष्ट हुई है कि दुनिया में बची हुई कोरल रीफ के लिये धरती की 1.5 डिग्री तापमान वृद्धि “विनाशकारी” होगी। अभी 84% कोरल रीफ उन जगहों पर हैं जहां वह समुद्री गर्म हवाओं का सामना कर सकती हैं। अध्ययन में चेतावनी दी गयी है कि अगर तापमान वृद्धि 1.5 तक हो गई तो यह प्रतिशत 0.2 रह जायेगा और 2 डिग्री की तापमान वृद्धि में तो सारे कोरल रीफ नष्ट हो जायेंगे।
ईएनएसओ परिवर्तनशीलता और वार्मिंग में वृद्धि के साथ समवर्ती क्षेत्रीय सूखे का बढ़ा जोखिम
नए शोध का अनुमान है कि 21वीं सदी के अंत तक “कंपाउंड ड्राउट” की संभावना 60% अधिक हो सकती है। शोधकर्ताओं ने हाई-एमिशन RCP8.5 परिदृश्य का उपयोग करते हुए, दस वैश्विक क्षेत्रों में, बोरियल गर्मी के दौरान मिश्रित सूखे के जोखिम में भविष्य के परिवर्तनों की जांच के लिए कई बड़े सिमुलेशन चलाए। उन्होंने पाया कि उत्तरी अमेरिका और अमेज़ॅन को सूखे के जोखिम में ‘अनुपातिक वृद्धि’ दिखाई देगी। उन्होंने कहा कि सूखे की आवृत्ति में वृद्धि से कृषि क्षेत्र और जनसंख्या पर गंभीर मिश्रित सूखे का खतरा नौ गुना अधिक होगा। यह अध्ययन मिश्रित सूखे के जोखिम में एल नीनो दक्षिणी दोलन की भूमिका का भी विश्लेषण करता है।
‘साइंस बेस्ड टार्गेट इनीशिएटिव’ कर रहा कंपनियों को झूठे वादों में मदद
एक नये विश्लेषण में पाया गया है कि ज़्यादातर बहुराष्ट्रीय कंपनियां – जिनके बारे में साइंस बेस्ड टार्गेट इनीशिएटिव (एसबीटीआई) ने कहा था कि वे तापमान वृद्धि को 1.5 से 2.0 डिग्री तक सीमित रखने के हिसाब से काम कर रही हैं – ग्लोबल वॉर्मिंग को काबू में रखने के लक्ष्य के मुताबिक नहीं चल रही हैं। न्यू क्लाइमेट इनीशिएटिव (एनसीआई) ने पाया है कि 18 में 11 बहुराष्ट्रीय कंपनियों का काम बहुत ही विवादित है क्योंकि वो जो तकनीक इस्तेमाल कर रही है उनका फायदा स्पष्ट नहीं है।
विश्लेषण के मुताबिर नेस्ले, आइका और यूनिलीवर जैसी बहुत सारी बड़ी कंपनियों की क्लाइमेट योजनाओ में “बहुत कम ईमानदारी” दिखती है। इससे पहले एसबीटीआई ने हज़ारों कंपनियों की कार्यशैली को वैश्विक जलवायु लक्ष्यों के अनुकूल पाया था। एनसीआई के मुताबिक यह कन्फिक्ट ऑफ इंटरेस्ट का मामला है क्योंकि जिन कंपनियों का मूल्यांकन एसबीटीआई करती है उनमें से कुछ एसबीटी की फंडिंग करती हैं।
एक्सट्रीम वेदर का अनुभव कर पर्यावरण के लिये लोगों की चिन्ता बढ़ाती है, ग्रीन वोटिंग के लिये रुझान भी
एक अध्ययन में पाया गया है कि यूरोप में क्लाइमेट चेंज को लेकर लोगों के निजी अनुभव उनमें पर्यावरण को लेकर “महत्वपूर्ण और बड़े” सरोकार जगाते हैं। तापमान में विसंगति,भीषण गर्मी और सूखा इन अनुभवों में शामिल है। इस अध्ययन में इस बात का विश्लेषण किया गया है कि एक्सट्रीम वेदर का अनुभव करके कैसे पर्यावरण के लिये लोगों का दृष्टिकोण बदलता है और यूरोप में इससे लोग ग्रीन पार्टियों के लिये वोट देने का मन बना रहे हैं।
लेकिन लोगों की सोच पर होने वाला यह असर यूरोप में अलग अलग जगहों पर अलग अलग है। विज्ञान पत्रिका नेचर में छपा शोध कहता है कि ठंडे इलाकों और समशीतोष्ण अटलांटिक क्लाइमेट में यह प्रभाव अधिक है और गर्म मेडिटिरेनियन इलाकों में कम। विरोधाभास यह है कि भारत में भले ही बढ़ते जलवायु प्रभाव महसूस किये जा रहे हों लेकिन यहां की एकमात्र राष्ट्रीय ग्रीन पार्टी समर्थन जुटाने में असफल रही है। अभी हो रहे महत्वपूर्ण विधानसभा चुनावों में पार्टी के पास न फंड है और न उसे उम्मीदवार मिल रहे हैं।
वैश्विक जैव विविधता लक्ष्य हासिल करने के लिये चाहिये कर्ज़ और न्यायोचित टैक्स व्यवस्था
एक नये अध्ययन में कहा गया है कि वैश्विक जैव विविधता लक्ष्यों को हासिल न कर पाने में सरकारी फंडिंग की कमी मुख्य वजह है और दक्षिण गोलार्ध के देशों में यह समस्या अधिक विकट है। इस स्टडी में टैक्स ढांचे में सुधार और कर्ज़ के लिये एक न्यायोचित व्यवस्था को ज़रूरी बताया गया है जिससे इस क्षेत्र में सरकारी फंडिंग बढ़े और हानिकारक वित्तीय प्रवाह को रोका जा सके। इस अध्ययन में कहा गया है कि “सिर्फ फंडिंग के गैप भरने की कोशिश से आगे बढ़ना चाहिये और जैव विविधता को हानि के निहित कारणों (राजनैतिक और आर्थिक) को संबोधित करने की कोशिश करनी चाहिये।”
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों से पहले किये गये एक सर्वे में 75 प्रतिशत लोगों को लगता है कि वायु प्रदूषण को एक चुनावी मुद्दा होना चाहिये। इंडिया स्टेट लेवल डिज़ीज़ बर्डन इनीशिएटिव के मुताबिक 2019 में करीब 2 लाख लोगों की मौत के पीछे वायु प्रदूषण एक कारण था। इस लिहाज से दिल्ली स्थित क्लाइमेट ट्रेंड और यूगव द्वारा यूपी के 6 शहरों में कराया गया यह सर्वे काफी अहम है। आगरा, मेरठ, लखनऊ, वाराणसी, गोरखपुर और कानपुर में कुल 1215 लोगों के बीच कराये गये सर्वे में 80 प्रतिशत लोगों को पता था कि देश के 15 सबसे प्रदूषित शहरों में 10 यूपी में हैं। लगभग आधे लोगों को एहसास था कि उनके शहर की हवा ख़राब है। करीब 87% लोगों का कहना था कि हरियाली बढ़ाने, ईवी के इस्तेमाल और साफ ऊर्जा के इस्तेमाल से हालात में आमबलचूल परिवर्तन की ज़रूरत है।
हरियाणा, यूपी, राजस्थान के उद्योगों को चेतावनी: 30 सितंबर तक स्वच्छ ईंधन का प्रयोग शुरू करें नहीं तो काम बंद
देश के सबसे बड़े राज्य यूपी में इस साल 30 सितंबर तक पीएनजी या बायोमास ईंधन का उपयोग शुरू करें, या बंद का सामना करें, यह चेतावनी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के भीतर स्थित हरियाणा, उत्तर प्रदेश (यूपी) और राजस्थान के सभी उद्योगों को जारी की गई है। वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने कहा कि संबंधित कंपनियों, एसोसिएशंस और राज्य सरकारों के साथ बातचीत के बाद यह निर्णय लिया गया है। सीएक्यूएम के आदेश में बताया गया है कि बड़ी संख्या में संघों (एसोसिएशंस), महासंघों (फेडरेशंस) और व्यक्तियों ने पीएनजी [पाइप्ड नेचुरल गैस] के अलावा बायोमास ईंधन के उपयोग की अनुमति के लिए अपने अनुरोध प्रस्तुत किए हैं, और कहा कि बायोमास आधारित ईंधन एचएसडी [हाई-स्पीड डीजल] और कोयला जैसे जीवाश्म ईंधनों की तुलना में पर्यावरण के अधिक अनुकूल हैं। पैनल ने अपने आदेश में तीनों राज्यों से कहा कि दिल्ली के उद्योग पहले ही पीएनजी आदि स्वच्छ ईंधनों को अपना चुके हैं।
चेन्नई में वायु प्रदूषण डब्ल्यूएचओ के मानकों से 5 गुना अधिक: ग्रीनपीस अध्ययन
ग्रीनपीस के एक अध्ययन में कहा गया है कि 2021 में चेन्नई की वायु गुणवत्ता का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन की सीमा से पांच गुना अधिक था। पीएम 2.5 के स्तर के लिए डब्ल्यूएचओ की वार्षिक सीमा 5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है। जबकि चेन्नई में नवंबर 2020 से नवंबर 2021 के बीच पीएम2.5 का वार्षिक औसत 27 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था। टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने बताया कि मनाली और कोडुंगैयूर टीएनपीसीबी स्टेशनों ने डब्ल्यूएचओ मानकों की तुलना में छह गुना अधिक पीएम 2.5 स्तर (30 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) दर्ज किया, जबकि पेरुंगुडी, रोयापुरम और वेलाचेरी के स्टेशनों ने तीन से चार गुना अधिक दर्ज किया। विशेषज्ञों ने बताया कि चेन्नई केंद्र सरकार की ‘मिलियन-प्लस सिटी’ योजना का हिस्सा है, जिसमें लगभग 30 शहर हैं। लेकिन यह योजना प्रदूषण के सटीक स्रोतों को चिन्हित नहीं करती है, बल्कि उन्हें आम तौर पर वाहनों, निर्माण या सड़क की धूल के रूप में वर्गीकृत करती है।
वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए एग्रीगेटर्स मई तक बढ़ाएं ईवी फ्लीट
वायु प्रदूषण को कम करने के लिए केंद्र ने दिल्ली सरकार से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि सभी कैब कंपनियां और डिलीवरी सेवाएं अगले तीन महीनों के भीतर 10% इलेक्ट्रिक दो-पहिया और 5% इलेक्ट्रिक चार-पहिया वाहन उपलब्ध करवाएं। पर्यावरण और वन विभाग की मसौदा अधिसूचना ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया है कि इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रयोग को बढ़ाया जाए। यह भी कहा गया है कि परिवहन क्षेत्र दिल्ली में PM2.5 उत्सर्जन का प्राथमिक स्रोत है। दिल्ली में वाहनों से होने वाला उत्सर्जन NO2, CO का 80% है।
वायु प्रदूषण से लड़ने के लिए केंद्र का बजट घटा: हरित थिंकटैंक्स
टाइम्स ऑफ़ इंडिया के अनुसार विभिन्न थिंकटैंक्स का कहना है कि सरकार ने 2022-23 के बजट में वायु प्रदूषण से लड़ने के लिए आवंटन को घटा दिया है। दिल्ली स्थित लीगल इनिशिएटिव फॉर फारेस्ट एंड एनवायरनमेंट और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च बताते हैं कि हालांकि मंत्रालय का समग्र बजट 2021-22 में 2,520 करोड़ रुपए से 20% बढ़कर 2022-23 में 3,030 करोड़ रुपए हो गया है, लेकिन वायु प्रदूषण से लड़ने के लिए आवंटित राशि पर्याप्त नहीं है।
लाइफ के विश्लेषण में कहा गया है कि ‘प्रदूषण नियंत्रण’ के लिए मिले 460 करोड़ रुपयों से उन 132 शहरों में वायु गुणवत्ता की निगरानी की लागत देना भी संभव नहीं है जहां राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) लागू है। इसमें वह 4000 प्रदूषित शहर और कस्बे शामिल नहीं हैं जो एनसीएपी के दायरे से बाहर हैं। सीपीआर ने कहा कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) के लिए वित्तीय आवंटन में कमी आई है वहीं एनसीएपी के लिए आवंटन यथावत है।
40% आयात शुल्क के कारण एक्मे-स्कैटेक ने 900 मेगावाट की सौर परियोजना रोकी
1 अप्रैल से लगने वाले 40% आयात शुल्क और आपूर्ति श्रृंखला में बाधाओं की वजह से भारत की एक्मे और नॉर्वेजियन कंपनी स्कैटेक ने राजस्थान में $400 मिलियन की 900 मेगावाट सौर ऊर्जा संयंत्र परियोजना को रोक दिया है। रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल स्कैटेक ने एक्मे के साथ राजस्थान में प्लांट बनाने के लिए सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एसईसीआई) के साथ 25 साल के बिजली खरीद समझौते के तहत साझेदारी की थी। प्लांट के 2022 में पूरा होने की उम्मीद थी, लेकिन निर्माण कार्य अभी तक शुरू नहीं हुआ था।
भारत चीन निर्मित आयात पर अपनी निर्भरता कम करने और स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए सौर मॉड्यूल और सौर सेल पर सीमा शुल्क लगाने की योजना बना रहा है।
वितरण कंपनियों का एकतरफा ऊर्जा खरीद समझौते समाप्त करना जनहित में नहीं: सुप्रीम कोर्ट
आंध्र प्रदेश की एक अक्षय ऊर्जा परियोजना के मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि एक राज्य वितरण कंपनी के लिए मौजूदा बिजली खरीद समझौते को एकतरफा समाप्त करना जनहित में नहीं है। शीर्ष अदालत ने बिजली के लिए अपीलीय न्यायाधिकरण द्वारा पारित फैसले का समर्थन किया, जिसने राज्य आयोग को निर्देश दिया था की वह पूंजीगत लागत निर्धारित करने और सौर डेवलपर हिंदुजा नेशनल पावर कॉरपोरेशन द्वारा अनुरोधित संशोधित पीपीए को मंजूरी देने का आदेश जारी करे।
संसदीय पैनल ने नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए हरित बैंक स्थापित करने का सुझाव दिया
संसदीय पैनल ने सरकार से नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में वित्तीय बाधाओं से निबटने के लिए हरित बैंकों को एक नवीन उपकरण के रूप में स्थापित करने का सुझाव दिया है। पैनल ने यह भी सुझाया है कि सरकार बैंकों और वित्तीय संस्थानों के लिए नवीकरणीय खरीद दायित्व (आरपीओ) की तर्ज पर नवीकरणीय वित्त दायित्व निर्धारित करने की संभावना तलाशे।
पैनल ने नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड (आईडीएफ), इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट्स (इनवीआईटी) वैकल्पिक निवेश फंड, ग्रीन / मसाला बॉन्ड, क्राउडफंडिंग आदि जैसे वैकल्पिक वित्तीय सहायता के मार्गों का उपयोग करने का भी सुझाव दिया। पैनल ने कहा कि भारत को नवीकरणीय क्षेत्र में 1.5-2 लाख करोड़ रुपए के वार्षिक निवेश की आवश्यकता होगी, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में अनुमानित निवेश लगभग 75,000 करोड़ रुपए ही रहा है।
राजस्थान में नवीकरणीय परियोजनाओं की स्थापना के लिए जियो-मैपिंग के ज़रिए होगी ‘भूखंडों’ की पहचान
राजस्थान सौर संयंत्रों और सौर पार्कों की स्थापना हेतु भूखंडों की पहचान करने के लिए एक जियो-मैपिंग आधारित डेटा बैंक विकसित करने की योजना बना रहा है। राज्य सरकार नवीकरणीय क्षमता में वृद्धि चाहती है और अपने ‘2024-25 तक 37.5 गीगावाट’ उत्पादन के लक्ष्य को और बढ़ाना चाहती है, पीवी पत्रिका ने बताया। वर्तमान में राज्य में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में 14.5 गीगावाट क्षमता विकसित हुई है।
पत्रिका ने शीर्ष अधिकारियों का हवाला देते हुए बताया कि उनका प्रयास और योजना 2024-25 के लक्ष्य को समय से पहले हासिल करना है। ‘साथ ही एक कार्य योजना भी बनाई जा रही है ताकि राज्य में और अधिक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता विकसित की जा सके’। शीर्ष अधिकारियों ने बताया कि सभी जिलों में उपलब्ध भूमिखंडों की पहचान में राज्य के सभी जिला कलेक्टरों की भागीदारी होगी।
इलैक्ट्रिक मोबिलिटी की कीमत घटाने के लिये बैटरी अदला-बदली में इंसेन्टिव
भारत सरकार पूरे देश में विद्युत वाहन मालिकों को बैटरी अदलाबदली करने पर इंसेन्टिव का प्रस्ताव दे सकती है। इसका मकसद बैटरी वाहनों की कीमतें कम करना और चार्जिंग का समय घटाना है। बैटरी वाहनों के बाज़ार के बढ़ने में यह दो बड़ी दिक्कतें हैं। संभावना है कि अगले 3 महीनों में नीति आयोग अपनी बैटरी स्वॉपिंग पॉलिसी के तहत इसकी घोषणा कर सकता है जिसमें ईवी खरीदने पर बैटरी – जो कि किसी भी विद्युत वाहन का सबसे महंगा हिस्सा है – की कीमत के 20% के बराबर सब्सिडी ग्राहक को मिलेगी। इसके लिये बैटरी मानकों को एकरूपता देनी होगी और उसकी घोषणा जल्द ही की जायेगी हालांकि दुनिया की सबसे बड़ी ईवी निर्माता टेस्ला ने बैटरी स्वॉपिंग न करने का फैसला किया है।
दिल्ली में पुरानी कारें इलैक्ट्रिक किट लगाने को तैयार
दिल्ली में ट्रांसपोर्ट विभाग ने ऐसी पुरानी पेट्रोल और डीज़ल कारों के दिल्ली में रजिस्ट्रेशन को अनुमति दे दी है जिनमें इलैक्ट्रिक किट लगा हो बशर्ते यह रेट्रोफिटिंग 10 अधिकृत निर्माताओं में से किसी एक के यहां कराया जाये। सरकार ने कहा है कि वाहन को प्रशिक्षित टेक्नीशियनों से तैयार कराया जाये और साल में एक बार उसका फिटनेस टेस्ट हो। इस किट को लगाने की कीमत 3 से 5 लाख है।
जी एम ई-ट्रक के उत्पादन में 600% बढ़ोतरी करेगा, वोल्वो चला टेस्ला की राह पर
जनरल मोटर्स के सीईओ मैरी बारा ने घोषणा की है कि साल 2022 में ही जीएम अपने इलैक्ट्रिक ट्रकों का उत्पादन 6 गुना बढ़ा दिया जायेगा। यह कंपनी उत्तरी अमेरिका में 2024 तक कुल 4 लाख ईवी उतारने की योजना बना रही है। निजी खरीद के लिये यहां ई-ट्रक काफी लोकप्रिय हो रहे हैं। नई ईवी बैटरी और सेल असेंबली क्षमता में जीएम बड़ा निवेश कर रहा है और उसका इरादा 2025 तक 10 लाख वाहन बनाने का है।
उधर ख़बर है कि स्वीडन की वाहन निर्माता वोल्वो कार बॉडी बनाने के लिये “मेगा कास्टिंग” विधि का इस्तेमाल करेगी। इसमें पूरी कार एक ही एल्युमिनियम ब्लॉक से तैयार की जाती है। माना जाता है कि यह तरीका टेस्ला ने टेक्सस के कारखाने में शुरु किया जिससे कार बनाने में कम समय और खर्च हो है।
पारदर्शिता का हवाला देकर नेचुरल गैस को ईंधन के रूप में स्वीकृति
यूरोपीय कमीशन ने अपने नए दीर्घकालिक वित्तीय वर्गीकरण के तहत ‘ट्रांजीशन फ्यूल’ के रूप में प्राकृतिक गैस को शामिल किया है, इस बात पर ज़ोर देते हुए कि इस ‘अपूर्ण समाधान’ का उद्देश्य केवल ऊर्जा वित्त क्षेत्र में अधिक पारदर्शिता का मार्ग बनाना था, न कि ऊर्जा नीति को प्रभावित करना। जीवाश्म ईंधन के प्रयोग का यह निर्णय पूर्वी यूरोपीय देशों, मध्य यूरोपीय देशों और जर्मनी द्वारा समर्थित था, लेकिन लक्ज़मबर्ग, ऑस्ट्रिया, नीदरलैंड, डेनमार्क और स्वीडन की छोटी अर्थव्यवस्थाएं इसे अदालतों में घसीट सकती हैं। ग्रीनपीस ईयू ने भी इसकी आलोचना की और इसे अब तक का ‘सबसे बड़ा ग्रीनवॉशिंग प्रयोग’ कहा, जो यूरोपीय ब्लॉक की जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करने की तत्काल आवश्यकता के विपरीत अधिक उत्सर्जन का कारण बन सकता है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यही निर्णय भारत, अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका और पूरे आसियान क्षेत्र जैसी अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं द्वारा लिया जा सकता है, हालांकि प्राकृतिक गैस और स्वच्छ कोयले का चीन के हरित वर्गीकरण लेबल में उल्लेख नहीं मिलता है।
यूके अपनी दो फ्रैकिंग साइट्स को स्थायी रूप से बंद करेगा
यूके के ऑयल एंड गैस अथॉरिटी (ओजीए) ने देश की शेष दो फ्रैकिंग साइटों को स्थायी रूप से सील करने का आदेश दिया, क्योंकि विवादास्पद स्थलों पर टेस्ट ड्रिलिंग 2020 में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों के बीच छोड़ दी गई। लंकाशायर काउंटी में दो शेल गैस कुओं के पास भूकंप के झटके का अनुभव किया जिसके बाद आगे किसी भी तरह के अन्वेषण और फ्रैकिंग के प्रति स्थानीय विरोध मजबूती हुआ। हालांकि इन साइटों को चलानेवाली फर्म कुआड्रिला ने कहा कि प्राकृतिक गैस की रिकॉर्ड उच्च कीमतों के बीच साइटों का स्थायी रूप से बंद होना ‘हास्यास्पद’ है, और यह ईंधन ब्रिटेन की ऊर्जा आवश्यकताओं को ‘दशकों तक’ पूरा कर सकता था।
कार्बन ट्रैकर: गैस से चलने वाले संयंत्रों के निर्माण से पोलैंड नेट-जीरो लक्ष्य से चूक जाएगा
कार्बन ट्रैकर की एक नई रिपोर्ट में पाया गया कि पोलैंड, जो 3.7GW गैस से चलने वाले नए संयंत्र बनाने की योजना बना रहा है, निश्चित रूप से 2050 तक नेट-जीरो उत्सर्जन के अपने लक्ष्य को पूरा करने में असमर्थ होगा। 4.4 बिलियन डॉलर (€ 3.8 बिलियन) की लागत से 2023-2027 के बीच प्रारंभ होने वाले संयंत्रों का शुल्क नई अपतटीय या अपतटीय पवन, साथ ही नई सौर क्षमता से अधिक होगा। सौर क्षमता पर टैरिफ, विशेष रूप से ऊर्जा भंडारण के साथ देखने पर साल 2024 से प्राकृतिक गैस से सस्ता होगा। हालाँकि, पोलिश नीति निर्माताओं की कथित तौर पर राय थी कि यूरोपीय संघ के 2050 के जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए उठाया गया कोई भी कदम ‘समाज के लिए सुरक्षित और अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद’ होना चाहिए — इस तथ्य के बावजूद कि प्राकृतिक गैस की कीमतें अभी तक के सबसे उच्च स्तर पर हैं और रूस द्वारा नाटो देशों के खिलाफ एक राजनीतिक उपकरण के रूप में ईंधन का तेजी से उपयोग किया जा रहा है।