Newsletter - November 17, 2021
ग्लोबल वॉर्मिंग: 1980-2020 के दौरान उत्तरी गोलार्ध में क्षोभ-सीमा का निरंतर विस्तार
एक नए अध्ययन में पाया गया है कि पृथ्वी की क्षोभ-सीमा — क्षोभमंडल (ट्रोपोस्फियर) और समताप मंडल (स्ट्रेटोस्फियर) के बीच की वायुमंडलीय सीमा — 1980-2020 के दौरान लगातार अधिक ऊंचाई की ओर बढ़ी है। जिस वातावरण में हम रहते हैं उसकी पहली परत को ट्रोपोस्फियर या क्षोभमंडल कहा जाता है अध्ययनकर्ता क्षोभ-सीमा की ऊंचाई निर्धारित करने के लिए उत्तरी गोलार्ध में रेडियोसॉन्ड बैलून का उपयोग करते हैं, जिससे उन्हें पता चला है कि उनके परिणामों का मौजूदा उपग्रह और रेडियोसॉन्ड रिकार्ड्स के साथ ‘अच्छा तालमेल’ है।
अध्ययन में पाया गया है कि क्षोभ-सीमा की ऊंचाई में परिवर्तन मुख्य रूप से क्षोभमंडल में गर्माहट के कारण होता है। अध्ययनकर्ताओं के अनुसार यह निष्कर्ष ‘मानवजनित जलवायु परिवर्तन के पर्यवेक्षण के लिए और अधिक साक्ष्य’ प्रदान करता है’।
कोरोना महामारी से उपजा प्लास्टिक कचरा समा रहा है महासागरों में
कोरोना महामारी से घिरे पिछले करीब 20 महीनों में फेस मास्क, दस्तानों और पीपीई किट के रूप में प्लास्टिक कचरा खूब जमा हुआ है। इसमें अधिकतर कचरा तालाबों, नदियों और समुद्र में जमा हो रहा है। इस कचरे के निस्तारण और प्रबन्धन की ओर ज़्यादातर देश समुचित ध्यान नहीं दे रहे। अब चीन की नानझिंग यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ एटमॉस्फेरिक साइंसेज और यूसी सैन डिएगो के समुद्र विज्ञान विभाग के शोधकर्ताओं ने कहा है कि बड़ी मात्रा में ये कचरा महासागरों में जमा हो रहा है। शोधकर्ताओं ने एक सांख्यिकीय मॉडल तैयार किया है जो दिखाता है कि कैसे और कितना कचरा ज़मीन से महासागरों में जा रहा है। इस मॉडल के मुताबिक में जमा होने वाले कचरे में से करीब 80 लाख टन कचरा महामारी की उपज है।
ग्रीनलैंड में पिछले 4 दशकों में तेज़ी से पिघल रही बर्फ
अपनी तरह के पहले प्रयोग में वैज्ञानिकों ने सैटेलाइट डाटा के ज़रिये ग्रीनलैंड में पिघल रही बर्फ का आंकलन किया है। इस अध्ययन में पता चला है कि पिछले 4 दशकों में यहां बर्फ के पिघलने की रफ्तार 21 प्रतिशत बढ़ी है। नेचर कम्युनिकेशन में छपे शोध के मुताबिक साल 2010 से 2020 के बीच ग्रीनलैंड से पिघली बर्फ के कारण समुद्र सतह में करीब 1 सेंटीमीटर की वृद्धि हुई है। इसमें से एक तिहाई वृद्धि के लिये केवल दो साल (2012 और 2019) में पिघली बर्फ ज़िम्मेदार है। शोध बताता है कि यहां से करीब 3.5 लाख करोड़ टन बर्फ पिछले 40 सालों में पिछल गई है।
ग्लोसगो वार्ता: अहम मुद्दों पर फिर आंख चुराई विकसित देशों ने
स्कॉटलैंड में चल रही जलवायु परिवर्तन वार्ता के आखिर दिन अमीर देशों के अड़ियल रवैये के कारण कई महत्वपूर्ण कदम फिर अगले साल होने वाली वार्ता के लिये टाल दिये गये। जहां एक ओर धरती की तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री तक सीमित रखने के लिये कार्बन उत्सर्जन घटाने के लिये संकल्प लिया गया वहीं अगले साल सभी देशों को संयुक्त राष्ट्र के इस सम्मेलन में बताना होगा कि उन्होंने पेरिस सन्धि में तय लक्ष्यों को हासिल करने के लिये अपने देश की आर्थिक नीतियों में क्या बदलाव किये हैं।
जीवाश्म ईंधन के अंधाधुंध प्रयोग से स्पेस में अब तक सबसे अधिक कार्बन छोड़ने वाले विकसित देशों की इस बाते के लिये कड़ी आलोचना हो रही है कि वह न तो क्लाइमेट फाइनेंस दे रहे हैं और न ही इक्विटी के सिद्धांत को मान रहे हैं यानी जिन गरीब और विकासशील देशों को अभी कोयले पर निर्भर रहना पड़ेगा उन्हें भी उसी रफ्तार से कोयला प्रयोग घटाने को कह रहे हैं जो विकसित देशों को करना चाहिये।
जलवायु परिवर्तन पर पिछले दो हफ्ते से चल रही वार्ता (कॉप-26) शनिवार को यूके के ग्लासगो में समाप्त हो गई। कुल 198 देशों ने इसमें हिस्सा लिया। कोरोना महामारी के कारण यह बैठक पिछले साल आयोजित नहीं हो सकी। संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञ पैनल (आईपीसीसी) ने अपनी स्पेशल रिपोर्ट में कहा है कि क्लाइमेट चेंज के कारण हो रही बर्बादी को रोकने के लिये 2030 तक दुनिया का कुल कार्बन उत्सर्जन (2010 के स्तर पर) आधार करना होगा। वार्ता में सम्मेलन में इसके लिये संकल्प जताया गया फिर भी विकसित देशों ने जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को ‘फेज़ आउट’ करने के बजाय ‘फेज़ डाउन’ करने की बात कही गई है। जानकार इसकी कड़ी आलोचना की है।
ग्लोसगो वार्ता: लॉस एंड डैमेज को नहीं किया दस्तावेज़ में शामिल
गरीब और विकासशील देशों द्वारा सम्मेलन में लॉस एंड डैमेज यानी क्लाइमेट चेंज प्रभावों की चोट की भरपाई की जो मांग की गई है उसका शोर तो ग्लासगो में खूब हुआ पर वार्ता के अंतिम दस्तावेज की औपचारिक भाषा में शामिल न करना विकासशील देशों के लिये बड़ी निराशा रही। इसके अलावा 2020 से विकसित देशों द्वारा विकासशील और गरीब देशों को हर साल 100 बिलियन डालर की मदद को भी 2023 तक टाल दिया गया है। महत्वपूर्ण है कि लॉस एंड डैमेज को वार्ता में शामिल करने और अमीर देशों द्वारा क्लाइमेट प्रभावों से क्षति की भरपाई की बात कोपेनहेगेन (2009) से चल रही है। क्लाइमेट प्रभावों के कारण छोटे द्वीप समूह देशों और अति अल्प विकसित देशों (एडीसी देश) पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ रहा है। क्रिश्चन एड का अनुमान है कि अफ्रीकी देशों को हर साल जीडीपी का 10 प्रतिशत हिस्सा इन प्रभावों से लड़ने में खर्च करना पड़ता है।
ग्लोसगो वार्ता: नेट ज़ीर पर सहमत लेकिन जीवाश्म ईंधन सब्सिडी हटाने के प्रस्ताव का भारत ने किया विरोध
ग्लोसगो सम्मेलन में जहां सभी बड़े देशों ने अपने नेट ज़ीरो वर्ष का ऐलान किया वहीं भारत ने भी 2070 तक नेट ज़ीरो लक्ष्य हासिल कर लेने का वादा किया। हालांकि नेट ज़ीरो का पूरा फलसफा ही विवादों में है और जानकार इस वर्तमान ज़िम्मेदारी से भागने का बहाना बता रहे हैं। दूसरी ओर सम्मेलन में यह भी तय हुआ है कि
दूसरी ओर जीवाश्म ईंधन पर सब्सिडी को पूरी तरह बन्द करने के प्रस्ताव का भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका और क्यूबा समेत कई देशों ने विरोध किया। विकसित देश चाहते थे कि सभी विकासशील देश कोयला, तेल और गैस पर सब्सिडी पूरी तरह खत्म करें लेकिन भारत के जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेन्द्र यादव ने वार्ता में कहा कि कार्बन बजट पर विकासशील देशों का न्यायोचित अधिकार है और वह उनसे नहीं छीना जा सकता। यादव ने कहा कि मौजूदा हालात में गरीबी मिटाने और सामाजिक ज़िम्मेदारी निभाने में इस सब्सिडी का अहम रोल है।
ग्लोसगो वार्ता: मीथेन की भूमिका को मिला महत्व
जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में पहली बार मीथेन उत्सर्जन को रोकने के लिये गंभीरता दिखी है। सम्मेलन के दूसरे ही दिन अमेरिका और यूरोपियन यूनियन समेत कुल 105 देशों ने इस समझौते पर दस्तखत किये कि वो अपने मीथेन इमीशन में 2030 तक 30% की कमी करेंगे। मीथेन कम समय तक वातावरण में मौजूद रहने वाली ग्रीन हाउस गैस है लेकिन वह कार्बन डाइ ऑक्साइड के मुकाबले कई गुना अधिक ग्लोबल वॉर्मिंग करती है। इस समझौते पर सही तरीके से अमल किया गया तो मीथेन के उत्सर्जन में 40% तक कमी हो सकती है। भारत ने कृषि और पशुपालन क्षेत्र देश के हितों को देखते हुये इस संधि पर दस्तखत नहीं किये।
दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से आपात बैठक करने को कहा
दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से आपात बैठक करने को कहा और गैर ज़रूरी निर्माण कार्य, कोर्ट ने राज्यों से भा कहा कि वह वर्क फ्रॉम होम को प्रोत्साहित करे। इससे पहले दिल्ली सरकार ने कोर्ट में कहा था कि वह हालात को बेहतर बनाने के लिये स्थानीय स्तर पर होने वाले प्रदूषण रोकने के लिये हर कदम उठाने को तैयार है। कोर्ट ने राज्यों से भी कहा कि घातक प्रदूषण के हालात में वह वर्क फ्रॉम होम को बढ़ावा दें।
इस साल भी सर्दियों की शुरुआत में वही कहानी दोहराई जा रही है। बीती 12 नवंबर को प्रदूषण इस स्तर तक बढ़ गया कि एयर क्वॉलिटी इंडेक्स (एक्यूआई) सरकार को ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (ग्रेप) लागू करना पड़ा। केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड को लोगों से कहना पड़ा कि वह घर से बाहर न निकलें। बोर्ड ने सरकारी और निजी कंपनियों से भी कहा कि वह अपने वाहनों के इस्तेमाल में एक तिहाई कटौती करें। दिल्ली के अलावा गुरुग्राम, फरीदाबाद, गाज़ियाबाद, नोएडा, हिसार औऱ चरखीदादरी में एयर क्वालिटी इंडेक्स 450 से ऊपर रहा।
करोड़ों की सब्सिडी और जुर्माने के बावजूद पराली जलाने को मजबूर किसान
सर्दी का मौसम आते ही दिल्ली और भारत के सिंधु-गंगा के मैदानी इलाकों में धुंध और बीमारी का प्रकोप बढ़ गया है। यह वह समय भी है जब दोषारोपण का खेल अपने चरम पर होगा। दिल्ली सरकार पंजाब और हरियाणा के किसानों पर उनके खेतों में पराली जलाने से वायु प्रदूषण फैलाने का आरोप लगाएगी। किसान भी शिकायत करेंगे कि किसी भी सरकार ने उन्हें समस्या का व्यावहारिक समाधान नहीं दिया है।
सरकार दावा करती है कि पराली जलाने पर नियंत्रण रखने के लिए कई उपाय किए गए हैं जैसे फसल अवशेष प्रबंधन (सीआरएम) मशीनों को सब्सिडी, अपने खेतों में आग लगाने वाले किसानों को चालान जारी करना और अन्य वित्तीय प्रोत्साहनों की पेशकश आदि। लेकिन गांव कनेक्शन की रिपोर्ट के मुताबिक पंजाब में किसान, छोटे और सीमांत किसानों का एक बड़ा हिस्सा पराली जलाने के लिए मजबूर हैं और उन्हें एक ‘वास्तविक समाधान’ की आवश्यकता है।
पंजाब का संगरूर जिला पराली जलाने के हॉटस्पॉट्स में से एक है, जहां 11 नवंबर को 566 आग के मामले दर्ज किए गए थे। फसल अवशेष प्रबंधन मशीनों की पेशकश के बाद भी, किसानों का कहना है कि वह पराली जलाने के लिए मजबूर हैं।
दिल्ली में चार नए प्रदूषण हॉटस्पॉट्स
दिल्ली के प्रदूषण हॉटस्पॉट्स में चार नए नाम जुड़ गए हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) ने संयुक्त रूप से 2018 में 13 प्रदूषण हॉटस्पॉट्स की पहचान की थी।
डीपीसीसी द्वारा 1 नवंबर से 8 नवंबर के बीच वायु गुणवत्ता के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला कि जहां इन 13 स्थानों पर एक्यूआई का ‘गंभीर’ स्तर लगातार दर्ज किया जा रहा है, वहीं इस अवधि के दौरान उच्च प्रदूषण स्तर वाले चार नए स्थान भी सामने आए हैं।
ये नए स्थान हैं अलीपुर, आईटीओ, नेहरू नगर और सोनिया विहार। उक्त अवधि के दौरान सभी चार स्थानों पर न केवल कम से कम चार ‘गंभीर’ वायु दिवस दर्ज किए गए, बल्कि इन स्थानों पर प्रदूषण का स्तर कुछ मौजूदा हॉटस्पॉट्स से भी अधिक रहा।दिल्ली के 13 मूल हॉटस्पॉट्स हैं जहांगीरपुरी, आनंद विहार, अशोक विहार, वजीरपुर, पंजाबी बाग, द्वारका सेक्टर 8, रोहिणी सेक्टर 16, आरके पुरम, बवाना, मुंडका, नरेला, ओखला फेज – 2 और विवेक विहार।
ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के पहले ही दिन भारत ने अपना नेट ज़ीरो वर्ष घोषित कर दिया। भारत ने ऐलान किया है कि वह 2070 तक नेट ज़ीरो का दर्जा हासिल कर लेगा। यानी उसके संयंत्रों से जितना भी कार्बन उत्सर्जन होगा वह प्रकृति द्वार सोख लिया जायेगा। इससे पहले चीन ने 2060 को अपना नेट ज़ीरो वर्ष घोषित किया।
प्रधानमंत्री मोदी ने ग्लासगो में ऐलान किया कि भारत अपनी गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा क्षमता को 2030 तक 500 GW तक बढ़ा देगा। पीएम ने ये भी कहा कि भारत 2030 तक अक्षय ऊर्जा से अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का 50% पूरा करेगा और साल 2030 तक भारत 100 करोड़ टन कार्बन उत्सर्जन कम करेगा
जलवायु और उद्योग विशेषज्ञों द्वारा इन घोषणाओं का स्वागत किया गया। अंतरराष्ट्रीय सोल एलायंस के प्रमुख अजय माथुर ने कहा कि प्रधानमंत्री वे दुनिया के सामने भारत की ओर से क्लाइमेट एक्शन पर एक बड़ा वादा किया है। उनके मुताबिक 100 करोड़ टन कार्बन इमीशन कम करना और साफ ऊर्जा की क्षमता को 500 गीगावॉट तक ले जाना बहुत महत्वाकांक्षी और बदलाव लाने वाला कदम है।
अक्षय ऊर्जा और सबसे सस्ते हाइड्रोजन के उत्पादन में अडानी समूह करेगा 70 बिलियन डॉलर का निवेश
अडानी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अडानी ने कहा है कि उनका लॉजिस्टिक्स-टू-एनर्जी समूह अगले दशक में दुनिया की सबसे बड़ी अक्षय ऊर्जा कंपनी बनने और विश्व में सबसे सस्ते हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिए 70 बिलियन अमरीकी डालर का निवेश करेगा।
दुनिया की सबसे बड़ी सौर ऊर्जा उत्पादक अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड (एजीईएल) ने 2030 तक 45 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य रखा है और 2022-23 तक 2 गीगावाट प्रति वर्ष सौर विनिर्माण क्षमता विकसित करने के लिए 20 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश करेगी।
वहीं अडानी ट्रांसमिशन लिमिटेड (एटीएल), जो भारत की सबसे बड़ी निजी बिजली पारेषण और खुदरा वितरण कंपनी है, वित्त वर्ष 2023 तक नवीकरणीय बिजली की खरीद को मौजूदा 3 प्रतिशत से बढ़ाकर 30 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2030 तक 70 प्रतिशत करना चाहती है।
चीन में बिजली संकट से भारत की सौर परियोजनाएं प्रभावित
चीन में बिजली संकट से भारत के सौर क्षेत्र में संकट महसूस किया गया। इस कारण भारत में अक्टूबर की शुरुआत से सौर परियोजनाओं की लागत में 12 से 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। ऐसा सोलर मॉड्यूल और पैनलों की कीमतें बढ़ने के कारण हुआ है क्योंकि चीन में निर्माण कार्य बंद होने की वजह से उत्पादन प्रभावित हुआ।
विशेषज्ञों की माने तो चीन में बिजली कटौती का सीधा प्रभाव भारत की सौर परियोजनाओं पर पड़ता है। क्योंकि इससे न केवल सौर उपकरणों के दाम बढ़ते हैं, बल्कि आपूर्ति में भी अनिश्चितता की स्थिति पैदा होती है। जिसके फलस्वरूप डेवलपर्स के लिए परियोजना की लागत बढ़ जाती है और फिर यह भार अंततः उपभोक्ता को ही सहना पड़ता है।
सरकारी तेल कंपनियां स्थापित करेंगी 22,000 ईवी चार्जिंग स्टेशन
कार्बन तीव्रता (प्रति यूनिट जीडीपी उत्पादन के लिये होने वाला इमीशन) कम करने और 2070 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन तक पहुंचाने के लिए देश की तीन सार्वजनिक तेल कंपनियां अगले 3-5 वर्षों में 22,000 इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) चार्जिंग स्टेशन स्थापित करेंगी।
इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड 10,000 स्टेशन स्थापित करेगी। यह पहले ही 439 ईवी चार्जिंग स्टेशन स्थापित कर चुकी है और इसकी योजना अगले साल अपने रिटेल आउटलेट नेटवर्क में 2000 चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने की है।
भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड द्वारा अगले एक साल के भीतर 1,000 और कुल 7,000 ईवी चार्जिंग स्टेशन स्थापित किए जाएंगे। एचपीसीएल, जो अब तक 382 ईवी स्टेशन स्थापित कर चुकी है, अगले वर्ष 1,000 और कुल मिलाकर 5,000 स्टेशन स्थापित करेगी।
केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने 2030 तक भारत की कार्बन तीव्रता को 45 प्रतिशत तक कम करने के लिए COP26 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा का उल्लेख करते हुए ट्वीट किया कि ‘भारत की तेल कंपनियां मिशन मोड पर प्रमुख शहरों में और राष्ट्रीय राजमार्गों पर 22,000 EV चार्जिंग स्टेशन स्थापित करेंगी’।
प्रमुख कार निर्माताओं ने लिया जीवाश्म–ईंधन वाहनों को बन्द करने का निर्णय
दुनिया के प्रमुख देशों और दिग्गज कार निर्माताओं ने निर्णय लिया है कि कार्बन उत्सर्जन में कटौती और ग्लोबल वॉर्मिंग पर काबू करने के लिये, 2040 तक जीवाश्म-ईंधन वाहनों का निर्माण चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जाए। लेकिन इस समझौते में दुनिया के शीर्ष दो कार निर्माता — टोयोटा मोटर कॉर्प (7203.T) और फोक्सवैगन एजी (VOWG_p.DE) — और प्रमुख देश चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका और जर्मनी शामिल नहीं हुए। यह घोषणा ग्लासगो जलवायु परिवर्तन सम्मेलन को दौरान की गई और भारत भी इस समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले देशों में है।
500,000 ईवी चार्जर के राष्ट्रव्यापी नेटवर्क निर्माण के लिए $7.5 बिलियन के निवेश को अमेरिकी सदन की मंजूरी
यूनाइटेड स्टेट्स हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स ने 1.2 लाख करोड़ (ट्रिलियन) डॉलर का अवसंरचना विधेयक (इंफ्रास्ट्रक्चर बिल) पारित किया, जिसमें इलेक्ट्रिक वाहनों और स्वच्छ ऊर्जा के लिए अरबों डॉलर का प्रावधान किया गया है। विधेयक को दोनों दलों का समर्थन प्राप्त हुआ।
विधेयक में ईवी चार्जिंग स्टेशनों का एक राष्ट्रव्यापी नेटवर्क बनाने और इस दशक में इलेक्ट्रिक कारों को अपनाने में तेजी लाने के लिए $7.5 बिलियन (करीब 56000 करोड़ रुपये) का प्रावधान है। अतिरिक्त $65 बिलियन (4,87,000 करोड़ रुपये) स्वच्छ ऊर्जा और देश के बिजली ग्रिड के लिए नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश के लिए दिए गए हैं।व्हाइट हाउस की विज्ञप्ति में कहा गया है कि यह निवेश राष्ट्रपति बाइडेन के 500,000 ईवी चार्जर्स के राष्ट्रव्यापी नेटवर्क के निर्माण के लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक होगा ताकि ईवी को अपनाने में तेजी लाई जा सके, उत्सर्जन कम किया जा सके, और हवा की गुणवत्ता में सुधार किया जा सके।
कोयला बिजलीघरों को बन्द करने के लिये दिशानिर्देश तैयार
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेश का पालन करते हुये देश में कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों को बंद करने के लिए नए दिशानिर्देशों का प्रस्ताव दिया है। इसमें पर्यावरण प्रबंधन और पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट सहित कई उपायों का सुझाव है।
एनजीटी के मार्च 2021 के आदेश के बाद सीपीसीबी ने दिशानिर्देशों का एक खाका तैयार किया था। मोंगाबे इंडिया में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक यह आदेश वादी धर्मेश शाह की अपील पर सुनवाई करते हुए जारी किए गए थे। इस अपील में शाह ने तमिलनाडु में नेवेली थर्मल पावर स्टेशन में एक बिजलीघर को बंद करने के लिए उचित दिशानिर्देश तैयार करने की मांग की थी। शाह ने अदालत को बताया था कि ऐसी इकाइयों को बंद करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा कोई उचित दिशा-निर्देश नहीं हैं जो “खतरनाक पदार्थों के सुरक्षित प्रबंधन और निपटान के साथ-साथ बंद किए गए थर्मल पावर प्लांट के मशीनरी, भवन, राख के तालाब सहित संयंत्र की इमारतों के उचित निपटान और स्थान को सुधारने की जिम्मेदारी सुनिश्चित करते हों।
जीवाश्म ईंधन पर ढिलाई के लिये जो बाइडेन की निन्दा
जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को रोकने की कोशिश में पाखंड के लिये पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने जो बाइडेन की कड़ी आलोचना की है। ग्लासगो सम्मेलन में क्लाइमेट एक्शन को लेकर अमेरिका ने कहा था कि “हर देश को अपनी ज़िम्मेदारी निभानी चाहिये लेकिन खुद बाइडेन सरकार मैक्सिको की खाड़ी में तेल और गैस भंडार की नीलामी कर रही है। ग्लासगो सम्मेलन में भी विकसित देश गरीब औऱ विकासशील देशों के साथ किये वादे को पूरा न करन पाने और क्लाइमेट एक्शन पर ढुलमुल रवैये के कारण निशाने पर रहे। अब तमाम संगठन मांग कर रहे हैं कि बाइडेन को अपने चुनाव प्रचार के दौरान ज़मीन से तेल और गैस की ड्रिलिंग बन्द करने का वादा पूरा करना चाहिये। जीवाश्म ईंधन के निर्यात पर रोक लगानी चाहिये और तेल और गैस पाइप लाइन को बन्द करना चाहिये।