कोरोना का असर: 40 साल में पहली बार घटा CO2 उत्सर्जन

Newsletter - May 14, 2020

CO2 इमीशन घटा: गिरती अर्थव्यवस्था, साफ ऊर्जा का उत्पादन और कोरोना वायरस का असर, भारत का CO2 उत्सर्जन रिकॉर्ड ढलान पर है | Photo: Kleinman Centre for Energy

कोरोना का असर: 40 साल में पहली बार घटा CO2 उत्सर्जन

भारत में पिछले चार दशकों में पहली बार CO2 उत्सर्जन घटा है और इसके पीछे एक बड़ी वजह है कोरोना वायरस जिसने पूरी दुनिया को आतंकित किया हुआ है। जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग से जुड़ी गतिविधियों पर नज़र रखने वाली वेबसाइट कार्बन ब्रीफ में छपे एक विश्लेषण के मुताबिक CO2 इमीशन ग्राफ में यह चार दशक की सबसे बड़ी गिरावट है। विश्लेषण कहता है कि भारत की अर्थव्यवस्था पहले ही मन्दी में चल रही थी और साफ ऊर्जा का प्रयोग बढ़ रहा था लेकिन जब मार्च में तालाबन्दी की गई तो CO2 इमीशन 15% घट गया। अप्रैल में गिरावट का अनुमान (पूरे आंकड़े आना अभी बाकी है) 30% है।

CO2 के ग्राफ में यह रिकॉर्ड गिरावट 1982-83 के बाद दर्ज की गई है। इस विश्लेषण को करने वाले दो शोधकर्ता लॉरी मिल्लीविर्ता और सुनील दहिया सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर से जुड़े हैं जिन्होंने साल 2019-20 के कार्बन उत्सर्जन का अध्ययन किया। यही वह दौर था जब भारत की अर्थव्यवस्था ढुलमुल रही तो साफ ऊर्जा क्षमता और उत्पादन बढ़ा जिससे कार्बन इमीशन में गिरावट दर्ज हो रही थी। वित्तवर्ष 2019-20 में कुल करीब 1% की गिरावट हुई जो कि 30 मिलियन टन (3 करोड़ टन) कार्बन के बराबर है। इसी वित्त वर्ष में कोल इंडिया की कोयले की बिक्री 4.3% कम हुई लेकिन कोयले का आयात 3.2% बढ़ा यानी कोयले के इस्तेमाल में कुल 2% गिरावट हुई।

विश्लेषण के मुताबिक “यह गिरावट पिछले दो दशक के इतिहास में किसी भी साल में हुई अब तक की सबसे बड़ी गिरावट के रूप में दर्ज की गयी है। यह ट्रेंड मार्च महीने में उस वक्त और गहरा गया, जब कोयले की बिक्री में 10% की गिरावट दर्ज की गयी। उधर, मार्च में कोयले के आयात में 27.5% की वृद्धि देखी गयी। इसका अर्थ यह हुआ कि बिजली उत्पादन में कमी के चलते उपभोक्ताओं तक पहुंचने वाले कुल कोयले की खपत में 15% की गिरावट देखी गयी। बिक्री में अभूतपूर्व कमी के बावजूद मार्च में कोयला उत्पादन में 6.5% की बढ़ोत्तरी हुई। इतना ही नहीं, कोयले की बिक्री से अधिक इसके उत्खनन में वृद्धि दर्ज की गयी। इससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि इस कमी की मुख्य वजह मांग में भारी गिरावट है।”

कोयले और तेल जैसे ईंधनों से जुड़े संकट को रेखांकित करते हुये विश्लेषण कहता है कि यह नवीनीकरण ऊर्जा (साफ ऊर्जा) की दिशा में आगे बढ़ने का सुनहरा मौका है। इसलिये इसमें निवेश बढ़ाया जाना चाहिये। विश्लेषण हवा की बेहतर क्वॉलिटी के मद्देनज़र एयर क्वॉलिटी के मानकों में और सुधार लाने की बात भी कहता है।


क्लाइमेट साइंस

राहत नहीं: पूर्वी अफ्रीका के गरीबों देशों में टिड्डियों की मार और कोरोना संक्रमण के साथ घनघोर बारिश और बाढ़ का कहर है | Photo: Al Jazeera

मूसलाधार बारिश और बाढ़ से पूर्वी अफ्रीका में सैकड़ों मरे

अफ्रीका में यूगांडा, रवांडा, कीनिया और सोमालिया में लगातार मूसलाधार बारिश से भारी बाढ़ आ गई जिससे सैकड़ों लोगों की जान चली गई। अप्रैल से अब तक कम से कम 8,000 एकड़ में लगी फसल इस बरसात से नष्ट हो गई। बरसात के अलावा भूस्खलन से भी काफी नुकसान हुआ है।

संयुक्त राष्ट्र ने पहले ही चेतावनी दी है कि टिड्डियों का बड़ा हमला और कोरोना वायरस का मिलाजुला प्रभाव महाद्वीप के इस हिस्से में भुखमरी के हालात पैदा कर सकता है। यहां 2000 लोग पहले ही कोरोना वायरस से मर चुके हैं और टिड्डियों के दूसरा हमला खाद्य सुरक्षा के लिये खतरा बन रहा है।

अगले 50 साल में एक तिहाई आबादी होगी क्लाइमेट नीश से बाहर

इंसान जिस आबोहवा में रहता है वह हज़ारों साल से तकरीबन एक सी रही है। दुनिया की अधिकांश आबादी सालाना 11-15 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर रहती है हालांकि आबादी का एक छोटा हिस्सा  20-25 डिग्री के सालाना औसत तापमान पर रहता है। इस आरामदायक तापमान रेंज को “क्लाइमेट नीश” कहते हैं। अब एक नये शोध में यह चेतावनी दी गई है कि अगले 50 साल में यह स्थिति नहीं रहेगी।

अमेरिकी साइंस पत्रिका PANS  में चीन, अमेरिका और यूरोप के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया शोध छपा है जिसमें कहा  गया है अगर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन पर नियंत्रण नहीं पाया गया तो दुनिया की करीब एक तिहाई आबादी साल 2070 तक सालाना इतने तापमान को झेलेगी जितना अभी सहारा जैसे इलाकों में है।

एक दूसरे अध्ययन में कहा गया है कि एशिया, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अमेरिका के साथ उत्तरी अमेरिका के कुछ इलाकों में अभी से गर्मी और नमी का बड़ा विनाशकारी संयुक्त प्रभाव दिख रहा है। अभी ऐसा प्रभाव कुछ घंटों के लिये होता है लेकिन इस घटनाओं की तीव्रता बढ़  रही है और अब ये बार-बार हो रही हैं।  

हिमालय में बर्फ पिघलने से अरब सागर में हानिकारक शैवाल बढ़े

हिमालय-तिब्बत क्षेत्र में जमी बर्फ के पिघलने से अरब सागर की सतह पर तापमान वृद्धि हो रही है। इससे पानी में इतने बड़े हरित शैवाल खिल रहे हैं कि उन्हें आसमान से देखा जा सकता है। साइंस पत्रिका नेचर में छपे एक शोध में यह बात कही गई है जो अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा से मिली तस्वीरों पर आधारित है। ‘सी-स्पार्कल’ के नाम से मशहूर ये शैवाल भारत और पाकिस्तान की तट रेखा के अलावा अरब सागर क्षेत्र में और जगह भी दिख रहे हैं।

वैसे तो यह शैवाल ज़हरीले नहीं हैं लेकिन यह पानी से बड़ी मात्रा में ऑक्सीज़न खींच रहे हैं और उसमें अमोनिया बढ़ा रहे हैं जिससे इन इलाकों में मछलियों पर खतरा मंडरा रहा है। अरब सागर तट पर निर्भर रहने वाले कई परिवारों की जीविका पर भी इससे संकट मंडरा रहा है।

वनों के गायब होने की रफ्तार घटी पर यह कमी पर्याप्त नहीं: UN

संयुक्त राष्ट्र के नये आंकड़े बताते हैं कि धरती से जंगलों के गायब होने की रफ्तार पिछले कुछ सालों में कम हुई है। साल 1990 और 2000 के बीच हर साल करीब 78 लाख हेक्टेयर जंगल कटे लेकिन 2000 से 2010 के बीच यह आंकड़ा 52 लाख हेक्टेयर हो गया और 2010 से 2020 के बीच 47 लाख हेक्टेयर जंगल ही धरती से गायब हुए। यह गिरावट कम जंगल कटने, वृक्षारोपण और प्राकृतिक जंगल में बढ़ोतरी की वजह से हो सकती है लेकिन संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि हम अभी भी पर्यावरणीय लक्ष्य को हासिल करने से बहुत दूर हैं और हमें जंगलों के नष्ट होने की रफ्तार को और अधिक घटाने की ज़रूरत है।


क्लाइमेट नीति

परियोजना पर सवाल: अरुणाचल में प्रस्तावित एटलिन जलविद्युत परियोजना पर सरकार की वन सलाहकार समिति ने पावर मिनिस्ट्री से सफाई मांगी है | Photo: Reuters

अरुणाचल प्रदेश: प्रस्तावित एटलिन जलविद्युत परियोजना पर सवाल

अरुणाचल प्रदेश की दिबांग घाटी में एटलिन जलविद्युत परियोजना को लेकर कई गंभीर सवाल खड़े हो गये हैं। पहले जानकारों ने इस परियोजना पर भारतीय वन्य जीव संस्थान (WII) की रिपोर्ट को पक्षपातपूर्ण बताया और अब सरकार की वन सलाहकार समिति (FAC) ने इसे लेकर पावर मिनिस्ट्री से सवाल किये हैं। FAC ने पावर मिनिस्ट्री से पूछा है कि क्या 3,097 मेगावॉट की यह परियोजना अपने वर्तमान स्वरूप में कारगर होगी। समिति का कहना है कि एटलिन प्रोजेक्ट 6 साल से लटका है और तब से अब तक भारत की बिजली आपूर्ति योजना में बदलाव भी आये होंगे। समिति ने अरुणाचल सरकार से इस परियोजना का कॉस्ट-बेनेफिट एनालिसिस करने को कहा है।

इससे पहले जानकारों ने इस हाइड्रो प्रोजेक्ट पर भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) की रिपोर्ट को पक्षपातपूर्ण बताया था और कहा था कि रिपोर्ट में स्थानीय लोगों पर परियोजना के प्रभाव और जैव विविधता और वन्य जीवों से संबंधित स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई।  इस बीच कई वन्यजीव विशेषज्ञों और संरक्षण से जुड़े लोगों 4000 से अधिक लोगों ने इस प्रोजेक्ट को हरी झंडी न देने के लिये पर्यावरण मंत्रालय को मेमोरेंडम दिया।

भारत में बिजली की मांग 2020-21 में 1% गिरेगी: ICRA

क्रेडिट एजेंसी ICRA का मानना है कि साल 2020-21 में भारत की पावर डिमांड में 1 प्रतिशत की गिरावट दर्ज होगी। पिछले 36 साल में पहली बार ऐसा हो रहा है। इस वित्तीय वर्ष में प्लांड-लोड फैक्टर भी गिरकर 54% हो जायेगा। ICRA की गणना यह मानते हुये की गई है कि ल़ॉकडाउन के बाद जुलाई से औद्योगिक और व्यवसायिक गतिविधियां पूरी तरह शुरू हो जायेंगी।

कोरोना के बावजूद क्लाइमेट लक्ष्य पर कोई समझौता स्वीकार नहीं

यूरोपीय सांसदों का कहना है कि कोरोना महामारी के बावजूद साल 2050 के लिये तय क्लाइमेट टार्गेट (जलवायु परिवर्तन पर काबू करने के लिये तय लक्ष्य) से कोई समझौता नहीं होना चाहिये। कुछ सांसदों ने यह मांग की कोयले पर निर्भर इलाकों को साफ ऊर्जा प्रोजेक्ट लगाने के लिये आर्थिक मदद बढ़ानी चाहिये। महामारी की वजह से यूरोप बाकी दुनिया की तरह आर्थिक संकट में है और सरकारें अर्थव्यवस्था को दुरस्त करने के लिये भारी खर्च करना पड़ रहा है। इसके बावजूद यूरोपीय एक्जक्यूटिव कमीशन ने जलवायु परिवर्तन रोकने की मुहिम पर डटे रहने का फैसला किया है।

वनों को कटने से रोकने के लिये अमेज़न में सेना भेजेगा ब्राज़ील पिछले एक साल में अमेज़न के जंगलों में बढ़े कटान के बाद अब ब्राजील, अमेज़न के जंगलों में आग और पेड़ों के कटान पर काबू करने के लिये सेना लगाने की सोच रहा है। ब्राज़ील के उप-राष्ट्रपति हेमिल्टन मोउराव ने कहा है कि सरकार इन वर्षावनों में एक स्थायी कैंप स्थापित करेगी जिसमें सैना और पुलिस के अलावा पर्यावरण एजेंसियों के लोग रहेंगे।


वायु प्रदूषण

विशाखापट्टनम गैस कांड: FIR में कंपनी के किसी कर्मचारी का नाम नहीं

पिछली 7 मई को अलसुबह विशाखापट्टनम में हुये गैस लीक कांड के बाद जो मुकदमा दर्ज किया गया है उसमें दक्षिण कोरियाई कंपनी एलजी पॉलीमर के किसी कर्मचारी का नाम नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक एफआईआर में ‘स्टाइरीन’ शब्द का इस्तेमाल भी नहीं किया गया है जबकि पुलिस अधिकारियों ने इस गैस की मौजूदगी के बारे में पुष्टि कर दी थी। हालांकि एफआईआर में लापरवाही और गैर इरादतन हत्या का केस किया है। विशाखापट्टनम में 7 मई की सुबह करीब 3.30 बजे स्टाइरीन गैस लीक होने से 11 लोगों की जान चली गई थी और करीब 800 लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जिस प्लांट से गैस रिसाव हुआ उसके 800 किलोमीटर के दायरे में रहने वाले लोगों को आधी रात को हटाना पड़ा।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने नुकसान के लिये कंपनी पर 50 करोड़ रुपये का अंतरिम जुर्माना किया है। डाउन टु अर्थ में छपी रिपोर्ट के मुताबिक लीक हुई गैस में स्टाइरीन की मात्रा मानकों से 500 गुना अधिक थी।  आंध्र प्रदेश हाइकोर्ट ने सरकार को आदेश दिया है कि इस मामले में सरकार से रिपोर्ट जमा करने को कहा है और इस कैमिकल लीक कांड का पर्यावरण पर असर जानने के लिये विशेषज्ञों की टीम गठित की है।

हवा साफ हो तो बच सकेंगी 6.5 लाख लोगों की जान

एक नये अध्ययन में कहा गया है कि अगर भारत लॉकडाउन खुलने के बाद भी वायु प्रदूषण का वर्तमान स्तर बरकरार रख पाया तो  हर साल 6.5 लाख लोगों की जान बच सकती है। आईआईटी दिल्ली और चीन के विश्वविद्यालयों की साझा रिसर्च में यह बात कही गई है।

लॉकडाउन के बाद पहले 30 दिनों में देखा गया है कि घटे प्रदूषण की वजह से सेहत को ख़तरे में 52% की कमी आई है।   इस शोध में 16 मार्च से 14 अप्रैल के बीच देश के 22 शहरों की हवा में PM10 और PM 2.5 के अलावा कार्बन मोनो ऑक्साइड (CO) नाइट्रोजन डाइ ऑक्साइड (NO2), ओज़ोन (O3) और सल्फर डाइ ऑक्साइड (SO2) के स्तर का अध्ययन किया गया।  यह स्टडी एक प्रतिष्ठित साइंस पत्रिका में प्रकाशित हुई है।

कोरोना से CO2 उत्सर्जन के ग्राफ में होगी सबसे बड़ी गिरावट: IEA

इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (IEA) का कहना है कि कोरोना संक्रमण के कारण दुनिया भर में लागू आर्थिक और सामाजिक लॉकडाउन से बिजली की मांग में 6% गिरावट होगी। इससे CO2 इमीशन में 8% तक गिरावट होगी। इससे पहले 2009 की आर्थिक मंदी के वक्त CO2 इमीशन में 400 मिलियन टन की गिरावट दर्ज की गई थी लेकिन कोरोना के कारण गिरावट इससे 6 गुना अधिक होगी। दुनिया के सभी देशों को औद्योगिक नीतियों पर सलाह देने वाली IEA का कहना है यह बहुत एहतियात के साथ लगाया गया अनुमान है।

 कोरोना बढ़ाई UK और यूरोप में साइकिलों की मांग

कोरोना महामारी के कारण उपजे नये हालात में UK और यूरोप में साइकिलों की मांग एकदम बढ़ गई है। फ्रांस में 50 यूरो में साइकिल की मरम्मत की जा रही है ताकि लोगों को साइकिल चलाने के लिये उत्साहित किया जा सके। सोच यह है कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी प्रदूषण का स्तर नीचे रखा जा सके।  फ्रांस में 2 करोड़ यूरो की योजना के तहत लोगों को साइकिल चलाना भी सिखाया जा रहा है और पार्किंग का भी इंतजाम किया जा रहा है। फ्रांस की मंत्री एलिज़ाबेथ बोर्नी का कहना है कि देश में 60% यात्रायें 5 किलोमीटर से कम हैं। इस बीच UK में लोग संक्रमण के डर से बस और मेट्रो का प्रयोग नहीं कर रहे हैं। ‘साइकिल टु वर्क’ स्कीम  के कारण आपातकालीन सेवाओं में लगे लोगों की और से ऑर्डर्स 200 प्रतिशत का उछाल दर्ज हुआ है। इसके अलावा पूरे UK में साइकिलों की बिक्री बढ़ गई है। सप्ताह में 20-30 साइकिल बेचने वाले स्टोर्स का कहना है वह अब हर हफ्ते 50 से अधिक साइकिलें बेच रहे हैं।


साफ ऊर्जा 

कोरोना का असर: IEEFA ने अपनी ताज़ा रिसर्च में कहा है कि कोरोना महामारी के कारण भारत साफ ऊर्जा की ओर अधिक तेज़ी से जल्दी बढ़ेगा | Photo: NS Energy

पहला 24-घंटे-सोलर-सप्लाई का ठेका मिला ReNew पावर को

सौर ऊर्जा क्षेत्र में स्टोरेज के साथ 24-घंटे-सप्लाई (राउंड द क्लॉक पावर सप्लाई) का पहला ठेका री-न्यू पावर कंपनी को मिला है जिसमें बहुराष्ट्रीय निवेशक अमेरिकी गोल्डमैन सेस की पूंजी लगी है।  री-न्यू पावर हरियाणा स्थित कंपनी है और 24-घंटे-सप्लाई के लिये  वह सौर ऊर्जा के अलावा हाइब्रिड (पवन-जल विद्युत) और स्टोरेज का इस्तेमाल कर सकती है।  यह 400 मेगा-वॉट  प्रोजक्ट है और कंपनी ₹ 3.6 प्रति यूनिट की दर से सप्लाई करेगी।

कोरोना महामारी से होगा सौर ऊर्जा का पलड़ा भारी: IEEFA

ऊर्जा क्षेत्र पर नज़र रखने वाली संस्था आईईफा (IEEFA) ने अपनी ताज़ा रिसर्च में कहा है कि कोरोना महामारी के कारण भारत साफ ऊर्जा की ओर अधिक तेज़ी से जल्दी बढ़ेगा। आईईफा (IEEFA) के मुताबिक देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान साफ ऊर्जा (सोलर, विन्ड और मिनी हाइड्रो) प्रदूषण फैलाने वाले कोयले के मुकाबले अधिक भरोसेमंद साबित हुई है। सस्ती साफ ऊर्जा के प्रति रुझान तो महामारी से पहले ही दिख रहा था लेकिन देश में तालाबन्दी के बाद पलड़ा कोयले के मुकाबले साफ ऊर्जा की ओर अधिक झुका है। इसकी वजह यह है कि लॉकडाउन में जिस तरह कोयले की सप्लाई प्रभावित होती है वैसी रुकावट पवन या सौर ऊर्जा उत्पादन में नहीं आती। IEEFA रिपोर्ट यह भी कहती है कि हाल में लगे नये बिजली संयंत्रों से जो भी बिजली वित्त वर्ष 2019-20 में मिली उसमें से दो-तिहाई हिस्सा  साफ ऊर्जा से ही मिला।

बिजली दरों में एकरूपता के लिये नया खाका

देश के सभी राज्यों में बिजली दरों में एकरूपता लाने के लिये केंद्रीय विद्युत विनियामक आयोग (CERC) ने  साफ ऊर्जा के लिये एक नई ड्राफ्ट पॉलिसी तैयार की है। इसके लिये अपने सुझाव 28 मई तक दिये जा सकते हैं। नये नियम जुलाई 2020 से मार्च 2023 तक लागू होंगे। ड्राफ्ट पॉलिसी कहती है कि बिजली दरें कई बातों पर निर्भर करेंगी जैसी प्रोजेक्ट में कुल निवेश, कर्ज़ पर ब्याज़, मूल्य ह्रास और रखरखाव का खर्च।  यह नियम उन प्रोजेक्ट्स पर लागू होंगे जहां बिजली दरें राज्य विद्युत विनियामक आयोग (SERCs) तय कर रही हैं। साफ ऊर्जा उत्पादकों का कहना है कि नई नीति लागू होने से राज्य अपने मनमानी कर बार बार नियम नहीं बदल पायेंगे। नई नीति के अनुसार यह देखा जायेगा कि कोई साफ ऊर्जा प्रोजेक्ट किस स्रोत से बिजली बना रहा है। मिनी हाइड्रो, बायोमास आदि के लिये सालाना दरें तय की जायेंगी। सौर, पवन, हाइब्रिड और स्टोरेज प्रोजेक्ट के लिये केस टु केस आधार पर दरें तय होंगी।


बैटरी वाहन 

दोहरा संकट: विश्व बैंक ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में कहा है कि पेरिस डील में तय साफ ऊर्जा लक्ष्य हासिल करने के लिये “बेशकीमती धातुओं” का खनन बढ़ाना होगा लेकिन अंधाधुंध खनन से भी पर्यावरणीय संकट हो सकता है | Photo: Mining.com

लीथियम, ग्रेफाइट जैसी धातुओं का उत्पादन बढ़ाना होगा: विश्व बैंक

साफ ऊर्जा क्षमता को बढ़ाने और ई-मोबिलिटी जैसे विकल्पों पर ज़ोर देने के लिये ज़रूरी है कि लीथियम और ग्रेफाइट जैसी धातुओं का उत्पादन 2050 तक 500% बढ़े। “मिनरल्स फॉर क्लाइमेट एक्शन” नाम  से छपी यह रिपोर्ट कहती है कि पेरिस समझौते के लक्ष्य को पूरा करने के लिय ऐसी धातुओं का 300 करोड़ टन खनन करना होगा।

यह भी एक चिन्ता का विषय है कि यह सभी खनिज वहां हैं जहां दुनिया की सबसे गरीब आबादी रहती है और अंधाधुंध खनन से पर्यावरण का संतुलन बिगड़ सकता है।

BMW का हाइड्रोजन फ्यूल सेल पर निवेश जारी, VW ने बैटरी फैक्ट्री में लगाये 45 करोड़ यूरो

BMW ग्रुप ने ऐलान किया है कि वह 2025 तक नये प्रोडक्ट्स में 3000 करोड़ यूरो का निवेश करेगा। बैटरी वाहनों के अलावा कंपनी हाइड्रोजन फ्यूल सेल में भी निवेश करेगी जिसके प्रोटोटाइप 2015 से विकसित कर किये जा रहे हैं।  हालांकि इस टेक्नोलॉजी के बेहद महंगे होने के कारण टेस्ला और फोक्सवेगन जैसी कंपनियां इसे निरर्थक बता रही हैं।  उधर फोक्सवेगन ने कहा है कि वह इसके बजाय बैटरी वाहन के कारखाने में 45 करोड़ यूरो का निवेश करेगी जो जर्मनी में उसके Northvolt Zwei प्लांट के साथ लग रहा है। इसमें 2024 से काम शुरू हो जायेगा। उधर जर्मनी की डेमलर एजी ने भी बैटरी वाहनों पर संकल्प को यह कहकर दोहराया है कि उनके इरादों पर नहीं कोरोना का कोई असर नहीं पड़ेगा।

वायरलेस चार्जिंग टेक्नोलॉजी में कामयाबी का दावा

अमेरिकी की स्टेन्फर्ड यूनिवर्सिटी  ने घोषणा की है कि उसे बैटरी वाहनों के लिये वायरलेस चार्जिंग टेक्नोलॉजी में कामयाबी मिली है। स्टेन्फर्ड के ताज़ा अध्ययन के मुताबिक इस तकनीक में जो  एम्प्लीफायर इस्तेमाल हो रहा है वह दो से तीन फीट के दायरे में 10 वॉट तक पावर कुछ ही मिलीसेंकेंड्स के भीतर भेज सकता है। अभी तो यह टेक्नोलॉजी किसी छोटी इलेक्ट्रोनिक डिवाइस की चार्ज़िंग में काम आ रही है लेकिन जब इसे विकसित किया जायेगा तो यह बिना केबल के बैटरी वाहनों को चार्ज करने में काम आ सकती है। अगर यह तकनीक कामयाब हुई तो न केवल बैटरी का आकार छोटा हो सकेगा बल्कि एक बार चार्जिंग से कार अधिक दूरी तक जा सकेगी।  ऐसी टेक्नोलॉजी अलग अलग रूप में दुनिया के दूसरे देश टेस्ट कर रहे हैं जिनमें स्वीडन एक देश है जो 2018 से प्रयोग में लगा है।


जीवाश्म ईंधन

कोयले पर समर्थन: जहां संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने सभी देशों से कोयले का प्रयोग बन्द करने की अपील की है वहीं अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी प्रमुख ने भारत द्वारा इसके इस्तेमाल को जायज़ ठहराया है। Photo: Financial Tribune

सरकार ने बिजलीघरों को सप्लाई से पहले ‘कोल-वॉशिंग’ की पाबन्दी हटाई

सरकार ने कोयला कंपनियों पर वह कानूनी बंदिश हटा ली है जिसके तहत उन्हें खान से निकाले कोयले को बिजलीघरों को भेजने से पहले धोना होता था। पर्यावरण मंत्रालय ने अपने ताज़ा नोट में कहा है कि कोयले के धोने से उसमें राख के तत्व (एश-कन्टेन्ट) कम नहीं होता। इस ताज़ा नोट द्वारा सरकार ने 2014 के अपने निर्देश को वापस ले लिया है। वह निर्देश अंतरराष्ट्रीय मंच पर क्लाइमेट चेंज से लड़ने के भारत के संकल्प के तहत था जिसमें भारत ने कहा था कि वह कोयले का प्रयोग भले न घटा सके लेकिन साफ ईंधन का प्रयोग कर कार्बन उत्सर्जन को कम करने की कोशिश करेगा 

अंग्रेज़ी अखबार बिज़नेस स्टैंडर्ड ने इंडस्ट्री के हवाले के कहा है कि धोने से कोयले में मौजूद की राख औसतन 40-45% से घटकर 33% हो जाती है। इसी को आधार बना कर 2014 के निर्देश में सरकार ने कहा था कि खान से 500-750 और 750-1000 किलोमीटर दूर स्थित बिजलीघरों को भेजे जाने वाले कोयले का एश-कन्टेन्ट 34% से अधिक नहीं होना चाहिये। पर्यावरण मंत्रालय ने ताज़ा नोट बिजली मंत्रालय, कोयला मंत्रालय और नीति आयोग के साथ मशविरा कर तैयार किया है।

क्या चीन ने बना लिया है ज़ीरो इमीशन जेट इंजन?  

चीन की वुहान यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक ऐसा इंज़न बनाया है जिससे पूरी दुनिया में बिना कार्बन उत्सर्जन के जहाज़ उड़ सकते हैं। इसमें कम्प्रेस्ड एयर और बिजली का इस्तेमाल होगा।  इसमें हवा को अत्यधिक प्रेशर में रखकर गर्म कर माइक्रोवेव के ज़रिये प्लाज्मा अवस्था – जब इलेक्ट्रॉन परमाणु से अलग होने लगते हैं – में परिवर्तित किया जायेगा। इसी से उत्पन्न शक्ति जीवाश्म ईंधन से चलने वाले आधुनिक जेट-इंजन की तरह काम कर सकती है। 

अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों में प्लाज्मा थ्रस्टर इंजन का प्रयोग कर चुकी है लेकिन अधिक घर्षण वाली परिस्थितियों में ज्यादा शक्ति (थ्रस्ट) की ज़रूरत होती है। उधर इलेक्ट्रिसिटी एयरक्राफ्ट अमूमन 500 किलोमीटर से अधिक दूरी तय नहीं कर पाते।

ऑस्ट्रेलिया: कोरोना की आड़ में पानी तले कोयला खनन को मंज़ूरी

ख़बर है कि न्यू साउथ वेल्स सरकार ने एक अमेरिकी कंपनी को वोरोनोरा वॉटर रिज़रवॉयर के नीचे कोयला खनन करने की इजाज़त दे दी है। अमेरिकी कंपनी पीबॉडी एनर्जी को यह मंज़ूरी तब दी गई जब पूरे देश का ध्यान कोरोना महामारी से निबटने में लगा है। यह जलाशय उस बांध का एक हिस्सा है जो सिडनी को पानी सप्लाई करता है। इस प्रोजेक्ट के खिलाफ पहले ही प्रदर्शन हो चुके हैं क्योंकि यह डर है कि खनन की वजह से पेयजल धातुओं और दूसरे हानिकारक तत्वों से प्रदूषित हो सकता है। दिलचस्प है कि ग्रेटर सिडनी दुनिया का अकेला हिस्सा है जहां सरकारी जलाशय तले इस तरह की माइनिंग को इजाज़त दी जा रही है। एक बड़ी चिन्ता यह भी है कि यह सारा पानी खान में समा सकता है जबकि पिछले 20 में से 12 साल न्यू साउथ वेल्स ने सूखे से लड़ने में बिताये हैं। सरकार के इस फैसले के खिलाफ अदालत में अपील की संभावना है।

कार्बन कॉपी
Privacy Overview

This website uses cookies so that we can provide you with the best user experience possible. Cookie information is stored in your browser and performs functions such as recognising you when you return to our website and helping our team to understand which sections of the website you find most interesting and useful.