फोटो: Filmbetrachter/Pixabay

क्लाइमेट एक्शन में देरी कर रहे हैं देश: यूएन रिपोर्ट

संयुक्त राष्ट्र के नवीनतम आकलन में पाया गया है कि दुनिया के देश जलवायु परिवर्तन पर जरूरी कदम उठाने में देरी कर रहे हैं। ‘ग्लोबल सिंथेसिस रिपोर्ट’ के अनुसार, पेरिस समझौते के 195 सदस्य देशों में से अब तक केवल 64 देशों ने अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) अपडेट किए हैं। चीन और भारत ने अभी तक अपने संशोधित एनडीसी औपचारिक रूप से जमा नहीं किए हैं, जबकि अमेरिका के पिछले प्रशासन द्वारा किए गए वादों को पूरा करने पर भी संदेह बना हुआ है।

रिपोर्ट में बताया गया है कि अब तक जमा किए गए अपडेट साल 2019 के वैश्विक उत्सर्जन के केवल 30 प्रतिशत हिस्से को कवर करते हैं। इन लक्ष्यों के अनुसार, 2035 तक उत्सर्जन में लगभग 10 प्रतिशत की कमी आएगी, जबकि वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए 57 प्रतिशत कमी की आवश्यकता है।

कॉप30 में हो सकता है 1.3 ट्रिलियन डॉलर के फाइनेंस का समझौता

भारत सहित 35 देशों के वित्त मंत्रियों के गठबंधन ने क्लाइमेट फाइनेंस के लिए हर साल 1.3 ट्रिलियन डॉलर जुटाने की पांच सूत्रीय रणनीति पेश की है। यह घोषणा अगले महीने ब्राज़ील में होने वाले कॉप30 सम्मेलन से पहले वाशिंगटन, डीसी में 15 अक्टूबर को की गई। रिपोर्ट में रियायती (कंसेशनल) फाइनेंस बढ़ाने, बहुपक्षीय विकास बैंकों में सुधार, घरेलू क्षमता निर्माण, निजी पूंजी जुटाने और नियामक ढांचे को मजबूत करने का सुझाव दिया गया है।

विशेषज्ञों के अनुसार, विकासशील देशों को 2030 तक जलवायु लक्ष्यों के लिए हर साल 2.4 ट्रिलियन डॉलर और 2035 तक 3.3 ट्रिलियन डॉलर की आवश्यकता होगी। वर्तमान खर्च के मुकाबले यह छह गुना वृद्धि होगी। रिपोर्ट ‘बाकू टू बेलेम रोडमैप फॉर 1.3टी’ नाम से जारी की गई है, जिसे भारत सहित 35 देशों का समर्थन प्राप्त है।

अडॉप्टेशन, रेज़िलिएंस में निवेश से पैदा होंगी 28 करोड़ नौकरियां: रिपोर्ट

एक नई रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर विकासशील देशों में रेज़िलिएंस पर निवेश किया जाए तो 2035 तक 28 करोड़ से अधिक नए रोजगार पैदा हो सकते हैं। यह रिपोर्ट ;रिटर्न्स ऑन रेज़िलिएंस’ नाम से कॉप30 महासम्मेलन से पहले जारी की गई है। इसमें कहा गया है कि ऐसे निवेश से न केवल नौकरियां बढ़ेंगी, बल्कि अर्थव्यवस्था को भी बड़ा फायदा होगा।

रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु अनुकूलन (अडॉप्टेशन) में किया गया निवेश अपनी लागत से कम से कम चार गुना ज्यादा लाभ देता है और इस पर औसतन हर साल 25% का मुनाफा मिलता है। इससे 2030 तक 1.3 ट्रिलियन डॉलर का बाजार तैयार हो सकता है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगर अब कार्रवाई नहीं की गई तो 2050 तक दुनिया की अर्थव्यवस्था में 18–23% तक की गिरावट आ सकती है।

भारत सबसे बड़े वन कार्बन सिंक वाले शीर्ष 10 देशों में: एफएओ

संयुक्त राष्ट्र की खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत दुनिया के उन दस देशों में शामिल है जिनके पास सबसे बड़े वन कार्बन सिंक हैं। वर्ष 2021 से 2025 के बीच भारत के जंगल हर साल लगभग 15 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित (अब्सॉर्ब) कर रहे हैं।

रिपोर्ट में बताया गया है कि इस अवधि में विश्व के जंगलों ने हर साल करीब 0.8 अरब टन CO2 को हटाया, जबकि वनों की कटाई से 2.8 अरब टन CO2 का उत्सर्जन हुआ। यूरोप और एशिया सबसे मजबूत कार्बन सिंक रहे, जबकि अमेरिका और अफ्रीका में वनों की कटाई से सबसे अधिक उत्सर्जन हुआ।

रूस सबसे बड़ा कार्बन सिंक वाला देश है, उसके बाद चीन, अमेरिका, ब्राज़ील, भारत और बेलारूस का स्थान है। ये दस देश मिलकर विश्व के कुल वन कार्बन अवशोषण का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा रखते हैं। एफएओ ने कहा कि एक दशक पहले की तुलना में अब वैश्विक स्तर पर वन कार्बन अवशोषण घटकर 1.4 अरब टन से 0.8 अरब टन रह गया है।

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