सरकार ने वायु प्रदूषण और पर्यावरण से जुड़े नियमों को तोड़ने वालों के लिये एक माफी योजना तैयार की है। पर्यावरण के जानकार इसे पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से एक झटका और नियम तोड़ने वालों को बचाने का हथियार मान रहे हैं। हिन्दुस्तान टाइम्स में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक जिन प्रोजेक्ट के पास पर्यावरणीय अनुमति नहीं होगी उनका दोबारा मूल्यांकन होगा और नियम तोड़ने वाली कंपनी पर जुर्माना लगाया जायेगा। जानकार कहते हैं कि यह प्रोजेक्ट के आकार और प्रभाव को जाने बिना उसे वैधता देने जैसा है और गैर-कानूनी प्रोजेक्ट्स को । रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार की “नई एमनेस्टी स्कीम” साल 2020 के ड्राफ्ट ईआईए नोटिफिकेशन में भी थी जिसमें परियोजनाओं को “निर्माण के बाद” अनुमति देने का प्रावधान था। इस ईआईए नोटिफिकेशन की खूब आलोचना हुई थी।
सरकार के नये प्रावधानों के मुताबिक अगर कोई प्रोजेक्ट नियमों की अवहेलना करके बना है लेकिन और “मंज़ूरी देने योग्य” है तो उसे अपने संशोधन प्लान की लागत के बराबर बैंक गारंटी जमा करनी होगी। इसके अलावा नेचर और समुदाय के लिये संसाधनों को बढ़ाने का प्लान जमा करना होगा।
रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार का कहना है कि सरकार की नई योजना नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेश का पालन करने के लिये है जिसमें “पहले हुये नियमों के उल्लंघन पर संबंधित अधिकारी प्रदूषण करने वाला जुर्माना भरे के सिद्धांत पर कार्रवाई के लिये स्वतंत्र हैं।”
दिल्ली सरकार ने प्रदूषण कर रहे कोयला बिजलीघरों को बन्द करने की याचिका वापस ली
दिल्ली में कोल पावर प्लांटों के प्रदूषण का प्रकोप बना रहेगा। दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर इस याचिका को वापस ले लिया है जिसमें मांग की गई थी कि दिल्ली के पड़ोसी हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के उन 10 कोल पावर प्लांट्स को बन्द किया जाये जिन्होंने अब तक सल्फर डाई ऑक्साइड नियंत्रण के लिये एफजीडी टेक्नोलॉजी नहीं लगाई है। दिल्ली ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के उस आदेश को रद्द किया जाये जिसमें बोर्ड ने एफजीडी तकनीक लगाने की समय सीमा बढ़ा दी थी। दिल्ली सरकार ने अदालत से इस मामले में केंद्र सरकार के नोटिफिकेशन को भी रोकने की मांग की थी।
डाउन टु अर्थ में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक कि सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के कई आदेशों के बावजूद बिजलीघरों द्वारा वायु प्रदूषण को रोकने के लिये कुछ नहीं किया गया है।
साफ हवा में कृषि उत्पादकता 20% बढ़ी: अमेरिकी शोध
अमेरिका की स्टेफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोध में दावा किया गया है कि वायु प्रदूषण कम होने पर 1999 और 2019 के बीच मक्का और सोयाबीन की पैदावार में 20% इज़ाफा हुआ। इसकी कीमत 500 करोड़ डॉलर प्रतिवर्ष आंकी गई है। वैज्ञानिकों ने उपग्रह की मदद से कई क्षेत्रों में ओज़ोन (कार एक्ज़ास्ट से निकलने वाला प्रदूषक), पार्टिकुलेट मैटर और कोयला बिजलीघरों से निकलने वाले नाइट्रोजन और सल्फर का अध्ययन किया। वैज्ञानिकों ने यह स्पष्ट अंतर पाया कि कोयला संयंत्रों से दूर उगने वाली फसल की पैदावार अधिक होती है।
इस रिसर्च की पूरी समायवधि के दौरान मक्का और सोयाबीन की औसत पैदावार पांच प्रतिशत घटी। यह शोध प्रदूषण को पकड़ने में सैटेलाइट की अद्भुत क्षमता को भी बताता है जिसका इस्तेमाल उन देशों में अधिक हो सकता है जहां एयर क्वॉलिटी मॉनिटरिंग लचर है।
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