लॉस एंड डैमेज फंड बोर्ड ने जलवायु परिवर्तन से प्रभावित विकासशील देशों को आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने के लिए जरूरी व्यवस्था तैयार कर ली है और अब इस फंड की पहली किस्त अगले साल यानि 2025 में वितरित की जा सकती है। अज़रबैजान की राजधानी बाकू में 21 सितंबर को हुई बैठक में बोर्ड ने कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए।
वर्षों की बातचीत के बाद, तीन-दिवसीय बैठक के दौरान इन निर्णयों को अंतिम रूप दिया गया। अज़रबैजान इस साल के संयुक्त राष्ट्र जलवायु महासम्मेलन कॉप29 की मेजबानी करेगा।
“बाकू में मिली यह सफलता जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह सचमुच ऐतिहासिक दिन है,” कॉप29 के मनोनीत अध्यक्ष मुख्तार बाबायेव ने कहा।
बाकू में लिए गए फैसलों में फंड के कार्यकारी निदेशक का चुनाव और बोर्ड द्वारा कई महत्वपूर्ण समझौतों का समर्थन शामिल है। इन समझौतों के तहत व्यवस्था बनाई गई है कि विश्व बैंक कैसे फंड के सचिवालय की मेजबानी करेगा और इसके ट्रस्टी के रूप में कार्य करेगा। साथ ही योगदान के लिए एक टेम्पलेट भी बनाया गया है।
कॉप29: बाकू ने की एक्शन एजेंडा में 14 बिंदुओं पर सहमत होने अपील
इस वर्ष जलवायु महासम्मेलन के मेजबान अज़रबैजान ने वैश्विक कार्रवाई के लिए 14 पहलों की घोषणा की है, जिनमें क्लाइमेट फाइनेंस, हरित ऊर्जा, हाइड्रोजन विकास, मीथेन उत्सर्जन में कटौती आदि बिंदुओं को शामिल किया गया है।
एक प्रमुख प्रतिज्ञा का लक्ष्य है 2030 तक वैश्विक ऊर्जा भंडारण क्षमता को 1,500 गीगावाट तक बढ़ाना, जो 2022 के स्तर से छह गुना अधिक है। इसमें 2040 तक 80 मिलियन किलोमीटर बिजली ग्रिड को जोड़ना या नवीनीकृत करना भी शमिल है, जो सौर और पवन आदि नवीकरणीय ऊर्जा के भंडारण के लिए जरूरी है।
इन 14 में एक क्लाइमेट फाइनेंस एक्शन फंड (सीएफएएफ) भी शामिल है, जिसे जीवाश्म ईंधन उत्पादक देशों और कंपनियों के स्वैच्छिक योगदान से वित्तपोषित किया जाएगा। सीएफएएफ का लक्ष्य शमन, अनुकूलन और अनुसंधान एवं विकास प्रयासों में सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के निवेश को उत्प्रेरित करना है। इसके अतिरिक्त, बाकू इनिशिएटिव फॉर क्लाइमेट फाइनेंस, इन्वेस्टमेंट एंड ट्रेड (बीआईसीएफआईटी) की घोषणा की गई है जो हरित आर्थिक विविधीकरण पर केंद्रित है।
इन स्वैच्छिक पहलों का उद्देश्य औपचारिक कॉप समझौतों का समर्थन करते हुए जलवायु कार्रवाई में तेजी लाना है। हालांकि, कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि मजबूत निगरानी और नीति समर्थन के बिना केवल स्वैच्छिक प्रतिज्ञाओं पर भरोसा करना सही नहीं है।
भारत के 50% जिलों में प्राकृतिक आपदाओं को झेल सकने वाले बुनियादी ढांचे की कमी
रियल एस्टेट कंसल्टेंट सीबीआरई के एक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में लगभग 50 प्रतिशत सार्वजनिक इंफ्रास्ट्रक्चर आपदा प्रबंधन के लिए उपयुक्त नहीं है।
अध्ययन में कहा गया कि “भारत प्राकृतिक और मानव जनित आपदाओं में उल्लेखनीय वृद्धि से जूझ रहा है, जिससे अर्थव्यवस्था, जनसंख्या और दीर्घकालिक सस्टेनेबल डेवलपमेंट के लिए खतरा पैदा हो रहा है।” डेमोग्राफी और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में बदलाव, अनियोजित शहरीकरण, उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में विकास, पर्यावरण को नुकसान, जलवायु परिवर्तन और भूवैज्ञानिक खतरों के कारण आपदाओं का जोखिम और बढ़ रहा है।
आपदाओं से निपटने के लिए उचित इंफ्रास्ट्रक्चर न होने से आर्थिक क्षति होती और जीडीपी को नुकसान होता है, रिपोर्ट में कहा गया।
अमीरों पर तेजी से बढ़ रहा है जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का खतरा: शोध
जर्मनी के पोस्टडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च के शोधकर्ताओं ने एक नया शोध प्रकाशित किया है जिसके अनुसार अमीरों के लिए जलवायु परिवर्तन से प्रभावित होने का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। शोध के मुताबिक़ अभी भी जलवायु परिवर्तन सबसे अधिक गरीबों को ही प्रभावित करता है क्योंकि उनके पास अडॉप्टेशन के पर्याप्त साधन नहीं होते।
लेकिन जिस तरह वैश्विक स्तर पर वस्तु और सेवाओं की सप्लाई चेन पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का असर पड़ रहा है, उससे उच्च-आय वर्गों पर भी इसका प्रभाव बढ़ सकता है।
हालांकि अध्ययन में यह भी कहा गया है कि किसी भी देश में विभिन्न आय वर्गों पर जलवायु परिवर्तन का कितना प्रभाव पड़ता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि अडॉप्टेशन यानि अनुकूलन के लिए जरूरी विकल्प किसके पास अधिक हैं।
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