वित्तीय वर्ष 2024-25 में ‘प्रदूषण नियंत्रण’ योजना के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को आवंटित 858 करोड़ रुपये में से अब तक 1 प्रतिशत से भी कम का उपयोग किया गया है। यह बात मंगलवार को संसद में पेश एक रिपोर्ट से पता चली।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन पर विभाग-संबंधी स्थायी समिति ने अनुदानों की मांगों (2025-26) की रिपोर्ट पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए मंत्रालय से “आत्मनिरीक्षण” करने और धन के उपयोग न किये जाने के कारणों पर गंभीरता से ध्यान देने को कहा।
योजना के तहत कुल 858 करोड़ रुपये का संशोधित आवंटन था जिसमें से 21 जनवरी तक केवल 7.22 करोड़ रुपये ही व्यय हुआ। पैनल ने को अपने जवाब में मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि इस योजना को जारी रखने के लिए अनुमोदन की प्रतीक्षा के कारण धन का उपयोग नहीं किया जा सका। रिपोर्ट में दिखाया गया है कि पिछले दो वित्तीय वर्षों में, मंत्रालय ने इस योजना के लिए आवंटित सारा बजट खर्च कर दिए।
यह योजना पूरी तरह से केंद्र द्वारा चलाई जाती है। सरकार का नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) इस फंड से चलता है। एनसीएपी के तहत 2026 तक देश भर के 131 शहरों में पार्टिकुलेट मैटर पीएम 10 (सूक्ष्म प्रदूषक) प्रदूषण को कम करने का लक्ष्य रखा है। इनमें 49 शहर दस लाख से अधिक आबादी वाले हैं और बाकी 82 दूसरे शहर हैं जिनके लिए योजना के तहत 3072 करोड़ रुपये 2019-20 से 2025-26 के बीच खर्च किये जाने थे।
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