साइंस जर्नल “साइंस एडवांसेज” में छपी रिसर्च से पता चलता है कि हिमालय में ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार लगभग दो गुना हो गई है। वैज्ञानिकों और कोलंबिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का कहना है कि यह बदलाव पिछले दो दशकों में देखा गया है। हिमालयी ग्लेशियरों से अब हर साल 800 करोड़ टन बर्फ गायब हो रही है और पर्याप्त हिमपात न होने की वजह से उसकी भरपाई नहीं हो पा रही।
करीब 2000 किलोमीटर क्षेत्र में फैली हिमालय पर्वत श्रंखला में 10 हज़ार से अधिक छोटे बड़े ग्लेशियर हैं जिनमें कुल 60,000 करोड़ टन बर्फ जमा है। वैज्ञानिकों ने पिछले 40 साल के आंकड़ों का मिलान अमेरिकी खुफिया सैटेलाइट से ली गई तस्वीरों के साथ किया और पाया कि जिस रफ्तार से 1975 और 2000 के बीच ग्लेशियर पिघले उसकी दुगनी रफ्तार से 2003 और 2016 के बीच पिघल रहे हैं।
दुनिया भर में गर्मी की मार; कुवैत, सऊदी अरब बने भट्टी
जून के महीने में दुनिया के तमाम देश भट्टी की तरह तपते रहे। कुवैत और सऊदी अरब में तापमान सबसे अधिक रहा। कुवैत में तापमान 52°C से अधिक नापा गया और सीधे सूरज के नीचे तो यह 63°C रहा, जबकि सऊदी अरब के अल-मजमाह में तापमान 55°C पहुंच गया। भारत में एक ओर जहां भीषण गरमी से तमाम जगह पानी की भारी किल्लत हो गई है वहीं बिहार में हीट-वेव से 4 दिनों के भीतर ही 142 लोगों के मरने की ख़बर आई।
इस साल मार्च के महीने से गर्मी का जो प्रचंड रूप दिखना शुरू हुआ उसके बाद करीब 100 दिन के भीतर 22 राज्यों में 73 से अधिक जगह हीटवेव की मार दिखी है। यह डर है कि इस सदी के अंत तक आधी दुनिया में हर साल तापमान के रिकॉर्ड टूटते रहेंगे।
अरब सागर में बढ़ रही है चक्रवाती तूफानों की मार
गुजरात चक्रवाती तूफान वायु की मार से बाल-बाल बचा लेकिन जानकार कहते हैं कि आने वाले दिनों में ऐसे तूफानों से विनाशलीला लगातार बढ़ेगी। आशंका है किआमतौर पर शांत रहने वाले भारत के पश्चिमी तट पर अब अधिक संख्या में साइक्लोन टकरायेंगे। चक्रवाती तूफानों की बढ़ती संख्या आने वाले दिनों के संकट की ओर इशारा करती है। जहां 1998 से 2013 के बीच 5 बड़े चक्रवाती तूफान भारत में आये वहीं पिछले 8 महीनों में ही तितली, गज और फानी जैसे तूफानों ने ज़बरदस्त तबाही की है।
2019 का जून होगा सबसे खुश्क महीना
आंकड़े बताते हैं कि बरसात के मौजूदा हाल को देखते हुये जून सबसे खुश्क महीनाहोना तय है। देश में जून से सितंबर के 3 महीनों को मॉनसून सीज़न कहा जाता है और सामान्य तौर पर जून में कुल मॉनसून का 17% पानी बरसता है लेकिन जून में पिछले साल के मुकाबले इस साल 44% बारिश हुई है। सवाल है कि क्या जुलाई और अगस्त में इस साल हुई कम बरसात की भरपाई हो पायेगी।
कनाडा में पर्माफ्रॉस्ट के बदलते हालात से वैज्ञानिक चकित
ग्लोबल वॉर्मिंग पर नज़र रखे वैज्ञानिकों ने पाया है कि कनाडा में ध्रुवीय बर्फ यानी पर्माफ्रॉस्ट अनुमानित समय से 70 साल पहले ही पिघलने लगी है। यह जलवायु परिवर्तन का एक और विनाशकारी लक्षण है। वैज्ञानिक कह रहे हैं कि हर साल पड़ रही असामान्य गर्मी हज़ारों साल से जमे विशाल हिमखंडों को पिघला रही है। इस पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से कई हज़ार टन ग्रीन हाउस गैसें (मीथेन इत्यादि) रिलीज़ होंगी जो धरती का तापमान और बढ़ायेंगी।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।
आपको यह भी पसंद आ सकता हैं
-
‘परफेक्ट स्टॉर्म’ हेलेन ने अमेरिका के दक्षिण-पूर्व में मचाई तबाही, 191 लोगों की मौत
-
नेपाल में बाढ़, लगभग 200 लोगों के मरने की आशंका
-
मुंबई से बंगाल तक बारिश ने किया बेहाल
-
उत्तराखंड: बागेश्वर के गांवों में दिखीं दरारें, स्थानीय लोगों ने खड़िया खनन को बताया वजह
-
शुष्क हिस्सों में रिकॉर्ड बारिश, गुजरात में ‘भारी बारिश’ से 28 लोगों की मौत