केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने जन विश्वास (प्रावधानों में संशोधन) अधिनियम, 2023 को लागू करने के लिए कई मसौदा अधिसूचनाएं जारी की हैं। सरकार ने कहा है कि इन प्रावधानों से ‘विश्वास-आधारित शासन, कारोबारी सुगमता और जीवन की सुगमता’ को बढ़ावा मिलेगा।
प्रावधानों में वायु अधिनियम, 1981 और जल अधिनियम, 1974 में संशोधन करने का प्रस्ताव है। इसके तहत एक नया फ्रेमवर्क बनाया जाएगा जिससे कुछ उद्योगों को केंद्रीय या राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की मंजूरी की अनिवार्यता से छूट मिल सकती है। इसमें वे उद्योग होंगे जिन्हें गैर-प्रदूषणकारी माना जाता है या जिनका पर्यावरणीय प्रभाव के लिए आकलन किया जा रहा है।
मसौदा अधिसूचनाओं में एक नई विश्वास-आधारित व्यवस्था शुरू करने का भी प्रस्ताव है, जिसके तहत पर्यावरणीय अपराधों की सुनवाई के लिए निर्णायक अधिकारियों की नियुक्ति करके उद्योगों के पर्यावरणीय प्रभाव की निगरानी की जाएगी।
विशेषज्ञों ने इन बदलावों के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि ऐसे प्रावधानों से कंपनियों के लिए बिना किसी परिणाम के प्रदूषण फैलाना आसान हो सकता है और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड उद्योगों की निगरानी करने से जुड़ी कुछ शक्तियां खो सकते हैं।
भारत के जिलों में वायु प्रदूषण से सभी आयु समूहों में मृत्यु का जोखिम बढ़ा: शोध
एक नए अध्ययन के अनुसार, भारत के जिन जिलों में वायु प्रदूषण राष्ट्रीय मानकों से अधिक है, वहां सभी आयु समूहों में मृत्यु का जोखिम अधिक पाया गया है। मुंबई-स्थित अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान और अन्य संस्थानों से जुड़े रिसर्चरों द्वारा किया गए इस अध्ययन के अनुसार, वायु प्रदूषण के कारण नवजात शिशुओं में मृत्यु का जोखिम 86 प्रतिशत, पांच साल से कम उम्र के बच्चों में 100-120 प्रतिशत और वयस्कों में 13 प्रतिशत बढ़ गया।
शोधकर्ताओं ने भारत के 700 से अधिक जिलों में सूक्ष्म पार्टिकुलेट मैटर (पीएम2.5) प्रदूषण के स्तर का अध्ययन किया।
उन्होंने पाया कि जिन घरों में अलग से रसोई नहीं है, वहां नवजात शिशुओं और वयस्कों में मृत्यु की संभावना अधिक है। शोधकर्ताओं ने कहा कि उत्तर भारतीय उपमहाद्वीप में फैले इंडो-गैंजेटिक प्लेन में पीएम2.5 का स्तर आम तौर पर अधिक है, जिसके कई कारण हैं, मसलन फसलों की पराली को जलाने से लेकर औद्योगिक और विनिर्माण केंद्रों से उत्सर्जन आदि।
ब्रिटेन की नदियों में पाया गया एंटीबायोटिक्स का ‘चिंताजनक’ स्तर
इंग्लैंड स्थित यॉर्क विश्वविद्यालय के एक शोध के अनुसार, खतरनाक फार्मास्यूटिकल्स ग्रामीण इलाकों की नदियों को प्रदूषित कर रहे हैं। यॉर्कशायर डेल्स सहित इंग्लैंड के राष्ट्रीय उद्यानों में किए गए इस अध्ययन में पाया गया कि कई नदियां एंटीडिप्रेसेंट और एंटीबायोटिक जैसी दवाओं से प्रदूषित हो गई हैं।
जिन 54 स्थानों पर शोध किया गया, उनमें से 52 स्थानों पर नदी के पानी में दवाएं पाई गईं। कुछ स्थानों पर तो फार्मास्यूटिकल्स का स्तर मीठे पानी के जीवों और उस पानी के संपर्क में आने वाले मनुष्यों के लिए “चिंताजनक” था। सभी नेशनल पार्कों में एंटीहिस्टामाइन सेटिरिज़िन और फ़ेक्सोफ़ेनाडाइन और टाइप 2 डायबिटीज के उपचार में प्रयोग की जाने वाली मेटफ़ॉर्मिन दवाएं पाई गईं।
डल झील में प्रदूषण से निपटने के लिए एनजीटी ने बनाई समिति
नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (एनजीटी) ने श्रीनगर की डल झील में प्रदूषण से निपटने के लिए एक संयुक्त समिति का गठन किया है। ट्राइब्यूनल ने अपने आदेश में कहा है कि यह “समिति डल झील में प्रदूषण के स्रोतों और इसके लिए जिम्मेदार व्यक्तियों/संस्थाओं का पता लगाएगी और उचित उपचारात्मक और दंडात्मक कार्रवाई करेगी। समिति हाउसबोटों के लिए पर्यावरण प्रबंधन दिशानिर्देश भी तैयार करेगी।”
ट्रिब्यूनल विभिन्न स्रोतों से नगरपालिका सीवेज और अन्य प्रदूषकों के निर्वहन के कारण डल झील की बिगड़ती स्थिति के संबंध में एक मामले की सुनवाई कर रहा था। एनजीटी ने आदेश दिया कि अनुपचारित सीवेज सहित प्रदूषक डल झील में प्रवेश न करें, इसके लिए शीघ्र कार्रवाई करने की जरूरत है।
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