केंद्रीय कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी ने घोषणा की है कि भारत 2025-26 तक कोयले का निर्यात शुरू कर देगा। भारत अभी अपनी ज़रूरतों के लिये कोयला आयात भी करता है लेकिन अब उसकी कोशिश गैर-कोकिंग कोयले का निर्यातक बनने की है।
देश में 90 मीट्रिक टन ऐसे कोयले का आयात होता है जिसकी भरपाई देश में खनन किए गए कोयले से हो सकती है और जिसे 2025-26 तक रोक दिया जाएगा। सरकार ने गर्मी के मौसम में कोयले की बेरोकटोक सप्लाई का भी आश्वासन दिया है, जब अप्रैल के दौरान अधिकतम मांग (पीक डिमांड) 229 गीगावॉट होने की संभावना है।
वित्त वर्ष 2023 में कोयले की घरेलू मांग 1,087 मिलियन टन तक पहुंचने का अनुमान है और वर्तमान में 116-117 मीट्रिक टन कोयले के स्टॉक के साथ रिकॉर्ड कोयले का उत्पादन लगभग 900 मीट्रिक टन हो चुका है।
सरकार ने कोयला ब्लॉकों के वाणिज्यिक खनन के लिए 106 खानों को भी नीलामी के दायरे में रखा है। प्रस्तावित कुल खानों में से 61 ब्लॉक्स में कोयले की मात्रा की पूरी जानकारी है जबकि 45 में अभी आंशिक रूप से ही आकलन किया गया है। 95 गैर-कोकिंग कोल खानों, 10 लिग्नाइट खानों और एक कोकिंग कोल खदानों की पेशकश की जा रही है।
आईएफसी नहीं देगा नए कोयला प्रोजेक्ट्स को कर्ज़
इंटरनेशनल फाइनेंस कॉर्पोरेशन (आईएफसी) जो कि विश्व बैंक का हिस्सा है, नए कोयला प्रोजेक्ट्स के लिए ऋण नहीं देगा। पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इसका स्वागत किया है और कहा है यह कदम बहुत पहले ही उठा लिया जाना चाहिए था। अब तक चली आ रही ग्रीन इक्विटी एप्रोच नीति (जीईए) के तहत जिन बिचौलिया वित्तीय संस्थानों (जैसे इन्वेस्टमैंट बैंक) को कॉर्पोरेशन कर्ज़ देता था उन पर यह शर्त होती थी कि वे 2025 तक कोयले में निवेश आधा और 2030 तक पूरी तरह खत्म कर देंगे, हालांकि उन पर नए कोयला प्रोजेक्ट में निवेश न करने की बाध्यता नहीं होती थी।
कोयले में निवेश करने वाले वित्तीय संस्थानों (या बैंकों) को आईएफसी ने मई 2019 से अब तक 40 बिलियन डॉलर की वित्तीय मदद की है। नियमों में ढिलाई के कारण इन संस्थानों ने पिछले 5 साल में इंडोनेशिया और विएतनाम समेत कई देशों में बड़े नए कोयला प्रोजेक्ट्स में पैसा लगाया।
भारत में आज बहुत सारे वित्तीय संस्थान हैं जिन्होंने इस तरह निवेश किया है। वर्तमान में 88 संस्थानों के करीब 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर (40,000 करोड़ रुपए) एनर्जी और उससे जुड़े प्रोजेक्ट्स में लगे हैं और इसमें नवीनीकरणीय ऊर्जा भी शामिल है। साल 2021 में आईएफसी और भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के बीच एक करार हुआ था।
इसमें आईएफसी के शेयरहोल्डर बनने के बाद बैंक द्वारा ‘किसी नए कोल प्रोजेक्ट को फंडिंग बन्द करने की प्रतिबद्धता’ का हवाला है।
रूस के सबसे बड़े तेल उत्पादक रोसनेफ्ट और इंडियन ऑयल के बीच करार
तेल की आपूर्ति में पर्याप्त वृद्धि करने के लिए, रूस के सबसे बड़े तेल उत्पादक रॉसनेफ्ट ने इंडियन ऑयल कॉर्प के साथ एक टर्म एग्रीमेंट किया है। यूक्रेन युद्ध के बाद यूरोपीय देशों से तमाम प्रतिबंधो के कारण रूस अब उनकी जगह नए खरीदार तलाश रहा है।
भारत मार्च में रूस के कच्चे तेल यूराल का सबसे बड़ा खरीदार रहा। यूराल रूस से निकलने वाले कच्चे तेल का एक प्रकार है जो सबसे अधिक निर्यात होता है। समुद्र से निकले गए ऐसे कच्चे तेल का 50% निर्यात भारत को हुआ और चीन दूसरे नंबर पर है।
रॉसनेफ्ट ने कहा कि रूस पहली बार भारत के पांच सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में एक बन गया है। साल 2022 में दोनों देशों के बीच 38.4 बिलियन डॉलर (3.2 लाख करोड़ रुपए) तक पहुंच गया।
थर्मल पावर संयंत्रों को लगभग पांच गुना तेजी से करना होगा बंद
ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट यह बताती है कि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री तक सीमित रखने के लिए के लिए, 2040 तक कोयला बिजली संयंत्रों को साढ़े चार गुना अधिक तेजी से रिटायर करना होगा। रिपोर्ट के मुताबिक कोयले के प्रयोग में कटौती की मौजूदा रफ्तार काफी नहीं है।
आंकड़ें बताते हैं की 2022 में जहां करीब 25,968 मेगावाट क्षमता के कोयला बिजलीघरों को बन्द किया गया था, वहीं 2030 तक और 25 गीगावाट कोयला पावर संयंत्रों को बंद करने का लक्ष्य रखा गया है।
चीन के अलावा बाकी विकासशील देशों ने इस मामले में प्रगति की है और अपनी नियोजित कोयला बिजली क्षमता में 23 गीगावाट की कटौती की है।
इसके विपरीत चीन ने कोयला बिजली क्षमता में 126 गीगावाट वृद्धि की योजना बनाई है।
भारत की बात करें तो 2022 के दौरान देश में करीब 784 मेगावाट कोयला बिजली क्षमता को रिटायर किया गया है, और 2,220 मेगावाट की नई कोयला बिजली योजनाओं को रद्द कर दिया गया है। लेकिन साथ ही भारत सरकार ने कोयला ब्लॉकों के वाणिज्यिक खनन के लिए 106 खानों को भी नीलामी के दायरे में रखा है।
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