भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने नियमित मॉनिटरिंग के द्वारा देश में ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस (एचएमपीवी) के तीन मामलों का पता लगाया है। इनमें से दो मामले कर्नाटक में मिले हैं और एक गुजरात में। दोनों मामलों में संक्रमण ब्रोन्कोन्यूमोनिया से पीड़ित शिशुओं में पाया गया है जो अब ठीक हो रहे हैं।
ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस (एचएमपीवी) कोरोनावायरस की तरह ही श्वसनतंत्र को प्रभावित करने वाला वायरस है, जिसके पीड़ितों में फ्लू जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। हाल ही में उत्तरी चीन में, खासकर बच्चों में, इस वायरस के मामलों में वृद्धि देखी गई है। इसके कारण अस्पतालों में भीड़ बढ़ गई है और तस्वीरें कोविड-19 महामारी के दिनों की याद दिला रही हैं।
हालांकि भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि अबतक मिले तीनों मामले अंतर्राष्ट्रीय यात्रा से नहीं जुड़े हैं, जो संकेत है कि संक्रमण स्थानीय रूप से फैल रहा है। मंत्रालय ने यह भी कहा कि एचएमपीवी भारत सहित वैश्विक स्तर पर पहले से ही प्रचलन में है, और देश में इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारी (आईएलआई) या सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी इलनेस (एसएआरआई) के मामलों में कोई असामान्य वृद्धि नहीं हुई है।
कोविड-19 और दूसरे श्वसन संक्रमणों की तरह ही एचएमपीवी संक्रमित व्यक्तियों के खांसने, छींकने या दूषित सतहों को छूने या उनके सीधे संपर्क में आने से फैलता है। इसके लक्षण हल्की सर्दी से लेकर गंभीर श्वसन समस्याओं जैसे ब्रोंकाइटिस या निमोनिया तक हो सकते हैं। यह विशेष रूप से शिशुओं, बुजुर्गों और उनको अपना निशाना बनाता है जिनकी इम्यूनिटी कमजोर है।
फिलहाल एचएमपीवी के लिए कोई विशिष्ट एंटीवायरल उपचार या टीका नहीं है, और लक्षणों के प्रबंधन के द्वारा इलाज किया जाता है। आम तौर पर यह बीमारी हफ्ते भर में ठीक हो जाती है लेकिन गंभीर मामलों को ठीक होने में कई दिन लग सकते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) स्थिति पर नजर रख रहा है और उसने चीन से इसके बारे में अधिक जानकारी मांगी है। इस बीमारी की रोकथाम भी मास्क लगाने और स्वच्छता बनाए रखने से की जा सकती है।
जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ रहा जोखिम
जलवायु परिवर्तन के कारण इकोसिस्टम में बदलाव होता है जिससे वायरस के पनपने के लिए अनुकूल स्थितियां पैदा होती हैं। इससे एचएमपीवी जैसे संक्रमण का खतरा काफी बढ़ जाता है। वैश्विक तापमान और आर्द्रता में वृद्धि के साथ वर्षा के बदलते पैटर्न से रेस्पिरेटरी वायरस का जीवनकाल और संक्रमण बढ़ सकता है। इसके अतिरिक्त, चरम मौसम की घटनाओं के कारण आबादी के विस्थापन से भी वायरस अधिक आसानी से फैलते हैं।
बढ़ता वायु प्रदूषण भी श्वसन स्वास्थ्य को कमजोर करता है, जिससे लोग संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं। वैज्ञानिकों ने यह भी देखा है कि जैव विविधता में हुए बदलाव से नए वायरस और बैक्टीरिया जानवरों से इंसानों में संचारित हो सकते हैं जिससे नई महामारियों का खतरा भी बढ़ सकता है।
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