पावर डिमांड को पूरा करने के लिए 600 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता की आवश्यकता: रिपोर्ट

दिल्ली स्थित काउंसिल ऑन एनर्जी, इंवायरेंमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) के मुताबिक भारत को बढ़ती बिजली मांग को विश्वसनीय और किफायती तरीके से पूरा करने के लिए 2030 तक अपनी गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता को 600 गीगावाट (जीडब्ल्यू) तक बढ़ाने की जरूरत है।

अध्ययन के अनुसार, यदि बिजली की मांग केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) द्वारा अनुमानित दर से बढ़ती है, तो भारत की मौजूदा, निर्माणाधीन और नियोजित उत्पादन क्षमताएं 2030 में बिजली की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त होंगी। 

लेकिन शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला है कि अगर जलवायु परिवर्तन के कारण गर्मी बढ़ने या मजबूत आर्थिक विकास के कारण बिजली की मांग मौजूदा अनुमानों से आगे निकल जाती है, तो 600 गीगावॉट गैर-जीवाश्म क्षमता का एक उच्च नवीकरणीय ऊर्जा (आरई) मार्ग सबसे माकूल और व्यवहारिक समाधान प्रदान करता है। सीईईडब्ल्यू अध्ययन में कहा गया है, “इसमें 377 गीगावॉट सौर, 148 गीगावॉट पवन, 62 गीगावॉट जलविद्युत और 20 गीगावॉट परमाणु ऊर्जा शामिल होगी।”

अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि 600 गीगावाट स्वच्छ ऊर्जा के संयंत्र अगर विभिन्न राज्यों में लगाये जायें तो इससे उत्पादन लागत में 6-18 पैसे प्रति यूनिट की कमी आ सकती है और नए कोयला संयंत्रों की आवश्यकता समाप्त हो सकती है। इससे बिजली खरीद लागत में ₹13,000 करोड़ से ₹42,400 करोड़ के बीच की बचत हो सकती है और 53,000 से 100,000 अतिरिक्त नौकरियां पैदा हो सकती हैं। साथ ही वित्त वर्ष 24 की तुलना में कार्बन उत्सर्जन में 9-16% की कटौती हो सकती है।

रूफटॉप सोलर से 0.13 डिग्री सेल्सियस तक कम हो सकता है धरती का तापमान: शोध

चीनी शोधकर्ताओं और सिंगापुर और मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) के विशेषज्ञों द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, यदि विश्वभर में सभी उपयुक्त छतों पर सौर पैनल लगाए जाएं तो पृथ्वी के तापमान में 0.13 डिग्री सेल्सियस तक की कमी आ सकती है। 

यह निष्कर्ष सौर ऊर्जा के दोहरे लाभ को रेखांकित करता है: एक ओर यह नवीकरणीय ऊर्जा का स्रोत है, वहीं दूसरी ओर यह जलवायु परिवर्तन को कम करने में सहायक हो सकता है। 

अध्ययन में बताया गया है कि सौर पैनलों की स्थापना से न केवल जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम होगी, बल्कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में भी महत्वपूर्ण कमी आएगी। इसके अतिरिक्त, सौर पैनल सूर्य के प्रकाश को अवशोषित करते हैं, जिससे सतह पर पड़ने वाली गर्मी कम होती है, जो शहरी क्षेत्रों में तापमान नियंत्रण में सहायक है। 

जटिल टेंडर, समझौतों में देरी से जूझ रहा अक्षय ऊर्जा सेक्टर

इंस्टिट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (आईईईएफए) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के अक्षय ऊर्जा क्षेत्र को टेंडरों की मांग में कमी, बिजली समझौतों में देरी और परियोजनाएं रद्द होने जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। साल 2024 में भारत ने 73 गीगावाट अक्षय ऊर्जा के लिए निविदाएं जारी की थीं। हालांकि, 8.5 गीगावाट परियोजनाओं के लिए पर्याप्त खरीदार या निवेशक नहीं मिल सके। निविदा (बोली) प्रक्रिया की जटिलता और राज्यों के बीच ट्रांसमिशन इंफ्रास्ट्रक्चर की स्थापना में देरी से यह परियोजनाएं आकर्षक नहीं रह गई थीं।

लगभग 40 गीगावाट ऊर्जा के लिए खरीद समझौतों को अंतिम रूप दिया जाना बाकी है। जबकि 2020 से 2024 के बीच, 38.3 गीगावाट की परियोजनाएं रद्द हो चुकी हैं। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि इससे निवेशकों की रूचि कम हो सकती है और कम लागत वाली फाइनेंसिंग भी प्रभावित हो सकती है।

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