भारत को कोयले से दूर जाने (जस्ट ट्रांज़िशन) के लिए अगले 30 वर्षों में 1 ट्रिलियन डॉलर, या 84 लाख करोड़ रुपए से अधिक की आवश्यकता होगी। यह खुलासा पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन अनुसंधान थिंक-टैंक आईफॉरेस्ट (इंटरनेशनल फोरम फॉर एनवायरनमेंट, सस्टेनेबिलिटी एंड टेक्नोलॉजी) द्वारा किए गए एक अध्ययन में हुआ है।
अध्ययन में कोयले पर निर्भर क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने की लागत के साथ-साथ कोयला खदानों और कोयला संयंत्रों को चरणबद्ध तरीके से बंद करने की लागत का अनुमान लगाने का प्रयास किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कोयला कम से कम अगले एक दशक तक भारत के ऊर्जा मिश्रण का केंद्र रहेगा और इससे दूर जाना एक बड़ी चुनौती है।
भारत में चार कोयला-निर्भर जिलों के आकलन और दक्षिण अफ्रीका, जर्मनी और पोलैंड में जस्ट ट्रांज़िशन आर्थिक योजनाओं की समीक्षा के आधार पर, अध्ययन में आठ ऐसे घटकों को सूचीबद्ध किया गया है जिनमें यह लागत मुख्य रूप से विभाजित होगी। इनमें खदानों को बंद करने और पुनर्उपयोग करने की लागत, कोयला संयंत्रों का रिटायरमेंट और उन साइटों का साफ ऊर्जा के लिए पुनर्उपयोग, हरित रोजगार के लिए श्रम कौशल, आर्थिक विविधीकरण, सामुदायिक समर्थन, हरित ऊर्जा के लिए निवेश, राज्यों को होनेवाले नुकसान की भरपाई के लिए राजस्व के वैकल्पिक साधन, और नियोजन आदि की लागत शामिल है।
2023 में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा ग्रीनहाउस उत्सर्जन, जीवाश्म ईंधन है प्रमुख वजह
विश्व मौसम विज्ञान संगठन की एक नई रिपोर्ट से पता चलता है कि ग्रीनहाउस गैसों का स्तर दो दशकों में 10 प्रतिशत से अधिक बढ़कर 2023 में रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया। रिपोर्ट के अनुसार इस वृद्धि में मानव और औद्योगिक गतिविधियों से होने वाले जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन का प्रमुख योगदान है। इसके अलावा जंगलों की आग और वनों द्वारा कार्बन अवशोषण में कमी भी इसके कारणों में से हैं।
वैश्विक स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड की औसत सतह सांद्रता 2023 में 420 भाग प्रति मिलियन तक पहुंच गई, जो दो दशकों में 11.4% की वृद्धि है। यह (1750 से पहले के) पूर्व-औद्योगिक स्तर का 151 प्रतिशत है। 1990 के बाद से ग्रीनहाउस गैसों का वार्मिंग प्रभाव 50% से अधिक बढ़ गया है, जो मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड के कारण है, जिसका जलवायु पर लंबे समय तक प्रभाव रहता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि तेजी से उत्सर्जन में कटौती के बावजूद, वर्तमान तापमान वृद्धि दशकों तक बनी रहेगी।
जीवाश्म ईंधन पर अमेरिका की निर्भरता चीन के मुकाबले अधिक
जीवाश्म ईंधन पर चीन के मुकाबले अमेरिका की ऊर्जा प्रणाली अधिक निर्भर हो रही है। रायटर्स में प्रकाशित समाचार के मुताबिक इससे विश्व में साफ ऊर्जा ट्रांजिशन में अमेरिका की छवि को भारी क्षति हो सकती है। ऊर्जा थिंक टैंक एम्बर के आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका ने पिछले चार महीनों में कुल बिजली उत्पादन का औसतन 62.4% उत्पादन जीवाश्म ईंधन से किया है।
जीवाश्म ईंधन पर अमेरिका की भारी निर्भरता गर्मियों के दौरान एयर कंडीशनर के उपयोग के कारण घरेलू बिजली की मांग में बढ़ोतरी से हुई, जबकि चीन की अपेक्षाकृत कम जीवाश्म निर्भरता की एक वजह लंबी आर्थिक मंदी भी थी।
लेकिन यह भी स्पष्ट है कि चीन क्लीन एनर्जी स्रोतों का प्रयोग बढ़ाने में अधिक आक्रामक है, जिसने चीन को जीवाश्म ईंधन का प्रयोग सीमित करने में अमेरिका के मुकाबले आगे रखा है। एम्बर के अनुसार, अमेरिका में, स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन पिछले पांच वर्षों में प्राथमिकता रही है और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों से बिजली उत्पादन 2019 के बाद से लगभग 16% बढ़ गया है। लेकिन लगातार बढ़ती कुल बिजली मांग ने बिजली कंपनियों के लिए जीवाश्म ईंधन से उत्पादन में कटौती की गुंजाइश सीमित कर दी है।
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