सरकार ने बताया है कि हरित हाइड्रोजन के उत्पादन में कितना होना चाहिए उत्सर्जन।

सरकार ने जारी की हरित हाइड्रोजन की परिभाषा, तय किए मानक

सरकार ने हरित हाइड्रोजन की परिभाषा देते हुए मानक जारी किए हैं और इसमें इलेक्ट्रोलिसिस और बायोमास-आधारित उत्पादन विधियों को भी शामिल किया है। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा जारी किए गए मानक वह उत्सर्जन सीमा तय करते हैं जिन्हें ‘हरित’ के रूप में वर्गीकृत किए जाने वाले हाइड्रोजन के उत्पादन हेतु पूरा किया जाना अनिवार्य है। 

मंत्रालय ने कहा है कि हरित हाइड्रोजन के उत्पादन में वेल-टू-गेट (यानी वाटर ट्रीटमेंट, इलेक्ट्रोलिसिस, गैस शुद्धिकरण, सुखाने और हाइड्रोजन संपीड़न सहित) उत्सर्जन 2 किलोग्राम CO2 इक्विवलैन्ट प्रति किलो H2 से अधिक नहीं होना चाहिए। ‘CO2 इक्विवलैन्ट प्रति किलो H2’ ग्रीनहाउस उत्सर्जन मापने की इकाई है।

इस अधिसूचना के साथ, भारत ग्रीन हाइड्रोजन की परिभाषा घोषित करने वाले दुनिया के पहले कुछ देशों में से एक बन गया है।

2050 तक नेट जीरो पर पहुंचने के लिए भारत को चाहिए 12.7 ट्रिलियन डॉलर का निवेश

भारत को 2050 तक नेट जीरो उत्सर्जन तक पहुंचने के लिए अपने एनर्जी सिस्टम में 12.7 ट्रिलियन डॉलर का निवेश करने की आवश्यकता होगी, जो देश की जीडीपी का तीन गुना से भी अधिक है।

भारत ने 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है, जो की दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से पीछे है। संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुटेरेश पहले कह चुके हैं कि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जरूरी है कि अमीर देश 2040 तक और विकासशील देश 2050 तक नेट-जीरो उत्सर्जन पर पहुंचने का प्रयास करें।

ब्लूमबर्गएनईएफ की रिपोर्ट के मुताबिक, 2050 तक नेट जीरो पाने के लिए भारत को अपने विशाल और कोयले पर निर्भर बिजली क्षेत्र को तेजी से साफ ऊर्जा की ओर ले जाना होगा। इसके लिए बड़े पैमाने पर हरित ऊर्जा में निवेश की आवश्यकता होगी। भारत में अभी भी 70% बिजली का उत्पादन कोयले से होता है।

बीएनईएफ के आंकड़ों के अनुसार इसके लिए 2050 तक हर साल 438 बिलियन डॉलर के निवेश की आवश्यकता होगी। ब्लूमबर्गएनईएफ के विश्लेषण के अनुसार भारत के लिए बिजली को अधिक लोगों तक पहुंचाने और साथ ही बिजली आपूर्ति को डीकार्बनाइज करने का सबसे सस्ता विकल्प है कि सौर और पवन ऊर्जा की स्थापना अधिक से अधिक की जाए।

2030 तक देश के ऊर्जा मिश्रण का 65% हिस्सा होगा गैर-जीवाश्म आधारित: ऊर्जा मंत्री

केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आर के सिंह ने कहा है कि 2030 तक देश के ऊर्जा मिश्रण में नवीकरणीय ऊर्जा का हिस्सा 65 प्रतिशत होगा। उन्होंने कहा कि भारत में फिलहाल 186 गीगावॉट गैर-जीवाश्म ईंधन-आधारित बिजली उत्पादन करने की क्षमता है। “2015 में हमने लक्ष्य रखा था कि 2030 तक हमारे ऊर्जा मिश्रण में 40 प्रतिशत हिस्सा नवीकरणीय ऊर्जा का होगा। यह लक्ष्य हमने नौ साल पहले 2021 में हासिल कर लिया। अब 2030 का लक्ष्य है कि ऊर्जा मिश्रण का 65 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा हो,” उन्होंने कहा।

उन्होंने कहा कि सरकार ने हर साल 50 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता बढ़ाने की योजना बनाई है। वर्तमान में भारत में 423 गीगावॉट स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता है। इस वर्ष देश को 40 गीगावॉट अधिक बिजली की आवश्यकता होगी क्योंकि देश की बिजली मांग 14 प्रतिशत की दर से बढ़ी है।

हरित-अमोनिया आधारित एनर्जी स्टोरेज सिस्टम स्थापित करेगा भारत

भारत हरित अमोनिया-आधारित ऊर्जा भंडारण प्रणाली स्थापित करने की योजना बना रहा है, जिसके लिए जल्दी ही निविदा जारी की जाएगी। भारत को चौबीसों घंटे नवीकरणीय ऊर्जा की आवश्यकता है, जिसके लिए ऊर्जा भंडारण आवश्यक है। सरकार ने कहा कि जल्द ही भारत हरित अमोनिया को भंडारण के रूप में उपयोग करने के लिए बोलियां आमंत्रित करेगा। यदि यह प्रयास सफल होता है तो ऊर्जा भंडारण के लिए लिथियम-आयन बैटरी पर भारत की निर्भरता कम हो जाएगी।

हाल ही में भारत ने बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणालियों (बीईएसएस) और पंप भंडारण परियोजनाओं (पीएसपी) के लिए बोलियां आमंत्रित कीं। सरकार द्वारा महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन को शुरू करने के साथ, अगले दो से तीन वर्षों के भीतर हरित अमोनिया का उत्पादन बढ़ने वाला है। ग्रीन अमोनिया ग्रीन हाइड्रोजन का व्युत्पन्न है, दोनों को “ग्रीन” कहा जाता है यदि इनके निर्माण में इस्तेमाल होने वाली बिजली पूरी तरह से नवीकरणीय ऊर्जा के साथ उत्पादित होती है।

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