जी20 देशों में जीवाश्म ईंधन पर दी जाने वाली सब्सिडी ही लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर है।

जी20 देशों ने 2022 में जीवाश्म ईंधन पर खर्च किए 1.4 ट्रिलियन डॉलर

एक नए अध्ययन के अनुसार, जी20 देशों की सरकारों ने 2022 में जीवाश्म ईंधन के लिए रिकॉर्ड 1.4 ट्रिलियन डॉलर (लगभग 116 लाख करोड़ रुपए) खर्च किए। अध्ययन के अनुसार ऐसा यूक्रेन युद्ध के कारण ईंधन की बढ़ती कीमतों को कम करने और ऊर्जा भंडार को मजबूत करने के लिए किया गया। कनाडा के स्वतंत्र थिंकटैंक इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट (आईआईएसडी) और उसके साझेदारों द्वारा जारी की गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि यह राशि 2019 में कोविड और ऊर्जा संकट के पूर्व किए गए खर्च से दोगुनी से भी अधिक है।

इसमें जीवाश्म ईंधन सब्सिडी ($1 ट्रिलियन), सरकारी उद्यमों द्वारा निवेश ($322 बिलियन) और सार्वजनिक वित्तीय संस्थानों दिए गए लोन ($50 बिलियन) शामिल हैं।

रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि इस वर्ष जी20 देश अपनी जलवायु प्रतिबद्धताओं पर काम करने के लिए सहमत हों और सर्वाधिक गरीब तबके तक ऊर्जा पहुंचाने करने के लिए आवश्यक खर्च को छोड़कर जीवाश्म ईंधन पर सरकारी खजाने से किया जाने वाला सारा खर्च बंद करें। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जी20 अध्यक्ष के रूप में भारत ऐसा करने में विश्व का नेतृत्व कर सकता है क्योंकि इसने 2014 से 2022 तक अपनी जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को 76% कम किया है, जबकि साफ ऊर्जा के समर्थन में उल्लेखनीय वृद्धि की है।

जीवाश्म ईंधन सब्सिडी के मामले में भारत चौथे स्थान पर

जीवाश्म ईंधन पर दी जाने वाली सब्सिडी के मामले में भारत पूरी दुनिया में चौथे स्थान पर है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के एक वर्किंग पेपर में कहा गया है कि देश में जीवाश्म ईंधन पर लगभग 350 अरब डॉलर (28 लाख करोड़ रुपए से अधिक) की सब्सिडी दी जाती है। इस मामले में पहला स्थान चीन का है, जबकि अमेरिका और रूस क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं। पाचंवा स्थान संयुक्त रूप से यूरोपीय संघ और जापान का है।

जीवाश्म ईंधन पर दी जाने वाली कुल सब्सिडी के दो भाग होते हैं: स्पष्ट सब्सिडी (यानी ईंधन की आपूर्ति के लिए लागत से कम शुल्क लेना) और अंतर्निहित सब्सिडी (पर्यावरणीय क्षति के लिए कम शुल्क और उपभोग कर में कटौती)। भारत में ‘उज्जवला’ योजना के तहत घरेलू एलपीजी के लिए स्पष्ट या प्रत्यक्ष सब्सिडी दी जाती है, जबकि विभिन्न प्रकार के ईंधन को दूरदराज के स्थानों तक ले जाने के लिए कुछ परिवहन सब्सिडी भी दी जाती है। पेपर में कहा गया है कि भारत में अंतर्निहित और स्पष्ट दोनों तरह की सब्सिडी मिलकर लगभग 346 अरब डॉलर होने का अनुमान है, जो जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का 10 प्रतिशत से अधिक है।

सुधरने को तैयार नहीं हैं तेल और गैस कंपनियां 

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी की अगस्त 2023 की आयल मार्केट रिपोर्ट के अनुसार, तेल और गैस उद्योग इस साल अपस्ट्रीम निवेश (कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस की खोज, ड्रिलिंग और निष्कर्षण आदि में निवेश) को 2015 के बाद सबसे बड़े स्तर तक बढ़ाने के लिए तैयार है। प्रमुख यूरोपीय तेल कंपनियों बीपी और शेल ने यह दिखावा करना भी छोड़ दिया है कि वे तेजी से एनर्जी ट्रांज़िशन करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव दुनिया भर में देखे जा रहे हैं, फिर भी बीपी ने तेल उत्पादन में कटौती की प्रतिबद्धता को दरकिनार कर दिया है, वहीं शेल का ध्यान शेयरधारकों को मुनाफा पहुंचाने और तेल और गैस का उत्पादन करने में पूंजी लगाने पर है। परिणामस्वरूप, तेल कंपनियों का स्वच्छ ऊर्जा पर पूंजीगत व्यय (जिसमें जैव ईंधन और सीसीएस भी शामिल हैं) अपस्ट्रीम तेल और गैस पर पूंजीगत व्यय के मुकाबले बहुत कम है।

गरीब देशों को जीवाश्म ईंधन पर निर्भर रहने के लिए मजबूर करते हैं अमीर देश: रिपोर्ट

कर्ज से लदे गरीब देश राजस्व के लिए जीवाश्म ईंधन पर निर्भर रहने के लिए मजबूर हैं, ऐसा ऋण-विरोधी प्रचारक संस्था डेट जस्टिस और प्रभावित देशों में इसके साझेदारों द्वारा जारी की गई एक नई रिपोर्ट में कहा गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड महामारी जैसे आर्थिक संकटों से निपटने के लिए इन देशों ने अमीर देशों और निजी कर्जदाताओं से भारी कर्ज लिए हैं। जिसके भुगतान के लिए इन्हें जीवाश्म ईंधन पर निर्भर रहना पड़ता है।

ज्यादातर ग्लोबल साउथ के इन देशों में जीवाश्म ईंधन को फेजआउट करना और नवीकरणीय ऊर्जा की ओर ट्रांज़िशन करना लगभग असंभव है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जीवाश्म ईंधन परियोजनाओं से जितना राजस्व मिलने की उम्मीद होती है उतना प्राप्त नहीं होता, और अपेक्षित रिटर्न प्राप्त करने के लिए भी भारी निवेश की आवश्यकता होती है। ऐसे में परियोजना के लाभप्रद नहीं होने से कर्ज और बढ़ जाता है।

रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि ग्लोबल साउथ देशों में जीवाश्म ईंधन पर किए जाने वाले निवेश को रोकने के कई आश्वासनों के बावजूद, अमीर देश और बहुपक्षीय और द्विपक्षीय कर्जदाता “अक्सर कर्ज के द्वारा जीवाश्म ईंधन परियोजनाओं को वित्तपोषित करते हैं, जिससे (गरीब देशों पर) कर्ज का बोझ बढ़ जाता है और वह जीवाश्म ईंधन उत्पादन में बंध जाते हैं”।

रिपोर्ट में गरीब देशों को इस समस्या से मुक्ति दिलाने के उपायों के बारे में भी बताया गया है।

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