नेपाल में बाढ़, लगभग 200 लोगों के मरने की आशंका

नेपाल में भारी बारिश के कारण आई बाढ़ और भूस्खलन से मरने वालों की संख्या 150 से अधिक हो गई है जबकि रविवार तक 56 लोग लापता थे। स्थानीय लोगों ने कार्बनकॉपी को बताया कि उन्होंने पिछले पांच दशकों में ऐसी बाढ़ कम से कम राजधानी काठमांडू के इलाके में नहीं देखी और नेपाल में मरने वालों की संख्या 200 तक पहुंच सकती है। सरकार ने आपदा के बाद स्कूलों को तीन दिन के लिए बंद करने की घोषणा की है। 

काठमांडू घाटी में कम से कम 37 लोगों की मौत हो गई है और यहां बाढ़ ने यातायात और दैनिक जीवन को रोक दिया है। नेपाल में इस आपदा से करीब साढ़े तीन सौ घर तबाह हो गये हैं और 16 पुल बह गये हैं। करीब 20,000 पुलिस और राहतकर्मियों को लगाया गया है जिन्होंने करीब 4000 लोगों रविवार शाम तक सुरक्षित जगहों में पहुंचाया।

उत्तर पूर्व में लू के थपेड़ों के बाद बारिश ने दी राहत

उत्तर-पूर्व के सातों राज्यों में इस साल सितंबर में हीटवेव के हालात दिखाई दिये, हालांकि बाद में बारिश से कुछ राहत मिली है। उधर पश्चिम में मुंबई समते कई जगह बाढ़ के हालात हैं। मौसम विज्ञानियों और विशेषज्ञों का कहना है कि इसके पीछे कई कारक काम कर रहे हैं और जलवायु परिवर्तन हालात को और खराब कर रहा है।  हिन्दुस्तान टाइम्स के मुताबिक सितंबर के मध्य में (17 सितंबर को) गुवाहाटी का तापमान 38 डिग्री रिकॉर्ड किया गया जो सामान्य से 5.6 डिग्री अधिक है। इसी तरह मेघालय में 4.9 डिग्री और अरुणाचल के पासी घाट में सामान्य से 7 डिग्री ऊपर रहा। हालांकि महीने के आखिरी हफ्ते में बारिश ने लोगों को राहत दी है। 

विशेषज्ञों के अनुसार कमजोर मानसून परिसंचरण, मिट्टी में नमी की कमी, सूरज की रोशनी का भारी संपर्क, वनों की भारी कटाई और बढ़ती औद्योगिक गतिविधि जैसे स्थानीय कारकों ने असम में एक हीट डोम इम्पेक्ट में योगदान दिया है जिस कारण हीटवेव के हालात बने।

हीट डोम इम्पेक्ट एक मौसमी कारक है जिसमें एक विशाल क्षेत्रफल के ऊपर उच्च दबाव की स्थिति पैदा हो जाती है जिस कारण गर्म हवा उठकर ठंडी नहीं हो पाती और तापमान असामान्य हो जाता है। इससे सूखे की स्थिति और जंगलों में आग हो सकती है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन के कारण इस तरह के हालात और बिगड़ सकते हैं। 

बंगाल से मुंबई तक बारिश ने किया बेहाल 

पश्चिम बंगाल में गुरुवार को भारी वर्षा के बाद मौसम विभाग ने रेड अलर्ट जारी किया। कोलकाता में 24 घंटों के दौरान 66 मिमी बारिश हुई। लगातार बारिश के कारण बंगाल के दक्षिणी जिले जलमग्न हो चुके हैं और किसानों को अपनी फसल की चिंता है। मौसम विभाग ने पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन की चेतावनी भी दी है।

उधर सिक्किम में तीन दिनों से अधिक हुई लगातार भारी बारिश के कारण कई इलाकों में भूस्खलन हुआ है और पुराने रांग-रांग ब्रिज को काफी नुकसान पहुंचा है।

उधर मुंबई में भी पिछले हफ्ते भारी बारिश हुई जिससे निचले इलाकों में पानी भर गया, कई रूटों पर लोकल ट्रेनें ठप हो गईं और कम से कम 14 उड़ानों के रूट में बदलाव करना पड़ा। अँधेरी पूर्व इलाके में एक 45 वर्षीय महिला की नाले में गिरकर मौत हो गई, जिसके बाद बृहन्मुंबई महानगरपालिका ने उच्च-स्तरीय जांच की घोषणा की है।

मुंबई में 25 सितंबर की शाम को कई इलाकों में पांच घंटों के दौरान 100 मिलीमीटर से अधिक बारिश हुई। कई रूटों पर लोकल ट्रेन सेवा बंद हो जाने से यात्री फंसे रहे और सडकों पर भारी जलजमाव के कारण ट्रैफिक जाम की स्थिति बनी रही। बुधवार को मौसम विभाग ने मुंबई के लिए रेड अलर्ट जारी किया था जिसके बाद अगले दिन सभी स्कूलों को बंद कर दिया गया और लोगों से अपील की गई कि जरूरी न हो तो घर से बाहर न निकलें।

आईएमडी की वैज्ञानिक सुषमा नायर ने कहा कि कोंकण से बांग्लादेश तक निम्न दाब प्रणाली दक्षिणी छत्तीसगढ़ के ऊपर मौजूद साइक्लोनिक सर्कुलेशन के साथ मिलकर ऐसी स्थितियां बना रही है जिसके परिणामस्वरूप कोंकण और गोवा क्षेत्र में वर्षा हो रही है। यह निम्न दाब प्रणाली अब धीरे-धीरे मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र होते हुए दक्षिण की ओर बढ़ रही है। 

यूरोप में भयानक बाढ़ की संभावना क्लाइमेट चेंज के कारण दो गुनी   

मानव-जनित जलवायु परिवर्तन ने उस भारी बारिश की संभावना को दोगुना कर दिया जिसके कारण इस महीने की शुरुआत में मध्य यूरोप में विनाशकारी बाढ़ आई। यह बात एक नये अध्ययन में सामने आई है।  

सितंबर के मध्य में तूफान बोरिस से हुई मूसलाधार बारिश ने रोमानिया, पोलैंड, चेकिया, ऑस्ट्रिया, हंगरी, स्लोवाकिया और जर्मनी सहित मध्य यूरोप के एक बड़े हिस्से को तबाह कर दिया और व्यापक क्षति हुई। बाढ़ से 24 लोगों की मौत हो गई, पुल क्षतिग्रस्त हो गए, कारें जलमग्न हो गईं, शहरों में बिजली गुल हो गई और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की मरम्मत करनी पड़ी। 

जलवायु से प्रेरित प्रभावों का अध्ययन चलाने वाले वैज्ञानिकों के एक समूह, वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन, ने बुधवार को यूरोप से कहा कि चार दिनों की गंभीर बारिश मध्य यूरोप में अब तक की सबसे भारी बारिश दर्ज की गई थी और कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस के जलने से हुई गर्मी के कारण इसकी संभावना दोगुनी थी। अध्ययन में पाया गया कि जलवायु परिवर्तन ने भी बारिश को 7 प्रतिशत से 20 प्रतिशत तक अधिक तीव्र बना दिया है।

वनों पर क्लाइमेट चेंज के प्रभावों पर नज़र रखने के लिए  में 42 इको प्रयोगशालाएं  

उत्तराखंड वन विभाग ने 42 ‘इकोलॉजिकल प्रयोगशालाएं’ स्थापित की हैं जो कि पूरे राज्य में जंगलों में हो रहे बदलावों का अध्ययन करेंगी। जलवायु परिवर्तन के कारण वनों की प्रकृति बदल रही है। ये प्रयोगशालाएं अनियमित जलवायु पैटर्न के प्रभाव पर महत्वपूर्ण डेटा प्रदान करेंगी, जिसमें रोडोडेंड्रोन (बुरांश) और ब्रह्मकमल जैसी प्रजातियों में जल्दी फूल आना भी शामिल है। इसी तरह पहाड़ी और तराई के इलाकों में फलों और पर बढ़ते तापमान के प्रभाव को समझा जा सकेगा।  

अंग्रेज़ी दैनिक टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक बीती गर्मियों में 42 डिग्री तापमान देहरादून और रामनगर की लीची की गुणवत्ता पर प्रभाव डाला था। इसी तरह अन्य फसलों और वनस्पतियों पर भी बढ़ते तापमान का असर हो रहा है। 

उत्तराखंड के मुख्य वन संरक्षक (अनुसंधान विंग) संजीव चतुर्वेदी ने कहा, “इन प्रयोगशालाओं का 13 मापदंडों के आधार पर मैदानी इलाकों में हर चार साल में और पहाड़ी इलाकों में हर पांच साल में विश्लेषण किया जाएगा। इनमें फेनोलॉजिकल प्रजातियों के जीवन चक्र में परिवर्तन, जैव विविधता सूचकांक, प्रजातियों का प्रवास, पारिस्थितिक उत्तराधिकार, प्रयोगशालाओं के भीतर जलवायु विविधताएं, कार्बन पृथक्करण और कार्बन स्टॉक आदि शामिल हैं। 

राज्य के फ़ॉरेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट (एफ़आरआई) उत्तराखंड में पारिस्थितिकी और जलवायु परिवर्तन विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक एन बाला ने इन पारिस्थितिक प्रयोगशालाओं के महत्व पर कहा, “जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को बेहतर ढंग से समझने के लिए, हमें इन प्रयोगशालाओं – या संरक्षण भूखंडों की आवश्यकता है – जिन्हें वन परिवर्तनों का निरंतर रिकॉर्ड बनाए रखने के लिए हर पांच साल में दोबारा देखा जा सकता है। इस डेटा के बिना, चल रहे परिवर्तनों को समझना या प्रभावी शमन रणनीतियों को लागू करना असंभव है।” 

धान के स्थान पर अन्य फसलें उगाने से भूजल स्तर सुधारने में मिल सकती है मदद: अध्ययन

एक अध्ययन में पाया गया है कि धान की बुआई वाले लगभग 40 प्रतिशत क्षेत्र में अन्य फसल उगाने से  उत्तर भारत में वर्ष 2000 के बाद से खोए गए 60-100 क्यूबिक किलोमीटर भूजल को रिचार्ज किया जा सकता है। विशेषज्ञ शोधकर्ताओं की एक टीम – जिसमें आईआईटी गांधीनगर, गुजरात के शोधकर्ता भी हैं – ने पाया है कि धरती की वॉर्मिंग जारी रहती है तो धान की अधिकता वाले वर्तमान कृषि पैटर्न, जिसमें कि अधिक जल की ज़रूरत होती है, के कारण  13 से 43 घन किलोमीटर पानी का नुकसान हो रहा है। विशेषज्ञों ने धान की गिरते भू-जल स्तर को रोकने के लिए धान की खेती में भारी कटौती की सिफारिश की है। 

इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की 2018 में प्रकाशित हुई विशेष रिपोर्ट (SR 1.5) के अनुसार: यदि मौजूदा रुझान जारी रहता है, तो संभावना है कि 2030 और 2050 के बीच ग्लोबल वार्मिंग 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर जायेगी, और सदी के अंत तक तापमान वृद्धि  3 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकती है।

रिपोर्ट के लेखकों ने कहा कि भूजल स्थिरता और किसानों की लाभप्रदता सुनिश्चित करने के लिए फसल पैटर्न बदलना काफी फायदेमंद हो सकता है – विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश राज्यों के लिए। हालांकि शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और झारखंड जैसे राज्यों में जहां रिकवरी दर कम थी वहां फसलों को बदलने से भूजल स्तर पर कोई खास असर नहीं पड़ा।

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