भारत ने पहली बार यह गणना की है कि देश में कितनी वाटरबॉडी हैं। यह काफी महत्वपूर्ण आंकड़ा है क्योंकि बढ़ती आबादी के साथ जलसंसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को देखते हुए पानी जैसे अमूल्य रिसोर्स को संरक्षित करना जरूरी है। जिसके लिए मजबूत डाटाबेस चाहिए।
वैसे केंद्र सरकार के पास उन जल निकायों का आंकड़ा होता है जिन्हें मरम्मत, नवीनीकरण और जीर्णोद्धार (आरआरआर) नीति के तहत आर्थिक मदद मिलती थी लेकिन जलशक्ति मंत्रालय का ताजा आंकड़ा पूरे देश की अधिक विस्तृत तस्वीर पेश करता है।
क्या कहती है रिपोर्ट?
देश के पहले वाटरबॉडीज सेंसस से पता चला है कि भारत में कुल 24 लाख से अधिक वाटरबॉडी हैं। इनमें तालाब, टैंक, जलाशय (रिजर्वॉयर) और चेक डैम शामिल हैं। इसके अलावा टपकन टैंक और झीलों आदि की गणना की भी संख्या इस सेंसस में की गई है।
हालांकि, सात विशेष प्रकार के जल निकायों को इस सेंसस से बाहर रखा गया है। जिनमें समुद्र और खारे पानी की झील के अलावा नदी, झरने, नहरें (बहता पानी), स्विमिंग पूल, ढके गए जलटैंक, फैक्ट्रियों द्वारा निजी प्रयोग के लिए बने टैंक, खनन से बना अस्थाई जलजमाव और जानवरों और पीने के पानी के लिए बना पक्का वटर टैंक शामिल है।
जानकार कहते हैं कि इस सेंसस को अधिक वृहद, सुदृढ़ और सटीक बनाया जा सकता है लेकिन जलसंकट और क्लाइमेट से जुड़ी चुनौतियों को देखते हुए यह पहला महत्वपूर्ण कदम तो है ही।
मध्यप्रदेश स्टेट नॉलेज सेंटर ऑन क्लाइमेट चेंज के कॉर्डिनेटर लोकेंद्र ठक्कर कहते हैं कि “हम जिसे माप नहीं सकते उसे बचा भी नहीं सकते” कहावत के हिसाब से वाटरबॉडीज को बचाने के लिए यह जरूरी है कि उनकी सही गिनती हमारे पास हो और यह गणना इस महत्वपूर्ण निधि को संरक्षित करने की दिशा में अहम होगी।
अधिक सटीक आंकड़े चाहिए
सेंसस बताता है कि कुल 24.24 लाख जल निकायों में से 78% मानवनिर्मित और 22% प्राकृतिक हैं। पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक 7.47 लाख वाटरबॉडी हैं। बंगाल, यूपी, असम, आंध्र प्रदेश और ओडिशा में ही देश की कुल 63% वाटरबॉडी हैं।
दिल्ली स्थित द एनर्जी एंड रिसोर्सेस इंस्टिट्यूट (टेरी) में जल संसाधन के सह निदेशक अंशुमन कहते हैं कि सेंसस से मिली सूचना अच्छी शुरुआत है और इससे हमें देश में वाटरबॉडीज का पहला खाका नजर आता है, लेकिन हम सूचना का इस्तेमाल कैसे करते हैं यह भी अहम है। उनके मुताबिक, “हमें इस सेंसस से पता चलता है कि केवल 1.6% वाटरबॉडीज में अतिक्रमण किया गया है जो कि काफी कम लगता है। लेकिन यह इसलिए है क्योंकि आप उन्हीं वाटरबॉडीज का अतिक्रमण देख पा रहे हैं जिन्हें गिना जा रहा है। उन वाटरबॉडीज का क्या जिनका अतिक्रमण हो गया है और वो गायब हो गई हैं.”
जल और स्वच्छता पर काम कर रहे मेघ पाइन अभियान के एकलव्य प्रसाद कहते हैं, “आने वाले समय में अगर सरकार इस सेंसस में अधिक बारीकी से आंकड़े जुटा पाए तो हालात की गंभीरता को अधिक गहराई से समझा जा सकता है।” प्रसाद याद दिलाते हैं कि साल 2021 में बिहार में कृषि मंत्रालय के तहत काम करने वाले इनलैंड वाटरबॉडी विभाग ने राज्य में ही 54,689 वाटरबॉडी गिनवाई थीं। इस गणना में बारहमासा और मौसमी तालाबों को उनके आकार के हिसाब से वर्गीकृत किया गया, जो अधिक स्पष्ट तस्वीर देता है। इन जल निकायों का अधिकतम क्षेत्रफल 74,000 हेक्टेयर और न्यूनतम करीब 26,000 हेक्टेयर आंका गया।
यूपी में सबसे अधिक अतिक्रमण
ताजा सेंसस के आंकड़े बताते हैं कि वाटरबॉडीज पर कब्जे के मामले में यूपी नंबर वन है। यहां सबसे अधिक 15,301 जल निकायों का अतिक्रमण हुआ है। इसके बाद तमिलनाडु (8,366) और आंध्र प्रदेश (3,920) हैं। जिन वाटरबॉडीज पर अतिक्रमण किया गया है, उनमें 12 प्रतिशत ऐसी हैं, जिनमें से तीन-चौथाई पर कब्जा किया जा चुका है।
अंशुमन कहते हैं कि शहरी क्षेत्रों में वाटरबॉडीज के ऊपर धड़ाधड़ कब्जा हो रहा है और बहुत सारा विकास कार्य उन्हीं वाटरबॉडीज के ऊपर हो रहा है। इसलिए हमें यह भी पता होना चाहिए कि कितनी वाटरबॉडीज को पहले नष्ट किया जा चुका है ताकि स्थिति की गंभीरता का सही आकलन हो सके। न केवल बेतरतीब निर्माण, बल्कि हमारी वाटरबॉडी ठोस कचरा प्रबंधन की कोई ठोस व्यवस्था न होने के कारण भी तबाह हो रही हैं और खाली जगहों को प्लास्टिक के कचरे का डंपिंग यार्ड बना दिया जाता है।
जल आपूर्ति और शहरी बाढ़ की चिंता
गणना में चिन्हित की गई केवल तीन प्रतिशत वाटरबॉडीज ही शहरी इलाकों में हैं और जानकारों के हिसाब से यह एक अच्छा संकेत नहीं है, क्योंकि इससे पता चलता है कि बढ़ती शहरी आबादी के अनुपात में हमारे पास जल निकाय नहीं हैं। खासकर ऐसे समय में जब लंबे सूखे और अचानक भारी बारिश जैसी चरम मौसमी घटनाओं के कारण जलापूर्ति संकट और बाढ़ दोनों खतरे बढ़ रहे हैं। गणना बताती है कि दो लाख से अधिक वाटरबॉडी बाढ़ संभावित क्षेत्र में हैं तो करीब पौने दो लाख जल निकाय ऐसे इलाकों में हैं, जहां सूखे का खतरा है।
प्रसाद कहते हैं, “शहरों में दोहरा खतरा है। एक ओर भूजल स्तर गिर रहा है, पानी के स्रोत सूख रहे हैं और दूसरी ओर अचानक अतिवृष्टि से बाढ़ के हालात हो रहे हैं। तालाबों के संरक्षण से न केवल सतह पर जलस्रोत पुनर्जीवित होते हैं और ग्राउंड वाटर रीचार्ज होता है, बल्कि बाढ़ को नियंत्रित करने में तालाब अहम भूमिका निभाते हैं। इस लिहाज से ऐसे सेंसस अहम होंगे।”
कुल वाटरबॉडीज में से 55 प्रतिशत निजी संस्थाओं के पास हैं और करीब 45 प्रतिशत सरकारी कब्जे में हैं। अंशुमन कहते हैं कि हमें इस बात पर फोकस करना चाहिए कि इन वाटरबॉडीज के रखरखाव, सफाई और रीचार्ज आदि सभी की देखभाल पंचायत स्तर पर होनी चाहिए। अगर 97 प्रतिशत वाटरबॉडी गांवों में है तो हमारी सारी योजना ग्राम पंचायतों को ध्यान में रखकर बनाई जानी चाहिए।
प्रशासनिक सख्ती के साथ सामुदायिक सहयोग जल संसाधन को बचाने और नियमन करने में अहम होगा। ठक्कर कहते हैं कि ताजा सेंसस सही दिशा में शुरुआत है लेकिन चुनौतियां जितनी विकट हैं उसे देखकर कहा जा सकता है कि लंबा रास्ता तय करना होगा। वह कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन से पैदा चुनौतियों से लड़ने और जल संसाधन को बचाने के लिए हमें कड़े कानून, नीतियां, प्रोग्राम के साथ-साथ जनभागेदारी भी चाहिए।
(यह स्टोरी न्यूज़लॉन्ड्री हिंदी से सभार ली गई है।)
आपको यह भी पसंद आ सकता हैं
-
भारत के 85% जिलों पर एक्सट्रीम क्लाइमेट का खतरा, उपयुक्त बुनियादी ढांचे की कमी
-
भारत के ‘चमत्कारिक वृक्षों’ की कहानी बताती पुस्तक
-
किसान आत्महत्याओं से घिरे मराठवाड़ा में जलवायु संकट की मार
-
कई राज्यों में बाढ़ से दर्जनों मौतें, हज़ारों हुए विस्थापित; शहरीकरण पर उठे सवाल
-
क्लाइमेट फाइनेंस: अमीरों पर टैक्स लगाकर हर साल जुटाए जा सकते हैं 2 लाख करोड़ डॉलर