बुरे दिनों की तैयारी: दिल्ली में सर्दियों का मौसम दमघोंटू हवा वाला होता है। मुख्यमंत्री ने इससे निपटने के लिये एक बार फिर ऑड-ईवन कार योजना को लागू करने का ऐलान किया है। Photo: Hindustan Times

दिल्ली में फिर लागू होगी ऑड-ईवन, प्रदूषण के आंकड़ों को लेकर विवाद

दमघोंटू प्रदूषण से लड़ने के लिये नवंबर के महीने में राजधानी में कारों के लिये ऑड-ईवन योजना लागू होगी। यह स्कीम 4 नवंबर से 15 नवंबर के बीच लागू की जायेगी। इस ऐलान के साथ दिल्ली के मुख्यमंत्री ने प्रदूषण से लड़ने के लिये एक सात सूत्री कार्यक्रम की भी घोषणा की जिसके तहत दिल्ली की सड़कों पर 1000 बैटरी बस लाने और दिल्ली वासियों के लिये N-95 मास्क उपलब्ध करवाना शामिल है।

केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली में प्रदूषण रोकने के लिये लम्बे समय से जो कदम उठाये जा रहे हैं उनकी वजह से यहां प्रदूषण स्तर में 25% कमी आई है। मुख्यमंत्री दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरेंन्मेंट (CSE)  की ताज़ा अध्ययन के आधार पर यह जानकारी दी। CSE ने कहा है कि 2012-14 और 2016-18 के बीच आंकड़ों का अध्ययन करने से पता चलता है कि प्रदूषण में वृद्धि रुक गई है और PM 2.5 कणों के स्तर में 25 प्रतिशत कमी है। हालांकि CSE ने यह भी कहा कि दिल्ली की हवा को सांस लेने लायक बनाने के लिये इसमें 65% प्रदूषण और कम करना होगा।

उधर करीब यूनाइटेड रेजीडेंट ज्वाइंट एक्शन (URJA) – जो दिल्ली के करीब 2500 रेजीडेंट वेलफेयर (RWA) का संगठन है – का कहना है कि राजधानी की हवा को बेहतर करने के लिये बनी रणनीति और उसके लागू होने में काफी अंतर है। कुछ जानकारों ने दिल्ली की हवा के 25% साफ होने के दावे पर भी सवाल खड़े किये हैं और कहा है कि 2015 से पहले दिल्ली में एयर क्वॉलिटी मॉनिटरिंग बेहतर नहीं थी इसलिये इन आंकड़ों की आपस में तुलना ठीक नहीं है।

माहुल की एयर क्वॉलिटी बेहतर हुई या नहीं, रिपोर्ट्स की तुलना हो: मुंबई हाइकोर्ट

मुंबई हाइकोर्ट ने आदेश दिया है कि माहुल की एयर क्वॉलिटी को लेकर हुये तमाम सर्वे के आधार पर एक तुलनात्मक चार्ट बनाया जाये ताकि पता चल सके कि 2015 से अब तक माहुल की हवा साफ हुई है या नहीं। कोर्ट ने यह आदेश तानसा पाइप लाइन प्रोजेक्ट से प्रभावित लोगों की याचिका पर दिया। 2015 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कहा था कि माहुल में हवा लोगों के रहने लायक नहीं है। प्रभावित लोगों के वकील ने नेशनल इन्वारेंमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टिट्यूट (NEERI), महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (MPCB) और काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) की रिपोर्ट अदालत में पेश की थी। 160 किलोमीटर तानसा वॉटर पाइपलाइन की सुरक्षा के लिये इस इलाके में बनी सैकड़ों बस्तियों में रह रहे लोगों को हटाया जा रहा है।

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