भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने कहा है कि नवंबर में देश के अधिकांश हिस्सों, विशेषकर उत्तर-पश्चिम, मध्य और पश्चिम भारत, में अधिकतम तापमान सामान्य से कम रह सकता है। हालांकि, न्यूनतम तापमान अधिकांश क्षेत्रों में सामान्य से अधिक रहने की संभावना है। केवल उत्तर-पश्चिम भारत के कुछ इलाकों में न्यूनतम तापमान सामान्य या उससे कम रह सकता है।
आईएमडी महानिदेशक मृृत्युञ्जय महापात्रा ने बताया कि हिमालयी क्षेत्र, पूर्वोत्तर भारत और दक्षिणी प्रायद्वीप के कुछ हिस्सों में अधिकतम तापमान सामान्य से अधिक हो सकता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में कमज़ोर ला नीना परिस्थितियां बनी हुई हैं, जो फरवरी 2026 तक जारी रह सकती हैं। नवंबर में उत्तर-पश्चिम और दक्षिण भारत के कुछ भागों को छोड़कर देश के अधिकांश हिस्सों में सामान्य से अधिक वर्षा की संभावना है।
दो असफल प्रयासों के बाद दिल्ली सरकार ने रोकी क्लाउड सीडिंग
दिल्ली में कृत्रिम वर्षा कराने के लिए किए गए क्लाउड सीडिंग (क्लाउड सीडिंग) प्रयोग दो असफल प्रयासों के बाद फिलहाल रोक दिए गए हैं। ये परीक्षण आईआईटी कानपुर और दिल्ली सरकार के सहयोग से मंगलवार को बुराड़ी, करोलबाग और मयूर विहार क्षेत्रों में किए गए थे।
आईआईटी कानपुर के निदेशक मनींद्र अग्रवाल ने बताया कि बादलों में नमी का स्तर सिर्फ 15 से 20 प्रतिशत था, जबकि प्रभावी सीडिंग के लिए कम से कम 30 से 50 प्रतिशत नमी चाहिए। इसी कारण वर्षा नहीं हो सकी। हालांकि, परीक्षण से मिली जानकारी ने हवा की गुणवत्ता में 6–10% सुधार दिखाया और इससे भविष्य की तैयारियों में मदद मिलेगी। दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा कि नमी बढ़ने पर फिर से ट्रायल किया जाएगा। आईआईटी कानपुर ने स्पष्ट किया कि यह तकनीक मानव और पर्यावरण के लिए सुरक्षित है और केवल आपात स्थिति में ही अपनाई जाती है।
वहीं एक रिपोर्ट में आईआईटी-दिल्ली ने बताया है कि पर्याप्त नमी और सैचुरेशन की कमी के कारण दिल्ली का सर्दियों का वातावरण क्लाउड सीडिंग के लिए उपयुक्त नहीं है।
चक्रवात मोंथा का खौफ: 9 की मौत, हजारों हेक्टेयर फसल तबाह
भीषण चक्रवाती तूफान मोंथा मंगलवार की रात आंध्र प्रदेश के काकीनाडा तट से टकराया जिससे आंध्र प्रदेश में कम से तीन लोगों की मौत की पुष्टि की है। राज्य के लगभग 18 लाख लोग प्रभावित हुए हैं, जबकि 2.14 लाख एकड़ में फसल बरबाद हुई है। वहीं तेलंगाना में मोंथा के कारण भारी वर्षा से जुड़ी घटनाओं में अबतक 6 लोगों की मौत हो चुकी है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, फसल और कृषि क्षेत्र को सबसे अधिक क्षति हुई है – आंध्र प्रदेश के 15 जिलों में लगभग 1.12 लाख हेक्टेयर भूमि प्रभावित हुई है, जिसमें धान, मक्का व मूंग जैसे मुख्य फसलें शामिल हैं। इसके साथ ही 2,294 कि.मी. सड़कें क्षतिग्रस्त हुईं, बिजली-निगम प्रभावित हुए और पेड़-खंभे उखड़ गए।
मौसम विभाग ने यह बताया है कि मोंथा अब एक निम्न-दबाव क्षेत्र में बदल गया है। (प्रभावित इलाकों में राहत-बचाव कार्य तीव्र गति से जारी हैं। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने प्रभावित परिवारों को तत्काल सहायता देने और बुनियादी सेवाओं को जल्द बहाल करने के निर्देश दिए हैं। इस आपदा के बीच प्रशासन ने किसानों को फोटो अपलोड कर फसल हानि दर्ज कराने के निर्देश दिए हैं, ताकि राज्य आपदा प्रतिकार निधि (एसडीआरएफ) के अंतर्गत उचित मुआवजा किया जा सके।
मेलिसा तूफ़ान से तबाही जारी, मृतकों की संख्या 44 पर पहुँची
कैरिबियन क्षेत्र में आए चक्रवाती तूफान ‘मेलिसा’ ने अब तक कम-से-कम 44 लोगों की जान ले ली है और भारी तबाही मचाई है।
घटित नुकसान में व्यापक रूप से जमैका प्रभावित हुआ है, जहाँ तूफान ने मंगलवार को भयंकर कैटेगरी 5 की शक्ति के साथ लैंडफॉल किया था — यह किसी भी तूफान द्वारा सीधे आक्रमित किए गए इस देश का अब-तक का सबसे शक्तिशाली तूफान था। जमैका की सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री ने बताया कि उन्हें अब तक 19 मौतों की पुष्टि हुई है, लेकिन राहत-बचाव कार्य जारी है। देश में लगभग 70 % से अधिक लोग बिजली सेवा से वंचित हैं, जबकि सड़कों, भवनों की छतों और पेड़ों को भारी नुकसान हुआ है।
हेती में भी मौतों की संख्या कम नहीं; वहां तेज बारिश ने नदियों का किनारा तोड़ दिया और कई इलाकों में सड़कें, पुल और यातायात मार्ग बह गए। विनाश के दायरे का आकलन करते हुए मौसमविद् संस्था AccuWeather ने अनुमान है कि यह तूफान ‘वेस्टर्न कैरिबियन’ में अब तक दर्ज की गई तीसरी सबसे शक्तिशाली और सबसे धीरे आगे बढ़ने वाली व्यवस्था बन गया है, जिसने खतरों को और बढ़ा दिया। अमेरिका और अन्य सहयोगी देश जल्द ही राहत-भ्रष्ट टीम भेजने की तैयारी में हैं, जबकि स्थानीय सशस्त्र बल चेतावनी जारी रखते हुए प्रभावित इलाकों में पहुँचने के लिए स्थिति को नियंत्रित कर रहे हैं। इस तूफान ने एक बार फिर बढ़ते मानवीय और आर्थिक जोखिम को उजागर किया है – विशेषकर जलवायु परिवर्तन की गति बढ़ने के बीच।
जलवायु निष्क्रियता हर साल ले रही है लाखों जिंदगियाँ: डब्ल्यूएचओ-लैंसेट रिपोर्ट की चेतावनी
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और द लैंसेट की संयुक्त रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन पर जारी निष्क्रियता (क्लाइमेट इनएक्शन) हर साल लाखों लोगों की जान ले रही है और यह मानव स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और आजीविका पर गहरा खतरा बन चुकी है।
‘लैंसेट काउंटडाउन ऑन हेल्थ एंड क्लाइमेट चेंज 2025’ के अनुसार, स्वास्थ्य पर असर डालने वाले 20 में से 12 प्रमुख संकेतक रिकॉर्ड स्तर के ख़तरे पर पहुँच गए हैं। रिपोर्ट बताती है कि जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता और जलवायु अनुकूलन की विफलता ने वैश्विक स्वास्थ्य पर विनाशकारी प्रभाव डाला है। डब्ल्यूएचओ के अधिकारी डॉ. जेरेमी फरार ने कहा, “जलवायु संकट वास्तव में स्वास्थ्य संकट है। तापमान में हर छोटा इजाफा जीवन और आजीविका की कीमत पर होता है।”
रिपोर्ट में खुलासा किया गया कि 1990 के दशक से गर्मी से जुड़ी मौतों में 23% की वृद्धि हुई है — हर साल लगभग 5.46 लाख लोग गर्मी से मर रहे हैं। वर्ष 2024 में, औसतन हर व्यक्ति 16 दिन अत्यधिक गर्मी झेलने को मजबूर हुआ जो जलवायु परिवर्तन के बिना संभव नहीं थी।
आर्थिक मोर्चे पर भी झटका बड़ा है — 2024 में गर्मी के कारण 640 अरब श्रम घंटों का नुकसान हुआ, जिससे 1.09 ट्रिलियन डॉलर की उत्पादकता हानि हुई।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि 15 देशों ने स्वास्थ्य बजट से अधिक पैसा जीवाश्म ईंधन सब्सिडी पर खर्च किया, जो 2023 में कुल 956 अरब डॉलर रही। फिर भी रिपोर्ट उम्मीद देती है — 2010 से 2022 के बीच कोयला आधारित प्रदूषण में कमी से हर साल 1.6 लाख असमय मौतें टलीं और नवीकरणीय ऊर्जा से 1.6 करोड़ रोजगार बने।
भारत में हिमनद झीलों का क्षेत्रफल 27% बढ़ा: सीडब्ल्यूसी
भारत में हिमनद झीलों (ग्लेशियल लेक्स) का क्षेत्रफल 2011 से जुलाई 2025 के बीच 27% से अधिक बढ़ गया है। केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, देश की 55 प्रमुख हिमनद झीलों का कुल जल क्षेत्र 1,952 हेक्टेयर से बढ़कर 2,496 हेक्टेयर हो गया। मॉनिटरिंग में शामिल झीलें लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में स्थित हैं।
सीडब्ल्यूसी ने बताया कि कुल मिलाकर हिमालयी क्षेत्र में झीलों का क्षेत्रफल 6% बढ़ा है। रिपोर्ट के अनुसार, यह वृद्धि उपग्रह चित्रों के विश्लेषण से मापी गई है और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी गंभीर चेतावनी मानी जा रही है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।
आपको यह भी पसंद आ सकता हैं
-
तट से टकराया भीषण चक्रवाती तूफान ‘मोंथा’; आंध्र प्रदेश और ओडिशा में भारी नुकसान
-
कुल 11,000 प्रजातियों के विलुप्ति जोखिम का आकलन करने के लिए ‘नेशनल रेड लिस्ट आकलन’ शुरू
-
जलवायु परिवर्तन: प्रवासी प्रजातियों पर विलुप्ति का खतरा
-
ला नीना के कारण उत्तर भारत में पड़ सकती है ज्यादा सर्दी
-
कोलकाता में मूसलाधार बारिश, 10 की मौत; कई दुर्गा पूजा पंडाल क्षतिग्रस्त
