‘द प्रोडक्शन गैप’ रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के देश सामूहिक रूप से पहले से भी अधिक जीवाश्म ईंधन उत्पादन की योजना बना रहे हैं। हिंदुस्तान टाइम्स ने इस रिपोर्ट के हवाले से बताया कि 2030 तक जीवाश्म ईंधन का अनुमानित उत्पादन ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए आवश्यक स्तर से 120 प्रतिशत अधिक होगा।
स्टॉकहोम एनवायरनमेंट इंस्टीट्यूट, आईआईएसडी और क्लाइमेट एनालिटिक्स द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारें 2035 तक कोयला और 2050 तक गैस उत्पादन की योजनाएं और बढ़ा रही हैं। तेल उत्पादन भी लगातार 2050 तक बढ़ने की उम्मीद है।
रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि यह प्रवृत्ति देशों की पेरिस समझौते की प्रतिबद्धताओं को कमजोर करेगी। साथ ही, यह 2030 से पहले कोयला, तेल और गैस की वैश्विक मांग चरम पर पहुंचने के आकलन के भी विपरीत होगी। पिछले साल दुबई में कॉप28 सम्मेलन में सभी देशों ने जीवाश्म ईंधन से “न्यायसंगत” संक्रमण पर सहमति जताई थी।
प्रतिबंधों के बीच अमेरिका से अधिक तेल खरीद सकता है भारत
भारत ने संभावना जताई है कि वह अमेरिका से अधिक तेल खरीद सकता है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत और चीन पर रूसी तेल आयात घटाने का दबाव बढ़ाने के बीच अमेरिका से तेल और गैस आयात बढ़ सकता है। टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, इससे अमेरिका का भारत के साथ 41 अरब डॉलर से अधिक का व्यापार घाटा कम होगा।
सरकार 25% सेकेंडरी टैरिफ हटाने और पारस्परिक टैरिफ कम करने की कोशिश भी कर रही है।
इस बीच, रॉयटर्स ने बताया कि नए प्रतिबंधों के खतरे के बावजूद भारत में रूसी यूरल कच्चे तेल की कीमत अक्टूबर में बढ़ी है।
रूसी तेल पर पूर्ण प्रतिबंध के लिए ट्रंप ने फिर यूरोप पर डाला दबाव
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यूरोपीय संघ पर फिर दबाव डाला है कि वह रूस से तेल खरीद पर पूर्ण प्रतिबंध लगाए, ताकि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को यूक्रेन युद्ध समाप्त करने के लिए मजबूर किया जा सके। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, यूरोपीय संघ ने 2022 से रूसी तेल की सीधी खरीद पर रोक लगा रखी है।
इसके बावजूद थोड़ी मात्रा में रूसी तेल अब भी पूर्वी यूरोप पहुंच रहा है। साथ ही, यूरोपीय देश भारत और तुर्की से डीज़ल आयात कर रहे हैं, जहां रूसी कच्चे तेल को रिफाइन कर निर्यात किया जाता है।
जीवाश्म ईंधन प्रदूषण से हर साल 87 लाख मौतें: रिपोर्ट
जीवाश्म ईंधन जलाने से न सिर्फ जलवायु संकट गहरा रहा है, बल्कि इससे 1.6 अरब लोगों का स्वास्थ्य भी खतरे में है। क्लाइमेट ट्रेस के नए इंटरैक्टिव मानचित्र के अनुसार, कोयला और तेल से चलने वाले बिजलीघर, रिफाइनरी और खदानें भारी मात्रा में पीएम2.5 जैसे जहरीले कण उत्सर्जित कर रही हैं।
इनमें से लगभग 90 करोड़ लोग ऐसे इलाकों में रहते हैं जहां ‘सुपर-एमिटर’ उद्योगों से अत्यधिक प्रदूषण फैल रहा है। विशेषज्ञों ने चेताया है कि इस प्रदूषण से हर साल करीब 87 लाख मौतें हो रही हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि तत्काल कदम उठाना बेहद जरूरी है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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