मई 2025 में दिल्ली से श्रीनगर जा रहे इंडिगो के विमान को जब तेज टर्बुलेंस और ओलों ने झकझोरा तो 277 यात्रियों की जान सांसत में आ गई। हालांकि पायलट की सूझबूझ से सुरक्षित लैंडिंग संभव हुई।
इस घटना के लगभग एक महीने बाद अहमदाबाद में एयर इंडिया का विमान क्रैश हो गया और 270 लोगों की मौत हो गई। एयर इंडिया हादसे के बाद हवाई उड़ानों की सुरक्षा को लेकर नए सिरे से बहस शुरू हो गई है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव से एयर टर्बुलेंस अधिक खतरनाक हो रहा है।
यह बात हाल के कुछ अध्ययनों में सामने आई है।
कैसे बढ़ रहा है जोखिम
पृथ्वी के बढ़ते तापमान के साथ-साथ वायुमंडलीय अस्थिरता भी बढ़ रही है। टर्बुलेंस — जिसे सामान्यतः हवा की अशांति कहा जाता है — अब और ज्यादा तीव्र और सामान्य होती जा रही है।
आमतौर पर पायलटों को बादलों के बीच टर्बुलेंस का सामना करना पड़ता है। लेकिन अब “क्लियर-एयर टर्बुलेंस” (सीएटी) उनके लिए विशेष चिंता का विषय बनता जा रहा है। यह बिना किसी चेतावनी के खुले आसमान में होती है और रडार के भी पकड़ में नहीं आती। यह जेट स्ट्रीम की अस्थिरता के कारण होती है, जिसे जलवायु परिवर्तन और अधिक गंभीर बना रहा है।
एक शोध के अनुसार, 1979 से 2020 के बीच नॉर्थ अटलांटिक क्षेत्र में गंभीर सीएटी की घटनाएं 55% बढ़ी हैं।
टेक-ऑफ और लैंडिंग के समय भी खतरा
यह समस्या सिर्फ ऊँचाई तक सीमित नहीं है। 4 मई 2024 को ऑस्ट्रेलिया के ब्रिसबेन में क़्वांटस की एक बोइंग 737 फ्लाइट लैंडिंग के दौरान अचानक आए डाउनबर्स्ट से बुरी तरह हिल गई और कई यात्री घायल हो गए।
ऑस्ट्रेलियाई ट्रांसपोर्ट सेफ्टी ब्यूरो की रिपोर्ट बताती है कि यह घटना पायलट के लिए भी अप्रत्याशित थी। जलवायु परिवर्तन से गरज के साथ आने वाले तूफानों (थंडरस्टॉर्म) की तीव्रता और फ्रीक्वेंसी दोनों बढ़ गई हैं, जिससे लैंडिंग और टेक-ऑफ जैसे नाजुक समय में जोखिम कई गुना बढ़ जाता है।
थंडरस्टॉर्म के साथ आने वाले तेज़ पवन झोंके, विशेषकर “डाउनबर्स्ट्स”, विमानों के लिए गंभीर खतरा बन सकते हैं और पहले भी कई दुर्घटनाओं का कारण बन चुके हैं।
विशेष रूप से ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी हिस्सों में गर्म समुद्र से उठने वाली अधिक नमी और गर्मी मिलकर अधिक शक्तिशाली थंडरस्टॉर्म को जन्म देती हैं, जिससे माइक्रोबर्स्ट नामक छोटे लेकिन अत्यंत शक्तिशाली झोंकों का खतरा भी बढ़ जाता है। ये माइक्रोबर्स्ट विमानों को अचानक ऊंचाई कम करने या बढ़ाने के लिए मजबूर कर सकते हैं, जिससे टेक-ऑफ और लैंडिंग दोनों के समय दुर्घटना की संभावना बढ़ जाती है।
विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि ओलावृष्टि जैसी चरम मौसमी घटनाएं भी टर्बुलेंस के खतरे को बढ़ा रही हैं। बड़े आकार वाले और घातक ओलों की घटनाएं अब अधिक आम होती जा रही हैं, जिससे विमानों को मिड-एयर क्षति पहुंचने का खतरा भी बढ़ गया है।
पक्षियों के अध्ययन से हल तलाशने की कोशिश
वैज्ञानिक अब पक्षियों की उड़ान का अध्ययन कर इस समस्या का हल तलाशने की कोशिश कर रहे हैं।
स्वानसी यूनिवर्सिटी की एमिली शेपर्ड और उनकी टीम ने फ्रिगेट बर्ड्स, एंडियन कॉन्डोर्स और कबूतरों पर सेंसर लगाकर यह अध्ययन किया कि वे हवा की दिशा और टर्बुलेंस से कैसे निपटते हैं।
पक्षी लगातार वायुमंडलीय डेटा एकत्र करते हैं, वह भी उन ऊंचाइयों और परिस्थितियों में जहां विमान नहीं पहुंच सकते। यह शोध ड्रोन तकनीक, मौसम पूर्वानुमान और भविष्य की उड़ानों को सुरक्षित बनाने की दिशा में सहायक साबित हो सकता है।
जैसे-जैसे शहरीकरण बढ़ रहा है, हवा का प्रवाह और अधिक अस्थिर हो रहा है, जिससे पक्षियों और मानव निर्मित विमानों दोनों को चुनौतियां झेलनी पड़ रही हैं।
पक्षियों से सीखकर शायद हम भविष्य की हवाई यात्रा को अधिक सुरक्षित बना सकते हैं।
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